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आनंद मार्ग के संसाधानें

Thursday, May 10th, 2012

ऑडियो संसाधन

 

लिखित बाइबल

 

“यीशु की फिल्म”

 

देवताओं मुक्ति डाटा की “चार आध्यात्मिक कानून” योजना

आनंद मार्ग

Thursday, May 10th, 2012

आनंद मार्ग या आनंद मार्ग प्रचारक संघ का सुरुवात श्री प्रभात रंजन द्वारा एक सामाजिक और आध्यात्मिक आंदोलन के रूप में हुआ था.

इस समूह के पक्ष में एक बात ये है के इसने शिक्षा और प्र.उ.थ (प्रगतिशील उपयोग थ्योरी) के माध्यम से सामाजिक सेवाओं और राहत प्रदान करने में कुछ प्रगति किया है जो मानवता के मूल्यों के तहत की बातें हैं फिर भी इस सम्प्रदाय के सम्बन्ध में कुछ विवादास्पद मामले हैं जैसे की उनके पौराणिक किंवदंतियों में श्री श्री आनंदमूर्ति नामक एक इंसान के बारे में कहा गया है जो के ४ वर्ष की उम्र से ही एक सिद्ध योगी थे. उनके कई अनुयायिओं के द्वारा उनको चमत्कार कर्ता और मन की बातें पढ़ने की खूबी होने के बारे में भी बताया गया है. इसके अलावा पी. आर. सरकार को  भगवान के अवतार होने का दर्जा दिया गया है पर शिष्यों द्वारा गुरु को ऐसे बढे-चढ़े दर्जे देना तो एक आम बात है. मार्ग गुरु श्री श्री आमंदामुर्ती ने सामाजिक सुधार करने में तो पुरस्कार प्राप्त करने वाला काम किया है पर ऐसे कई और लोग हैं जिन्होंने ऐसे परोपकारी काम किए हैं और उनके काम को कोई दिव्य मान्यता नहीं दिया गया.

इस आंदोलन से सम्बन्धीत अन्य संदिग्ध बातों में एक ये बात है के इसको ‘वैज्ञानिक’ बताया गया है पर इसमें तो साबित नहीं हुए कई बातें हैं जैसे की ये विश्वास के प्याज, लहसुन, लीक, चीव, मशरूम आदि से इंसान के मस्तिस्क पर खराब असर पड़ता है. इस के इलावा ये भी कहा गया है के अगर एक व्यक्ति अपने योन क्रियाकलाप को महीने में सिर्फ चार बार तक ही सिमित रखे तो वो शारीरिक संयमता और अच्छी भावना पा सकता है.

लेकिन मेरा सबसे बड़ा संदेह ये है कि क्या ये दर्शन ध्यान के अपने अनुशासन के माध्यम से आध्यात्मिक सुन्यता को भर सकता है जिसमें उसके सोरह बूँदें और दस सिद्धान्तें भी सामिल है जिसको यम या फिर हियामा
कहा जाता है. आप में से जो इस “आनंद के पथ” में चलने के लिए नहीं जाने जाते हैं और इस आध्यात्मिक बोझ को अपने कंधे पर उठाकर थक गए हैं उन लोगों को मैं प्रोत्साहित करना चाहूंगा के एक ऐसे दुसरे व्यक्तित्व हैं जो आपके इस आध्यात्मिक यात्रा को सुखद बना सकते हैं.

मती ११:२८-३०

“अरे, ओ थके-मांदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ, मैं तुम्हे सुख चैन दूंगा. मेरा जुवा लो और उसे अपने ऊपर संभालो. फिर मुझ से सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा मन कोमल है. तुम्हे भी अपने लिए सुख-चैन मिलेगा. क्योंकि वह जुवा जो मैं तुम्हे दे रहां हूँ बहुत सरल है. और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है.”

शायद आप एक साधक हो जो साधना का अभ्यास कर रहा है और आप सोच रहे हैं के क्या सब कुछ यही है या फिर आपको संकोच है के परम सत्य को पाने का यही सही रास्ता है क्योंकि आप अपने हृदय के खालीपन को भर नहीं पाए हैं और आत्मा के भूख और प्यास को शांत नहीं कर पाए हैं फिर भी मैं आपको बताता हूँ के एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो पूरी तरह से आपको संतुस्ट कर सकते हैं.

जॉन ६:३५

“येशु ने उनसे कहा, ‘मैं ही वह रोटी हूँ जो जीवन देती है. जो मेरे पास आता है वह कभी भूखा नहीं रहेगा और जो मुझमें विशवास करता है कभी भी प्यासा नहीं रहेगा.”

ए.एम्.पी.एस. में व्यक्तिगत और सामाजिक परिवर्तन की दिशा में जाने का प्रयास किया गया है और फिर भी आप अपने दोष के साथ क्या करेंगे जब के आप एक नैतिक जीवन जीने के कठोर उमीदों पर ही नहीं खड़ा उतर पाए? नैतिक स्तर को पाने के इस प्रयास के विफलता को विल्कुल सामान्य माना जाना चाहिए और फिर भी मैं आपको प्रोत्साहित करना चाहूंगा के इस समस्या का एक समाधान है पर ये आपके अपने प्रयास से पाना संभव नहीं है और ये परमेश्वर के तरफ से एक तोहफा है. अनुग्रह का ये प्रावधान येशु के काम और व्यक्ति के माध्यम से संभव हुआ है जो आपको सचमुच में बदल सकते हैं और आपके नैतिक अपराधों को हटा कर और आपके सोचने और काम करने के प्रकृति को बदल कर आपको पुनर्जीवित कर सकते हैं.

इसके अलावा मुक्ति के इस पूरे अनुभव को प्रभावी ढंग से संचार करने में एक बाइबिल चरित्र का हात है जिसका नाम पॉल था और वह अपने समाज के मानकों के आधार पर एक नैतिक आदमी माना जाता था फिर भी उनमें धार्मिकता का आयाम नहीं था जिसको वो परमेश्वर के सर्वश्रेष्ठ चेतना का सेवा करने के लिए चाहते थे और उन्होंने अपना मुक्ति येशु में पाया जिन्होंने उनको मुक्त कर दिया ताकि वो अपने प्राकृतिक कमजोरी से बाहर निकल सके. इस बात के बारे में उनका कहना रोमिओं ७:१४-२५ में लिखा गया है.

“क्योंकि हम जानते हैं के व्यवस्था तो आत्मिक है और मैं हाड-मांस का भौतिक मनुष्य हूँ जो पाप की दासता के लिए बिका हुआ है. मैं नहीं जानता मैं क्या कर रहा हूँ क्योंकि मैं जो करना चाहता हूँ, नहीं करता, बल्कि मुझे वह करना पड़ता है, जिससे मैं घृणा करता हूँ, और यदि मैं वही करता हूँ जो मैं नहीं करना चाहता तो मैं स्वीकार करता हूँ की व्यवस्था उत्तम है. किन्तु वास्तव में वह मैं नहीं हूँ जो यह सब कुछ कर रहा है, बल्कि यह मेरे भीतर बसा पाप है. हाँ, मैं जानता हूँ के मुझ में यानी मेरे भौतिक मानव शरीर में किसी अच्छी वस्तु का वास नहीं है. नेकी करने की इच्छा तो मुझ में है पर नेक काम मुझ से नहीं होते. क्योंकि जो अच्छा काम मैं करना चाहता हूँ, मैं नहीं करता बल्कि जो मैं नहीं करना चाहता, वे ही बुरे काम मैं करता हूँ. और यदि मैं वही काम करता हूँ जिन्हें करना नहीं चाहता तो वास्तव में उनका कर्ता जो उन्हें कर रहा है, मैं नहीं हूँ, बल्कि वह पाप है जो मुझ में बसा है.

इसलिए मैं अपने में यह नियम पाता हूँ की मैं जब अच्छा करना चाहता हूँ, तो अप्ने में बुराई को ही पाता हूँ. अपनी अंतरात्मा में मैं परमेश्वर की व्यवस्था को सहर्ष मानता हूँ. पर अपने शारीर में मैं एक दुसरे ही नियम को काम करते देखता हूँ यह मेरे चिंतन पर शासन करने वाली व्यवस्था से युद्ध कर्ता है और मुझे पाप की व्यवस्था का बंदी मान लेता है. यह व्यवस्था मेरे शारीर में क्रियाशील है. मैं एक अभागा इंसान हूँ. मुझे इस शारीर से, जो मौत का निवाला है, छुटकारा कौन दिलाएगा? अपने प्रभु येशु मसीह के द्वारा मैं परमेश्वर का धन्यवाद कर्ता हूँ ! सो अपने हाड मांस के शरीर से मैं पाप की व्यवस्था का गुलाम होते हुए भी अपनी बुद्धि से परमेश्वर की व्यवस्था का सेवक हूँ.”

मेरे दोस्त शायद आप पॉल के संघर्ष को पहचानते हैं जो नैतिक उत्कृष्टता पाने के लिए था और फिर भी येशु का मिसन हमें परमेश्वर से मिलाना था अपने जीवन और मृत्यु के द्वारा जिसके अंजाम स्वरुप दोनों स्थितीय और व्यावहारिक धार्मिकता प्राप्त हो सके.

येशु ही संसार के दीपक हैं और वो अँधेरे में बंधे लोगों को छुडाने के लिए आए थे और ये काम वो किसी प्रकार के भौतिक, भावनात्मक या तंत्र के आध्यात्मिक व्यायाम के माध्यम से नहीं करते पर अपने बलि के जिन्दगी के माध्यम से करते हैं जो आप के लिए दिया गया था.

यूहन्ना ८:१२

 “फिर वहाँ उपस्थित लोगों से येशु ने कहा, ”मैं जगत का प्रकाश हूँ जो मेरे पीछे चलेगा कभी अँधेरे में नहीं रहेगा. बल्कि उसे उस प्रकाश की प्राप्ति होगी जो जीवन देता है.”

शायद आप विश्व शांति की पूर्ति को देखने के लिए इच्छुक हैं और ये एक दिन जरूर हासिल होगा जिस दिन शांति के राजकुमार येशु अपने आने वाले राज्य को धरती पर स्थापित करेंगे. इसके साथ साथ हम परमेश्वर के शान्ति का अनुभव ऐसे बात में भी कर सकते हैं जैसे की हम अपना जीवन अभी कैसे व्यतीत कर रहे हैं और इस जीवन के बाद में कैसे व्यतीत करेंगे.

यूहन्ना १४:२७

  “मैं तुम्हारे लिए अपनी शान्ति छोड़ रहा हूँ. मैं तुम्हे स्वयं अपनी शान्ति दे रहा हूँ पर तुम्हें इसे मैं वैसे नहीं दे रहा हूँ जैसे जगत देता है. तुम्हारा मन व्याकुल नहीं होना चाहिए और नाही उसे डरना चाहिए.”

शायद आप प्रेम के एक परम भावना को ढूंढ रहे हैं और येशु ही उस प्रकार के प्रेम के अवतार हैं वो भी इतने की उन्होंने अपना जीवन उनके लिए दे दिया जिनको उनका शत्रु कहा जाता था. यही उनका बिना शर्त और परोपकारी प्यार है जो एक व्यक्ति को प्राप्त हो सकता है जो आपको बदले में परमेश्वर के प्यार को लौटाने का अनुमति देता है वो भी इस बुनियाद पर के हम परमेश्वर और और लोगों को किस प्रकार से सोचते हैं.

रोमिओं ५:८

“पर परमेश्वर ने हम पर अपना प्रेम दिखाया. जब के हम तो पापी थे; किन्तु येशु ने हमारे लिए प्राण त्यागे.”

१ यूहन्ना ४:७-१२

“ हे प्यारे मित्रों, हम परस्पर प्रेम करें. क्योंकि प्रेम परमेश्वर से मिलता है और हर कोई जो प्रेम कर्ता है, वह परमेश्वर की संतान बन गया है और परमेश्वर को जानता है. वह जो प्रेम नहीं करता है, परमेश्वर को नहीं जान पाया है. क्योंकि परमेश्वर ही प्रेम है. परमेश्वर ने अपना प्रेम इस प्रकार दर्शाया है: उन्होंने अपने एक मात्र पुत्र को इस संसार में भेजा जिससे के हम उनके पुत्र के द्वारा जीवन प्राप्त कर सकें. सच्चा प्रेम इसमें नहीं है की हमने परमेश्वर से प्रेम किया है, बल्कि इसमें है की एक ऐसे बलिदान के रूप हैं जो हमारे पापों को धारण कर लेता है, उसने अपने पुत्र को भेज कर हमारे प्रति अपना प्रेम दर्शाया है.

हे प्रिय मित्रों, यदि परमेश्वर ने इस प्रकार हम पर अपना प्रेम दिखाया है तो हमें भी एक दुसरे से प्रेम करना चाहिए. परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा है किन्तु यदि हम आपस में प्रेम करते हैं तो परमेश्वर हममें निवास करते और उनका प्रेम हमारे भीतर सम्पूर्ण हो जाता.”

२ तीमुथियुस १:७

“क्योंकि परमेश्वर ने हमें जो आत्मा दी है, वह हमें कायर नहीं बनाती बल्कि हमें प्रेम, संयम और शक्ति से भर देती है.”

ईसाई धर्म की रक्षा में यह एक पूर्वी धर्म के रूप में शुरू हुआ जो अभी तक का सब से बड़ा अंतरमहाद्वीपीय आंदोलन है जिसने लाखों का जीवन बदल दिया है ना केवल व्यक्तिगत रूप से पर इसने संसार के मौसम और भूगोल को इस हद तक बदल दिया है के बहुत से मानवीय कार्य जो दुनिया भर में चल रहे हैं वो या तो किसी ईसाई सुरुवात के सीधा नतीजे हैं या फिर ईसाई हस्तक्षेप की वजह से सुरु हुए हैं जिसने अनाथालय और अस्पताल जैसे प्रतिष्ठानों और संस्थाओं का सुरुवात किया. मैं आपके लिए एक लिंक दे रहा हूँ जिस पर कुछ ऐसे लोगों के गवाही हैं जिनका जीवन ईसाई धर्म की वजह से परिवर्तन हुआ है.

www1.cbn.com/700club/episodes/all/amazing-stories

अंत में इस पोस्ट की सामग्री के माध्यम से किसीको अपमान करने के इरादे मेरे बिलकुल ही नहीं थे पर मैं इस मामले को उस इंसान के रूप से रख रहा हूँ जो चाहता है के आप आत्मिक रूप से अच्छे रहें. इसके अलावा मैं इस दलील को केवल एक प्रतिस्पर्धा के रूप में दिखा कर खतम नहीं करना चाहता हूँ पर मैं आपको प्रोत्साहित करना चाहता हूँ के आप आनंद मार्ग के डब्बे से बाहर निकल कर सोचें और मैं आपको चुनौती देता हूँ के आप परमेश्वर से साधारण रूप से और अपने ही प्रकार से प्रार्थना करें और उनसे कहें के वो आपके सामने येशु के सच को खोल दें.

अंत में यह सिर्फ एक और धर्म या दर्शन के बारे में नहीं है बल्कि यह एक रिश्ता है जो किसी गुरु के सिखाए हुए चीजों के आधार पर जीने से काफी बढ़ कर है. ये एक ऐसा रिश्ता है जिसको केवल मसीह में परमेश्वर के प्रेम के माध्यम से विनियोजित किया जा सकता है.

यूहन्ना ३:१६

“परमेश्वर को जगत से इतना प्रेम था की उसने अपने एक मात्र पुत्र को दे दिया, ताकि हर वह आदमी जो उसमें विशवास रखता है, नष्ट ना हो बल्कि उसे अनन्त जीवन मिल जाए.”

 

 

कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएं

jesusandjews.com/wordpress/2012/01/10/कैसे-भगवान-के-साथ-एक-रिश्त/

 

 

अन्य संबंधित लिंक

आनंद मार्ग के संसाधानें

jesusandjews.com/wordpress/2012/01/02/ananda-marga/

 

 

 

 

Religions of the world: a comprehensive encyclopedia of beliefs and practices/ J. Gordon Melton, Martin Baumann, editors; Todd M. Johnson, World Religious Statistics; Donald Wiebe, Introduction-2nd ed., Copyright 2010 by ABC-CLIO, LLC. Reproduced with permission of ABC-CLIO, Santa Barbara, CA.

 

“Reprinted by permission.  “(Nelson’s Illustrated Guide to Religions), James A. Beverley, 2009,Thomas Nelson Inc. Nashville, Tennessee.  All rights reserved.”