सभी रास्ते परमेश्वर तक ले जाते हैं

कुछ लोग सतह के स्तर का अवलोकन करके इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं और सुंदरता सिर्फ त्वचा तक का गहरा हो सकता है पर धर्म नहीं हो सकता. दुनिया के सभी धार्मिक विचार के नीचे गुप्त विचारों और सिद्धांतों का दलदल है जो शाब्दिक रूप से आपको डूबा देगा. 

इसके अलावा एक समूह / संस्कृति में ‘इश्वर’ की अवधारणा होने और कुछ चीजें एक होने से उसका ये मतलब नहीं है के वहाँ पर अनुकूलता का एक संश्लेषण है.

दुनिया के बहुत से ऐसे धार्मिक विचार एक दुसरे के परस्पर विरोधी हैं. यदि आपने तुलनात्मक धर्मों और संस्कृतिओं का अध्ययन किया है तो आप पहले से ही इस निष्कर्ष पर आ गए होंगे.

उदाहरण के लिए, शैतानी बातें ईसाई धर्म के तुलना में सबसे चरम अर्थों में विरोधी हैं जिनमें कोई सुलह नहीं.

शायद किसी किसी को ये विचार अच्छ लगता है क्योंकि ये विश्वासों के मतभेदों के बीच तनाव को सुलझाकर एक बहुलवादी और मिलाजुला समाज के गठन में मदत करता है.

ये आंदोलन हालांकि वे धर्म के आम शीर्षक के अंतर्गत आ सकते हैं पर ये किसी भी हालत में मिलने वाले दोस्त नहीं हैं.

कुछ लोग इस विचार को इसलिए रख सकते हैं क्योंकि उनके अपने स्वयं के व्यक्तिगत विश्वास प्रणाली को न्यायोचित ठहराने के लिए इसका आवश्यकता है और ये भी संभव है के उन लोगों ने ये किसी से सुना और इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. 

फिर भी, ये बात के “सभी रास्तें इश्वर के तरफ ले जाते हैं” वास्तव में खुद में ही पदों की एक विरोधाभास है. हम कह सकते हैं के किसी एक चीज को करने के लिए बहुत से तरीके होते हैं, लेकिन जब वो सीधे संघर्ष में हैं और विपरीत दिशाओं में जा रहे हैं तो उन्हें एक जगह में लाने के लिए एक अच्छे मार्गनिर्देशन का जरूरत पड सकता है पर ये भी उन सभी के लिए सिर्फ एक दुसरे के बगल से से गुजर के अपने जीवन के रास्ते पर अपने ही पथ पर आगे बढ़ने का जगह हो सकता है और वो एक दुसरे से कभी मिल या जुड नहीं सकते. 

व्यावहारिक रूप से बात करें तो कट्टरपंथी राष्ट्रवादी हिंदु भी इस दर्शन पर विश्वास नहीं करते क्योंकि अगर वो करते तो वो अन्य धार्मिक विचारधाराओं की ओर शत्रुतापूर्ण भावना नहीं रखते. इसके अलावा पूर्वी गुरु भी इन दार्शनिक विचारों को अपनाने के लिए पश्चिमी विचारकों को परिवर्तित करने की कोशिश नहीं करते.

वैसे भी दुनिया के कुछ विचारों में विरोधाभास कोई समस्या नहीं है, भले ही हमारा दिमाग हमें कुछ और बताता है. जैसे की मैंने हिंदू धर्म के देवताओं कहके मेरे दुसरे पोस्ट में लिखा है मुझे लगता है के ये उन धर्म और दर्शन के लिए काम कर सकता है जिनका कोई नीयम नहीं है पर वास्तव में लोग इस तरह के तर्क अपने हरेक दिन के जीवन में प्रयोग नहीं करते हैं.

वैसे भी एक संस्कृति जो विरोधाभास को गले लगाता है उसके मानसिकता को समझने में मुश्किल हो सकता है क्योंकि वो कारण को हटा देते हैं और विज्ञान और दर्शन के तर्कसंगत विचारों को भी नहीं मानते हैं. 

उदाहरण के लिए, आप सच के गुरुत्वाकर्षण बल जो आपके शारीर को खींचता है उसके असर से गिरे बिना किसी धार्मिक विश्वास के चट्टान पर से नहीं कूद सकते हैं. 

आप किसी आते हुए बस के आगे इस विश्वास के साथ खड़े नहीं हो सकते हैं के वो सिर्फ एक भ्रम है पर आपको सच के सामने झुकना ही पड़ेगा क्योंकि यह जड़ता की ताकतों पर लागू होता है.

हम वाइली कोयोट के दुनिया में नहीं रहते हैं जिसका लगता था के १००० जिंदगी है और जो मृत्यु को चतुरता से मात दे सकता था और अपने कर्मों के परिणामों से कोई हानि नसेह्कर कब्र से निकल आता था. 

 www.youtube.com/watch?v=j4JbWb5xVEU&feature = fvw

यह लंबे समय तक दिखाने के लिए एक अच्छा कार्यक्रम बन सकता है पर हम ये बात अपने दिल में जानते हैं के मानव जीवन के नाटक के असली मंच पर ये इस तरह से काम नहीं करता है. 

इसके अलावा दार्शनिक रूप से कहें तो एक शादीशुदा अविभाहित नहीं हो सकता है और वैसे ही शैतानिक इशाई या फिर इशाई शैतानिक नहीं हो सकते हैं.

अंत में, बाइबलिय रूप से कहें तो ऐसे दो रास्ते हैं जो एक दुसरे का खंडन करते हैं. एक (कई) व्यापक है जो विनाश की ओर पहुंचाता है और दूसरा (एक) संकीर्ण है जो जीवन की ओर ले जाता है. येशु ने कहा के मैं ही रास्ता, सच्चाई और जीवन हूँ और उनके द्वारा छोड़कर कोई भी परमेश्वर तक नहीं पहुँच सकता है.

जैसे के हम में से बहुत को चलने के लिए पैर दिया गया वैसे ही हमें आगे बढ़ने के लिए रास्ता भी दिया गया है. आपके लिए मेरा चुनौती ये है के क्या आप वो व्यापक रास्ता लेना चाहेंगे जो सभी रास्तें मिल कर बनता है या फिर आप उस संकीर्ण रास्ते पर चलने और उसमें खोजी करने की हिम्मत करेंगे जो आपको सच तक पहुंचाएगा?

 

 

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