जब मैंने पहली बार ब्लॉग पोस्ट करना शुरू किया मेरे लिए एक निजी नोट को शामिल करना महत्वपूर्ण था वो इसलिए के पाठक को मेरे आचरण और प्रेरणा के बारे में बताना जरूरी था इसके बाबजूद के पदों की सामग्री के बारे में मेरी प्रतिबद्धता थी.
मैंने ऐसा किया क्योंकि इंटरनेट के माध्यम से संचार बहुत सिमित होता है और इसमें इंसान को व्यक्तिगत रूप से जानना मुश्किल है और कभी – कभी एक पाठक का अर्थ को समझने की कुशलता घट जाता है उन लक्ष्य और इच्छाओं का पीछा करते हुए जो उस इंसान से सम्बंधित है जिसने वो ब्लॉग लिखा.
तो शुरू में मैंने हरेक विशेष समूह को अपने विश्वासों और दायरे में व्यक्तिपरक मानके इसको सुरु किया. हालांकि, जब ये ब्लॉग साईट बढ़ने लगा तब मैंने समूहों के आम तत्वों को एक साथ रखने के लिए सब के लिए निजी टिप्पणियां देने के सिवाए एक ही नोट लिखने का फैसला किया क्योंकि मुझे लगा के ये पाठकों को सिर्फ बढ़ा चढा जैसा दिखेगा और टुकड़ों के जैसा लगेगा जैसा के मेरे ब्लॉग साईट में दीखता है.
वैसे भी कभी कभी विश्वास और आस्था के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करते समय काफी मुश्किल हो जाता है क्योंकि हमारे विश्वदृष्टि हमारे व्यक्ति और व्यक्तित्व के इतने अभिन्न अंग हैं के हम व्यक्ति और उनके मूल्य प्रणाली के बीच का अंतर ही नहीं जान सकते.
एक व्यक्ति को केवल एक बिंदु तक परिवर्तन किया जा सकता है लेकिन हम उन से खुद उनको ही अलग नहीं कर सकते. एक व्यक्ति को उनके दुनिया के विचारों द्वारा ही परिभाषित किया जा सकता है और इससे थोडा भी कम उसको एक बेतुका व्यक्ति बना देता है.
मैं यह कहना चाहता हूँ क्योंकि अक्सर जब मैं धार्मिक विश्वासों या धर्मनिरपेक्ष विचारों के बारे में बात करता हूँ यह अक्सर माना जाता है कि मैं किसी भी तरह से उन्हें व्यक्तिगत रूप से हमला कर रहा हूँ. फिर भी ये मेरा इरादा नहीं है, बल्कि मैं पाठकों के दिल और मन तक पहुँच कर इस बाधा को चुनौती देने की उम्मीद करता हूँ वो भी उनके लिए प्यार और चिंता के एक प्रतिबद्धता के माध्यम से और गुस्से और व्यर्थ निर्णय जैसे बुरे भावना से किए गए व्यर्थ वाद – विवाद से भी बचाना चाहता हूँ जो अक्सर इन प्रकार के विषयों के साथ आता है.
मुझे लगता है कि आप आसानी से इन्टरनेट की लफ्फाजी के भीतर इस प्रकार के ब्लॉग पा सकते हैं और आपको इस ब्लॉग के संवाद में उलझना जरूरी भी नहीं होगा.
मैं मानता हूँ कि कई बार इन ब्लॉगों को लिखते समय मैंने बहुत ही सीधा और प्रत्यक्ष तरीके से बात किया है और कभी कभी मैं भावुक हो गया लेकिन एक बात जो मैं नहीं चाहता के लोग गलत समझें वो ये है के मैं नफरत और पाठक की समूह के ओर क्रोध से प्रेरित नहीं हूँ लेकिन मेरी लड़ाई उन संस्थाओं से है जिन्होंने मतारोपण की इन मान्यताओं को शामिल किया है. फिर मैं ये भी समझता हूँ संगठन लोगों की वजह से मौजूद हैं पर मेरा दिल इन एजेंसियों के अवैयक्तिक कॉर्पोरेट ढांचे की वजह व्यक्ति की देखभाल की ओर समर्पित है.
इसके अलावा, अगर इस ब्लॉग साईट के माध्यम से आपके बुद्धि के बजाय अगर मैंने आपके गुस्से को जगाया है तो मैं अपने संदेश को व्यक्त करने में विफल रहा हूँ. मेरा आशय किसी का अपमान नहीं है भले ही मेरी टिप्पणी को आक्रामक के रूप में देखा जा सकता है और जो सब मैंने किया है उसे अगर नफरत, पूर्वाग्रह और हिंसा की अभिव्यक्ति के रूप में व्याख्या किया जाता है तो संवाद करने के लिए किए गए मेरे इन प्रयासों ने हम दोनों का समय बर्बाद किया है. इसके अलावा, मुझे पता है कि इन ब्लॉगों को पढ़ने से हर व्यक्ति को लाभ नहीं होगा, लेकिन मेरी आशा और प्रार्थना है कि किसी भी तरह से, किसी न किसी प्रकार से इस से किसी के जीवन में फरक पड़ेगा.
जैसे ही मैंने इन ब्लॉगों को लिखने के लिए तैयारी किया तब पूरे ईमानदारी में मुझे ये एहसास हुआ के हर व्यक्ति में कुछ स्तर तक धोखा होता है जिसमें में खुद भी शामिल हूँ और किसी भी व्यक्ति के पास जीवन के हर सवालों का जबाब नहीं होता है. फिर भी इन सीमाओं के बावजूद इसने मुझे सच का पीछा करने और रक्षा करने के साथ उसके पथ में चलने का जिम्मेदारी लेने से नहीं रोका चाहे वो मुझे जहां भी लेजाए और मैं इस रास्ते में आपको मेरे साथ चलने के लिए निवेदन करता हूँ.
मैं जानता हूँ कि “सच्चाई” शब्द का निरपेक्ष रूप में प्रयोग करना थोडा अभिमानी और असहिष्णु सुनाई देता है खासकर इसलिए क्योंकि हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जो राजनीतिक रूप से सही है और सापेक्षवाद के बहुलवादी दृश्य को सही मानता है.
फिर भी हमारा समाज सत्य के महत्वपूर्ण तत्वों पर निर्भर है जो हमारे मानव अस्तित्व के बहुत ही जरूरी आधार हैं. आम तौर पर इसे कानून और व्यवस्था के विभिन्न विषयों में या विज्ञान के संबंध में लागू करने में हमें कोई समस्या नहीं होता है लेकिन किसी तरह हम धार्मिक विश्वास की अवधारणा में इसी तर्क को लागू करना नहीं चाहते हैं.
यदि हम हमारे जीवन की खंडन करते हैं और सच्चाई को सार्वभौमिक रूप से लागू नहीं करते हैं तो अंततः हम खुद को धोखा देकर एक झूट की जिंदगी जीते हैं. अभी तक मानव समाज और संस्कृति की महानता ज्ञान की खोज के माध्यम से हासिल किया गया है और एक बार ज्ञान प्राप्त हो जाए तो प्रगति होता है जो हमें अपने ज्ञान का परम लक्ष्य की दिशा में ले जाता है.
तो आप इन ब्लॉगों में शोध की यात्रा शुरू कने से पहले अपने पहले की सोच और सांस्कृतिक फिल्टर के बारे में ध्यान रखें जो आपके जीवन की व्याख्या को प्रभावित करके आपके जीवन के बारे में सोच को प्रभावित करते हैं और जिसपर आप बिना ध्यान दिए ही काम कर रहे हैं.
इसके अलावा, मुझे पता है कि जीवन के बारे में पुनर्विचार करना एक भयावह बात या एक दर्दनाक अनुभव हो सकता है क्योंकि वहाँ हमारे सोच की त्रुटि की संभावना रहती है जो हमें ऐसे जगह पर ला कर खड़ा कर सकता है जो हमारे सुविधा क्षेत्र से बाहर है. फिर भी हमारे जीवन के बारे में गंभीर रूप से ना सोचने के कारण परिणामस्वरूप हम धोखे से खुदराय अज्ञानता की तरफ आगे बढ़ सकते हैं.
इस के अलावा हम कभी कभी आँख बंद करके हमारे परिवार, साथियों, सरकार, और बड़े पैमाने पर समाज की मान्यताओं को मान लेते हैं और वहाँ उन मान्यताओं को चुनौती देने की संभावना समेत नहीं रहती. हम में यथास्थिति और सामाजिक मानदंडों के साथ चलने की प्रवृत्ति है जिसको हम हमारे जीवन के नैतिक विचारों के लिए एक मानक मान लेते हैं.
यह ऐसा है के हम पहले विश्वास करते हैं और फिर उन मान्यताओं को समर्थन करने में हमारी दुनिया केंद्रित कर देते हैं.
वैसे भी शुरू करने के लिए मैंने जितने भी सन्देश पोस्ट किए हैं उसकी केंद्रीय आकृति लोगों को सुनाने का कोई अर्थ नहीं है और वो ये है के इश्वर सभी से प्यार करते हैं.
यहुन्ना ३:१६ कहता है कि “परमेश्वर को जगत से इतना प्रेम था की उसने अपने एकमात्र पुत्र को दे दिया, ताकि हर वह आदमी हो उसमें विश्वास रखता है, नष्ट न हो जाए बल्कि उसे अनंत जीवन मिल जाए.”
यह आज एक जीवंत वास्तविकता है कि हर संस्कृति, जनजाति, भाषा और लोगों के समूह हैं जो उन पर विश्वास करते हैं और वो भी बल या मजबूर किए जाने की वजह से नहीं बल्कि परमेश्वर के प्रेम की वजह है जिसके परिणामस्वरूप वो बदले हुए जीवन की तरफ आकर्षित हुए हैं.
यीशु की वास्तविकताओं में से एक ये है के उन्होंने औरों के लिए परमेश्वर के प्रेम को प्रदर्शन किया जिसके वजह से लोगों को गतिशील रूप से जिने का उपाय मिला और इश्वर को व्यक्तिगत और वास्तविक रूप से जानने का मौका भी मिला. उनका काम न केवल एक प्रभावशाली आदमी या एक नबी के रूप में पूरा हुआ बल्कि एक उद्धारकर्ता के रूप में भी पूरा हुआ जो दवा व्यसनों, अश्लीलता, चोरी, व्यभिचारी व्यवहार या फिर मानवता के अंदर की सारी बीमारीओं से बचाते हैं. उन्होंने लाखों लोगों के जीवन को परिवर्तन किया है जिसमें मैं भी शामिल हूँ और मेरे लिए मेरी गवाही के संबंध में उनके जीवित शक्ति और व्यक्तिगत संपर्क को इनकार करना आप के प्रति नफरत और बेईमानी होगा.
तो इश्वर के पास लोगों को लाने का येशु का तरीका हमें किसी प्रकार का असंभव बाधा वाला काम कराके या फिर एक योग्यता प्रणाली के माध्यम से क्रेडिट कमाने के प्रयास से नहीं है. पर मसीहा के रूप में उनके व्यक्ति और काम में हमारी आस्था और विश्वास रखने के द्वारा उन्होंने ये संभव बनाया है और हमारी अच्छाई भी यही है.
यीशु ने कहा “महेनत करने वालों और बोझ से दबे लोगों मेरे पास आओ और में तुम्हारे आत्मा के लिए विश्राम दूंगा. क्योंकि मेरा जुवा सरल है और मेरा बोझ हल्का है.”
उन्होंने हमें अनन्त विश्राम देने का वादा किया है जो हमारे खुद के प्रयासों पर आधारित नहीं है बल्कि ये उनके अच्छाई के काम पर आधारित है जिसके परिणामस्वरूप उनकी मौत के बलि के माध्यम से हमें उद्धार मिला.
उन्होंने हमारे पापों को अपने कंधे पर उठाकर परमेश्वर के सजा को अपने आप पर ले लिया जिसके वजह से इश्वर के साथ हमारी सुलह होगई.
अंत में मैं आपको सिर्फ ये कहना चाहता हूँ के जैसे आप इस ब्लॉग को पढ़ें उसे एक खुला मन रख कर कीजिए और प्रार्थनापूर्वक सभी ईमानदारी और दिल की सच्चाई में इश्वर की खोजी करें. अगर मैंने कुछ बिंदुओं पर मेरी स्थिति से ज्यादा ही कह कर इस मामले को ज्यादा दूर तक लेगया तो कृपया मुझे माफ कर दीजिए. मैं जान बूझ कर किसी को अपमान करने के लिए कुछ नहीं कर सकता और मेरा उद्देश्य और लक्ष्य दूसरों को लाभ देना है ना की समाज के लिए हानि या उपद्रव बनना.