राधास्वामी

राधास्वामी का सुरुवात एक भारतीय धर्म के रूप में हुआ था जिसने अपना शिक्षा संत मंत परंपरा के तहेत शिव दयाल सिंह के नेतृत्व में लिया था जिन्होंने सूरत शब्द योगा का आत्म बोध के विधि के बारे में भी सिखाया जो इश्वर को भी एक बोध के रूप में ही बताते हैं.

इस आंदोलन को चरित्र में नैतिक और पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ साथ अपने प्रयासों में मानवीय भी माना जाता है. उनका प्राथमिक लक्ष्य पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना समाज की भलाई करना है.

दार्शनिक और कुछ हद तक व्यावहारिक रूप से यह एक अच्छा पंथ माना जाता है लिकिन क्या ये परम आध्यात्मिक वास्तविकता होने के लायक है?

इसके अलावा इसके बहुत ज्यादा लक्ष्य और प्रस्ताव सिर्फ शान्ति प्राप्त करने के आसपास ही केंद्रित है. इसमें संघर्ष के तत्व भी शामिल हैं क्योंकि १०० अलग अलग राधास्वामी के समूह उनके अनुयायियों के बीच विघटन का परिणाम है. समूहों के बीच इस विभाजन का सुरुवात परम संत शिव दयाल सिंह जी के मृत्यु के साथ ही सुरु हुआ था और ये आज तक भी बहुत से राधास्वामी के सम्प्रदाय के बीच चल रहा है जो उनके गुरुओं के उत्तरिधाकार के लिए और स्वामीजी (स्वामीजी) के कब्र के जगह के सम्पदा के अधिकार और पूजा के विशेषाधिकार के विषय क लेकर लड़ते हैं. अगर मूल या प्रथम शिष्य और अभिजात वर्ग के सदस्य ही इस दर्शन के आदर्शवाद के तहत जीने में सक्षम नही हुए तो अन्य अनुयायियों के लिए वहाँ पर क्या आशा है? इसके अलावा क्या ये कार्य या प्रतिक्रिया मानव जाति के भाईचारे को आश्वस्त करने के लिए पर्याप्त सबूत देते हैं? तो अगर राधास्वामी के अलग समूह ही सभी अनुयायियों के बीच सामंजस्य नही प्राप्त कर सकते हैं तो उन भिन्न आन्दोलनों का क्या जो धार्मिक विचारों के अलग होने के बाबजूद भी लोग चाहते हैं के वो सब को स्वीकार्य हों?

अब इनके सदस्यों के बारे में इनका कहना है के ये जाति की परवाह किए बिना समतावादी दृष्टिकोण रखते हैं जो एक झूठ है क्योंकि ये मूल रूप से पुरोहित जाती को मान्यता देता है जो गुरु या स्वामी हैं और इसके अलावा ब्यास के बीच में वो और भी ज्यादा उनको आध्यात्मिक नेतृत्व के धार्मिक पृष्ठभूमि के आधार पर भेदभाव करते हैं जो सिर्फ सिखों के द्वारा ही लिया गया है और इस बात ने रूढ़िवादी सिखों के बिच में धार्मिक बेसुरापन भी लाया है क्योंकि वो अपना जीवन जीवित गुरु के रूप में जीने के लिए समर्पित करते हैं. इसके अलावा इन समूहों में से कुछ ने न सिर्फ अपने सर्वोच्च आध्यात्मिक गुरु, शिव दयाल सिंह को उच्चतम प्रभु आनामी पुरुष के अनोखे और सर्वोच्च अवतार के रूप में मान कर देव तुल्य बनाया है पर वो अपने वर्तमान समय के स्वामी या गुरु को भी देवता के ही एक मिसाल के रूप में मानते हैं. इसलिए ऐसे आध्यात्मिक उत्कृष्टता के साथ समानता कैसे हो सकता है?

इसके अलावा इन आर.एस.एस.बी. समूहों में से कुछ तो “वैज्ञानिक” के रूप में प्रस्तुत हो रहे हैं पर उनका तरीका अवैज्ञानिक लगता है जो रहस्यमय और आध्यात्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं के साथ सम्बन्ध रखता है जो मनुष्य की आध्यात्मिक संकायों के विकास का एक प्रभावशाली तरीका के रूप में माना जाता है.

मैं जानता हूँ के ये सब संदेह जो मैं कर रहा हूँ वो ये दिखा सकता है के मैं जान बूझकर इस समूह का बहुत ही ज्यादा विरोध कर रहा हूँ पर वास्तविकता तो ये है के हरेक धर्म के अपने ही समस्याएँ होते हैं जिससे वो निपटने के कोशिश में लगे रहते हैं और इसका कारण मानव जाती का अशुद्ध होना तो है ही पर मेरे विचार से अगर कोई इंसान या फिर समूह किसी बातको इतना ऊँचा दर्जा देता है जैसे के परम सत्य तो उस बात का सच्चाई के लिए छानबीन होना जरूरी है. इतना ही नहीं, लेकिन वर्तमान दिन के ब्यास नेता गुरिंदर सिंह जी तो लोगों को विश्वास के अन्य क्षेत्र में भी सच्चाई को ढूँढने के लिए प्रोत्साहित करते हैं ताकि लोगोंको इस बात का सुनिश्चितता हो के वो विश्वास के सही पथ पर हैं. मेरा आपसे सिर्फ ये प्रश्न है के क्या आपने अपना गृहकार्य किया है और क्या आपने विश्वास के अन्य क्षेत्र और अभिव्यक्तिओं के दुसरे रास्तों के ऊपर कभी ध्यान दिया है वो भी उस हद तक के आप उन बातों को मानने के लिए तैयार हों चाहे वो आपको कहीं भी लेजाए और अगर वो बात आपके खुद के मानव झुकाव या बरियता के खिलाफ के बातें हों? मुझे लगता है कि पूर्वाग्रह के बिना सभी धार्मिक ज्ञान के बारे में अनुसंधान करना मूल रूप से असंभव है और इसी तरह वहाँ पर हमेशा एक और वास्तविकता होने का संभावना रहता है जो इस आंदोलन से परे बातें हैं और ये आपको एक ऐसा व्यक्तित्व बना देगा जो सत्य की खोजी करके उसे पालन करने में लगा हुआ रहता है.

राधास्वामी के विषय में क्या आपने वास्तव में गंभीर रूप से अपने आपसे ये पुछा है के क्या ये परम सत्यता का सर्वोत्कृष्ठ पहलु है और क्या आपने वो अनुभव किया है जो आपको सुनाई देरहे आवाजों को गहराई से ध्यान देने पर ही आपको पता चलेगा. इसके अलावा क्या एक व्यक्ति सच में एक मंत्र लगातार दोहोरा कर या फिर दिन में २ १/२  घंटे ध्यान करके ‘रौशनी को देख सकता है’? शायद आपको पहले ही इस बात पर विश्वास है के आप जिस मेहनत से काम कर रहे हैं के आपको आध्यात्मिक विरासत का वो धन जरूर मिलेगा पर एक दिन आपको ये पता चलेगा के अगर गहरे रूप से देखें तो आपका ये स्थिति सिर्फ एक नैतिक दिवालियापन निकालता है. इसके अलावा आप उस दोष का बोझ कैसे सहेंगे जो आपको तब मिलेगा जब आप गुरुओं के उम्मीदों पर खरे नही उतर पाएंगे? आप इस बारे में कैसे आश्वस्त रह पाएंगे के आप जिस सर्वोतम व्यक्तित्व को खुस करने की कोशिस में लगे हैं वो आपको देखकर खुश हो रहा है? शायद आप इन सवालों के बारे में निश्चित नहीं हैं और कम से कम अन्य संसाधनों के बारे में पता लगाने में इच्छुक हैं और इसी विषय में मैं आपके सामने सच्चाई के अवतार को रखना चाहूंगा.

यहुन्ना १४:६

“ यीशु ने उससे कहा,”मैं ही मार्ग हूँ, सत्य हूँ और जीवन हूँ. बिना मेरे द्वारा कोई भी परम पिता के पास नही आता.””

येशु सच्चाई के अवतार के रूप में हैं और वो अकेले ही ऐसे व्यक्तित्व हैं जो आपको छुडाकर मुक्ति, मोक्ष या निर्वाण की ओर लेजा सकता हैं.

यहुन्ना ८:३१-३२

“सो यीशु उन यहूदी नेताओं से कहने लगा जो उसमें विश्वास करते थे, “यदि तुम मेरे उपदेशों पर चलोगे तो तुम वास्तव में मेरे अनुयायी बनोगे. और सत्य को जान लोगे. और सत्य तुम्हे मुक्त करेगा.”” 

अंत में येशु आपके लिए वो कर सकते हैं जो आप खुद के लिए नही कर सकते हैं और खुद प्राप्त भी नही कर सकते हैं और वो ऐसा आपको एक आसान जुवा देकर करते हैं जो के आप उठा सकें.

मती ११:२८-३०

  “अरे ओ थके-मांदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ, मैं तुम्हे सुख चैन दूंगा. मेरा जुवा लो और उसे अपने ऊपर संभालो. फिर मुझ से सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा मन कोमल है. तुम्हे भी अपने लिए सुख-चैन मिलेगा. क्योंकि वह जुआ जो मैं तुम्हें दे रहा हूँ बहुत सरल है. और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है.” 

समापन में मैं आपके साथ अपनी गवाही बांटना चाहूंगा जिसमें मैंने येशु को अपने आत्मा के प्रभु के रूप में माना.

jesusandjews.com/wordpress/2012/01/10/यीशुकेसाथमेरीव्यक्तिग/

अपने उपस्थिति से दुनिया को ही उज्जवल बनाने वाले बहुत ही ज्यादा प्रभावशाली व्यक्तित्व येशु थे और उनके प्रभाव के वजह से ही दुनिया का परिदृश्य हमेशा के लिए परिवर्तन होने वाला था. ये मुक्ति का आंदोलन एक छोटे और नगण्य समूह के साथ सुरु हुआ जो पूर्व के भौगोलिक क्षेत्र में था पर ये अब अपने दायरे में सार्वभौमिक हो कर पूरे दुनिया में छा गया है. आज के समय में मात्र भारत में ७ करोड से अधिक निवासी ऐसे होंगे जिन्होंने येशु को अपने प्रभु और मुक्तिदाता के रूप में स्वीकार किया और उसके बारे में कुछ कहानियाँ यहाँ पर हैं.

हिंदू संसधानें

Testimonies

इसके अलावा मैं और भी कुछ लिंक दे रहा हूँ और मैं आपको प्रोत्साहित करता हूँ के आप अनुसंधान करें और बाइबल के सच् के दावे के बारे में सोचें. इस के अलावा मैं आपको चुनौती देता हूँ के आप अपने शान्त समय में परमेश्वर या फिर सबसे बड़े व्यक्तित्व को प्रार्थना करें और उनसे पूछें के क्या वास्तव में येशु ही उस मुक्ति के श्रोत हैं और अगर आप उनका नाम विश्वास के पूरे सच्चाई के साथ करते हैं तो बदले में आप उनके आवाज को अपने ह्रदय में बोलते हुए सुनेंगे.

 

कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएँ?

jesusandjews.com/wordpress/2012/01/10/कैसे-भगवान-के-साथ-एक-रिश्त/

 

अन्य संबंधित लिंक

राधा स्वामी के संसधानें

jesusandjews.com/wordpress/2012/01/22/radhasoami/

 

 

Religions of the world: a comprehensive encyclopedia of beliefs and practices/ J. Gordon Melton, Martin Baumann, editors; Todd M. Johnson, World Religious Statistics; Donald Wiebe, Introduction-2nd ed., Copyright 2010 by ABC-CLIO, LLC. Reproduced with permission of ABC-CLIO, Santa Barbara, CA.

Encyclopedia of Religion Second Edition, copyright 2005 Thomson Gale a part of The Thomson Corporation, Lindsay Jones Editor in Chief, Vol.6, pgs.3986-3987, John Stratton Hawley

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