साई बाबा

जब इस धार्मिक विश्वदृष्टि पर विचार करें तो इसमें कई आकर्षक सुविधाएं हैं और परोपकारी काम भी हैं जैसे की अस्पतालों, स्कूलों और पानी परियोजनाओं की स्थापना. और ये दूसरों को प्यार देने का अवधारणा भी रखता है और इस बात को महिलाओं की समानता और जाति व्यवस्था को ना मानकर प्रदर्शन भी किया है. इसके अलावा वे विश्वास करते हैं कि धर्म को तभी मूल्यवान कहा जा सकता है अगर वो केवल दार्शनिक प्रस्ताव का समर्थन करने के बजाय सामाजिक रूप से भी सक्रिय है.

जिस स्थितिमें में मैं चुनौती दे रहा हूँ वो तब है जब वो धार्मिक विश्वास प्रणाली जो एक पवित्र सच्चाई है उसको परिभाषित करके इन सामाजिक सीमाओं की अवलेहना करते हैं.

उदाहरण के लिए परमेश्वर के बारे में विचारों के विषय में संवाद करते समय उनको अलग अलग नाम या शीर्षकों से पुकारे जानेवाले एक ही व्यक्ति के रूप में मानना इस बात पर असंगत है के तुलनात्मक धर्मों के अध्ययन के दौरान ये मालूम पड़ता है के एक ही भगवान सब के लिए सार्वभौमिक नहीं है और बदले में इन कई धर्मों के इश्वर के विषय में  विरोधात्मक दृश्य है जो उनके संबद्ध सैद्धांतिक मान्यताओं के साथ अमाननीय है. एक ईश्वर के होने का यह बहुलवादी और मिश्रित आदर्श अच्छा लगता है, लेकिन सभी धर्मों का अनिवार्य हिस्सा को संगठित करने की कोशिश हमें कोई इश्वर ना होनेके विचार के तरफ नितृत्व करता है.

इस आंदोलन के अनुसार अगर प्यार लोगों के धार्मिक विचारों का आधार है तो उन धर्मों का क्या जो हिंसा का समर्थन करते हैं ?  इसके अलावा, अगर धर्म समानताएं पर निर्धारित किया जाना चाहिए तो फिर उन धार्मिक दृष्टियों का क्या जिनका विशिष्टता एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके इलावा इनकी कोई मान्यत नहीं है?

अगर इश्वर की धारणा सिर्फ एक तुलनात्मक धारणा है और वास्तविकता नहीं है तो इन सब का कोई कुछ मान्यता ही नहीं रह जाता है और धर्म सिर्फ एक प्राथमिकता का मामला बन जाता है जैसे के हम कार खरीदते समय या किसी खेल के समय टीम के ब्रांड का चयन करते हैं. मूलतः ज्यादा धर्म इस विकल्प पर विचार ही नहीं करते हैं और बिना भेद धर्म विलुप्त हो जाएगा .

तो अनिवार्य रूप से ये विचार के सब रास्ते इश्वर के तरफ  नेतृत्व करते हैं ये इन धार्मिक प्रणालियों का एक अधिक सरलीकरण है और अगर आप इनकी अध्ययन करने लगे तो ये पता चलता है के ज्यादा समय ये एक तरफ ना आकर विपरीत दिशा में जाते हैं. इसके अलावा अपने धर्म में गंभीर होना सत्य के तरफ जाना भी तो नहीं है क्योंकि आप अपने धार्मिक विचारों में ही पूरी तरह से गलत भी तो हो सकते हैं. वैसे भी मैंने इस बारे में एक पोस्ट लिखा है.

सभी रास्ते परमेश्वर तक ले जाते हैं

सत्य साई बाबा के मेरे विषय पर वापस आएं तो वो वास्तव में सिर्फ हिंदू विचारों से पहले ही व्यक्त विचारों का ही फाइदा उठा रहा है और इसके लिए उन्होंने लोगों को सुविधा करने के लिए उन धार्मिक प्रणाली को पुनर्गठन किया है. हालाँकि, अपनी माँ धर्म से अलग सैद्धांतिक दृश्य बनाने से पता चलता है कि उनके समानताओं से भेद महत्वपूर्ण और आवश्यक है. ये एक दिल्जस्प बात है के कैसे साईं बाबा ये अंकित करते हैं के उन्होंने एक विशिष्ट धर्म का स्थापना नहीं किया है और फिर भी उनको अपने आंदोलन को १९७६ में सत्य साई बाबा सोसायटी के रूप में एक धार्मिक रूप देने की आवश्यकता लगी.

साई बाबा से संबंधित कई शिक्षाओं को साई की सच्चाई का नाम दिया गया है जिसका मतलब है कि अगर सच है तो गैर सच भी होना चाहिए क्योंकि एक पोल दुसरे पोल के बिना मौजूद नहीं होसकता और इसलिए ये व्यक्तिगत प्रकृति धार्मिक संस्कृति को निर्धारण करता है.

इसके अतिरिक्त, वेदों में एक ऐसी बात है के उसको अन्य पूरक धार्मिक ग्रंथों से अधिक जोर दिया जाता है और उन पूरक धार्मिक ग्रंथों को व्यापक अध्ययन के लिए अनावश्यक बताया गया है और शायद वो विपरीत विश्वास को दिखाए जो संसार के और विश्वासों से सम्बंधित पर सत्य साईं के युग के विपरीत हों.

इसके अलावा, अगर उनमें कोई अंतर नहीं है तो वे मुख्य रूप से सिर्फ पूर्वी छुट्टियाँ  मनाने के बजाय सभी धार्मिक त्योहारों को समान रूप से क्यों नहीं मानते?

साई बाबा के धार्मिक विचारों का एक अन्य विवादास्पद पहलू यह है कि वह स्वयं को भगवान (ओं) मानता है . विडंबना यह है कि कैसे उन्हें अपने भक्तों से ऊपर उठाया जा सकता है जब उनके ही सर्विश्वर्वाद दृश्य से तो वे सभी देवता हैं?

“रॉक स्टार” कहलाना एक बात है, लेकिन एक देवता के रूप में सम्मानित किया जाना बिल्कुल ही दूसरी बात है.

सत्य साई बाबा के अनुसार वह पूर्व गुरु शिर्डी साई बाबा जो भगवान शिव का अवतार माना जाता था उनके अवतार हैं और फिर भी सिरडी का तो सत्य साईं के जन्म के ८ साल पहले ही मृत्यु हो चुका था और इस समय के फरक को क्या माना जा सकता है. इसके अलावा सत्य साईं शिव और शक्ति दोनों के अवतार होने का दावा करते हैं और फिर भी वो द्वैतवादी व्यक्तित्व के समस्याओं के बिना दूसरे देवत्वारोपण लेने में कैसे सक्षम थे?

वह ये भी दावा करते हैं कि उनके मृत्यु के ८ साल बाद वह प्रेमा साई बाबा के रूप में फिर से पैदा होंगे जिसमें वह किसी तरह शक्ति के पक्ष में शिव को खो देंगे और वो पिछले पागलपन के अवस्था से एक ही पहचान में लौट आएँगे.

इसके अलावा, अगर उनको ज्ञान या मोक्ष प्राप्त होचुका है तो उनका अगले साई बाबा के रूप में इस पृथ्वी में पुनर्जन्म की क्यों आवश्यकता है क्योंकि पुनर्जन्म में कर्म होता है जो पूर्णता की कमी का प्रतीक होता है?

साई बाबा की जीवनी देखते समय मुझे यह संदिग्ध लगता है क्योंकि जहां तक एक चमत्कारी गर्भाधान  और चिन्ह और चमत्कार का सवाल है यह कुछ हद तक यीशु के जीवन का नक़ल लगता है. इन कथित चमत्कार के कुछ उदाहरण को या तो जादुई या तो प्रवंचना के रूप में वर्णित किया जा सकता  है. इन अभिव्यक्तियों में से कई केवल जिज्ञासा की लालच को संतुष्ट करते हैं और इस तरह के कार्यों के नाटकीय रूपांतर के इलावा इनका कोई फाइदा नहीं है.

इसके अलावा इन प्रकार के प्रदर्शनों से देवता को साबित नहीं किया जा सकता क्योंकि ये चीजें अन्य आध्यात्मिक नेताओं के बीच भी हुआ है.

इसके अतिरिक्त, एक अलौकिक घटना किसी के प्रकृति को साबित नहीं कर सकता जो अच्छा या बुरा हो सकता है. सिर्फ चमत्कार या चिन्ह देवता को निर्धारित करने के आधार नहीं हो सकते पर वो सिर्फ सच्चाई बताते हैं उन चीजों के बारे में जो सच्चाई से परे या फिर अभौतिक होसकते हैं या सिर्फ ये हो सकता है के आँख से हाथ तेज हो.

इसके अलावा, अगर वो चमत्कारी क्षमताओं के साथ एक दिव्य स्थिति मैं हैं तो उन्हें उन पहियों वाले कुर्सी में बंधे रहने और टूटी हुई कूल्हे के साथ जीने के लिए किस चीज ने बनाए रखा है जबतक वो किसी और के जितना ही नश्वर हैं?

जब साई बाबा को उनकी चमत्कारी शक्तियों के लिए अध्ययन का सामना करने को कहा गया तो उन्होंने मना कर दिया और फिर कहा के दृश्य अभिव्यक्ति भ्रामक हो सकते हैं और ये बात कह कर वो अपने ही कार्यों के आलोचक बनगए हैं.

इस के अलावा मुझे यह अविश्वसनीय लगता है के वो अपने विषय में बयान देते हैं कि वह सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्वज्ञ हैं . इसका मतलब है कि वह सब कुछ जानते हैं और अंततः सब कुछ नियंत्रण कर सकते हैं और अगर ये मामला है तो वह पूरी तरह से उन सभी तत्व को हटा क्यों नहीं देते हैं जो मानवीय पीड़ा का कारण है और जो उन्होंने करने की कोशिश भी की है, लेकिन सीमित सफलता के साथ. जहाँ तक सभी ज्ञान अच्छी तरह से होने की बात है ठीक यही तरीका है जिससे पंथ के नेता दूसरों के दिमाग धोते हैं जिसके द्वारा वे उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शक के अधिकार पर सोच और प्रश्न नहीं कर सकते. बेशक सर्वव्यापिता को हासिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि वह अभी भी एक नाशवान शारीर में रहते हैं और अगर उन्होंने अनेकदेशियता प्राप्त कर भी लिया हो जैसे के एक समय में दो जगहों पे रहना फिर भी वो सर्वव्यापिता तो नहीं क्योंकि वो अभी भी एक समय पर सभी जगह पर तो नहीं हैं जो के सर्वव्यापी होने का मतलब है.

उन्होंने यह भी विनम्र वयान दिया है के वो चेलों या अनुयायियों का होना नहीं चाहते हैं लेकिन बदले में लोगों को उन्हें पूजा करने के लिए बुलाते हैं.

वह एक तरफ कहते हैं कि वह प्रसिद्धि या प्रचार नहीं चाहते हैं और फिर भी अपनी महिमा के लिए संकेत करते हैं.

इसके अलावा अगर वह कोई अनुयायी नहीं चाहते तो उनका विभिन्न मंदिरों के साथ साथ १२०० धार्मिक संस्थाओं या केन्द्रों का होना क्यों आवश्यक है ? इसके अलावा, अगर वह एक स्थापित पंथ या सिद्धांत रखने की इच्छा नहीं करते तो उनको साईं सच के रूप में जाने वाले चीजों को सिखाने की क्या जरूरत है ?जो वे कहते हैं वो जो चल रहा है उसके खिलाफ है और ये बात इस धार्मिक आंदोलन को मानने वालों के लिए चेतावनी होना चाहिए.

जहाँ तक उनके अपने ज्ञान की घटना की बात है ये वर्षों के भक्ति और अच्छे कर्मों के माध्यम से उन्हें प्राप्त नहीं हुआ बल्कि उनके कम उम्र में बिच्छू से काटे जाने के बुरा कर्म के अंतर्गत हुआ जीसने उनके आध्यात्मिक अभिरुचि को जागृत कर दिया. एक बिच्छू का आत्मज्ञान प्राप्त करने में क्या महत्व हो सकता है? मुझे लगता है कि उनके पिता सही थे जब उन्होंने सोचा था के उनका बेटा शैतानी शक्तियों के प्रभाव में है.

भारतीय संस्कृति के भीतर के सामाजिक भेदभाव हटाने के उनके अपील का सामना करते वक्त भी सैद्धांतिक विरोधाभास है. विरोधाभास ये है कि अगर वह कर्म के प्रतिकारात्मक प्रकृति को मानते हैं, तो जाति व्यवस्था एक आवश्यक साधन बन जाता है जो सामाज से बहिस्कृत लोगों को दंडित करने का एक तरीका है और इस प्रणाली को इनकार करना उनके अपने द्वारा ही दिए गए कार्मिक बलों का खंडन करना है. मैंने इस बारे में और अधिक निचे के ब्लॉग में लिखा है.

jesusandjews.com/wordpress/2012/02/13/हिंदू-धर्म-और-पुनर्जन्म/

असंभव चीजों का एक और विरोधाभास अहिंसा के नुक्सान ना करने के नियम को पालन करना है जिसको जैन उनके ज़ोरदार और कड़े प्रयासों के माध्यम से भी पूरी तरह से नहीं मान सके हैं क्योंकि हरेक दिन के जीवन में सूक्ष्मजीवों को पीने या प्राणियों को कुचलने से खुद को बचाना बहुत मुश्किल है.

अंत में मैं इतना दूर तक नहीं जाना चाहता के मैं उनके पूर्व सदस्यों के दावे का समर्थन करूँ जिन्होंने साईं बाबा के खिलाफ दुरुपयोग का आरोप लगाया और जहां तक मेरा सवाल है जब तक उन्हें औपचारिक रूप से चार्ज नहीं किया जाता वो निर्दोष हैं.

हालांकि, मैं जो विश्वास करता हूँ वो ये है कि वो खुद को एक देवता कहने में दोषी हैं और ये दावा एक धोखाधड़ी है और उनके पास खुद को देवता साबित करने के लिए कोई विश्वसनीय सबूत भी नहीं.

इस मामले पर मेरी स्थिति किसी को अनावश्यक बदनाम करना नहीं है लेकिन अवलोकन करना है और आप के लिए एक चुनौती है के आप इस आदमी की स्थिति के बारे में पुनर्विचार करें.

मदर टेरेसा की तरह वह मानवता के लिए एक महान योगदान तो देसकते हैं पर ये बात उनको दिव्य अवतार के लिए योग्य नहीं बना सकता.

इसके अलावा, उन्होंने जीवन में महान चीजें पूरा किया है, लेकिन उन्हें मसीह के अनन्त काम के आगे विश्व के उद्धारकर्ता की श्रेणी में रखना अहेतुक है.

अंत में साई बाबा के पिता एक अभिनेता थे और यह कहा जाता है कि सत्य साईं इसी तरह ललित कला के क्षेत्र में प्रवीण थे और मैं बस ये सोच रहा हूँ के क्या ये सब एक नाटक ही हो सकता है जिसके द्वारा वह अपने पिता के नक्शेकदम पर चल रहे हैं और खुद को धार्मिक पृष्ठभूमि के मंच पर प्रस्तुत कर रहे हैं ?

 

 

कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएँ

कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएँ?

 

अन्य संबंधित लिंक

साई बाबा के संसाधन

jesusandjews.com/wordpress/2011/01/13/sai-baba/

 

 

Excerpts taken “From Handbook of World Religions, published by Barbour Publishing, Inc. Used by permission”

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