ज़ोरोअस्त्रिअनिस्म (पारसी धर्म)

जब पहली बार मैं इस धर्म का शोध कर रहा था तब मैंने देखा कि इसमें कई प्रशंसनीय गुण थे जो अच्छी सोच रखने , सच बोलने , और अच्छे कार्य करने जैसे बात सिखाते हैं. हालांकि, विश्वास का ये संरचना पूरी तरह से अन्य धार्मिक विचारों के लिए अद्वितीय नहीं  है जिसका उद्धार के लिए सकारात्मक काम से संबंधित कार्यक्रम है.

इसके अतिरिक्त, ये विशेषताएं सम्माननीय हैं, लेकिन वास्तव में क्या वो प्राप्य हैं और अंतत : कोई उनके आध्यात्मिक प्रगति को कैसे मापन कर सकते हैं? इस सब के बाद इस आंदोलन ने भी स्वयं के मानकों का उल्लंघन करके अपने हिस्से का नैतिक संघर्ष पालिया है जैसे के (१) दो पवित्र युद्ध और इसलिए अगर यह धर्म अपने अतीत से बदनाम होचुका है तो उनका अनुसरण करने वालों के लिए स्वर्ग की निश्चितता ये कैसे दे सकता है?

इसके अलावा एक स्थिति है जिसका मैं कोई आधार नहीं देखता और वो मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में उनके विचार हैं. मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में मैंने पहले ही एक ब्लॉग में लिखा है और ऐसे लोग रहे हैं जिनका वैज्ञानिक अध्ययन किया गया और इस दौरान उनका अस्थायी रूप से नैदानिक मौत भी होगया जिसकी वजह से उन लोगों को मृत्यु के करीब का अनुभव मिला और ऐसे कुछ गवाहिओं में कहा गया है की उनको अस्थायी रूप से नरकीय दायरे में नालेजाकर जैसा पारसी धर्म कहता है , सीधा स्वर्ग में ले जाया गया .

क्या नर्क वास्तव में है?

ये स्वर्ग और नरक के अनुभव शास्त्र के मृत्यु और नरक की गवाही से मिलते हैं जिसमें कहा गया है के येशु के पास स्वर्ग और नरक का चाभी था जिसके द्वारा उनके बदले की मौत के माध्यम से उन्हें एक जीत हासिल हुआ है जिसकी वजह से प्रचारक पौल ‘हे मौत कहाँ है तुम्हारा डंक’ कहके चिल्लाए. पॉल ने मौत को इस जीवन के प्रस्थान के लिए एक स्वागत निमंत्रण की तरह और पीड़ा के बजाय आराम की आशा के रूप में देखा, फिलीपी १:२१-२४.

जो मसीह में हैं उन लोगों को बाइबल ये कहता है के वो डर के अधीन में नहीं होंगे क्योंकि इश्वर का सही प्यार सब डर को निकाल देता है क्योंकि डर का न्याय के साथ लेना देना है. यही कारण है कि हम इश्वर के साथ हमारे संबंधों में विश्वास रख सकते हैं क्योंकि मसीह के मेधावी कर्मों के वजह से हम इश्वर के क्रोध से बच चुके हैं जिसमें उन्होंने नए जन्म के उत्थान के माध्यम से न केवल हमारे निजी जीवन में बुराई की शक्ति को दूर किया है बल्कि आने वाले जीवन में भी उसको दूर किया है और सुसमाचार के संदेश का सार भी यही है.

यीशु मसीह की अच्छी खबर दया और अनुग्रह से संबंधीत हैं जो पारसी धर्म के विधि संग्रह के आवश्यकता रहे हैं पर उल्लेखनीय रूप से विडंबना यह है के अभी तक इन आचरण के तत्वों का सर्वोच्च अच्छाई के मानक के सम्बन्ध में बहुत ही सीमित लाभ रहा है जो अहुरा मज़्दा की प्रकृति में भी है.

तो क्षमा को मुख्य रूप से मानवता के लिए एक नैतिक मोती मानना इश्वर के लिए एक कलंकी आरोप है जिन्होंने हमें इस अनिवार्य और नैतिक आवश्यकताके साथ बनाया है. इसलिए क्षमा को निर्माता के साथ नहीं जोड़ना उसके बुरे समकक्ष ‘क्षमा नदेने’ का शिकार बनना है और इसलिए ये एक सवाल पूछता है के ये बात भगवान जैसे सर्वोच्च मानक पर लागू क्यों नहीं होता? अब क्या आशा बाकी रहा है अगर हम दुविधा में हैं के इश्वर पर कैसे विश्वास करें जो अनिवार्य रूप से आपके सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद आप के वापस आने का अनिवार्य रूप से इंतज़ार कर रहे हैं?

वैसे भी यह सिर्फ एक दार्शनिक तर्क की तरह लगता है लेकिन करीब से अवलोकन करने पर यह सच में इस मामले के दिल तक जाता है और वो बात ये है के अनुग्रह, दया और क्षमा जैसे मानव घटक सिर्फ प्यार के इंसानी रूप के बारे में ही नहीं बात करते बल्कि वो पापी इंसानियत के लिए परमेश्वर के लंबे समय के पीड़ा का चिन्ह देता है और यही बात हम मसीह के काम और व्यक्तित्व में सीधे रूप से देखते हैं जो न्याय और प्रेम के बिच के बल के तनाव को हटा देते हैं और ये वो अपना जीवन इंसानी वेदी पर बलि देकर और हमारा सम्बन्ध इश्वर के साथ शांतिपूर्ण करके करते हैं.

इस धर्म के लिए एक और विसंगति ओह्र्मज्द की प्रकृति के विषय में उनका धार्मिक स्थिति के बारे में है जो उनके अपने ही विभिन्न पदों पर स्पस्ट रूप से विरोधी हैं.

मैं भगवान के साथ उनके व्यक्ति के रहस्य में अतिक्रमण की एक निश्चित सीमा तक स्वीकार कर सकता हूँ लेकिन उनके होने के ओंटोलोजीकल श्रेणियों में संघर्ष प्रतीत होता है  और वो ये है के पारसी धर्म मोनोथेइस्टिक विश्वास रख्ता है जो अपने सबसे अच्छे रूप में बहुदेववाद और देवपूजा के मकसद के साथ हेनोथेइस्टिक प्रतीत होता है. उनके विशवास के भगवान की परस्पर विरोधी प्रकृति के बारे में काफी विरोध और संघर्स है. तो अगर वे मजबूत आधार नहीं बना सकते जिसमें वो अपने इश्वर के समझ में आगे नहीं बढ़ सकते तो वो कैसे ये मान सकते हैं के वो इश्वर तक पहुँचने के लिए अपने अन्य सैद्धांतिक मान्यताओं को मानकर सही रास्ते पर हैं?

सोच की यह विविधता इस धार्मिक संप्रदाय पर बहुत से पूर्वी धर्मों के प्रभाव की वजह से भी हो सकता है. हालांकि जोरास्टरको, कई अन्य धार्मिक नेताओं की तरह कथित रूप से सच्चा धर्म को परिभाषित करने के लिए अंतर्ज्ञान का एक मनोददृष्टी मिला, इसके बाबजूद भी इस धर्म ने अपनी भारत – ईरान के साथ जुड़े पृष्ठभूमि के आधार पर उधार लिया है.

इसी तरह, पारसी धर्म और जूदेव ईसाई विश्वासों के बिच उल्लेखनीय समानताएं हैं और कई ने तो ये भी कहा है के पारसी धर्म ने इन दोनो विश्व के विचारों को प्रभावित भी किया है पर ये वास्तव में विपरीत हो सकता है क्योंकि पारसी धर्म के वर्तमान दिन के कई सारे लेख इशाई के आगमन तक काफी हद तक मौजूद नहीं था और पारसी धर्म के बारे में बहुत से चीज जो जाना जा सकता था जैसे के अवेस्ता या तो गुम होगया या फिर टूट गया जो इक इंसान को इस सोच में डाल देता है के सुरु का मूल सामग्री क्या था.

ये हमें इस बात को भी सोचने पर मजबूर कर देता है के क्या खुद जरथुस्त्र को पता था के अपने धर्मग्रंथ के बीच उसे किस प्रकार से जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.

आपको पता है कि यह समझ से बाहर या अथाह बात है के एक सर्वोच्च रहस्योद्घाटन जैसा महत्वपूर्ण चीज इश्वर के संरक्षण के कुप्रबंधन की वजह से खो जाएगा क्योंकी पारसी के भविष्य की पीढ़ियों के लाभ के लिए इन ग्रंथों को बचाना तो आवश्यक था. केवल यही बात नहीं है लेकिन विश्वास की इस अभिव्यक्ति का ही सालों के बाद परिवर्तन हो चुका है ताकि अपनी अभिव्यक्ति को आधुनिक दिन की पूजक के लिए संशोधित किया जा सके फिर भी इस धर्म के मूल उद्देश्य के लिए ये बात सही कैसे हो सकता है?

इसके अलावा किस अधिकार से आधुनिकतावादी या संशोधनवादी विचार इस विशवास के शुद्धतम अभिव्यक्ति को खत्म करने के दिशा में आगे बढ सकते हैं जबके इसी धर्म के पूर्व विश्वासी के लिए सब कुछ ठीक था जो पशु बलि जैसे संस्कार में भाग लिया करते थे?

वैसे भी एक और विवादास्पद अभ्यास ये है के इस विश्वास के उपासक पेय के रूप में मादक(२) हओमा उपभोग करते थे जो के दवा का फेरबदल करने वाला पदार्थ है और जो जादुई अभ्यासों से सम्बंधित है जिसमें इंसान एक चढ़े हुए स्थिति में चला जाता है जिसमें इंसान खुद को सैतानी शक्तिओं के लिए खोल देता है. पुजारी के सदस्यों के बीच भी जिसको (३) मागी बुलाया जाता है उनका जादू के लिए हमारा आधुनिक शब्द से सीधा सम्बन्ध रहता है जो ये दर्शाता है के इस आंदोलन पर शैतानी प्रभाव या पृष्ठभूमि है.

इसके अलावा मेरा मानना है कि पारसी धर्म के बीच एक परस्पर विरोधी अभ्यास ये भी है कि उनमें से कई व्यक्ति धर्म परिवर्तन को अस्वीकार करते हैं जिसमें एक धर्म में से दुसरे का विवाह को भी वो निषेध करते हैं और शायद यही कारण है के इस आंदोलन की संख्या घटता जा रहा है और व्यवस्थित रूप से विलुप्त होता जा रहा है और फिर भी परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भविष्य की पीढ़ियों तक कैसे पहुंचाया जा सकता है और उनको आगे बढ़ने के लिए कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है अगर ये धर्म ऐसे कम होता जाएगा और खो जाएगा और एक दिन सिर्फ इतिहास में ही बाकी रह जाएगा?

खैर मैं समापन में ये उम्मीद करता हूँ के इस पोस्ट को सिर्फ एक अच्छा माने जाने वाले धर्म को कोसने के रूप में नहीं लिया जाए बल्कि मुझे आशा है कि यह भक्तों के लिए एक चुनौती के रूप में हो जिसको वो एक परम सत्य के आदेश के रूप में देखते हैं. इसके अलावा वो लोग जिसका इस आंदोलन के साथ का रिश्ता सिर्फ एक सांस्कृतिक अनुष्ठान के मामूली भक्ति के लिए है आप के लिए मेरा प्रोत्साहन ये है के झूठ की प्रणाली से मुक्त होने के लिए खुद को तैयार करने के आध्यात्मिक मामलों के बारे में आप और अधिक गंभीरता से सोचने का साहस रखें.

अंत में, उन लोगों के लिए जो अभी भी अपनी खोज में खुले हैं, क्या आप इश्वर से जुड़ने के अपने आत्मा के लालसा को पूरा करने के लिए सक्षम हुए हैं और आपके खोज ने आपको मरे हुए धर्म के खालीपन को गले लगाने के लिए छोड़ दिया है?

शायद आप इस धार्मिक आदेश के परिणाम और संभावनाओं से थक गए हैं औप इसी लिए येशु ने मती ११:२८-३० में कहा “”हैं “अरे ओ थके-मांदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ , मैं तुम्हे सुख चैन दूँगा. मेरा जुवा लो और उसे अपने ऊपर संभालो. फिर मुझसे सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा मन कोमल है. तुम्हे भी अपने लिए सुख-चैन मिलेगा. क्योंकि वह जुवा जो मैं तुम्हे देरहा हूँ बहुत सरल है. और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है. ”

धर्मशास्त्र के १ यहुन्ना १:९ में ये भी लिखा है “” यदि हम अपने पापों को स्वीकार कर लेते हैं तो हमारे पापों को क्षमा करने के लिए परमेश्वर विश्वसनीय हैं और न्यायपूर्ण हैं और समुचित हैं. तथा वह सभी पापों से हमें शुद्ध करता है.”

यह सफाई पूरी तरह से प्रभावोत्पादक है सिवाय कर्मकांडों या स्वच्छ धोने के औपचारिकता के. वास्तव में , सफाई भक्ति के बाद नहीं आता है बल्कि यीशु ने कहा के कप के अंदर सफाई होना चाहिए जिससे वो इंसान के दिल के गंदगी को हटाने के बारे में कहना चाहते थे सिवाय मानव के बाहिर के गन्दगी के बारे में कहने के. ये केवल तभी संभव होगा अगर वो आप को एक नया प्रकृति दें जिसके परिणामस्वरूप आप को एक नया दिल और सोच मिलेगा.

 

 

कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएँ

पारसी धर्म के संसाधन

Zoroastrianism

 

 

Excerpts taken “From Handbook of World Religions, published by Barbour Publishing, Inc. Used by permission”

AMG’s World Religions and Cults, AMG Publishers, Chattanooga, Tennessee

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