क्या नर्क वास्तव में है?

आम तौर पर स्वर्ग की वास्तविकता में विश्वास करना लोगों के लिए आसान होता है पर अलग किए गए आत्माओं के लिए नारकीय दायरे का अस्तित्व के बारे में वो चिंतन नही करते. नरक एक विवादास्पद विषय है जिसकी चर्चा से लोग बचने की कोशिश करते हैं और इसे अगर गंभीरता से लिया गया तो भी इसे अक्सर संदेह के व्यवहार के साथ देखा जाता है. एक गैर व्यक्तिगत दृश्य से परहेज करके नरक के देखने का नकारात्मक पहलू आमतौर पर उदासीनता की एक प्रतिक्रिया के रूप में हमारे सामने आता है क्योंकि वहाँ पर व्यक्तिगत जवाबदेही की संभावना रहती है जो आत्म संरक्षण की एक रक्षात्मक तंत्र के रूप में आता है.

कुछ लोग होगन के हीरो के तरह अज्ञानता का खेल खेलकर नर्क के साथ सामना करते हैं जो जोरदार ढंग से ‘मुझे कुछ पता नहीं’ कहके हट जाता था जबकी ज्ञान को सुरक्षित करना उसकी जिम्मेवारी थी फिर भी अपने बयान से वो इस जिम्मेवारी से छुटकारा पाने की कोशिश करता था और इसी लिए प्रत्यक्ष चीज को भी अनदेखा करता था. ये उसे इश्वर के आदेश से अलग नहीं करता है और हमें सब कुछ जानने वाले इश्वर के आगे निर्दोष भी नहीं बनाता है.

दूसरे समूह के लोग शायद जानते हैं लेकिन बाइबल और ईसाई धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी चीजों को बंद करके वो न्याय की स्थिरता को बंद करते हैं और सिर्फ यही उपाय है उनके पास अस्थायी रूप से अपरिहार्य के साथ निपटने के लिए. आप  देख सकते हैं कैसे कितनी तेजी से लड़कों का कोई समूह चैनल को बदलते हैं अगर उस चैनल पर पाप के बारे में कुछ आरहा होता है. आप सोच सकते हैं के जैसे वो रिमोट को चलाने में कोई पश्चिमी ‘जल्दी का काम’ देख रहे हैं.

वैसे भी पाप और न्याय के बारे में सोचते समय हमेशा वहाँ पर चेतावनी संकेत रहता है जिसका स्पष्ट और विशिष्ट अलार्म प्रणाली रहता है और जिसका काम परमेश्वर के तरफ हमारे होश को जगाना और अनन्त दंड के बारे में हमको बताना है रोमन २:१४-१६, १ यहुन्ना ४:१८.

चाहे हम अलार्म के अनियमित सिस्टम को अनदेखा करके अलार्म से भागने की कोशिश करें या फिर चिढकर उसे बाहर फेंक दें, ये सब उस बात को बदल नहीं सकता के अब उठने का समय आचुका है.

हमारे होश के आंतरिक शोर की तरह वो अलार्म घड़ी बजता है और हमें हमारे नैतिक हालत और शाश्वत भाग्य से जगाने की कोशिश करता है. अज्ञान या प्रतिरोध की वजह से हम इस बात का विरोध करने की कोशिश करते हैं और इस झुंझलाहट को निकालने की कोशिश भी करते हैं फिर भी इस अलार्म का बजाना तब तक पूरी तरह से बंद नहीं होगा जब तक इस जीवन की तरफ आप पूरी तरह से नहीं जाग जाते.

लोगों को नर्क का बईबलिय परिभाषा को विशवास करने में बहुत मुश्किल समय बिताना पड़ता है जिसको अनन्त पीड़ा और निंदा का एक भयावह जगह के रूप में चित्रित किया गया है और इसके वजह से लोगों को नर्क का अपना ही वास्तविकता तैयार करने में मजबूर कर दिया है.

कुछ व्यक्तियों ने नरक की अवधारणा को पूरी तरह से हटा दिया है ये कहकर की उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है और अगर कोई अस्तित्व है भी तो वहाँ सैतान और उसके राक्षसों के साथ साथ हमारे आज के समाज के हिटलर रहते हैं.

कई लोग नर्क का भयावह दृश्य को एक ‘बड़ी पार्टी’ के रूप में चित्रण करके उसकी चाहना करते हैं.

कुछ व्यक्ति इसको बहुत कम गंभीरता से देखते हैं जहां पर वो इसको सिर्फ एक अस्थायी पापमोचनसंबंधी अस्तित्व के रूप में देखते हैं जहां पर विनाश के जैसा मांश में आग लगाया जाता हो.

मैंने हाल ही में मौत के नजदीक के अनुभव के आधार पर स्वर्ग और नरक की इस अवधारणा के बारे में एक वृत्तचित्र देखा जो इन धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक शोधकर्ताओं के गवाही पर आधारित था और उन सभी ने ये माना के जिन लोगों को वो देख रहे थे और इंटरविउ ले रहे थे वो सब मृत्यु के साथ उनका साक्षात्कार पर आधारित वास्तविक अनुभव था और उसे मौत के बारे में पूर्वाग्रह उम्मीदें या फिर मस्तिष्क के रसायनों के भ्रमात्मक एजेंटों द्वारा नहीं समझाया जा सकता था.

उन धर्मनिरपेक्ष शोधकर्ताओं में से एक ने मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप को भी अलग कर दिया क्यूंकि उन्हें लगा के मरते समय नरक के बारे में सोचना उलटी बात थी.

प्रौद्योगिकीय अग्रिमों से लोगों को पुनर्जीवित करने के कारण ये मृत्यु के पास के अनुभव अब और अक्सर होने लगे हैं और कहा जाता है के सिर्फ अमेरिका में १२-१५ मिलियन लोग ऐसे हैं जिन्हें ये अनुभव मिल चूका है.

एक कमेंटेटर का कहना है कि ज्यादातर लोग मौत के साथ ऐसा मुठभेड़ होने के बाद धार्मिक परिवर्तन से गुजरते हैं और इसी वजह से इन प्रकार के परिवर्तन के लिए केवल मतिभ्रम को ही कारण नहीं माना जासकता है.

एक अन्य शोधकर्ता ने इसी काम के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 300 से अधिक मामलों में खोज किया और उनके इस शोध ने दोनों नारकीय और स्वर्गीय विवरण के गवाही में निरंतरता पाया जैसा की बाइबिल पाठ में भी कहा गया है.

जैसे हम हैलोवीन के बुतपरस्त त्योहार की तरफ बढ़ रहे हैं, बहुत से लोग मृत्यु या नर्क को वैसे ही दृष्टिकोण से देखते हैं जैसे की वो इस छुट्टी को देखते हैं. कभी कभी लोगों को समझ नहीं आता या वो समझ की परवाह नहीं करते की इस पैशाचिक उत्सव के पीछे के  आध्यात्मिक दायरे का वास्तविकता क्या है. उनके लिए यह बस मज़ा आनेवाला एक हानिरहित खेल है फिर भी मौत की तरह वहाँ एक वास्तविकता हो सकता है और साथ में ही एक छिपा राक्षसी तत्व भी हो सकता है जो हमारे सादे दृष्टि से खुद को छुपाता है और धोके से ये सोचने पर मजबूर करता है के  शैतान, राक्षसों, और नरक केवल हॉलीवुड और प्रचारकों का आविष्कार है.

नर्क का मूल्य ही कम हो जाता है और ये एक विज्ञापन के तरह लगता है और ये हमारे मन को सताना छोड़ कर हमारे लिए एक इच्छा का विषय बन जाता है जैसे के हमारे लिए शैतानिक भूमिका वाला “हैरी पॉटर” एक नायक या एक वांछनीय चरित्र मॉडल के रूप में स्थापित हो जाता है.

इस के बावजूद कुछ ऐसे लोग भी हैं जो मृत्यु के बाद के जीवन के ज्ञान को गंभीरता से देखते हैं या कम से कम वे इसके बारे में उत्सुक हैं और इसीके वजह से स्वर्ग में ९० मिनट और नर्क में २३ मिनट जैसे लोकप्रिय किताबें आए हैं.

मैं व्यक्तिगत रूप से कई करीबी दोस्तों को जानता हूँ जिन्हें मृत्यु के निकट का अनुभव था और जिसमें उन्होंने स्वर्ग का अनुभव किया और एक औरत उस अनुभव से इतना अवाक् हो उथी कि वह वापस ही नहीं आना चाहती थी और मुझे याद है उन्होंने मुझे ये कहा था के कैसे उनके पति इस बात को नहीं समझ रहे थे के क्यों वो अपने सांसारिक जीवन में उसके साथ लौटना नहीं चाहती थी और ये गवाही वैसे ही और कई लोगों से मिलता है जो उसी कार्यक्रम में अपना साक्षात्कार दे रहे थे.

एक और व्यक्ति को मैं जानता हूँ जो एक पास्टर की पत्नी हैं और जो स्वर्ग तक पहुंची और उन्होंने यीशु को देखा और उनसे बात भी किया.

इन आध्यात्मिक मुठभेड़ों में लोगों ने कई ऐसी चीजें देखने का दावा किया है जो नए और पुराने करार के इलहामी साहित्य के साथ जुड़े हुए हैं.

एक और सबूत जो इन मौत के पास के अनुभव को मान्यता देता है वो ये है के ये लोग जब कोमा में होते हैं तब उनके आसपास कमरे में क्या हो रहा है उसका पूरा जानकारी उनके पास होता है. वे कमरे के बाहर क्या हो रहा है इस बात का समेत जानकारी दे सकते हैं क्योंकि उनका आत्मा उनके शरीर से बाहर होता है. इसके अलावा वे उनके अपने मानसिकता से बाहर की बात का अनुभव कर रहे होते हैं जिस बात का भी कोई जबाब नहीं है.

धर्मनिरपेक्ष शोधकर्ता इन चीजों के बारे में अपने खोज में निर्णायक नहीं थे क्योंकि वो इस बात को समझाने में सक्षम नहीं थे के कैसे इन लोगों ने ये चीजें अनुभव किया जो उनके समझने या अनुभव के मानव क्षमता से परे बातें थे. मेरा मानना है कि यह अलौकिक बातों के बारे में चर्चा करने के लिए दरवाजा जरूर खुला छोड़ता है.

तो मृत्यु के बाद जीवन के इस खोज में हम आगे बढते हैं और देखते हैं के इस बारे में बाइबल क्या कहता है. “नरक” शब्द के लिए हिब्रू शब्द “शेओल” है जैसे के पुराने करार में पाया जाता है. इस शब्द को व्यापक रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और आम तौर पर कब्र, गड्ढे, और शारीरिक गिरावट के प्राकृतिक दायरे में लागू  कर सकते हैं. इसको मृत का अस्तित्व या फिर अस्पष्ट तरह का निवास के रूप में भी इस्तेमाल लिया जा सकता है.

अधिक विशेष रूप से जिस बात को मैं आप लोगों के आगे वर्णन करने में दिलचस्पी रख रहा हूँ वो सिर्फ मौत का भौतिक प्रक्रिया के बारे में नहीं है जो हम समझ सकते हैं बल्कि ये उसका आध्यात्मिक पहलू है जो इन शोधकर्ताओं पर आधारित रहके हम ये कह सकते हैं के एक वास्तविकता है और ये उन मौत के पास के अनुभव करने वालों के लिए बिल्कुल ही असली बात है.

नए करार की तुलना में पुराना करार हमें उतना ज्यादा सुराग नहीं देता है और इसी वजह से नया करार एक प्रकार से ज्यादा वर्णनात्मक और परिभाषित है.

नबी डेनियल ने दानिएल के पुस्तक १२:२ में बयान किया है:धरती के वो असंख्य लोग जो मर चुके हैं और जिन्हें दफनाया जा चूका है, उठ खड़े होंगे और उनमें से कुछ अनंत जीवन के लिए उठ जाएंगे. किन्तु कुछ इसलिए जागेंगे की उन्हें कभी नहीं समाप्त होने वाली लज्जा और घृणा प्राप्त होगी.

तो यह न सिर्फ मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में बात करता है लेकिन “शारीर के उठने” के बारे में भी कहता है जो इस ब्लॉग के दायरे से बाहर की बाते हैं लेकिन यहूदियों और ईसाइयों ने इस बात पर विश्वास किया है और इसका सबूत मेहराबदार छत से युक्त क़ब्र हैं जो प्राचीन इसराइल में था और जिसमें मृतक के हड्डियां रखी जाती थी. पुनरूत्थान मोक्ष का अंतिम अधिनियम है जिसमें येशु ने खुद भाग ले लिया है जो एक प्रकार से मरे हुओं में से पहले फल हैं. रहस्यमय तरीके से किसी तरह ये पुनर्जीवित शरीर मानव इतिहास की समाप्ति में हमारे लिए एक अंतिम बिंदु होगा जो इसाइओं के लिए मुक्ति प्राप्त करने के लिए अंतिम कार्यों में से एक होगा.

अगर हम डैनियल पर वापस जाएँ तो वहाँ पर ‘अनन्त’ जीवन वनाम ‘सदा की पीड़ा’ की अवधारणा सुरु होति है. आनंद की एक शाश्वत घर की कल्पना करना आसान बात है लेकिन शाश्वत और अनन्त के पर्याय शब्दों के लिए भी ये नियम उतना ही लागू करना चाहिए वरना शास्त्र में विरोधाभास लगने लगेगा.

पुराने करार के तहत कब्रिस्तान को दोनों धर्मी और धर्मभ्रष्ट के रहने वाले जगह के रूप में देखा जाता है जिनको इन दो अस्तित्व के बीच खींची गई खाई के साथ रखा गया है. एक समूह को अब्राहम की छाती के रूप में देखा जाता है जहां पर धर्मी रहते हैं तो दुसरे को पीड़ा की एक जगह के रूप में संदर्भित किया गया है. इन सबका सबसे अच्छा विवरण हमें सुसमाचार के साथ साथ में येशु देते हैं जो हमें सीमित रूप से इन असीमित स्थानों के बारे में बताते हैं जिसके बारे में हम बाद में बात करेंगे.

हेमें पुराने / नए करार के माध्यम से कुछ सुराग मिलता है जो मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में हमें बताता है जैसे की येशु ने मती २२:३२ में निर्गमन ३:६ के बारे में बताया था जहां परमेश्वर ने कहा के वो ही अब्राहम, इसाहक और याकूब के परमेश्वर हैं और येशु ने ये भी कहा के वो जीवित के प्रभु हैं नाकि मृत के जो इस बात को अंकित करता है के इस जीवन के भौतिक सीमाओं के पार भी अस्तित्व का एक निरंतर राज्य है.

वैसे ही पुराने करार में मृत्यु के क्षण में इश्वर ने लोगों की सभा को बुलाने के बारे में संदर्भित किया गया है जैसे के २ राजा २२:२० में कहा गया है.

हम देखते हैं के १ सामुएल २८:११-१५  में शाऊल से बात करने के लिए नबी शमूएल जमीन से आए थे.

इसके अलावा “जीवन की पुस्तक” के बारे में भी संदर्भित किया गया है के वो सब अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे और जिनका नाम उसमें नहीं लिखा गया है या फिर उसमें से मिटा दिया गया है वो अनान्त के पीड़ा में प्रवेश करेंगे. हम दोनों पुराने और नए करार में इन बातों को संदर्भित किया हुआ पाते हैं जैसे के भजन ६९:२८,  निर्गमन ३२:३३, फिल्लिपिओं ४:३,  प्रकाशित वाक्य ३:५, १३:८, १७:८,, २०:१२-१५,  २१:२७ में कहा गया है.

अब नए करार में नरक और धर्मी निवास के बारे में पूरा अभिव्यक्ति विकसित किया गया है जिसमें यीशु ने हमें इन बस्तियों का एक पूर्वावलोकन दिया है जैसे के “अमीर आदमी और लाजरस” की कहानी में हमें लुका १६:१९-३१ में कहा गया है.

अमीर आदमी और लाजरस दोनों परस्पर विरोधी वातावरण में निवास कर रहे हैं और उन दोनों के बिच में एक बाधा है जिसको पार नहीं किया जा सकता. वो दोनों जगह एक दुसरे से इस माएने में फरक है के वर्णन के अनुसार अमीर आदमी पीड़ा, प्यास और आग के दर्द में जिरहा था पर लजारस की जगह आराम का था.

अन्य वर्णनात्मक शब्द जिनका यीशु और उनके प्रेरितों ने नरक के बारे में बताते समय किया है वो नए करार के ग्रीक भाषा अनुसार हेड्स या फिर गेन्ना है, और इसके बारे में मती ३:१२ में कभी ना बुझने वाली आग के रूप में वर्णन किया गया है, और इसी बात को मती ८:११ में बाहर का अँधेरा, रोने और दांत घिसने की जगह, मती १३:४२ में भयानक आग, मती १८:८ में अनन्त की आग, २ थिस्सुलिनोकिओं १:९ में अनन्त नाश की जगह , प्रकाशित वाक्य १४:१०-११ में एक ऐसा पीड़ा जो सिर्फ बढ़ता है, प्रकाशित वाक्य २०:१० में दिन और रात मिलने वाले पीड़ा की जगह के रूप में, प्रकाशित वाक्य १९:२० में जलते आग के सरोवर और प्रकाशित वाक्य २०:१० में उनको सदा दिन और रात में पीड़ा दिया जाएगा कहके वर्णन किया गया है.

यातना या फिर पवित्र करने वाला स्थान की अवधारणा ईसाई या यहूदियों द्वारा मान्यता प्राप्त किसी भी पुस्तक में मौजूद नहीं है.

न ही बाईबल “पुनर्जन्म” की बात करता है क्योंकी शास्त्र तो ये कहता है के इंसान एक बार मरता है और फिर वो न्याय का सामना करता है इब्रानियों ९:२७. नाही बाईबल “आत्मा की नींद” को बढ़ावा देता है जो शारीर का मृत्यु से उठने को मृत्यु के क्षण में आध्यात्मिक स्थिति के वास्तविकता के साथ उलझाता है जैसे के २ कुरिन्थिओं ५:८ में कहा गया है के शारीर से अलग रहना परमेश्वर के साथ रहना है.

मृत्यु के करीब पहुँचने के अनुभव वाले ये लोग तुरंत ही किसी जगह या उपस्थिति में पहुँच गए जिसको शून्य के एक राज्य के बजाय स्वर्ग या फिर नरक के रूप में वर्णन किया गया है और ये भी कहा गया है के उनके आत्मिक प्रकार के शरीर थे. और इनमें से कोई भी गवाही ये नहीं कहता है के कोई पुनर्जीवित होकर नए रूप में लौट कर आया.

मुझे लगता है कि नरक के सम्बन्धी बाइबल के संदर्भों को स्वीकार करने में एक मुख्य समस्या ये है के अगर एक परमेश्वर हैं जो अच्छे हैं तो वो लोगों को पीड़ा सहने की अनुमति कैसे दे सकते हैं और इस बात में किसी भी प्रकार का तुक नहीं है. और उसी के साथ इस बात पर विश्वास करना भी मुश्किल है के इंसान को सिर्फ परमेश्वर के मुफ्त के उपहार के रूप में अनन्त जीवन मिल जाए हालांकि वो छुडाया गया है पर पापी जीवन ही जी रहा है.

इस नारकीय बस्ती का मूल उद्देश्य गिरे हुए शैतान और स्वर्गदूतों के रहने वाले जगह के रूप में था और मानव निवास के लिए इसका निर्माण नहीं किया गया था पर अब उसको मृत्यु के बाद के जीवन में परमेश्वर के सभी दुश्मनों के रहने की जगह के लिए दे दिया गया है मती २५:४१. यदि इश्वर गिरे हुए स्वर्गदूतों को नहीं सुरक्षित रखना चाहते हैं, जिनसे हम थोड़े कम ही हैं, तो अगर हम परमेश्वर के विरुद्ध में लगें तो हमारा क्या अंजाम होगा.

यदि हमारे जीवन में व्यक्तिगत लक्ष्य नास्तिक अस्तित्व है, तो क्या हमें हमारा इच्छा नहीं मिलना चाहिए और क्या इस इच्छा को केबल इस जीवन में ना होकर अगले जीवन में भी पूरा नहीं होना चाहिए. आप क्यों चाहेंगे के परमेश्वर खुद को आप पर लादें जब के आप उनका प्रभाव इस जीवन में अभी नहीं चाहते.

अर्द्ध धर्मनिरपेक्ष मृत्यु के निकट के अनुभव के शानदार विषयों में से एक ये है के आप उसी तरह मरते हैं जिस तरह आप जीते हैं और मैं ये कहता हूँ के ये बात बहुत हद तक उस पार के सच्चाई के बारे में भी बताता है.

शैतान का राज्य परमेश्वर के नियम के परस्पर विरोधी है. परमेश्वर प्रकाश हैं और नरक अँधेरा है. नर्क खेदयुक्त है और स्वर्ग में दुःख को आने की कोई इजाजत नहीं है. परमेश्वर प्यार है, जबकि नरक घृणा से भरा है . स्वर्ग में शांति है जबकि हिंसा, दुख और पीड़ा से नरक भरा हुआ है.

ये एक हास्यास्पद बात है के कैसे हम स्वर्ग का लाभ चाहते हैं पर उन्हें हमारे निर्माता के रूप में धन्यबाद नहीं देना चाहते रोमन १:२१. क्या परमेश्वर को एक अलौकिक वे-या के रूप में देखा जाना चाहिए? खुद के आराम के लिए उनका प्रयोग कर लें पर उनके साथ रिश्ता रखने का जिम्मेवारी हम उठाना नहीं चाहते बल्कि हमें ये लगता है के इश्वर को हमारे लिए ये सब कुछ कर देना चाहिए.

यदि इस पृथ्वी पर इंसान का प्रतिबद्धता एक नास्तिक जीवन जीना है जो बात परमेश्वर के स्वर्गीय नियम और शासन और उपस्थिति के खिलाफ बात है तो कैसे एक आदमी कैसे उम्मीद कर सकता है उनका परमेश्वर के साथ अनन्त में एक अटूट रिश्ता बन जाएगा जब की उसने उनको अपने पूरा जीवन जान बूझकर ठुकराया है. हमारी अपनी स्थिति और गंतव्य के लिए इश्वर को क्यों दोष दें जब के हमारे पास विकल्प था जो के आसानी से प्राप्त होसकता था. मती ११:२८-३० में येशु कहते हैं: “अरे ओ थके-मांदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ , मैं तुम्हे सुख चैन दूँगा. मेरा जुवा लो और उसे अपने ऊपर संभालो. फिर मुझसे सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा मन कोमल है. तुम्हे भी अपने लिए सुख-चैन मिलेगा. क्योंकि वह जुवा जो मैं तुम्हे देरहा हूँ बहुत सरल है. और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है. ”

तो वो लोग कैसे हैं जिनको नर्क का स्वाद मिलने वाला है? क्या वो सिर्फ समाज के दूषित लोग हैं जैसे के कैदियों, धारावाहिक हत्यारों, बलात्कारियों और अन्य खराब लोग. हाँ ये बात सही है पर मती ७:१३,१५ में तो येशु एक बड़े दर्शक के बारे में कह रहे हैं: “सूक्ष्म मार्ग से प्रवेश करो. यह में तुम्हे इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि चौड़ा द्वार और बड़ा मार्ग तो विनाश की ओर ले जाता है. बहुत से लोग हैं जो उस पर चल रहे हैं. किन्तु कितना वह संकरा हैं वह द्वार और कितनी सीमित है वह राह जो जीवन की ओर जाती है. बहुत थोड़े से हैं वे लोग जो उसे पा रहे हैं.”

प्रकाशीत वाक्य २१:८ कहता है के नरक  कायर, अविश्वासी, नीच, हत्यारों, व्यभिचारियों, जादू कला करने वालों, मूर्तीपूजा करने वालों  और झूठों के लिए है जिन्होंने अपना स्थान जलते हुए आग में बना लिया है.

१ कुरिन्थियों ६:९-१० नरक में रहने वालों की एक और सूची बनाता है और कहता है: अथवा क्या तुम नहीं जानते की बुरे लोग परमेश्वर के राज्य का उत्तराधिकार नहीं पएंगे? अपने आप को मूर्ख मत बनाओ. यौनाचार करने वाले, मूर्ती पूजक, व्यविचारी, गुदा-भंजन कराने वाले, लौंडेबाज, लुटेरे, लालची, पियक्कड, चुगलखोर और ठग परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी नहीं होंगे.

हमारे अपराधों के बावजूद अब हमारा यह परस्पर विरोधाभासी स्थिति जिसमें पाप और न्याय सामिल है वो मुक्ति का एक सुन्दर रूप में उभर कर आया है जो इन सारे विष और खराब चीजों के असर जो हमें नरक के रास्ते पर लेजाता, इन सब को हटा कर परमेश्वर के क्षमा के माध्यम से हमारे जीवन के पुराने तौर तरीके को हटा कर जीवन का एक नया तरीका सिखाता है.

यदि आपको लगता है के आपने परमेश्वर के अच्छाई के इस सीमा को पार नहीं किया है तो हमें रोमियों ६:२३ के माध्यम से देखना चाहिए के हम कहाँ पर हैं.

इस शास्त्र में पाप को वर्गीकृत नहीं किया गया है और इसलिए पाप जीवन के समीकरण में एक आम भाजक के रूप में है क्योकि ऐसा कोई भी नहीं है जो धर्मी है और ये बात समावेशी और सार्वभौमिक बयान लगता है.

हम अक्सर हमारे अपराधों को नजरअंदाज करते हैं और पाप के परिणामों को कम गंभीर और महत्वपूर्ण समझते हैं और हालांकि और सभी का पापों का पहाड़ के आगे हमारे “गलतियों” का छोतो ढेर बौना लगे पर हमारा ढेर और किसी के तुच्छ “दुर्घटनाओं” के आगे और भी छोटा हो सकता है.

चाहे वह एक छोटा सा पाप हो या एक प्रमुख पाप हो, वो अभी भी पाप का शीर्षक वहन करता है . चाहे आप एक पैसा चुराएं या एक डॉलर चुराएं इस से कोई फरक नहीं पड़ता क्योंकि किसी भी प्रकार से आप चोर ही हैं. चाहे आप एक झूठ बोलो या एक लाख आप फिर भी झूठे हो. हम दूसरों से तुलना करके अपना अपराध कम करने की कोशिश करते हैं.

अंत में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम पवित्र परमेश्वर के आगे हमारे “मेधावी कर्मों” का प्रदर्शन करें, वो इस ब्रह्माण्ड के न्यायकर्ता हैं जो इंसान के दिल और दिमाग की बातें जानते हैं. आप अपने कृत्यों के माध्यम से कभी अच्छाई नहीं कमा सकते और बाइबल हमारे कर्मों की तुलना मासिक धर्म के कपड़ों के साथ करता है जैसे के यशायह ६४:६ में कहा गया है. परमेश्वर के अनन्त अस्तित्व को गन्दा करने से हमारे कर्म हमें नहीं बचा सकते. पाप के लिए परमेश्वर ने २ क्षेत्र बनाए हैं. एक मिट के जाने वाला धरती है और दूसरा नरक है और जब तक आपके पाप आप से नहीं हट गए हैं तब तक आप को अपना गन्दा कपड़ा स्वर्ग में सुकाने नहीं दिया जाएगा.

मैं अभद्रतापूर्वक ये बात बोलना नहीं चाहता था लेकिन येशु ‘नरक’ के लिए नहीं मरे. उनके पुनर्जीवित रूप का उद्देश्य इंसान का प्रतिनिधित्व करना था और इसके लिए वो हमारे खातिर मरे और हमारे अपराध और पाप का दंड खुद पर ले लिया. यदि हम स्वर्ग को हमारे खुद के कमाई से हासिल कर लेते तो फिर क्रिस्ट तो बेकार में मरे. हमारे अपराध को अगर गहरे रूप से देखो तो वो केवल पाप के माध्यम से परमेश्वर को इनकार करना ही नहीं है पर उनके पुत्र को अस्वीकार करके उनके मोक्ष के काम को अस्वीकार करना भी है यूहन्ना ३:१८.

सभी अपराधों में सबसे बड़ा अपराध ये है के हम परमेश्वर के आगे अपने कामों को एक तुच्छ अर्पण के रूप में देंगे जिसके लिए येशु ने इतना बड़ा बलिदान दे दिया है जो परमेश्वर के आआगे बलिदान के अर्पण के रूप में सभी अच्छाई के जरूरतों को पूरा करता है और इससे कुछ भी कम परमेश्वर के आँखों में अग्रहनीय है.

याद कीजिए के बागीचे में अवज्ञा के एक “छोटे” कार्य ने पूरे मानव जाति पर बुराई की बाढ ले आया और सभी इंसानों पर अभिशाप भी लाया. तो आदम के इस छोटे से गलती के आगे आपकी गलतियां कितनी बड़ी हैं. वो ‘बोहोत बड़ी’ या फिर छोटी हैं इस बात का फैसला तो आप खुद कीजिए.

अब नरक के सवाल पर वापस जाएं तो बहुत से लोग जिनको बाइबल की बातें पसंद नहीं है या फिर वो इससे सहमत नहीं हैं तो वो उन बातों को रूपक कहके हटा देते हैं और उन बातों को छोड़ देते हैं जो लागू करने में मुशकील है.

पर येशु तो नरक के बारे में कहने के लिए अतिशयोक्ति का इन्स्तेमाल करके नाटकीय ढंग से बोलते हैं और कहते हैं के इस से किसी भी कीमत पर बचना चाहिए चाहे उसके लिए शरीर के अंगों को ही क्यों ना खोना पड़े मती ५:२७-३०.

इस शास्त्र के संदर्भ के आधार पर बोहोत से लोग इस बात को शाब्दिक रूप से सच नहीं मानेंगे पर ये हमें इस बात की गंभीरता के बारे में बताता है के उस आध्यात्मिक स्थिति का पीड़ा हमारा कोई शरीर का अंग गुमने से भी ज्यादा दर्दनाक है. अगर नरक की सच्चाई नहीं होती तो येशु ये बात ऐसे ही नहीं बोलते.

अंत में मुझे लगता है के “नर्क” का प्रेरणा आज्ञाकारिता पर आधारित ना होकर ‘प्रेम’ होना चाहिए.

पवित्र डर या प्यार के साथ साथ परमेश्वर के लिए पवित्र डर और सम्मान होना चाहिए.

एक अच्छी उपमा मैं आपको ये दे सकता हूँ के परमेश्वर एक वैसे स्वर्गीय पिता की तरह हैं जिन्होंने अपने बच्चे के फाएदे के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया और भले ही सुधार के हाथ के माध्यम से बच्चे को नियंत्रित किया जा रहा हो पर परमेश्वर इन सब कार्यों को अपने नियंत्रण में रखते हैं.

इन हाथों से ऊपर परमेश्वर के प्रेमी बाजुएँ हैं जो आप को गले लगाकर आपकी सुरक्षा करते हैं और आपको सुरक्षा देते हैं. परमेश्वर के हाथ और बाजुएँ एक साथ बच्चे को सिखाने के लिए काम करते हैं और अगर सही प्रकार से किया जाए तो बच्चे को परमेश्वर के हाथ को दुश्मन के रूप में नहीं देख कर मुक्ति देने वाले के रूप में और रूकने के लिए एक संकेत के रूप में देखना चाहिए.

एक बच्चा जो पूरी तरह से अपने माता पिता को प्यार करता है और उन पर विश्वास करता है और उनके सम्बन्ध को समझता है वो परमेश्वर के हाथ उठने पर ध्यान देता है और समझता है के वो सिर्फ उन प्रेमी बाजू की वजह से उठे जो उनका वजन उठा रहे हैं.

हम इस बार को माता पिता के लिए एक अपराध मान सकते हैं अगर वो अपने बच्चे को रास्ते पर एक आते हुए कार के आगे दौड़ते हुए देखते हैं और कुछ नहीं कहते और कुछ नहीं सुनते हैं. पर क्या आप उस परमेश्वर का विरोध करेंगे जो आपके अनन्त के आत्मा के लिए चिल्ला कर आपका ध्यान पाने की कोशिश कर रहे हैं. क्या आप इसको डर के रूप में देखेंगे अगर वो आपको चिल्ला कर कहें के ‘रुक जाओ’ आगे खतरा है.

एक बच्चा ऐसे समय में अपने माता पिता के आवाज के चेतावनी टोन पर प्रश्न नहीं करेगा पर फिर भी यही बात जब परमेश्वर करते हैं तो हम कैसे उनके पश्चाताप करने के विनती पर सवाल करते हैं.

परमेश्वर हमें बुला रहे हैं और सच कहें तो आपका ध्यान पाने के लिए वो चिल्ला रहे हैं. क्या आप सुनेंगे और उन पर विश्वास करेंगे क्योंकि वो एक प्रेमी पिता हैं?

ब्लॉग के अंत में एक स्थान है जहां पर परमेश्वर के साथ कैसे सम्बन्ध बनाया जा सकता है इसके बारे में लिखा हुआ है और वो आपको ये बताता है के आप कैसे बचाए जा सकते हैं और कैसे अपना जीवन परमेश्वर को समर्पित कर सकते हैं. ये बहुत ही साधारण प्रक्रिया है पर कार्यक्षेत्र और उपयोग में बहुत असरदार है और ये एक जीवन बदलने वाला अनुभव है.

मेरा विश्वास कीजिए मैंने ये २० साल पहले किया था और मैं अब कभी भी शैतान के लिए एक झूठ की जिन्दगी जीने के लिए वापस नहीं जाऊँगा.

आप मृत्यु के बाद कैसा जीवन का चयन करना चाहेंगे? आप मृत्यु के बाद जीवन चाहते हैं या फिर जीवन के बाद मृत्यु?

क्योंकि पाप का मूल्य तो बस मृत्यु ही है जबकि हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन, परमेश्वर का सेंतमेत का वरदान है. रोमिओं ६:२३.

‘नर्क की तरह और उस से बाहर’ के बारे में एक सादा विडियो

truthnet.org/forum/index.php?topic=97.0

 

 

कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएं

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