Archive for the ‘हिंदी-Hindi’ Category

हिंदू संसधानें

Saturday, March 31st, 2012

बाइबल

 

 

चार आध्यात्मिक कानून

 

 

येशु फिल्म

  

 

अन्य लिंक

Ravi Zacharias (former Hindu)

www.rzim.org/resources.aspx

A testimony of an orthodox Hindu Brahmin who received Jesus

www.youtube.com/watch?v=UbToQCbZOOo

सभी रास्ते परमेश्वर तक ले जाते हैं

Thursday, March 29th, 2012

कुछ लोग सतह के स्तर का अवलोकन करके इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं और सुंदरता सिर्फ त्वचा तक का गहरा हो सकता है पर धर्म नहीं हो सकता. दुनिया के सभी धार्मिक विचार के नीचे गुप्त विचारों और सिद्धांतों का दलदल है जो शाब्दिक रूप से आपको डूबा देगा. 

इसके अलावा एक समूह / संस्कृति में ‘इश्वर’ की अवधारणा होने और कुछ चीजें एक होने से उसका ये मतलब नहीं है के वहाँ पर अनुकूलता का एक संश्लेषण है.

दुनिया के बहुत से ऐसे धार्मिक विचार एक दुसरे के परस्पर विरोधी हैं. यदि आपने तुलनात्मक धर्मों और संस्कृतिओं का अध्ययन किया है तो आप पहले से ही इस निष्कर्ष पर आ गए होंगे.

उदाहरण के लिए, शैतानी बातें ईसाई धर्म के तुलना में सबसे चरम अर्थों में विरोधी हैं जिनमें कोई सुलह नहीं.

शायद किसी किसी को ये विचार अच्छ लगता है क्योंकि ये विश्वासों के मतभेदों के बीच तनाव को सुलझाकर एक बहुलवादी और मिलाजुला समाज के गठन में मदत करता है.

ये आंदोलन हालांकि वे धर्म के आम शीर्षक के अंतर्गत आ सकते हैं पर ये किसी भी हालत में मिलने वाले दोस्त नहीं हैं.

कुछ लोग इस विचार को इसलिए रख सकते हैं क्योंकि उनके अपने स्वयं के व्यक्तिगत विश्वास प्रणाली को न्यायोचित ठहराने के लिए इसका आवश्यकता है और ये भी संभव है के उन लोगों ने ये किसी से सुना और इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. 

फिर भी, ये बात के “सभी रास्तें इश्वर के तरफ ले जाते हैं” वास्तव में खुद में ही पदों की एक विरोधाभास है. हम कह सकते हैं के किसी एक चीज को करने के लिए बहुत से तरीके होते हैं, लेकिन जब वो सीधे संघर्ष में हैं और विपरीत दिशाओं में जा रहे हैं तो उन्हें एक जगह में लाने के लिए एक अच्छे मार्गनिर्देशन का जरूरत पड सकता है पर ये भी उन सभी के लिए सिर्फ एक दुसरे के बगल से से गुजर के अपने जीवन के रास्ते पर अपने ही पथ पर आगे बढ़ने का जगह हो सकता है और वो एक दुसरे से कभी मिल या जुड नहीं सकते. 

व्यावहारिक रूप से बात करें तो कट्टरपंथी राष्ट्रवादी हिंदु भी इस दर्शन पर विश्वास नहीं करते क्योंकि अगर वो करते तो वो अन्य धार्मिक विचारधाराओं की ओर शत्रुतापूर्ण भावना नहीं रखते. इसके अलावा पूर्वी गुरु भी इन दार्शनिक विचारों को अपनाने के लिए पश्चिमी विचारकों को परिवर्तित करने की कोशिश नहीं करते.

वैसे भी दुनिया के कुछ विचारों में विरोधाभास कोई समस्या नहीं है, भले ही हमारा दिमाग हमें कुछ और बताता है. जैसे की मैंने हिंदू धर्म के देवताओं कहके मेरे दुसरे पोस्ट में लिखा है मुझे लगता है के ये उन धर्म और दर्शन के लिए काम कर सकता है जिनका कोई नीयम नहीं है पर वास्तव में लोग इस तरह के तर्क अपने हरेक दिन के जीवन में प्रयोग नहीं करते हैं.

वैसे भी एक संस्कृति जो विरोधाभास को गले लगाता है उसके मानसिकता को समझने में मुश्किल हो सकता है क्योंकि वो कारण को हटा देते हैं और विज्ञान और दर्शन के तर्कसंगत विचारों को भी नहीं मानते हैं. 

उदाहरण के लिए, आप सच के गुरुत्वाकर्षण बल जो आपके शारीर को खींचता है उसके असर से गिरे बिना किसी धार्मिक विश्वास के चट्टान पर से नहीं कूद सकते हैं. 

आप किसी आते हुए बस के आगे इस विश्वास के साथ खड़े नहीं हो सकते हैं के वो सिर्फ एक भ्रम है पर आपको सच के सामने झुकना ही पड़ेगा क्योंकि यह जड़ता की ताकतों पर लागू होता है.

हम वाइली कोयोट के दुनिया में नहीं रहते हैं जिसका लगता था के १००० जिंदगी है और जो मृत्यु को चतुरता से मात दे सकता था और अपने कर्मों के परिणामों से कोई हानि नसेह्कर कब्र से निकल आता था. 

 www.youtube.com/watch?v=j4JbWb5xVEU&feature = fvw

यह लंबे समय तक दिखाने के लिए एक अच्छा कार्यक्रम बन सकता है पर हम ये बात अपने दिल में जानते हैं के मानव जीवन के नाटक के असली मंच पर ये इस तरह से काम नहीं करता है. 

इसके अलावा दार्शनिक रूप से कहें तो एक शादीशुदा अविभाहित नहीं हो सकता है और वैसे ही शैतानिक इशाई या फिर इशाई शैतानिक नहीं हो सकते हैं.

अंत में, बाइबलिय रूप से कहें तो ऐसे दो रास्ते हैं जो एक दुसरे का खंडन करते हैं. एक (कई) व्यापक है जो विनाश की ओर पहुंचाता है और दूसरा (एक) संकीर्ण है जो जीवन की ओर ले जाता है. येशु ने कहा के मैं ही रास्ता, सच्चाई और जीवन हूँ और उनके द्वारा छोड़कर कोई भी परमेश्वर तक नहीं पहुँच सकता है.

जैसे के हम में से बहुत को चलने के लिए पैर दिया गया वैसे ही हमें आगे बढ़ने के लिए रास्ता भी दिया गया है. आपके लिए मेरा चुनौती ये है के क्या आप वो व्यापक रास्ता लेना चाहेंगे जो सभी रास्तें मिल कर बनता है या फिर आप उस संकीर्ण रास्ते पर चलने और उसमें खोजी करने की हिम्मत करेंगे जो आपको सच तक पहुंचाएगा?

 

 

कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएं

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हिंदू-धर्म

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हिंदूधर्म के देवता (ओं)

Thursday, March 29th, 2012

हिंदू धर्म के भीतर भी एक व्यक्ति ईश्वर के अवधारणा के बारे में कई तरह के विचार रख सकता है जहाँ पर विश्वास कोई ईश्वर के ना होने से लेकर ३३ करोड़ देवता के होने तक फर्क पड़ सकता है.

 देवता (ओं) के इन विविध विचारों के अलावा इन माने जाने वाले परमात्मा (ओं) की प्रकृति के बारे में विभिन्न आयाम मौजूद हैं जिसमें अद्वैतवाद, देवपूजा, सर्वेश्वरवाद, और आत्मवाद शामिल हैं.

इन मान्यताओं के सही होने के बारे में जब विश्लेषण किया जाता है तो वहाँ पर एक स्पष्ट विरोधाभास मालूम पड़ता है जो तर्क और कारण के दलीलों को खारिज कर देता है.

इसके अलावा इन देवता (ओं) को ऐतिहासिक संदर्भ बनाम आदिवासी विश्वासों की पौराणिक पृष्ठभूमि में रखा जाता है और इसी वजह से इन दृष्टिकोणों को सही रूप में पुष्टि नहीं किया जा सकता और इसी लिए उनका अस्तित्व विश्वास और अंधविश्वास के दिग्गजों की कहानी पर आधारित है.

अपने जीवन का आधार किसी ऐसे चीज को बनाना जो जानकार या प्रसंशनीय नहीं है ये बात मानव बुद्धि के मूल्य के लिए एक धोखा है और ये हिंदू विश्वास को और कम कर देता है और वो विश्वास सिर्फ एक अतर्कसंगत विचारों का एक आध्यात्मिक संस्कृति क्लब से अधिक नहीं रह जाता है.

इसके अलावा मुझे नहीं लगता के धर्म और दर्शन से बाहर रहने वाले लोग इन असंगत मान्यताओं को मानते हैं और उनके अनुसार अपना हरेक दिन का जीवन जीते हैं. आप जरूर एक हिंदू इंजिनियर को अपना घर बनाने के लिए नहीं बुलाएंगे जो हिंदू विश्वास के आधार पर गणितीय समीकरणों का हल करते हैं जैसे के वो उनके भगवानों से सम्बन्धित हैं. हकीकत में यह केवल आपको एक निर्जन संरचना के साथ छोड़ देगा जो की संदेह के हवाओं के कारण गिर सकता है.

अंत में मुझे आशा है कि इस पोस्ट की प्रत्यक्षवादिता और स्पष्टवादिता  आपको आहत नहीं किया है. मुझे पता है कि कई लोग इन मान्यताओं पर पवित्रता और भक्ति की भावना और ईमानदारी से विश्वास करते हैं.

इसके अलावा, मैं समझता हूँ कि संस्कृति के तरफ प्रतिबद्धता एक मजबूत गाँठ की तरह है जो अक्सर लोगों को एक साथ बाँध कर रखता है फिर भी मैं आपको प्रोत्साहित करता हूँ के आप अपने समाज के सांस्कृतिक बंधनों से बाहर निकलकर सोचें क्योंकि ये आपके ज्ञान को नियंत्रित और सीमित कर देता है.

फिर भी मैं आप को एक और अद्वितीय विश्वदृष्टि के बारे में अनुसंधान करने के लिए आमंत्रित करता हूँ जिसके पास अपने विश्वास प्रणाली को साबित करने के लिए कुछ सबूत है और ये येशु और उनके काम से सम्बन्धित है जो आपको यहाँ पर मिलेगा

” www.carm.org/answers-for-seekers

 

 

परमेश्वर के साथ रिश्ता कैसे बनाएँ

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क्या नर्क वास्तव में है?

Thursday, March 29th, 2012

आम तौर पर स्वर्ग की वास्तविकता में विश्वास करना लोगों के लिए आसान होता है पर अलग किए गए आत्माओं के लिए नारकीय दायरे का अस्तित्व के बारे में वो चिंतन नही करते. नरक एक विवादास्पद विषय है जिसकी चर्चा से लोग बचने की कोशिश करते हैं और इसे अगर गंभीरता से लिया गया तो भी इसे अक्सर संदेह के व्यवहार के साथ देखा जाता है. एक गैर व्यक्तिगत दृश्य से परहेज करके नरक के देखने का नकारात्मक पहलू आमतौर पर उदासीनता की एक प्रतिक्रिया के रूप में हमारे सामने आता है क्योंकि वहाँ पर व्यक्तिगत जवाबदेही की संभावना रहती है जो आत्म संरक्षण की एक रक्षात्मक तंत्र के रूप में आता है.

कुछ लोग होगन के हीरो के तरह अज्ञानता का खेल खेलकर नर्क के साथ सामना करते हैं जो जोरदार ढंग से ‘मुझे कुछ पता नहीं’ कहके हट जाता था जबकी ज्ञान को सुरक्षित करना उसकी जिम्मेवारी थी फिर भी अपने बयान से वो इस जिम्मेवारी से छुटकारा पाने की कोशिश करता था और इसी लिए प्रत्यक्ष चीज को भी अनदेखा करता था. ये उसे इश्वर के आदेश से अलग नहीं करता है और हमें सब कुछ जानने वाले इश्वर के आगे निर्दोष भी नहीं बनाता है.

दूसरे समूह के लोग शायद जानते हैं लेकिन बाइबल और ईसाई धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी चीजों को बंद करके वो न्याय की स्थिरता को बंद करते हैं और सिर्फ यही उपाय है उनके पास अस्थायी रूप से अपरिहार्य के साथ निपटने के लिए. आप  देख सकते हैं कैसे कितनी तेजी से लड़कों का कोई समूह चैनल को बदलते हैं अगर उस चैनल पर पाप के बारे में कुछ आरहा होता है. आप सोच सकते हैं के जैसे वो रिमोट को चलाने में कोई पश्चिमी ‘जल्दी का काम’ देख रहे हैं.

वैसे भी पाप और न्याय के बारे में सोचते समय हमेशा वहाँ पर चेतावनी संकेत रहता है जिसका स्पष्ट और विशिष्ट अलार्म प्रणाली रहता है और जिसका काम परमेश्वर के तरफ हमारे होश को जगाना और अनन्त दंड के बारे में हमको बताना है रोमन २:१४-१६, १ यहुन्ना ४:१८.

चाहे हम अलार्म के अनियमित सिस्टम को अनदेखा करके अलार्म से भागने की कोशिश करें या फिर चिढकर उसे बाहर फेंक दें, ये सब उस बात को बदल नहीं सकता के अब उठने का समय आचुका है.

हमारे होश के आंतरिक शोर की तरह वो अलार्म घड़ी बजता है और हमें हमारे नैतिक हालत और शाश्वत भाग्य से जगाने की कोशिश करता है. अज्ञान या प्रतिरोध की वजह से हम इस बात का विरोध करने की कोशिश करते हैं और इस झुंझलाहट को निकालने की कोशिश भी करते हैं फिर भी इस अलार्म का बजाना तब तक पूरी तरह से बंद नहीं होगा जब तक इस जीवन की तरफ आप पूरी तरह से नहीं जाग जाते.

लोगों को नर्क का बईबलिय परिभाषा को विशवास करने में बहुत मुश्किल समय बिताना पड़ता है जिसको अनन्त पीड़ा और निंदा का एक भयावह जगह के रूप में चित्रित किया गया है और इसके वजह से लोगों को नर्क का अपना ही वास्तविकता तैयार करने में मजबूर कर दिया है.

कुछ व्यक्तियों ने नरक की अवधारणा को पूरी तरह से हटा दिया है ये कहकर की उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है और अगर कोई अस्तित्व है भी तो वहाँ सैतान और उसके राक्षसों के साथ साथ हमारे आज के समाज के हिटलर रहते हैं.

कई लोग नर्क का भयावह दृश्य को एक ‘बड़ी पार्टी’ के रूप में चित्रण करके उसकी चाहना करते हैं.

कुछ व्यक्ति इसको बहुत कम गंभीरता से देखते हैं जहां पर वो इसको सिर्फ एक अस्थायी पापमोचनसंबंधी अस्तित्व के रूप में देखते हैं जहां पर विनाश के जैसा मांश में आग लगाया जाता हो.

मैंने हाल ही में मौत के नजदीक के अनुभव के आधार पर स्वर्ग और नरक की इस अवधारणा के बारे में एक वृत्तचित्र देखा जो इन धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक शोधकर्ताओं के गवाही पर आधारित था और उन सभी ने ये माना के जिन लोगों को वो देख रहे थे और इंटरविउ ले रहे थे वो सब मृत्यु के साथ उनका साक्षात्कार पर आधारित वास्तविक अनुभव था और उसे मौत के बारे में पूर्वाग्रह उम्मीदें या फिर मस्तिष्क के रसायनों के भ्रमात्मक एजेंटों द्वारा नहीं समझाया जा सकता था.

उन धर्मनिरपेक्ष शोधकर्ताओं में से एक ने मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप को भी अलग कर दिया क्यूंकि उन्हें लगा के मरते समय नरक के बारे में सोचना उलटी बात थी.

प्रौद्योगिकीय अग्रिमों से लोगों को पुनर्जीवित करने के कारण ये मृत्यु के पास के अनुभव अब और अक्सर होने लगे हैं और कहा जाता है के सिर्फ अमेरिका में १२-१५ मिलियन लोग ऐसे हैं जिन्हें ये अनुभव मिल चूका है.

एक कमेंटेटर का कहना है कि ज्यादातर लोग मौत के साथ ऐसा मुठभेड़ होने के बाद धार्मिक परिवर्तन से गुजरते हैं और इसी वजह से इन प्रकार के परिवर्तन के लिए केवल मतिभ्रम को ही कारण नहीं माना जासकता है.

एक अन्य शोधकर्ता ने इसी काम के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 300 से अधिक मामलों में खोज किया और उनके इस शोध ने दोनों नारकीय और स्वर्गीय विवरण के गवाही में निरंतरता पाया जैसा की बाइबिल पाठ में भी कहा गया है.

जैसे हम हैलोवीन के बुतपरस्त त्योहार की तरफ बढ़ रहे हैं, बहुत से लोग मृत्यु या नर्क को वैसे ही दृष्टिकोण से देखते हैं जैसे की वो इस छुट्टी को देखते हैं. कभी कभी लोगों को समझ नहीं आता या वो समझ की परवाह नहीं करते की इस पैशाचिक उत्सव के पीछे के  आध्यात्मिक दायरे का वास्तविकता क्या है. उनके लिए यह बस मज़ा आनेवाला एक हानिरहित खेल है फिर भी मौत की तरह वहाँ एक वास्तविकता हो सकता है और साथ में ही एक छिपा राक्षसी तत्व भी हो सकता है जो हमारे सादे दृष्टि से खुद को छुपाता है और धोके से ये सोचने पर मजबूर करता है के  शैतान, राक्षसों, और नरक केवल हॉलीवुड और प्रचारकों का आविष्कार है.

नर्क का मूल्य ही कम हो जाता है और ये एक विज्ञापन के तरह लगता है और ये हमारे मन को सताना छोड़ कर हमारे लिए एक इच्छा का विषय बन जाता है जैसे के हमारे लिए शैतानिक भूमिका वाला “हैरी पॉटर” एक नायक या एक वांछनीय चरित्र मॉडल के रूप में स्थापित हो जाता है.

इस के बावजूद कुछ ऐसे लोग भी हैं जो मृत्यु के बाद के जीवन के ज्ञान को गंभीरता से देखते हैं या कम से कम वे इसके बारे में उत्सुक हैं और इसीके वजह से स्वर्ग में ९० मिनट और नर्क में २३ मिनट जैसे लोकप्रिय किताबें आए हैं.

मैं व्यक्तिगत रूप से कई करीबी दोस्तों को जानता हूँ जिन्हें मृत्यु के निकट का अनुभव था और जिसमें उन्होंने स्वर्ग का अनुभव किया और एक औरत उस अनुभव से इतना अवाक् हो उथी कि वह वापस ही नहीं आना चाहती थी और मुझे याद है उन्होंने मुझे ये कहा था के कैसे उनके पति इस बात को नहीं समझ रहे थे के क्यों वो अपने सांसारिक जीवन में उसके साथ लौटना नहीं चाहती थी और ये गवाही वैसे ही और कई लोगों से मिलता है जो उसी कार्यक्रम में अपना साक्षात्कार दे रहे थे.

एक और व्यक्ति को मैं जानता हूँ जो एक पास्टर की पत्नी हैं और जो स्वर्ग तक पहुंची और उन्होंने यीशु को देखा और उनसे बात भी किया.

इन आध्यात्मिक मुठभेड़ों में लोगों ने कई ऐसी चीजें देखने का दावा किया है जो नए और पुराने करार के इलहामी साहित्य के साथ जुड़े हुए हैं.

एक और सबूत जो इन मौत के पास के अनुभव को मान्यता देता है वो ये है के ये लोग जब कोमा में होते हैं तब उनके आसपास कमरे में क्या हो रहा है उसका पूरा जानकारी उनके पास होता है. वे कमरे के बाहर क्या हो रहा है इस बात का समेत जानकारी दे सकते हैं क्योंकि उनका आत्मा उनके शरीर से बाहर होता है. इसके अलावा वे उनके अपने मानसिकता से बाहर की बात का अनुभव कर रहे होते हैं जिस बात का भी कोई जबाब नहीं है.

धर्मनिरपेक्ष शोधकर्ता इन चीजों के बारे में अपने खोज में निर्णायक नहीं थे क्योंकि वो इस बात को समझाने में सक्षम नहीं थे के कैसे इन लोगों ने ये चीजें अनुभव किया जो उनके समझने या अनुभव के मानव क्षमता से परे बातें थे. मेरा मानना है कि यह अलौकिक बातों के बारे में चर्चा करने के लिए दरवाजा जरूर खुला छोड़ता है.

तो मृत्यु के बाद जीवन के इस खोज में हम आगे बढते हैं और देखते हैं के इस बारे में बाइबल क्या कहता है. “नरक” शब्द के लिए हिब्रू शब्द “शेओल” है जैसे के पुराने करार में पाया जाता है. इस शब्द को व्यापक रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और आम तौर पर कब्र, गड्ढे, और शारीरिक गिरावट के प्राकृतिक दायरे में लागू  कर सकते हैं. इसको मृत का अस्तित्व या फिर अस्पष्ट तरह का निवास के रूप में भी इस्तेमाल लिया जा सकता है.

अधिक विशेष रूप से जिस बात को मैं आप लोगों के आगे वर्णन करने में दिलचस्पी रख रहा हूँ वो सिर्फ मौत का भौतिक प्रक्रिया के बारे में नहीं है जो हम समझ सकते हैं बल्कि ये उसका आध्यात्मिक पहलू है जो इन शोधकर्ताओं पर आधारित रहके हम ये कह सकते हैं के एक वास्तविकता है और ये उन मौत के पास के अनुभव करने वालों के लिए बिल्कुल ही असली बात है.

नए करार की तुलना में पुराना करार हमें उतना ज्यादा सुराग नहीं देता है और इसी वजह से नया करार एक प्रकार से ज्यादा वर्णनात्मक और परिभाषित है.

नबी डेनियल ने दानिएल के पुस्तक १२:२ में बयान किया है:धरती के वो असंख्य लोग जो मर चुके हैं और जिन्हें दफनाया जा चूका है, उठ खड़े होंगे और उनमें से कुछ अनंत जीवन के लिए उठ जाएंगे. किन्तु कुछ इसलिए जागेंगे की उन्हें कभी नहीं समाप्त होने वाली लज्जा और घृणा प्राप्त होगी.

तो यह न सिर्फ मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में बात करता है लेकिन “शारीर के उठने” के बारे में भी कहता है जो इस ब्लॉग के दायरे से बाहर की बाते हैं लेकिन यहूदियों और ईसाइयों ने इस बात पर विश्वास किया है और इसका सबूत मेहराबदार छत से युक्त क़ब्र हैं जो प्राचीन इसराइल में था और जिसमें मृतक के हड्डियां रखी जाती थी. पुनरूत्थान मोक्ष का अंतिम अधिनियम है जिसमें येशु ने खुद भाग ले लिया है जो एक प्रकार से मरे हुओं में से पहले फल हैं. रहस्यमय तरीके से किसी तरह ये पुनर्जीवित शरीर मानव इतिहास की समाप्ति में हमारे लिए एक अंतिम बिंदु होगा जो इसाइओं के लिए मुक्ति प्राप्त करने के लिए अंतिम कार्यों में से एक होगा.

अगर हम डैनियल पर वापस जाएँ तो वहाँ पर ‘अनन्त’ जीवन वनाम ‘सदा की पीड़ा’ की अवधारणा सुरु होति है. आनंद की एक शाश्वत घर की कल्पना करना आसान बात है लेकिन शाश्वत और अनन्त के पर्याय शब्दों के लिए भी ये नियम उतना ही लागू करना चाहिए वरना शास्त्र में विरोधाभास लगने लगेगा.

पुराने करार के तहत कब्रिस्तान को दोनों धर्मी और धर्मभ्रष्ट के रहने वाले जगह के रूप में देखा जाता है जिनको इन दो अस्तित्व के बीच खींची गई खाई के साथ रखा गया है. एक समूह को अब्राहम की छाती के रूप में देखा जाता है जहां पर धर्मी रहते हैं तो दुसरे को पीड़ा की एक जगह के रूप में संदर्भित किया गया है. इन सबका सबसे अच्छा विवरण हमें सुसमाचार के साथ साथ में येशु देते हैं जो हमें सीमित रूप से इन असीमित स्थानों के बारे में बताते हैं जिसके बारे में हम बाद में बात करेंगे.

हेमें पुराने / नए करार के माध्यम से कुछ सुराग मिलता है जो मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में हमें बताता है जैसे की येशु ने मती २२:३२ में निर्गमन ३:६ के बारे में बताया था जहां परमेश्वर ने कहा के वो ही अब्राहम, इसाहक और याकूब के परमेश्वर हैं और येशु ने ये भी कहा के वो जीवित के प्रभु हैं नाकि मृत के जो इस बात को अंकित करता है के इस जीवन के भौतिक सीमाओं के पार भी अस्तित्व का एक निरंतर राज्य है.

वैसे ही पुराने करार में मृत्यु के क्षण में इश्वर ने लोगों की सभा को बुलाने के बारे में संदर्भित किया गया है जैसे के २ राजा २२:२० में कहा गया है.

हम देखते हैं के १ सामुएल २८:११-१५  में शाऊल से बात करने के लिए नबी शमूएल जमीन से आए थे.

इसके अलावा “जीवन की पुस्तक” के बारे में भी संदर्भित किया गया है के वो सब अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे और जिनका नाम उसमें नहीं लिखा गया है या फिर उसमें से मिटा दिया गया है वो अनान्त के पीड़ा में प्रवेश करेंगे. हम दोनों पुराने और नए करार में इन बातों को संदर्भित किया हुआ पाते हैं जैसे के भजन ६९:२८,  निर्गमन ३२:३३, फिल्लिपिओं ४:३,  प्रकाशित वाक्य ३:५, १३:८, १७:८,, २०:१२-१५,  २१:२७ में कहा गया है.

अब नए करार में नरक और धर्मी निवास के बारे में पूरा अभिव्यक्ति विकसित किया गया है जिसमें यीशु ने हमें इन बस्तियों का एक पूर्वावलोकन दिया है जैसे के “अमीर आदमी और लाजरस” की कहानी में हमें लुका १६:१९-३१ में कहा गया है.

अमीर आदमी और लाजरस दोनों परस्पर विरोधी वातावरण में निवास कर रहे हैं और उन दोनों के बिच में एक बाधा है जिसको पार नहीं किया जा सकता. वो दोनों जगह एक दुसरे से इस माएने में फरक है के वर्णन के अनुसार अमीर आदमी पीड़ा, प्यास और आग के दर्द में जिरहा था पर लजारस की जगह आराम का था.

अन्य वर्णनात्मक शब्द जिनका यीशु और उनके प्रेरितों ने नरक के बारे में बताते समय किया है वो नए करार के ग्रीक भाषा अनुसार हेड्स या फिर गेन्ना है, और इसके बारे में मती ३:१२ में कभी ना बुझने वाली आग के रूप में वर्णन किया गया है, और इसी बात को मती ८:११ में बाहर का अँधेरा, रोने और दांत घिसने की जगह, मती १३:४२ में भयानक आग, मती १८:८ में अनन्त की आग, २ थिस्सुलिनोकिओं १:९ में अनन्त नाश की जगह , प्रकाशित वाक्य १४:१०-११ में एक ऐसा पीड़ा जो सिर्फ बढ़ता है, प्रकाशित वाक्य २०:१० में दिन और रात मिलने वाले पीड़ा की जगह के रूप में, प्रकाशित वाक्य १९:२० में जलते आग के सरोवर और प्रकाशित वाक्य २०:१० में उनको सदा दिन और रात में पीड़ा दिया जाएगा कहके वर्णन किया गया है.

यातना या फिर पवित्र करने वाला स्थान की अवधारणा ईसाई या यहूदियों द्वारा मान्यता प्राप्त किसी भी पुस्तक में मौजूद नहीं है.

न ही बाईबल “पुनर्जन्म” की बात करता है क्योंकी शास्त्र तो ये कहता है के इंसान एक बार मरता है और फिर वो न्याय का सामना करता है इब्रानियों ९:२७. नाही बाईबल “आत्मा की नींद” को बढ़ावा देता है जो शारीर का मृत्यु से उठने को मृत्यु के क्षण में आध्यात्मिक स्थिति के वास्तविकता के साथ उलझाता है जैसे के २ कुरिन्थिओं ५:८ में कहा गया है के शारीर से अलग रहना परमेश्वर के साथ रहना है.

मृत्यु के करीब पहुँचने के अनुभव वाले ये लोग तुरंत ही किसी जगह या उपस्थिति में पहुँच गए जिसको शून्य के एक राज्य के बजाय स्वर्ग या फिर नरक के रूप में वर्णन किया गया है और ये भी कहा गया है के उनके आत्मिक प्रकार के शरीर थे. और इनमें से कोई भी गवाही ये नहीं कहता है के कोई पुनर्जीवित होकर नए रूप में लौट कर आया.

मुझे लगता है कि नरक के सम्बन्धी बाइबल के संदर्भों को स्वीकार करने में एक मुख्य समस्या ये है के अगर एक परमेश्वर हैं जो अच्छे हैं तो वो लोगों को पीड़ा सहने की अनुमति कैसे दे सकते हैं और इस बात में किसी भी प्रकार का तुक नहीं है. और उसी के साथ इस बात पर विश्वास करना भी मुश्किल है के इंसान को सिर्फ परमेश्वर के मुफ्त के उपहार के रूप में अनन्त जीवन मिल जाए हालांकि वो छुडाया गया है पर पापी जीवन ही जी रहा है.

इस नारकीय बस्ती का मूल उद्देश्य गिरे हुए शैतान और स्वर्गदूतों के रहने वाले जगह के रूप में था और मानव निवास के लिए इसका निर्माण नहीं किया गया था पर अब उसको मृत्यु के बाद के जीवन में परमेश्वर के सभी दुश्मनों के रहने की जगह के लिए दे दिया गया है मती २५:४१. यदि इश्वर गिरे हुए स्वर्गदूतों को नहीं सुरक्षित रखना चाहते हैं, जिनसे हम थोड़े कम ही हैं, तो अगर हम परमेश्वर के विरुद्ध में लगें तो हमारा क्या अंजाम होगा.

यदि हमारे जीवन में व्यक्तिगत लक्ष्य नास्तिक अस्तित्व है, तो क्या हमें हमारा इच्छा नहीं मिलना चाहिए और क्या इस इच्छा को केबल इस जीवन में ना होकर अगले जीवन में भी पूरा नहीं होना चाहिए. आप क्यों चाहेंगे के परमेश्वर खुद को आप पर लादें जब के आप उनका प्रभाव इस जीवन में अभी नहीं चाहते.

अर्द्ध धर्मनिरपेक्ष मृत्यु के निकट के अनुभव के शानदार विषयों में से एक ये है के आप उसी तरह मरते हैं जिस तरह आप जीते हैं और मैं ये कहता हूँ के ये बात बहुत हद तक उस पार के सच्चाई के बारे में भी बताता है.

शैतान का राज्य परमेश्वर के नियम के परस्पर विरोधी है. परमेश्वर प्रकाश हैं और नरक अँधेरा है. नर्क खेदयुक्त है और स्वर्ग में दुःख को आने की कोई इजाजत नहीं है. परमेश्वर प्यार है, जबकि नरक घृणा से भरा है . स्वर्ग में शांति है जबकि हिंसा, दुख और पीड़ा से नरक भरा हुआ है.

ये एक हास्यास्पद बात है के कैसे हम स्वर्ग का लाभ चाहते हैं पर उन्हें हमारे निर्माता के रूप में धन्यबाद नहीं देना चाहते रोमन १:२१. क्या परमेश्वर को एक अलौकिक वे-या के रूप में देखा जाना चाहिए? खुद के आराम के लिए उनका प्रयोग कर लें पर उनके साथ रिश्ता रखने का जिम्मेवारी हम उठाना नहीं चाहते बल्कि हमें ये लगता है के इश्वर को हमारे लिए ये सब कुछ कर देना चाहिए.

यदि इस पृथ्वी पर इंसान का प्रतिबद्धता एक नास्तिक जीवन जीना है जो बात परमेश्वर के स्वर्गीय नियम और शासन और उपस्थिति के खिलाफ बात है तो कैसे एक आदमी कैसे उम्मीद कर सकता है उनका परमेश्वर के साथ अनन्त में एक अटूट रिश्ता बन जाएगा जब की उसने उनको अपने पूरा जीवन जान बूझकर ठुकराया है. हमारी अपनी स्थिति और गंतव्य के लिए इश्वर को क्यों दोष दें जब के हमारे पास विकल्प था जो के आसानी से प्राप्त होसकता था. मती ११:२८-३० में येशु कहते हैं: “अरे ओ थके-मांदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ , मैं तुम्हे सुख चैन दूँगा. मेरा जुवा लो और उसे अपने ऊपर संभालो. फिर मुझसे सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा मन कोमल है. तुम्हे भी अपने लिए सुख-चैन मिलेगा. क्योंकि वह जुवा जो मैं तुम्हे देरहा हूँ बहुत सरल है. और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है. ”

तो वो लोग कैसे हैं जिनको नर्क का स्वाद मिलने वाला है? क्या वो सिर्फ समाज के दूषित लोग हैं जैसे के कैदियों, धारावाहिक हत्यारों, बलात्कारियों और अन्य खराब लोग. हाँ ये बात सही है पर मती ७:१३,१५ में तो येशु एक बड़े दर्शक के बारे में कह रहे हैं: “सूक्ष्म मार्ग से प्रवेश करो. यह में तुम्हे इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि चौड़ा द्वार और बड़ा मार्ग तो विनाश की ओर ले जाता है. बहुत से लोग हैं जो उस पर चल रहे हैं. किन्तु कितना वह संकरा हैं वह द्वार और कितनी सीमित है वह राह जो जीवन की ओर जाती है. बहुत थोड़े से हैं वे लोग जो उसे पा रहे हैं.”

प्रकाशीत वाक्य २१:८ कहता है के नरक  कायर, अविश्वासी, नीच, हत्यारों, व्यभिचारियों, जादू कला करने वालों, मूर्तीपूजा करने वालों  और झूठों के लिए है जिन्होंने अपना स्थान जलते हुए आग में बना लिया है.

१ कुरिन्थियों ६:९-१० नरक में रहने वालों की एक और सूची बनाता है और कहता है: अथवा क्या तुम नहीं जानते की बुरे लोग परमेश्वर के राज्य का उत्तराधिकार नहीं पएंगे? अपने आप को मूर्ख मत बनाओ. यौनाचार करने वाले, मूर्ती पूजक, व्यविचारी, गुदा-भंजन कराने वाले, लौंडेबाज, लुटेरे, लालची, पियक्कड, चुगलखोर और ठग परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी नहीं होंगे.

हमारे अपराधों के बावजूद अब हमारा यह परस्पर विरोधाभासी स्थिति जिसमें पाप और न्याय सामिल है वो मुक्ति का एक सुन्दर रूप में उभर कर आया है जो इन सारे विष और खराब चीजों के असर जो हमें नरक के रास्ते पर लेजाता, इन सब को हटा कर परमेश्वर के क्षमा के माध्यम से हमारे जीवन के पुराने तौर तरीके को हटा कर जीवन का एक नया तरीका सिखाता है.

यदि आपको लगता है के आपने परमेश्वर के अच्छाई के इस सीमा को पार नहीं किया है तो हमें रोमियों ६:२३ के माध्यम से देखना चाहिए के हम कहाँ पर हैं.

इस शास्त्र में पाप को वर्गीकृत नहीं किया गया है और इसलिए पाप जीवन के समीकरण में एक आम भाजक के रूप में है क्योकि ऐसा कोई भी नहीं है जो धर्मी है और ये बात समावेशी और सार्वभौमिक बयान लगता है.

हम अक्सर हमारे अपराधों को नजरअंदाज करते हैं और पाप के परिणामों को कम गंभीर और महत्वपूर्ण समझते हैं और हालांकि और सभी का पापों का पहाड़ के आगे हमारे “गलतियों” का छोतो ढेर बौना लगे पर हमारा ढेर और किसी के तुच्छ “दुर्घटनाओं” के आगे और भी छोटा हो सकता है.

चाहे वह एक छोटा सा पाप हो या एक प्रमुख पाप हो, वो अभी भी पाप का शीर्षक वहन करता है . चाहे आप एक पैसा चुराएं या एक डॉलर चुराएं इस से कोई फरक नहीं पड़ता क्योंकि किसी भी प्रकार से आप चोर ही हैं. चाहे आप एक झूठ बोलो या एक लाख आप फिर भी झूठे हो. हम दूसरों से तुलना करके अपना अपराध कम करने की कोशिश करते हैं.

अंत में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम पवित्र परमेश्वर के आगे हमारे “मेधावी कर्मों” का प्रदर्शन करें, वो इस ब्रह्माण्ड के न्यायकर्ता हैं जो इंसान के दिल और दिमाग की बातें जानते हैं. आप अपने कृत्यों के माध्यम से कभी अच्छाई नहीं कमा सकते और बाइबल हमारे कर्मों की तुलना मासिक धर्म के कपड़ों के साथ करता है जैसे के यशायह ६४:६ में कहा गया है. परमेश्वर के अनन्त अस्तित्व को गन्दा करने से हमारे कर्म हमें नहीं बचा सकते. पाप के लिए परमेश्वर ने २ क्षेत्र बनाए हैं. एक मिट के जाने वाला धरती है और दूसरा नरक है और जब तक आपके पाप आप से नहीं हट गए हैं तब तक आप को अपना गन्दा कपड़ा स्वर्ग में सुकाने नहीं दिया जाएगा.

मैं अभद्रतापूर्वक ये बात बोलना नहीं चाहता था लेकिन येशु ‘नरक’ के लिए नहीं मरे. उनके पुनर्जीवित रूप का उद्देश्य इंसान का प्रतिनिधित्व करना था और इसके लिए वो हमारे खातिर मरे और हमारे अपराध और पाप का दंड खुद पर ले लिया. यदि हम स्वर्ग को हमारे खुद के कमाई से हासिल कर लेते तो फिर क्रिस्ट तो बेकार में मरे. हमारे अपराध को अगर गहरे रूप से देखो तो वो केवल पाप के माध्यम से परमेश्वर को इनकार करना ही नहीं है पर उनके पुत्र को अस्वीकार करके उनके मोक्ष के काम को अस्वीकार करना भी है यूहन्ना ३:१८.

सभी अपराधों में सबसे बड़ा अपराध ये है के हम परमेश्वर के आगे अपने कामों को एक तुच्छ अर्पण के रूप में देंगे जिसके लिए येशु ने इतना बड़ा बलिदान दे दिया है जो परमेश्वर के आआगे बलिदान के अर्पण के रूप में सभी अच्छाई के जरूरतों को पूरा करता है और इससे कुछ भी कम परमेश्वर के आँखों में अग्रहनीय है.

याद कीजिए के बागीचे में अवज्ञा के एक “छोटे” कार्य ने पूरे मानव जाति पर बुराई की बाढ ले आया और सभी इंसानों पर अभिशाप भी लाया. तो आदम के इस छोटे से गलती के आगे आपकी गलतियां कितनी बड़ी हैं. वो ‘बोहोत बड़ी’ या फिर छोटी हैं इस बात का फैसला तो आप खुद कीजिए.

अब नरक के सवाल पर वापस जाएं तो बहुत से लोग जिनको बाइबल की बातें पसंद नहीं है या फिर वो इससे सहमत नहीं हैं तो वो उन बातों को रूपक कहके हटा देते हैं और उन बातों को छोड़ देते हैं जो लागू करने में मुशकील है.

पर येशु तो नरक के बारे में कहने के लिए अतिशयोक्ति का इन्स्तेमाल करके नाटकीय ढंग से बोलते हैं और कहते हैं के इस से किसी भी कीमत पर बचना चाहिए चाहे उसके लिए शरीर के अंगों को ही क्यों ना खोना पड़े मती ५:२७-३०.

इस शास्त्र के संदर्भ के आधार पर बोहोत से लोग इस बात को शाब्दिक रूप से सच नहीं मानेंगे पर ये हमें इस बात की गंभीरता के बारे में बताता है के उस आध्यात्मिक स्थिति का पीड़ा हमारा कोई शरीर का अंग गुमने से भी ज्यादा दर्दनाक है. अगर नरक की सच्चाई नहीं होती तो येशु ये बात ऐसे ही नहीं बोलते.

अंत में मुझे लगता है के “नर्क” का प्रेरणा आज्ञाकारिता पर आधारित ना होकर ‘प्रेम’ होना चाहिए.

पवित्र डर या प्यार के साथ साथ परमेश्वर के लिए पवित्र डर और सम्मान होना चाहिए.

एक अच्छी उपमा मैं आपको ये दे सकता हूँ के परमेश्वर एक वैसे स्वर्गीय पिता की तरह हैं जिन्होंने अपने बच्चे के फाएदे के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया और भले ही सुधार के हाथ के माध्यम से बच्चे को नियंत्रित किया जा रहा हो पर परमेश्वर इन सब कार्यों को अपने नियंत्रण में रखते हैं.

इन हाथों से ऊपर परमेश्वर के प्रेमी बाजुएँ हैं जो आप को गले लगाकर आपकी सुरक्षा करते हैं और आपको सुरक्षा देते हैं. परमेश्वर के हाथ और बाजुएँ एक साथ बच्चे को सिखाने के लिए काम करते हैं और अगर सही प्रकार से किया जाए तो बच्चे को परमेश्वर के हाथ को दुश्मन के रूप में नहीं देख कर मुक्ति देने वाले के रूप में और रूकने के लिए एक संकेत के रूप में देखना चाहिए.

एक बच्चा जो पूरी तरह से अपने माता पिता को प्यार करता है और उन पर विश्वास करता है और उनके सम्बन्ध को समझता है वो परमेश्वर के हाथ उठने पर ध्यान देता है और समझता है के वो सिर्फ उन प्रेमी बाजू की वजह से उठे जो उनका वजन उठा रहे हैं.

हम इस बार को माता पिता के लिए एक अपराध मान सकते हैं अगर वो अपने बच्चे को रास्ते पर एक आते हुए कार के आगे दौड़ते हुए देखते हैं और कुछ नहीं कहते और कुछ नहीं सुनते हैं. पर क्या आप उस परमेश्वर का विरोध करेंगे जो आपके अनन्त के आत्मा के लिए चिल्ला कर आपका ध्यान पाने की कोशिश कर रहे हैं. क्या आप इसको डर के रूप में देखेंगे अगर वो आपको चिल्ला कर कहें के ‘रुक जाओ’ आगे खतरा है.

एक बच्चा ऐसे समय में अपने माता पिता के आवाज के चेतावनी टोन पर प्रश्न नहीं करेगा पर फिर भी यही बात जब परमेश्वर करते हैं तो हम कैसे उनके पश्चाताप करने के विनती पर सवाल करते हैं.

परमेश्वर हमें बुला रहे हैं और सच कहें तो आपका ध्यान पाने के लिए वो चिल्ला रहे हैं. क्या आप सुनेंगे और उन पर विश्वास करेंगे क्योंकि वो एक प्रेमी पिता हैं?

ब्लॉग के अंत में एक स्थान है जहां पर परमेश्वर के साथ कैसे सम्बन्ध बनाया जा सकता है इसके बारे में लिखा हुआ है और वो आपको ये बताता है के आप कैसे बचाए जा सकते हैं और कैसे अपना जीवन परमेश्वर को समर्पित कर सकते हैं. ये बहुत ही साधारण प्रक्रिया है पर कार्यक्षेत्र और उपयोग में बहुत असरदार है और ये एक जीवन बदलने वाला अनुभव है.

मेरा विश्वास कीजिए मैंने ये २० साल पहले किया था और मैं अब कभी भी शैतान के लिए एक झूठ की जिन्दगी जीने के लिए वापस नहीं जाऊँगा.

आप मृत्यु के बाद कैसा जीवन का चयन करना चाहेंगे? आप मृत्यु के बाद जीवन चाहते हैं या फिर जीवन के बाद मृत्यु?

क्योंकि पाप का मूल्य तो बस मृत्यु ही है जबकि हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन, परमेश्वर का सेंतमेत का वरदान है. रोमिओं ६:२३.

‘नर्क की तरह और उस से बाहर’ के बारे में एक सादा विडियो

truthnet.org/forum/index.php?topic=97.0

 

 

कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएं

jesusandjews.com/wordpress/2012/01/10/कैसे-भगवान-के-साथ-एक-रिश्त/

 

 

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हिंदू संसधानें

हिंदू-धर्म

jesusandjews.com/wordpress/2009/10/29/is-hell-real/

हिंदू धर्म और पुनर्जन्म

Monday, February 13th, 2012

पुनर्जन्म एक ऐसा चीज है जिसे बहुत से पूर्वी धर्म मृत्यु के बाद के जीवन में कार्मिक परिणाम के साथ निपटने का एक तरीका के रूप में समझते हैं. हिंदू जीवन को जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के एक चक्रीय दृश्य में देखते हैं जिसको संसार कहके जाना जाता है और वो पिछले सही और गलत कर्मों का एक सीधा परिणाम है जो किसी व्यक्ति द्वारा मोक्ष या मुक्ति तक पहुँचने के लक्ष्य के साथ उनके पूर्व जीवन (ओं) में किया गया था जो संसार से मुक्ति का एक रूप है. तो हिंदू का परम तृप्ति “जो जाता है और घूम कर वापस आता है” के चक्र से बाहर निकलना है जिसके द्वारा वो किसी प्रकारका शुद्ध अवस्था को हासिल कर सके.

अस्तित्व या मुक्ति के इस अंतिम राज्य को पाने के कुछ तरीकों में इंसान का योग करने का कठोरता भी आता है जो ज्ञान के तत्वों, भक्ति, और काम पर आधारित है और जिसका उद्देश्य भौतिकवादी दायरे से आत्मा को आजाद कराना है.

हालांकि, विश्वास की इस प्रणाली को साबित नहीं किया जा सकता है चाहे इस विश्वास के मानने वाले धार्मिक विश्वासों की एक सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के रूप में इसे स्वीकार करते हैं. मैंने हाल ही में मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में एक ब्लॉग पोस्ट किया था जो उन व्यक्तियों और डाक्टरों के बताए हुए चीजों पर आधारित है जो मृत्यु के बाद के जीवन के विषय में अनुभवजन्य डेटा के खोज में दुनिया घुमे हैं और उनके अनुभव के आधार पर कहा गया है के लोग पुनर्जन्म जैसा दुखदाई प्रकार का न्याय अनुभव ना करके या तो नरक या तो स्वर्ग का अनुभव करते हैं जैसा के मृत्यु के बाद के बारे में बईबलिय खाता भी कहता है.

क्या नर्क वास्तव में है?

शुरूवात के लिए मेरा मानना ​​है कि हिंदू धर्म बुराई की समस्या और इस सच्चाई के परिणाम को नहीं मानता है फिर भी इसे नियंत्रित करने के सम्बन्ध में उनके विचार उन मृत्यु के निकट के अनुभवों से फरक है जो मैंने पहले कहा था और जो बईबलिय रिकॉर्ड में भी उल्लेख किया गया है.  

यह रोमन १ और २ में कहा गया है कि कैसे इश्वर ने मानव जाति को एक नैतिक कंपास दिया है जो की सही और गलत के बारे में एक आध्यात्मिक संकेतक के रूप में हमारे भीतर के मेनफ्रेम में जडान किया गया है जो हमें पाप के प्रकृति के बारे में और न्याय की अवधारणा के बारे में संकेत करता है. यह ज्ञान आम है और यह ही वो चीज है जो हमें मानव बनाता है फिर भी इस नैतिक दुविधा के वजह से ही हिंदू विश्वास के विपरीत ईसाई विश्वास में अंतर पैदा हुआ है जो अंदरूनी बूद्धि के परिणामी विचारों के सम्बन्ध में है.

बाईबल इस बात का समर्थन करता है के एक आदमी एक बार मरता है और फिर निर्णय का सामना करता है पर हिंदू आत्मा की स्थानांतरगमन पर विश्वास करते हैं जिसके कारण लोगों के अस्तित्व में नवीकरण हो जाता है जो कारण और प्रभाव जैसा रिश्ता का परिणाम है जिसके वजह से ये उम्मीद किया जाता है के जल्दी या बाद में ये अस्तित्व के इच्छित रूप में आपको ले जाए.

हिंदू विश्वदृष्टि में कुछ समस्याएँ जो मैंने देखा है, जो मेरे विचार से मानव जीवन की पवित्रता के लिए विरोधाभासी है, उन में से एक इंसान से अधिक शालीनता और सम्मान के साथ कुछ जानवरों और पेडों को देखना है. मैं बात कर रहा हूँ उन लोगों के बारे में जिन्हें दलितों या “अछूत” का लेबल लगाकर अलग कर दिया गया है जो भारत की जनसंख्या का लगभग पांच भाग में से एक हैं.

नस्लवाद का यह रूप जो कुछ उदाहरणों में गुलामी जैसा है इसे सरकार द्वारा औपचारिक रूप से गैरकानूनी माना जा चुका है पर भारतीय समाज के भीतर हिंदू लोगों में से बहुत ने इस प्रथा को अनौपचारिक रूप से बरकरार रखा है.

हकीकत में इस धार्मिक उत्पीड़न से समाज के राजनीतिक और सामाजिक ढांचे को नियंत्रित करने में मदद मिलता है जिसमें वो उनकी संस्कृति की सफलता के समर्थन के लिए इस प्रकार के लोगों पर नौकरों के रूप में नीच काम करने के लिए निर्भर हैं और इसलिए इन छोटे जाति के सदस्यों के प्रति इस अपमानजनक और दुर्बल व्यवहार को सरकार द्वारा एक आवश्यक बुराई के रूप में स्विकार किया जाता है.

इन लोगों के बारे में कहा जाता है के बुरे कर्म की वजह से उन्हें जीवन में ये स्थान मिला है और उसी के परिमाण स्वारूप उत्पीड़न के इस भाग्यवादी बस्ती का सुरुवात हुआ. फिर भी मुझे आश्चर्य है कि कैसे हिंदू के अहिंसा के दर्शन को मानने वाले ये व्यक्ति अपनी कोई बुराई नहीं वाली नीति को भुलाकर इन लोगों को समाज की गन्दगी के रूप में मानते हैं.

ईसाई मिशनरियों ने दलितों के लिए येशु प्रभु का प्रेम बाँट चुके हैं और उन्हें इस बारे में भी कहा के परमेश्वर ने मानव जाती को बड़े ऊँचे स्थान पर रखते हैं पर कट्टरपंथी हिंदुओं ने हमेशा इस बात का विरोध किया है और अपने अहिंशा के निति को भुलाकर ईसाई दलितों और मिशनरियों पर आक्रामक होके उन्हें चोट पहुंचाया है.

फिर भी वे इस बात का विरोध कर रहे हैं के उन लोगों ने अपने सिस्टम पर नियंत्रण खो दिया है और वे हिंसा और भय रणनीति के तरफ चले गए हैं जो उनके धार्मिक मान्यता के विपरीत है और ये उन्हें प्यासिफिस्ट के रूप में चित्रित करता है.

कुछ हिंदुओं के लिए, अहिंसा का मतलब मांस और बलिदान से परहेज़ करना है फिर भी इस तथाकथित निचली जाति के लोगों का बलिदान हिंदू धर्म के देवताओं को संतुष्ट करने के लिए क्या स्वीकार्य है?

इसके अलावा विवाद का एक और मुद्दा यह है हिंदू विचार में एक गलत धारणा है के मानव जीवन असीमित है पर वहीँ पर हिंदू एक सीमित पृथ्वी का समर्थन भी करते हैं. विज्ञान भी अपने दूरबीन से “बड़ा धमाका” के वजह से हो रहा ब्रह्माण्ड के विस्तार के अवलोकन के माध्यम से एक परिमित ब्रह्मांड का समर्थन करता है.

मानव आत्मा असीम अस्तित्व के सीमित दायरे में मौजूद है कहकर अनुमान करना ही बस बेतुका है.

इसलिए अगर जीवन का एक अभिन्न अंग सीमितता है तो पहले मानव कैसे प्रकट हुए और कर्म के लौकिक दायरे में उसने कैसे भाग लिया अगर वो पहले से मौजूद ही नहीं था. दूसरे शब्दों में पहला जन्म इसलिए भी आवश्यक है क्यूंकि पहले ही विद्यमान कोई इकाई द्वारा कोई पिछला काम नहीं किया गया था? क्या किसी तरह से इश्वर को एक बड़े धमाके से गुजरना पड़ा और अब हमें मोक्ष के प्रयासों के माध्यम से उन्हें वापस एक साथ लेकर आना है?

तो अगर सबूत समय की एक प्रारंभिक बिंदु की ओर अंकित करता है तो ये जीवन जिसे हम जानते हैं इसका सुरुवात कैसे हुआ और पहले जन्म को किसने प्रेरित किया क्यूँकी जन्म तो कर्म के चक्र का परिणाम है.

इसके अलावा कर्म से संबंधित एक और बात ये है के पिछले जीवन के काम के लिए आप कैसे जिम्मेवार हो सकते हैं जिसके बारे में आप अनजान हैं या फिर आपको कैसे पता चलेगा के आपने पूर्व प्रतिक्रियाओं को मिलाने के लिए इस जीवन में पर्याप्त किया भी है या नहीं? कौन जानता है के वो कहाँ है और कहाँ जा रहा है और अंततः कहाँ जाकर खतम हो जाएगा? यह एक व्यक्ति को केवल शून्यवाद या निराशा की तरफ ले जा सकता है. अंत में व्यक्ति एक सिद्ध योजना के बिना ही रह जाता है जो उसे मोक्ष की महत्वपूर्ण तत्व प्राप्त करने में मदत कर सके.

इसके अलावा उन लोगों के निराशाओं का क्या जो कीड़े और पशुओं जैसे छोटे प्राणी के रूप में पुनर्जन्म लेंगे और जिनके पास योग के कर्तव्यों का पालन करने की क्षमता नहीं है या फिर उन लोगों के पास क्या आशा है जो अपना भविष्य का जीवन एक नाली के चूहे के रूप में बिताने वाले हैं?

यदि भारतीय संस्कृति दुनिया के आध्यात्मिक केंद्र और शिरोबिंदु है जिसके पास गुरुओं की विशेषज्ञता तक पहुँच है, तो फिर क्यूँ एक प्रबुद्ध समाज के तर्क के आधार पर भारत में इतने ज्यादा कर्मी पापी हैं? आखिर में कुष्ठ रोग के मामलों के २/३ लोग और दुनिया के अंधे लोगों में से आधे से ज्यादा इसी विश्वास के हैं.

अन्त में मुझे लगता है कि विश्वास का ये टूटा हुआ पहिया उन भक्तों का बोझ नहीं उठा सकता है जिन्होंने पवित्र गाय पर आशा रखा है जो गुरुओं के द्वारा भी कहा गया है के उन्हें अपने अंतिम स्थान पर पहुंचाने में मदत करेगा.

या फिर ये पूरी प्रणाली सिर्फ एक भ्रामक झूठ या माया हो सकता है जिसे व्यक्ति को एक ऐसे दर्शन में विश्वास करने के लिए भेजा गया है जिसका कोई अंतिम वास्तविकता नहीं है.

अंत में मैं जानता हूँ कि मैंने कुछ कठिन बातें कही है और मैं मेरे हिंदू दोस्तों का अपमान नहीं करना चाहता लेकिन मैं उन्हें चुनौती देता हूँ अपने विश्वास के सांस्कृतिक सीमाओं से बाहर निकल कर सोचने के लिए जिसने उनके विशवास के धार्मिक प्रणाली के विरुद्ध जाने से उनको रोका है. मैं फिर से माफ़ी मांगना चाहता हूँ अगर मैंने इस पोस्ट के माध्यम से किसीको आहत पहुंचाया है क्योंकि आक्रामक जैसे दिखे बिना चुनौती देना आसान नहीं होता है और मुझे आशा है कि आप अपनी आध्यात्मिक यात्रा में कुछ पल निकाल कर अपने विशवास के वैधता के बारे में सोचेंगे.

अंत में मेरा मानना ​​है कि सभी लोगों के लिए आशा है जो यीशु प्रदान करते हैं लेकिन सही और गलत के धार्मिक प्रयासों से नहीं बल्कि उनके व्यक्तित्व और काम पर विश्वास की सादगी के माध्यम से जो आपको अपनी आत्मा के खालीपन और आत्मग्लानी  से मुक्त कराएगा और आपको नए जन्म के दिशा में ले जाएगा.

मती ११:२८-३० में यीशु ने कहा के  ” अरे ओ थके-मांदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ , मैं तुम्हे सुख चैन दूँगा. मेरा जुवा लो और उसे अपने ऊपर संभालो. फिर मुझसे सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा मन कोमल है. तुम्हे भी अपने लिए सुख-चैन मिलेगा. क्योंकि वह जुवा जो मैं तुम्हे देरहा हूँ बहुत सरल है. और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है. ” 

 

कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएँ

 

 

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कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएँ?

Tuesday, January 10th, 2012

बाईबल हमें सिखाता है कि भगवान ने मानवता सहित सब कुछ बनाया है और भले ही इश्वर सही और अच्छे हैं, लेकिन आदमी वैसा नहीं है. इश्वर ने मानव जाति को एक मुक्त नैतिक एजेंट बनाया और उसे अच्छाई और बुराई के बीच चयन करने की क्षमता दी. इश्वर का पवित्र पुस्तक, बाईबल इश्वर के खुद के रहस्योद्घाटन के सम्बन्ध में है जो हमें कहता है के हम सब ने पाप किया है और उनकी महिमा से गिर गए हैं.

अगर मैं आज्ञाओं के बारे में कहूँ, जो कानून का नैतिक आधार है तो ऐसा कोई भी नहीं होगा जो कुछ हद तक इश्वर के क़ानून के पार नहीं गया होगा. पाप का मतलब परमेश्वर या अन्य लोगों का उल्लंघन है चाहे वह दूसरे देवताओं की सेवा कर के किया गया हो या फिर इश्वर का नाम दुरुपयोग करके किया गया हो और इसका पूर्ण परिणाम ये होता है के हम इश्वर को हमारे पूरे दिल से प्यार नहीं कर पाते. इस आज्ञा के बाद आता है माता पिता की अनादर, हत्या जो नफरत के बराबर है, व्यभिचार जो आँखों की लालशा से जुड़ा है, चोरी, पड़ोसी के खिलाफ झूठी गवाही देना, और दुसरे आदमी की संपत्ति या पत्नी की लालशा करना जो गलत इच्छाओं और इरादों के साथ जुड़ा हुआ है.

इस उल्लंघन ने हमें इश्वर से सदा के लिए कटौती किया है या फिर अलग – थलग रखा है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हम खो गए हैं और उनसे जुदा हो गए हैं क्योंकी वो खुद पवित्र होते हुए खुद को पाप के साथ रहने की अनुमति नहीं दे सकते. पाप परमेश्वर का क्रोध लाता है सिर्फ यहीं पर नहीं बल्कि अनंत काल में भी. बाईबल इस जगह को एक ऐसे जगह के रूप में बयान करता है जहां आग कभी नही बुझती और जहां महान पीड़ा है.

इस बिंदु पर बातें निराशाजनक लगती हैं, लेकिन अच्छी खबर यह है कि परमेश्वर ने मसीहा को भेज दिया है जो पाप के बिना थे. उनका कार्य इश्वर के आगे लोगों के लिए मध्यस्तकर्ता बनना था और उन्होंने ये करने के लिए अपनि भौतिक जीवन को हमारे लिए एक बदले के रूप में कुर्बान कर दिया और परमेश्वर के न्याय को पूरा कर दिया.

वो न केवल मानव जाति के लिए मरे ताकि इश्वर और हमारे बिच शान्ति बन सके, वो मरने के बाद फिर जीवित भी हुए और अब उन सब का इन्तेजार कर रहे हैं जिन्होंने उन पर भरोसा रखा. तो अब जब हम मृत्यु के पार जाएंगे हमारा शरीर तो मर जाएगा, लेकिन हम उनके साथ मौजूद रहेंगे और इसी बात को बाइबल अनन्त जीवन के रूप में संदर्भित करता है.

यह सभी बातें हमारे आगे खुल जाएगा जब हम दिल से यीशु में विशवास रखेंगे और उनको हमारे उद्धारकर्ता के रूप में मान लेंगे जो पाप को निकाल कर इश्वर के साथ हमें शांति में लाते हैं. इसमें एक और बात सामिल है के जब हम उनको प्रभु के रूप में मानते हैं, अब हम उनकी आज्ञाकारिता से सेवा करेंगे.

जब हम इस क्षमता में यीशु को प्राप्त करते हैं तो वह हमें पवित्र आत्मा के व्यक्तित्व में स्वर्ग का एक टुकड़ा भेज देते हैं जो विश्वासी में रहकर हमें इश्वर के लिए जीने में मदत करते हैं.

आस्था की इस लेन – देन के बाद पानी का बपतिस्मा या डूबने का अनुष्ठान आता है जिसको पानी का कब्र माना जाता है. यह क्रिया नया जन्म का प्रतीक है जिसमें इश्वर के भीतर के काम को बाहिरी रूप दिया जाता है जिसको इस क्रिया द्वारा घोषित किया या माना जाता है और ये आतंरिक रूप से नया इंसान बनने के लिए एक आध्यात्मिक वास्तविकता का संचार करता है.

यह पूरी प्रक्रिया एक साधारण लेन – देन की तरह लगता है लेकिन ये महान महत्व और अर्थ से भरा हुआ है . यीशु आपको ये कह कर बुला रहे हैं “महेनत करने वालों और बोझ से दबे लोगों मेरे पास आओ और मैं तुम्हारे आत्मा के लिए विश्राम दूंगा. मेरा जुवा अपने आप पर लेलो और मुझसे सीखो क्योंकि मैं विनम्र और कोमल हृदय का हूँ, और तुम अपनी आत्मा के लिए शान्ति पाओगे, क्योंकि मेरा जुवा सरल है और मेरा बोझ हल्का है.”.

मेरे दोस्त अगर आज आप उनकी आवाज को आपको बुलाते हुए सुन रहे हैं तो कृपया अपने दिल को कठोर मत बनाइए बल्कि अपने जीवन को इस आत्मा के चरवाहा को समर्पित कर दीजिए. वह आपको प्यार करते हैं और आपको एक ऐसी शांति देंगे जो सभी समझदारी और खुशी से बढ़कर है जिसके बारे में बताना भी नामुम्किन है. इसका ये कहना नहीं है के आपको अपने जीवन में किसी भी तूफान के मौसम का सामना नहीं करना पड़ेगा पर वो हमें वादा करते हैं के वो हमें कभी नहीं छोड़ेंगे और कभी नहीं त्यागेंगे.

समापन में मैं आपको प्रोत्साहित करूँगा के आप उनसे प्रार्थना कीजिए के वो अपनेआप को आपके सामने एक वास्तविक और ठोस रूप में प्रकट कर दें ताकि आप उन पर विश्वास कर सकें.

यदि आप दिल की ईमानदारी और निष्कपटता के साथ ऐसा करते हैं तो आपको निरास नहीं होना पड़ेगा क्योंकि हमें प्रोत्साहित किया जाता है ये देखने और स्वाद लेने के लिए के परमेश्वर अच्छे हैं. आमेन

 

 

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www.4laws.com/laws/hindi/default.htm

यीशु के साथ मेरी व्यक्तिगत गवाही

How to know God

यीशु के साथ मेरी व्यक्तिगत गवाही

Tuesday, January 10th, 2012

नमस्ते, मेरा नाम रब है और मैं टेक्सास से हूँ जो अमेरिका में है. खैर मैं आपको मेरे खुद के बारे में थोड़ा बताना चाहता हूँ. मैं आम तौर पर परमेश्वर में मेरी आस्था के बारे में अपनी गवाही बता कर सुरु करता हूँ जो मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. लगभग बीस साल पहले मैं ऐसे समय की अवधि से होकर गुजरा जहां मुझ में वास्तविक सुन्यता और खालीपन था. जब मैंने यीशु में विश्वास किया उन्होंने मुझे पूरी तरह से भर दिया और अब मेरे पास इतना प्रेम, आनन्द और शांति है जितना मुझे इस संसार ने कभी नहीं दिया. वो मेरे जुनून और मेरे जीवन हैं.

अगर मैं इस तरह के अनुभव के वास्तविकता से नहीं गुजरा होता तो मैंने इन सब को लंबे समय पहले छोड़ दिया होता और आस्था के अन्य क्षेत्र में ढूँढना शुरू कर दिया होता. जिस चीज ने मेरी जिंदगी बदल दी वो ये है के मैंने यीशु के साथ एक व्यक्तिगत संबंध में प्रवेश किया जो किसी भी धर्म / दर्शन की सीमाओं से बड़ी बात है. ये इक ऐसा चीज था जो वास्तविक और ठोस था. ये तब हुआ जब मैं अपने जीवन में आस्था को लेकर एक निर्णायक बिंदु पर पहुंचा तब उन्होंने मुझे इतने मौलिक तरीके से बदल दिया के सचमुच रातोंरात मेरे काम करने, सोचने और विशवास करने के तरीके को उन्होंने बदल दिया. मैं एक अलग व्यक्ति बन गया था और इस बात में कोई आशंका नहीं थी की यह परिवर्तन सभी के लिए स्पष्ट था. मैं फिर से पैदा हुआ था और मुझे ये मालूम था के ये सिर्फ एक दुसरे चर्च का अनुभव नहीं था. मैं मसीह में एक नया निर्माण था. अब मेरे जीवन में कुछ परिवर्तन प्रगतिशील थे फिर भी कुछ तो तात्कालिक और रातोंरात के परिवर्तन थे. मैंने देखा है के इश्वर ने मुझे मेरे जीवन में कुछ ऐसे चीजों से छुटकारा दिया है जो मेरे खुद के काबू पाने के प्राकृतिक क्षमता में नहीं था. यीशु ने मुझे निकोटीन की लत से लेकर व्यभिचार तक पापों के विशाल आयाम पर काबू पाने की ताकत दे दी. मैंने विशवास के एक बिंदु पर अपनी पत्नी को अपक्षयी गुर्दे और मेरे बेटे को आस्थमा से ठीक होते हुए देखा. अगर इस बिंदु पर मेरे पास आपको देने के लिए सिर्फ एक राय होता तो मैं अपनी गवाही पढाने में आपका समय बर्बाद नहीं करता.

आप ये कह सकते हैं के आपको मुझ पर विशवास नहीं है या फिर सबसे अच्छा आप मुझे ईमानदार पर ईमानदारी के साथ  गलत सोच सकते हैं पर मैं आपसे निवेदन करता हूँ के किसी तरह से इमानदारी और सच्चाई से परमेश्वर से प्रार्थना करें के वो आपके सामने यीशु की सच्चाई को प्रकार कर दें. खैर पढ़ने के लिए मैं आपको फिर से धन्यबाद देता हूँ और मैं प्रार्थना करता हूँ के इस के माध्यम से परमेश्वर आपको आशीर्वाद दें.

 

 

कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएँ

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My testimony with Jesus

सब के लिए मेरी व्यक्तिगत टिप्पणी

Tuesday, January 10th, 2012

जब मैंने पहली बार ब्लॉग पोस्ट करना शुरू किया मेरे लिए एक निजी नोट को शामिल करना महत्वपूर्ण था वो इसलिए के पाठक को मेरे आचरण और प्रेरणा के बारे में बताना जरूरी था इसके बाबजूद के पदों की सामग्री के बारे में मेरी प्रतिबद्धता थी.

मैंने ऐसा किया क्योंकि इंटरनेट के माध्यम से संचार बहुत सिमित होता है और इसमें इंसान को व्यक्तिगत रूप से जानना मुश्किल है और कभी – कभी एक पाठक का अर्थ को समझने की कुशलता घट जाता है उन लक्ष्य और इच्छाओं का पीछा करते हुए जो उस इंसान से सम्बंधित है जिसने वो ब्लॉग लिखा.

तो शुरू में मैंने हरेक विशेष समूह को अपने विश्वासों और दायरे में व्यक्तिपरक मानके इसको सुरु किया. हालांकि, जब ये ब्लॉग साईट बढ़ने लगा तब मैंने समूहों के आम तत्वों को एक साथ रखने के लिए सब के लिए निजी टिप्पणियां देने के सिवाए एक ही नोट लिखने का फैसला किया क्योंकि मुझे लगा के ये पाठकों को सिर्फ बढ़ा चढा जैसा दिखेगा और टुकड़ों के जैसा लगेगा जैसा के मेरे ब्लॉग साईट में दीखता है.

वैसे भी कभी कभी विश्वास और आस्था के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करते समय काफी मुश्किल हो जाता है क्योंकि हमारे विश्वदृष्टि हमारे व्यक्ति और व्यक्तित्व के इतने अभिन्न अंग हैं के हम व्यक्ति और उनके मूल्य प्रणाली के बीच का अंतर ही नहीं जान सकते.

एक व्यक्ति को केवल एक बिंदु तक परिवर्तन किया जा सकता है लेकिन हम उन से खुद उनको ही अलग नहीं कर सकते. एक व्यक्ति को उनके दुनिया के विचारों द्वारा ही परिभाषित किया जा सकता है और इससे थोडा भी कम उसको एक बेतुका व्यक्ति बना देता है.

मैं यह कहना चाहता हूँ क्योंकि अक्सर जब मैं धार्मिक विश्वासों या धर्मनिरपेक्ष विचारों के बारे में बात करता हूँ यह अक्सर माना जाता है कि मैं किसी भी तरह से उन्हें व्यक्तिगत रूप से हमला कर रहा हूँ. फिर भी ये मेरा इरादा नहीं है, बल्कि मैं पाठकों के दिल और मन तक पहुँच कर इस बाधा को चुनौती देने की उम्मीद करता हूँ वो भी उनके लिए प्यार और चिंता के एक प्रतिबद्धता के माध्यम से और गुस्से और व्यर्थ निर्णय जैसे बुरे भावना से किए गए व्यर्थ वाद – विवाद से भी बचाना चाहता हूँ जो अक्सर इन प्रकार के विषयों के साथ आता है.

मुझे लगता है कि आप आसानी से इन्टरनेट की लफ्फाजी के भीतर इस प्रकार के ब्लॉग पा सकते हैं और आपको इस ब्लॉग के संवाद में उलझना जरूरी भी नहीं होगा.

मैं मानता हूँ कि कई बार इन ब्लॉगों को लिखते समय मैंने बहुत ही सीधा और प्रत्यक्ष तरीके से बात किया है और कभी कभी मैं भावुक हो गया लेकिन एक बात जो मैं नहीं चाहता के लोग गलत समझें वो ये है के मैं नफरत और पाठक की समूह के ओर क्रोध से प्रेरित नहीं हूँ लेकिन मेरी लड़ाई उन संस्थाओं से है जिन्होंने मतारोपण की इन मान्यताओं को शामिल किया है. फिर मैं ये भी समझता हूँ संगठन लोगों की वजह से मौजूद हैं पर मेरा दिल इन एजेंसियों के अवैयक्तिक कॉर्पोरेट ढांचे की वजह व्यक्ति की देखभाल की ओर समर्पित है.

इसके अलावा, अगर इस ब्लॉग साईट के माध्यम से आपके बुद्धि के बजाय अगर मैंने आपके गुस्से को जगाया है तो मैं अपने संदेश को व्यक्त करने में विफल रहा हूँ. मेरा आशय किसी का अपमान नहीं है भले ही मेरी टिप्पणी को आक्रामक के रूप में देखा जा सकता है और जो सब मैंने किया है उसे अगर नफरत, पूर्वाग्रह और हिंसा की अभिव्यक्ति के रूप में व्याख्या किया जाता है तो संवाद करने के लिए किए गए मेरे इन प्रयासों ने हम दोनों का समय बर्बाद किया है. इसके अलावा, मुझे पता है कि इन ब्लॉगों को पढ़ने से हर व्यक्ति को लाभ नहीं होगा, लेकिन मेरी आशा और प्रार्थना है कि किसी भी तरह से, किसी न किसी प्रकार से इस से किसी के जीवन में फरक पड़ेगा.

जैसे ही मैंने इन ब्लॉगों को लिखने के लिए तैयारी किया तब पूरे ईमानदारी में मुझे ये एहसास हुआ के हर व्यक्ति में कुछ स्तर तक धोखा होता है जिसमें में खुद भी शामिल हूँ और किसी भी व्यक्ति के पास जीवन के हर सवालों का जबाब नहीं होता है. फिर भी इन सीमाओं के बावजूद इसने मुझे सच का पीछा करने और रक्षा करने के साथ उसके पथ में चलने का जिम्मेदारी लेने से नहीं रोका चाहे वो मुझे जहां भी लेजाए और मैं इस रास्ते में आपको मेरे साथ चलने के लिए निवेदन करता हूँ.

मैं जानता हूँ कि “सच्चाई” शब्द का निरपेक्ष रूप में प्रयोग करना थोडा अभिमानी और असहिष्णु सुनाई देता है खासकर इसलिए क्योंकि हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जो राजनीतिक रूप से सही है और सापेक्षवाद के बहुलवादी दृश्य को सही मानता है.

फिर भी हमारा समाज सत्य के महत्वपूर्ण तत्वों पर निर्भर है जो हमारे मानव अस्तित्व के बहुत ही जरूरी आधार हैं. आम तौर पर इसे कानून और व्यवस्था के विभिन्न विषयों में या विज्ञान के संबंध में लागू करने में हमें कोई समस्या नहीं होता है लेकिन किसी तरह हम धार्मिक विश्वास की अवधारणा में इसी तर्क को लागू करना नहीं चाहते हैं.

यदि हम हमारे जीवन की खंडन करते हैं और सच्चाई को सार्वभौमिक रूप से लागू नहीं करते हैं तो अंततः हम खुद को धोखा देकर एक झूट की जिंदगी जीते हैं. अभी तक मानव समाज और संस्कृति की महानता ज्ञान की खोज के माध्यम से हासिल किया गया है और एक बार ज्ञान प्राप्त हो जाए तो प्रगति होता है जो हमें अपने ज्ञान का परम लक्ष्य की दिशा में ले जाता है.

तो आप इन ब्लॉगों में शोध की यात्रा शुरू कने से पहले अपने पहले की सोच और सांस्कृतिक फिल्टर के बारे में ध्यान रखें जो आपके जीवन की व्याख्या को प्रभावित करके आपके जीवन के बारे में सोच को प्रभावित करते हैं और जिसपर आप बिना ध्यान दिए ही काम कर रहे हैं.

इसके अलावा, मुझे पता है कि जीवन के बारे में पुनर्विचार करना एक भयावह बात या एक दर्दनाक अनुभव हो सकता है क्योंकि वहाँ हमारे सोच की त्रुटि की संभावना रहती है जो हमें ऐसे जगह पर ला कर खड़ा कर सकता है जो हमारे सुविधा क्षेत्र से बाहर है. फिर भी हमारे जीवन के बारे में गंभीर रूप से ना सोचने के कारण परिणामस्वरूप हम धोखे से खुदराय अज्ञानता की तरफ आगे बढ़ सकते हैं.

इस के अलावा हम कभी कभी आँख बंद करके हमारे परिवार, साथियों, सरकार, और बड़े पैमाने पर समाज की मान्यताओं को मान लेते हैं और वहाँ उन मान्यताओं को चुनौती देने की संभावना समेत नहीं रहती. हम में यथास्थिति और सामाजिक मानदंडों के साथ चलने की प्रवृत्ति है जिसको हम हमारे जीवन के नैतिक विचारों के लिए एक मानक मान लेते हैं.

यह ऐसा है के हम पहले विश्वास करते हैं और फिर उन मान्यताओं को समर्थन करने में हमारी दुनिया केंद्रित कर देते हैं.

वैसे भी शुरू करने के लिए मैंने जितने भी सन्देश पोस्ट किए हैं उसकी केंद्रीय आकृति लोगों को सुनाने का कोई अर्थ नहीं है और वो ये है के इश्वर सभी से प्यार करते हैं.

यहुन्ना ३:१६ कहता है कि “परमेश्वर को जगत से इतना प्रेम था की उसने अपने एकमात्र पुत्र को दे दिया, ताकि हर वह आदमी हो उसमें विश्वास रखता है, नष्ट न हो जाए बल्कि उसे अनंत जीवन मिल जाए.”

यह आज एक जीवंत वास्तविकता है कि हर संस्कृति, जनजाति, भाषा और लोगों के समूह हैं जो उन पर विश्वास करते हैं और वो भी बल या मजबूर किए जाने की वजह से नहीं बल्कि परमेश्वर के प्रेम की वजह है जिसके परिणामस्वरूप वो बदले हुए जीवन की तरफ आकर्षित हुए हैं.

यीशु की वास्तविकताओं में से एक ये है के उन्होंने औरों के लिए परमेश्वर के प्रेम को प्रदर्शन किया जिसके वजह से लोगों को गतिशील रूप से जिने का उपाय मिला और इश्वर को व्यक्तिगत और वास्तविक रूप से जानने का मौका भी मिला. उनका काम न केवल एक प्रभावशाली आदमी या एक नबी के रूप में पूरा हुआ बल्कि एक उद्धारकर्ता के रूप में भी पूरा हुआ जो दवा व्यसनों, अश्लीलता, चोरी, व्यभिचारी व्यवहार या फिर मानवता के अंदर की सारी बीमारीओं से बचाते हैं. उन्होंने लाखों लोगों के जीवन को परिवर्तन किया है जिसमें मैं भी शामिल हूँ और मेरे लिए मेरी गवाही के संबंध में उनके जीवित शक्ति और व्यक्तिगत संपर्क को इनकार करना आप के प्रति नफरत और बेईमानी होगा.

तो इश्वर के पास लोगों को लाने का येशु का तरीका हमें किसी प्रकार का असंभव बाधा वाला काम कराके या फिर एक योग्यता प्रणाली के माध्यम से क्रेडिट कमाने के प्रयास से नहीं है. पर मसीहा के रूप में उनके व्यक्ति और काम में हमारी आस्था और विश्वास रखने के द्वारा उन्होंने ये संभव बनाया है और हमारी अच्छाई भी यही है.

यीशु ने कहा “महेनत करने वालों और बोझ से दबे लोगों मेरे पास आओ और में तुम्हारे आत्मा के लिए विश्राम दूंगा. क्योंकि मेरा जुवा सरल है और मेरा बोझ हल्का है.”

उन्होंने हमें अनन्त विश्राम देने का वादा किया है जो  हमारे खुद के प्रयासों पर आधारित नहीं है बल्कि ये उनके अच्छाई के काम पर आधारित है जिसके परिणामस्वरूप उनकी मौत के बलि के माध्यम से हमें उद्धार मिला.

उन्होंने हमारे पापों को अपने कंधे पर उठाकर परमेश्वर के सजा को अपने आप पर ले लिया जिसके वजह से इश्वर के साथ हमारी सुलह होगई.

अंत में मैं आपको सिर्फ ये कहना चाहता हूँ के जैसे आप इस ब्लॉग को पढ़ें उसे एक खुला मन रख कर कीजिए और प्रार्थनापूर्वक सभी ईमानदारी और दिल की सच्चाई में इश्वर की खोजी करें. अगर मैंने कुछ बिंदुओं पर मेरी स्थिति से ज्यादा ही कह कर इस मामले को ज्यादा दूर तक लेगया तो कृपया मुझे माफ कर दीजिए. मैं जान बूझ कर किसी को अपमान करने के लिए कुछ नहीं कर सकता और मेरा उद्देश्य और लक्ष्य दूसरों को लाभ देना है ना की समाज के लिए हानि या उपद्रव बनना.