Archive for the ‘हिंदी-Hindi’ Category

इस्लाम में ईमानदारी

Monday, May 21st, 2012

सच्चाई एक ऐसा गुण है जिसको अभिनिषेध और तक्किया ‘कवर अप’ जैसे अवधारणाओं का उपयोग करके इस्लामिक व्यवहार में समझौता किया जाता है.

तक्किया के विचार के वजह से इस्लाम अग्रेषित करने और उसके अच्छे नाम को बचा कर रखने के लिए झूठ बोलने और दूसरों को धोखा देने जैसी बातों का अनुमति देता है.

यह आवश्यकता अनुसार अगर किसी प्रकार के खतरे या चोट का आभास हो तो किसी भी धार्मिक आवश्यक्ता या विश्वास को इनकार करने का अनुमति देता है जिसमें विश्वास को पूरी तरह से इनकार करना भी सामिल है और ये बात सूरा १६:१०६ के द्वारा मंजूर किया गया है.

इसके अलावा इसमें शपथ लेना भी शामिल है जिसको मुस्लिम विवादकर्ताओं के बीच एक माध्यम के रूप में प्रयोग किया गया है जब उनके विश्वास को बचाने के लिए कुरान के किसी हिस्से को छुपाने या गलत ठहराने का आवश्यकता हो और उसका कारण  अपने विश्वास की रक्षा करना और इस्लाम को आगे बढाना हो.

इसके अलावा मुझे ये लगता है के इन भ्रामक व्यवहार के वजह से मेरे कई मुस्लिम दोस्त ज्यादार बुनियादी ईसाई सिद्धांत को गलत समझते हैं.

इस के अलावा इसमें अभिनिषेध का सिद्धांत भी सामिल है जो पुराने करार को नए करार से बदलने का एक आसान तरीका है और फिर भी अगर कुरान अनन्त शब्दों का परिपूर्ण कार्बन कपि है तो इसे संशोधित कैसे किया जा सकता है क्योंकि अगर सच में कहें तो इसके प्रत्येक शब्द श्रुतिलेख होना चाहिए. इसके अतिरिक्त ये निराकृत छंद अक्सर इस प्रकार से उद्धृत किए जाते हैं जिससे बात अस्पष्ट और अनिश्चित लगे और ये चाल भी तक्किया का एक हिस्सा है. इसलिए एक व्यक्ति उनके लाभ के लिए आसानी से दोनों पक्षों के तर्क का उपयोग कर सकता है.

तो अगर इन प्रथाओं को नियोजित किया जाता है तो एक ईमानदार मुस्लिम उपासक कैसे इस बात को लेकर आश्वस्त हो सकता है के जो उसको कहा जा रहा है वो सच है? इसके अलावा वे इस बात पर भी कैसे विश्वास कर सकते हैं के ईसाई धर्म वास्तव में एक झूठ है? यदि कुरान के बातों को मरोड़ कर गलत रूप से इन्स्तेमाल किया जा सकता है तो ये बात इससे कैसे फरक है जिसमें ईसाइयों और यहूदियों को बाइबल से छेड़छड करने के लिए दोषी ठहराया गया है ‘तहरीफ़’. विडम्बना ये है के सूरा ने पहले मूल शास्त्रों का पुष्टि किया पर बाद में इस बात से इनकार किया इसके बाबजूद के इस मामले पर प्रारंभिक और अंतिम फैसलों के बीच बाइबल ने फरक होने के बारे में कुछ नही बताया है. इस प्रकार वे सुरुवात से ही या तो सही थे या फिर गलत थे क्योंकि उनको बदलने के लिए कोई रास्ता नही था और ऐसे हजारों बईबलीय पांडुलिपियाँ हैं जो इस्लामिक समय से ही पुनार्दिनंकित है और जो बदले में हमारे आधुनिक संवाद से मेल खाते हैं. इसमें कई सारे पूर्व इस्लामिक लेख भी है जो प्राचीन चर्च के पादरिओं द्वारा लिखा गया था जिसने धर्मग्रंथ के संदर्व को प्रयोग किया था और जो लगभग स्वतंत्र और संपूर्ण रूप से इन बाईबलीय परिच्छेदों को दोहराता है वो भी इस्लाम के सुरुवात होने से बहुत लंबे समय पहले. इतना ही नहीं लेकिन ईसाइयों और यहूदियों जो मूल रूप से ही एक दुसरे से बिलकुल अलग हैं उनके लिए भी ये बात कितना संभव है के वो एक दुसरे से मिलकर तनख या पुराने करार को बदलें और फिर भी इन दोनों समूहों के बिच में धर्मग्रंथ लगभग एक ही है. मैंने इस बारे में एक पोस्ट लिखा है जो यहाँ पर आपको मिलेगा.

Is The Bible Reliable

अंत में अगर आप अभी भी इस बात पर विश्वास करते हैं तो किसने विशेष रूप से शास्त्रों को बदल दिया और ये कब हुआ?इसके अलावा इस्लामी सोच के बाहर इस बात का सबूत क्या है जो इस दृश्य से मेल खाता है?

तो निष्कर्ष में तक्किया ‘कवर अप’ और अभिनिषेध की अवधारणा सिर्फ आभास हैं जो विषयगत प्रणाली के समर्थन के द्वारा एक झूठे विश्वास प्रणाली का समर्थन करने के लिए परमेश्वर और सच्चे धर्म को झूठे तरीके से प्रस्तुत करता है.

अंत में मैं आपसे ये पूछना चाहता हूँ के क्या आप अपने आत्मा को सौंपना चाहते हैं या फिर अपने आपको एक ऐसे विचार के तरफ प्रतिबद्ध करना चाहते हैं जो इस प्रकार के झूठे व्यवहारों को मानता है?

 

 

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Beyond Opinion, Sam Soloman Ch.4, Copyright 2007, published in Nashville Tennessee, by Thomas Nelson

मुस्लिम और इस्लामी संसाधन

Saturday, December 31st, 2011

बाइबल

 

चार आध्यात्मिक कानून

 

येशु फिल्म

 

अन्य लिंक

carm.org/islam

www.answering-islam.org/Testimonies/index.html

आप क्यों एक मुसलमान हो

Sunday, December 25th, 2011

आप क्यों एक मुसलमान हो? क्या आपने वास्तव में इस सवाल के बारे में विचार किया या सोचा है? क्या इसका कारण आपका व्यक्तिगत रूप से आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि पाना या जीवन का रहस्योद्घाटन मिलना था? या फिर परमेश्वर के साथ व्यक्तिगत अंतरंग संबंध मिलने के कारण से स्वाभाविक रूप से आप इस्लाम धर्म की ओर गए?

क्या आप एक मुसलमान है क्योंकि आपकी संस्कृति और समाज ने आपको उस प्रकार से परिभाषित कर दिया है? विचार कीजिए के अगर आप अमेरिका जिसको बाईबल बेल्ट माना जाता है वहाँ के किसी क्षेत्र में अगर पैदा हुए होते तो क्या होता? ऐसे अवस्था में आपका इस्लामी विश्वास को मानने या फिर विश्वास करने के कितने संभावनाएं होते?

क्या आप एक मुस्लिम हैं क्योंकि आपको चुनाव की स्वतंत्रता नहीं है और अन्यथा करने से आप सब कुछ खो देंगे? एक बार फिर से सोचिये के अगर आप एक लोकतांत्रिक समाज में पैदा हुए होते जहां धार्मिक स्वतंत्रता की अनुमति होती है, तो क्या आप अभी भी एक मुस्लिम ही होना चाहेंगे?

क्या आप एक मुसलमान है क्योंकि आप के परिवार आप से यही उम्मीद करते हैं और वही आप के विश्वदृष्टि और मूल्यों को परिभाषित करते हैं?  सोचिए के आपका परिवार आपको अपने स्वयं के विषय में निर्णय करने की पूरी तरह से अनुमति देते हैं और आप की स्थिति की परवाह किए बिना आप को स्वीकार करते हैं?

क्या आप एक मुसलमान हैं क्योंकि यह बाकी सब कर रहे हैं? क्या होगा अगर आप एक ऐसे संस्कृति का एक हिस्सा हैं जो विश्वासोंकी विविधता के लिए अनुमति  देती है? क्या आप अभी भी आप इस्लाम को गले लगाने के लिए प्रेरित होंगे?

क्या आप इस्लामको इसलिए मानते हैं क्यों के धार्मिक अधिकारियों और शिक्षा प्रणाली ने आप से ये कहा है की इस्लाम ही सच्चा धर्म है? कल्पना कीजिए के अगर आप एक नास्तिक देश में पैदा हुए होते जहां इश्वर बिना के जीवन की एक पूरी अलग दर्शन है तो भी क्या आप मुस्लिम की रहेंगे?

क्या आप एक मुस्लिम हैं क्यों की आपको मुस्लिम नहोने से या फिर इस विशवास को नामानने के परिणाम से डर है. सोचिये अगर ये भय या संकोचकी सामना आपको नहीं करना पड़ता तो आप क्या करते?

क्या यह संभव है कि इस्लाम एक अभ्यास है जिसको भौगोलिक स्थान के आधार पर परिभाषित किया गया है?

क्या यह संभव है कि एक व्यक्ति को किसी धार्मिक प्रणाली में इतना एकीकृत किया जा सकता है कि उसके प्रभाव से मुक्त होना उसके लिए लगभग असंभव होजाए?

क्या ये संभव है के हम बस उस बात पर अंधा विशवास करें जो हम को मानने के लिए बोला गया है और उसके बारे में पूछताछ करना भी मना है?

एक व्यक्ति को एक संस्कृति इतना अलग कर सकती है के उसको बाहर के स्रोतों से प्रभावित ही नहीं किया जा सकता?

एक धर्म को लोगों को नियंत्रित करने और छेड़छाड़ करने का एक तरीका बनाया जा सकता है जिससे राजनीतिक एजेंडा पूरा होसके?

एक धर्म क्या आपको अपनी व्यक्तिगत पहचान की भावना खोने का कारण बन सकता है?

आप ईमानदारी से अपने आपको बताओ कि ये ब्लॉग के माध्यम से सोचने के बाद भी आप इस्लाम में अपने विश्वास पर अडिग हैं या फिर आपको संदेह है?  यदि आप अभी भी अपने विश्वासों में समर्पित हैं तो क्या आप अभी भी मुस्लिम रह सकते हैं उस गर्व की वजह से जो आप को कभी गलत नहीं होने देगा? या आपका अधिक विशवास आपको धोखा दे सकता है?

तो अपका एक मुस्लिम होने में सच प्रेरणा क्या है? यह वास्तव में सत्य का एक मामला है या यह संस्कृति द्वारा परिभाषित किया गया है?

इस्लाम के विकास ज्यादातर सैन्य विजय और बच्चे के जन्म के माध्यम से हुआ है. क्या  ये दृष्टिकोण वास्तव में एक गंभीर या वैध विश्वास करने के लिए काफी है?

वैसे भी ऐसे मुसलमान हैं जिनहहोने इस्लाम पर शक किया और चमत्कारिक ढंग से यीशु में विश्वास द्वारा मुक्त होगए. मैंने अपने ब्लॉग साईट पर एक लिंक दिया है जिसमें पूर्व मुसलमानों की गवाही है जिन्होंने अपने संदेह और भय के लिए एक दूसरा उपाय ढूंढ निकाला.

समापन में मैं आपको एक चुनौती देता हूँ की आप इन गवाहियों को पढ़ें और परमेश्वर से पूछें की यीशुको आप के सामने प्रकट कर दें वो भी ऐसे रूप में की आप उनको प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में विशवास कर सकें. किसी भी तरह के डर को आपको ये करने से नरोक्ने दें ये सोचकर के ये आपको उस स्वर्ग में प्रबेश करने से रोकेगा जिस में आपके जाने की कोई गारंटी नहीं है.

 

 

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मुस्लिम और इस्लामी संसाधन

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क्या कुरान पवित्र है

Sunday, December 25th, 2011

जब कुरान की पवित्रता पर हम विचार करना चाहें तो इसे अन्य साहित्य के किसी टुकड़े की तरह विश्लेषण करके इसके दावे को प्रमाणित करना चाहिए.

कुरानको इस्लाम के भीतर इस तरह का एक उच्च स्थान दिया गया है कि यह आस्था के मानाने वालोंके बीच मूर्ति पूजा की एक वस्तु बन गया है.

इस के अलावा इस्लाम के दावे इसके शाब्दिक सबूत के पार जाता है.

मैने मोर्मोन के अध्ययन के दौरान इसका इस्लाम की परंपराओं से कुछ समानताएँ देखा. मोर्मोन स्वर्ण पर लिखी गयी एक स्वर्गीय शिलालेख में विश्वास करते हैं जिसको एक स्वर्गीय दूत ने दिया था और ये लिप्यंतरण के लिए सुरक्षित रखा गया था.

इसके अलावा जोसेफ स्मिथ एक सच्चे विश्वासको ढूँढने में लगा था और उसके कई कहे गए सामनों के बाद उसने ये माना के एक सच्चाई के बारे में कई सारे विस्वास हैं.

अभी तक इन दिव्य रहस्योद्घाटन के बावजूद “मोर्मोन की पुस्तक” कुरान की तरह एक संपूर्ण दस्तावेज़ से कम ही है .

मुस्लिम ये दावा कर सकते हैं कि कुरान सबसे सही और सुंदर साहित्यका स्रोत है जो इस्लाम के अनुसार आंतरिक दैवी प्रेरणा के माध्यम से प्रमाणित होते हैं.

अभी तक यह भी मोर्मोन की पुस्तक लिखी गई पुस्तकों में सबसे सही है, ये कहते समय जोसेफ स्मिथ की स्थिति भी यही रही होगी.

हालांकि, ये दोनों ग्रंथ उनके दावे से कम हैं क्योंकि दैविक स्थापना के उनके दावे में सच्चाई नहीं है. दावा करना और वास्तविक रूप में होना दो अलग बातें हैं और एक व्यक्ति को साबित करना चाहिए या फिर एक प्रसंसनीय सबूत देना चाहिए जो उसके दावे को साबित करता है.

कुरान शुरू करने के लिए एक एकल संस्थापक थे जो एक संदिग्ध चरित्र के हैं.

इन बारे में खुलासे की शुरुआत से मुहम्मद अपने स्वयं के विवेक पर शक करता था और वह नहीं जानता था कि क्या वह एक पागल आदमी था या एक कवि था. उसने अपने आप को शैतानिक शक्तियों से भरा हुआ पाया और उसके कई अभिव्यक्तियों की वजह से ऐसे खुलासे प्राप्त हुए जैसे की मुँह से फीज निकलना या एक ऊंट की तरह गरजना जैसे अजीब व्यवहार. इस नवी के बारे में और एक सवाल है के अल्लाह एक शिच्छित सच कहने के लिए एक गवार को क्यों चुनेंगे, जो सच उसके अपने जीवनकाल के दौरान संकलित भी नहीं किया गया था.

वैसे भी एक और ब्लॉग है कि जिस में मैंने इस विषय पर और चर्चा की है

क्या मुहम्मद एक झूठा भविष्यद्वक्ता है

कुरान के बारे में और एक बात यह है के इसने अपनी साहित्य और स्रोतों से लिया है. ये स्रोतें बाइबल और अन्य विधर्मी पाठ हैं जैसे की जुदेव इसाइ मनगढ़ंत साहित्य जो विशवास से बाहर थे क्योंकि इनमें दैविक प्रेरणा नहीं था. ये लेखन दोनों यहूदी और ईसाई संस्कृति से बाहर कर दिए गए थे और इन्हें कभी गंभीरता से नहीं लिया गया.

इन लेखों के इलावा इनमें फ़ारसी पारसी के मौखिक परंपराओं का प्रभाव था जिसको भी कुरानके लेखन में सामिल किया गया.

तो अल्लाह अपने स्वर्गीय संदेश सांसारिक दूतों और मानव परंपराओं से कैसे उधार ले सकते हैं?

मानव का कल्पना या मानव आविष्कार से हम पूर्णता या चमत्कारकी क्या उम्मीद लगा सकते हैं जिसे समाज ने अस्वीकार कर दीया क्योंकी वो साहित्य पूर्ण नहीं था?

यदि इस्लाम सर्वोच्च धर्म है तो इसने अपने स्वयं के स्रोत सामग्री देने के बजाय अन्य धार्मिक आंदोलनों के इतिहास और संस्कृति का बचा उधार क्यों लिया जो इस्लाम के ही समय में थे?  ये कितना मौलिक है?

एक और सवाल है की यह माना गया पवित्र पाठ हड्डी, लकड़ी, चमड़े, पत्ते, और चट्टानों जैसे ग़ैरमज़बूत और अल्पविकसित चीजों पर क्यों निर्भर था.

कुरान को स्मृति और भाषण के अविश्वसनीय गवाही द्वारा इकट्ठा किया गया था और इसके शुद्धता और यथातथ्यता को बचाकर इसको गिरने से बचाने के लिए पूरी याद होना जरूरी है.

तो इस पुस्तक को “सभी पुस्तकों की माँ” के रूप में वर्णित करना चाहिए या यह वास्तव में प्राचीन साहित्य के किसी अन्य भाग से अलग नहीं था.

ये कभी नहीं साबित हुवा के कुरान मुहम्मद के जीवन के दौरान या उसकी मौत के बाद शीघ्र ही सिद्ध किया गया बल्कि सबूत से पता चलता है कि ये नवी के मरने के १५० से २०० साल तक इसका बिकास किया गया और ८ वीं या ९ वीं सताब्दी में इसे बाहर लाया गया.

विद्वानों का निष्कर्ष है कि कुरान की बातें एक आदमी के द्वारा नहीं बल्कि सौ या दो सौ  साल की अवधि में पुरुषों के एक समूह द्वारा इकट्ठे किये गए थे.

कुरान का सबसे पुराना प्रति ७९० इस्वी में मेल लिपि में लिखी गयी थी जो के मुहम्मद की मृत्यु के १५० साल बाद की बात है.

यहां तक कि सबसे पुराना पांडुलिपि ही उसको मुहम्मद के समय से करिब सौ साल अलग कर रहे हैं .

इस के इलावा उथमान के प्रतियां भी अब अस्तित्व में नहीं हैं जिसके बारे मैं इस्लामी विद्वानों अन्यथा दावा करते हैं पर वास्तविकता यह है कि जो कुफिक लिपि इन विवादास्पद ग्रंथों में प्रयोग की गयी हैं वो उस समय के दौरान उपयोग में नहीं था और उथमान के निधन के साल बाद तक दिखाई नहीं दिया.

इसके अलावा माना जाता है कि अरबी भाषा अल्लाह का स्वर्गीय जीभ है और कुरान की सुरुवात अल्लाह के साथ ही हुआ तो क्यों कुरान अपनी बातें कहने के लिए अकादियन, अश्शूरियों, फ़ारसी, सिरिएक, हिब्रू, ग्रीक जैसे विदेशी भाषाओं का उपयोग करता है.

यदि कुरान इतना प्रामाणिक है तो उसका एक मूल पाठ अभी भी क्यों उपलब्ध नहीं है क्यों की इस्लाम के सुरुवात से रहा सभी दस्तावेज पूरी तरह से बरकरार है? निश्चित रूप से अल्लाह उसकी संप्रभुता में अपने ही पवित्र पाठ की संरक्षण जरूर कर सकता था .

कुरान के इतिहास के संबंध में यह माना जाता है के  इसकी संरचना ज़ैद इब्न थाबित के तहत हुआ था जो मुहम्मद के लिए एक निजी सचिव था. अबू बकर के निर्देश के तहत ज़ैद मुहम्मद की बातें लेकर एक दस्ताबेज बना रहा था.

नतीजतन, उथमान के शासनकाल के दौरान जो तीसरा खलीफा था, जान बुझ कर प्रयास किया गया के कुरान को मानकीकरण किया जाए और पूरे मुस्लिम समुदाय के ऊपर उस दस्ताबेज को लागू किया जाए जिसके लिए ज़ैद के उन दस्ताबेज के अन्य प्रतियां भी बने और सभी प्रतिस्पर्धी दस्तावेजों को नष्ट किया गया था .

कौन इस पाठ को मानक कह सकता है क्योंकि एक आदमी में अंतिम अधिकार दिया गया बनाम वो तमाम विश्वासियों के समुदाय जिसमें से कई मुहम्मद के व्यक्तिगत साथी भी थे.

अब हमारे पास इस पहले से मौजूदा पाठ के प्रतियां पर प्रतियां हैं . हमें कैसे पता चलेगा कि जो हमारे पास है वो वास्तव में सच कुरान का प्रतिनिधित्व करता है और क्या मुहम्मद भी इसके संपूर्ण सामग्री को मान्यता देता?

इसके अलावा बहुत से सबूतको नष्ट कर देने की वजह से अमिश्रित पाठको पुनर्निर्माण करनेका एक सटीक तरीका भी नहीं है.

ज़ैद, अब्दुल्ला इब्न मसूद, अबू मूसा, और उबय्य के मौजूदा पाठों के बीच मतभेद है. उनमें विचलन और विलोपन थे फिर भी इन पाठों के सृस्तिकर्ता मुहम्मद के संबंध में विश्वसनीय व्यक्ति थे.

अब्दुल्ला मसूद मुहम्मद द्वारा कुरान पाठ का एक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था और उबय्य नबी का एक सचिव था.

मेरा प्रश्न है के नबी के निजी चेलों के बीच किसका पांडुलिपि सही या अधिक आधिकारिक था?

शुद्धता के अंतिम प्राधिकारी बनने के लिए उथमान कौन था जबकि वहाँ अन्य प्रामाणिक ग्रंथों भी थे जिन्हें अन्य समुदायों द्वारा मान्यता प्राप्त था.

इसके अलावा पाठ संकलित करते समाया ज़ैद “पत्थराह” से संबंधित कुछ बातें शामिल करना भूल गया.

इन सभी पाठों के एकजुट करने के लिए किया गया संघर्ष के बाद अल हज्जाज द्वारा समीक्षा और संशोधित किया गया जो कुफा का गवर्नर था.

उसने शुरू में ११ ग्रंथों में संशोधन किया और अंत में अपने परिवर्तनको कम करके ७ में ही सिमित कर दिया था.

इस कार्रवाई के बाद हफ्साह पाठ जो मूल दस्तावेज़ था जिसमें से अंतिम पाठ लिया गया था उसे बाद में मिर्वान, मदीना के गवर्नर द्वारा नष्ट कर दिया गया था .

इसके अलावा कुरान में अभिनिषेध के कई घटनाएं हैं जो आंतरिक विरोधाभास से जूझने के उपाय हैं और इन्हें सुधार के रूप में व्याख्या किया गया है.

मैं सोच रहा हूँ के कैसे आप पहले से ही पूर्ण रही चीज़ को सुधार सकते हैं क्यों की इस रहस्योद्घाटन को सामने आने के लिए केबल २० साल लगे और उसे अपने सांस्कृतिक मानकों के विकास की जरूरत ही नहीं पड़ी.

अभिनिषेध की संख्या ५ से ५०० के बीच है . अन्य लोगों का कहना है कि यह २२५  के करीब है. हमें इससे ये पता चलता है कि अभिनिषेध के विज्ञान वास्तव में एक अयथार्थ विज्ञान है, क्यों की कोई भी वास्तव में नहीं जानता के कितने छंद निराकृत हैं.

आंतरिक विरोधाभासों के अलावा इसमें वैज्ञानिक तथा व्याकरणके त्रुटियां भी हैं.

इन भिन्नताओं के इलावा हदीसों की बढ़ती संख्या है जो अचानक ९ वीं सदी मैं दिखी जो इस घटना के २५० साल बाद की बात है.

यदि ६००,००० हदीस की बातें उस समाय में प्रचालन में थे तो उस में से ७००० से कुछ ही ज्यादा बच गए और बाकी ९९ प्रतिशत को गलत करार दिया गया.

फिर भी अगर ९९% गलत कह रहे हैं तो हम कैसे इस १% पर भरोसा कर सकते हैं  जिसको अल बुखारी ने मंजूरी दी थी?

मुस्लिम परंपरा कहानी कहने वालों या फिर कुस्सास की मौखिक संचरणसे भी बिकसित हुआ था जिसको ८ वीं सदी के बाद ही इकठ्ठा किया गया था. इन कहानियों को आम लोकगीत से लिया गया था और इस प्रकार इस्लाम में एक बड़ा विरूपण आगया.

इसके अलावा अगर आप कभी टेलीफोनका खेल या कहानी एक दुसरे को सुनाते हुए एक बड़े समूह में सुनाते हैं तो आप अक्सर अंतिम में एक पूरी अलग कहानी उस अंतिम इंसान से सुनते हैं.

अब सौ या दो सौ सालमें अगर ये बात फैला है तो आपको क्या लगता है इस अभ्यास का अंत परिणाम क्या होगा ?

कुरानको अल्लाहका खाका या साहित्यिक बराबरी नहीं रही सबसे बड़ी चमत्कार के रूप में मानना एक अतिशयोक्ति है जो कई मोर्चों पर निराधार है.

कुरान जबाब की तुलना में ज्यादा सवाल छोड़ता है.

क्या कुरान साहित्य का एक शानदार टुकड़ा है या फिर अपनी प्रसिद्धि के दावों से कम है.

क्या यह साहित्य के किसी अन्य टुकड़े से बराबरी नहीं करने जितना सुन्दर है ? ये देखने वालों के लिए छोड़ दिया गया एक राय है जैसे की और बोहोत सारे शास्त्रीय साहित्य होते हैं जिनमें से कुरान अपना आधार लेता है और औरों के राय के आधार पर इस साहित्यिक क्षेत्र से पार जाता है.

एक किताब जो और किसी पुस्तक के आगे दूसरा नहीं माना जाना चाहिए उसे कई बार बहुत सी जगह पर असंबद्ध और गलत तरीके से सम्पादित किया हुवा कहा जाता है और वो ऐसे लोगों की आलोचना और जांच में खड़े होने के लिए सक्षम नहीं है जो इसके प्रामाणिकता को अपना उद्देश्य बना कर देखने के काबिल हैं.

समुदाय के भीतर के लोगों के लिए आज्ञाकारी बनके नासमझ रूप से इसकी सभी बातों को मानना जरूरी है जो इसके पूजा करने वालों को इसके लेख के बारे में गंभीर तरीके सी सोचने का मौका ही नहीं देता.

इसके लेख पर प्रश्न उठाने का मतलब है अल्लाह पर और उसके नबी पर प्रश्न उठाना जो मुस्लिम सोच से बहुत बाहर की बातें हैं जिसको विश्वासघात और अवज्ञा के रूप में देखा जाता है जिसके परिणामस्वरूप अनन्त नतीजों के साथ गंभीर परिणाम मिलता है.

आप कह सकते हैं कि यह कुरान इस्लाम के इन सभी संक्रमण काल के सभी चरणों से बच गया और मेरे लिए प्रमाणों के बाबजूद ये एक दिव्य रहस्योद्घाटन है कहके विश्वास करना एक चमत्कार ही होगा.

अंत में मैं कुरान के बारे में कोई भी अन्य टिप्पणी नहीं करना चाहता. केवल एक बात मैं कहना चाहता हूँ कि मुझे आशा है की मैंने अपने सीधे बातों को बढ़ा चढाकर नहीं कहा और अपने  मुस्लिम दोस्तों के प्रति अनादर नहीं दिखाया है.

यह करना कठिन है क्योंकि जब एक धर्म को मानसिकता की एक चुनौती के वजाय एक व्यक्तिगत विश्वास के रूप में लिया जाता है, तो उसे अक्सर खतरा या दुश्मनी के रूप में व्याख्या किया जाता है.

मैं चाहता हूँ कि आप कृपया मुझे माफ कर दो अगर यह सब से मैंने आप जिस पाठ को पवित्र मानते हैं उस की दिशा में आपका शक बढाने की वजाय आपके क्रोध को जगाया है.

मेरे इरादे किसिका अपमान करना नहीं बल्कि सत्य की रक्षा करना है और सत्य के रास्ते पर चलना है जहाँ यह अंततः हमें नेतृत्व करके लेजाए.

अन्त में इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए जे स्मिथ द्वारा लिखे गए लेखों को पढ़ने का सल्लाह देता हूँ जिसके बारे में मैंने ऊपर भी कहा है.

 

 

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क्या काबा पवित्र है

Sunday, December 25th, 2011

हालांकि अरब ने इस्लाम के सच्चे परमेश्वर के रूप में  अल्लाह को अपनाया है,पर अभी भी उसके बहुदेववादी अतीत को वो अलग नहीं कर पाया है .

काबा  जो मक्का में स्थित इमारत की तरह एक घन है ये इस्लाम का सबसे पवित्र स्थल है पर इस्लाम के आगमन से पहले यह एक मंदिर के रूप में इस्तेमाल किया गया था.

इस संरचना की आधारशिला एक काला उल्का है जो स्वर्ग से गिर गया था और वो मानव पाप के अंधेरे के साथ जुडा था यह  कहा जाता है. आज मुसलमान हज के दौरान पूजा या पूजा के एक अधिनियम के रूप में इस पत्थरका चुंबन करते हैं.

पुराने इस्लामिक संस्कृति में प्राचीन अरब वस्तुकामुक थे जो अपने खुद के कर्मकांडों और प्रथाओं के एक भाग के रूप में इन काले पत्थरको मूल्यवान मानते थे.

अरब पत्थर उपासक थे जिसमें अपने आदिवासी समूहों को अपने स्वयं के काबाका अभयारण्य था जो अपने खुद के काले पत्थरका पूजा करते थे.

काबा के साथ जुड़े अनुष्ठान मंदिर की परिक्रमा है. कैसे इस बुतपरस्त अभ्यास की उत्पत्ति हुई इस पर एक सिद्धांत था कि ये आदिवासी समूहों काबा की परिक्रमा करते थे जो चाँद, सूरज और सितारों की पूजा से संबंधित था. इस अभ्यास के दौरान इन पत्थरमें देवता या आत्माओं का निवास माना गया और चुंबन भी किया जाता था. इस पत्थर की छूने का यह चुंबनसे  आशीर्वाद मिलता है वो ऐसा सोचते थे.

काबाके काले पत्थरके संबंध में इसके अलावा चंद्रमा भगवान की पूजा भी थी.

अरब संस्कृति के उनके प्राचीन बुतपरस्त अरब समाज के बारे में अतीत के साथ जुड़े अन्य पहलुओं मीना पर पत्थर  “” भागो “सफा और मारवा जो सिर्फ काफिरकि दो मूर्तियों के बीच में चलाने के लिए इस्तेमाल किया गया एक कानूनका नवीकरण है, और अंत में “स्तुति करो” जो अपने मृत पूर्वजोंकी तारीफ करने के लिए इस्तेमाल किया गया और अब इस कार्यसे अल्लाह की ओर प्रशंसा के साथ पुनः निर्देशित किया गया है.

अरब संस्कृति अपनी बुतपरस्त अतीत से अलग नहीं हो पाया है भले ही उनके एकेश्वरवाद के नए बैनर तले सब कुछ होनेका दावा वो करते हैं. इस्लाम धर्म में अरब संस्कृति को शामिल करने का यह अभ्यास अपनी धार्मिक घटक के लिए शुद्धता के बजाय एक मिश्रण की तरह लगता है और काबा एक प्रमुख स्तंभके रूप में रहने से पता चलता है कि इसके धार्मिक संरचनामें कुछ दरारें हैं .

तो इस्लाम एक सच्ची श्रद्धा के रूप में अपना खुदका पहचान बनाने के बारे में कितनी दूर आया है? यह स्पष्ट है कि यह इसकी संरचना जूदेव ईसाई विश्वासों से उधार लिया गया है और अपनी बुतपरस्त अतीत से इसने अपनेआपको भरा है?.

यह वास्तव में सच्ची श्रद्धा है या बस विभिन्न अन्य धार्मिक दुनियासे लियागया स्थानीय धर्म के अभ्याससे एकजुट विचारों के एक समूह का एक उधार है ?

क्या आप इस्लामको अपने पूरे दिल से स्वीकार करके उसे अपनानेके लिए तैयार हैं जो अपने खराब इतिहास से अलग नहीं हो पाया है?क्या इस्लाम मूर्ति पूजा को एक नया रूप देकर एक स्वर्गीय दूत द्वारा दियागया नया धर्म के रूप में स्थापित नहीं है? इस्लाम के घूंघट के पीछे देवताओं के एक टोटेम पोल बनाम अध्यक्ष मूर्ति छिपा है .

इस ब्लॉग लेखन में मैंने एक साथ कई अलग अलग इस मामले से संबंधित संसाधनों को जमा किया और डाटा संकलन कर एक ईमानदार और निष्पक्ष मूल्यांकन करने की कोशिश की है .

मैं चाहता हूँ की आप इस लेख के समग्री को केबल मानहानि के साधन के रूप में खारिज न करें. मैं आपको इस मामले के बारे में अपने स्वयं के अनुसंधान करके एक खुला मन रखके सोचने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ.

इस ब्लॉग के माध्यम से मैंने इस्लामी विश्वास के लिए एक चुनौती की पेशकश की है, जबकि अनावश्यक बदनामी और मुसलमानों और जिसको वो पवित्र मानते हैं उसकी ओर झूठे आरोप लगाने की कोशिश नहीं की है.  मैं जानता हूँ की मेरे कई मुसलमान दोस्त परमेश्वर को पुरे दिल से मानते हैं और मैं इस बातका सम्मान भी करता हूँ. फिर भी मैं उन्हें तथ्यात्मक जानकारी देकर ही उनकी निष्ठाके बारे में निर्णय बनाने में गाइड करने की कोशिश करना चाहता  हूँ.

समापन में, यदि आप एक मुस्लिम हैं तो मैं आपको प्रोत्साहित करता हूँ के प्रार्थना के माध्यम से इस्लामी विश्वास और अभ्यास के पीछे की सच्चाई के बारेमें भगवान से पूछिए.

 

 
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क्या मुहम्मद एक झूठा भविष्यद्वक्ता है

Sunday, December 25th, 2011

क्या मुहम्मद एक झूठा भविष्यद्वक्ता है? कई धर्म और उपासनाएं है जिसमे एक व्यक्ति सत्य के  मध्यस्थ होने और विशेष रहस्योद्घाटन प्राप्त करने के दावे करता है. फिर भी हमें पता लगाना चाहिए कि इन स्थितियोंमें से सच क्या है और मिथकों या झूट क्या  है. परमात्मा से ज्ञान मिलने का बयान कोई भी कर सकता है, लेकिन कुछ बिंदु पर इन दावोंका निरीक्षण करके देख सकते हैं की आगे की आलोचनाओं के चुनौती के तहत वो खड़े होंगे या नहीं.  एक गवाही उतना ही अच्छा होता है जितना गावाह या व्यक्ति अच्छे होते हैं. यदि आप कानून की अदालत में एक वैध गवाह के रूप में एक व्यक्तिको खड़ा करेंगे तो पहली बात जो आप निर्धारित करेंगे वो है उनकी योग्यता के स्तर. उनको गवाह के रूप में भरोसेमंद उनके चरित्र की विश्वसनीयता के आधार पर गिना जा सकता है या वे एक अयोग्य गवाह के रूप में देखा जाएगा?

मुझे लगता है कि पहली बात जिस पर मैं विचार करना चाहता हूँ वो है इस्लामका प्रवर्तक या संस्थापक का चरित्र जिसने इस्लामको धार्मिक आंदोलन के रूप में परिभाषित किया है.

मुहम्मद एक ऐसा व्यक्ति था जो ध्यान और आध्यात्मिक विषयों के चिंतन के लिए समर्पित हो गया था. इसके दौरान अंत में उसका मुलाकात एक दैविक प्राणीसे हुआ जो उसके हिसाब से एक जिन था. इस मामले उस पर इतना दबाव डाला जारहा था कि उसने दो बार आत्महत्याका विचार किया था और इन खुलासे की वजह से उसे पता नहीं था के एक पागल या कवि में से कौन से रूप में वो खुदको माने. इसके अलावा पुराने इस्लामी राज्य के मुताबिक वह पैशाचिक प्रभाव के तहत था जब वह  सुरा ५३ लिख रहा था जो मेरे लिए दावे की वैधता पर ही सवाल करने के लिए कारण है.

न केवल यहाँ सवाल है इन दावों और व्युत्पत्ति के अपने स्रोतों की प्रकृति के बारेमें, लेकिन हम उनकी व्यक्तिगत विशेषताओं और चरित्र में प्रश्न देखते हैं. उन्होंने उनकी मान्यताओं के प्रचार के लिए आवश्यकता पर्नेपर सैन्य बलका का इस्तेमाल किया. ये धर्म आगे जाकर जिहाद या ‘पवित्र युद्ध’का रूप लेने वाला था और आज भी इस्लाम को टिके रखने के लिए यही रणनीति इस्तेमाल करते हैं. यह रक्तपात के साथ शुरू हुआ और यह आज भी खून बहा रहा है. तो यह एक ऐसा धर्म है जो अपनी पहचान प्यार के मानव अभिव्यक्ति का ऊंचा स्थान पर नहीं करता है बल्कि यह मानव महारत जो मानवता के विनाश और शोषण की ओर जाता है इस पर केंद्रित है.

सत्ता के इस दुरुपयोग के साथ वह एक बच्ची जिस्से लाभ लेता है और बाद में ९ साल की उम्र की उस बच्चीके साथ शादी करता है और वह बच्ची यौवन तक पहुँचे इससे पहले कि उसके साथ सम्भोग भी करता है. मानव अधिकारों के उल्लंघन के अन्य उदाहरणों में महिलाओंको अगर आवश्यक समझा गया तो थोडा बहुत पिटाई करने को बोला गया है .

इस बिंदु पर अब बिना ज्यादा जांच किये यह कहा जा सकत है के इस धर्म को एक संदिग्ध व्यक्ति जिसमे स्थिरता का अभाव है उसने स्थापित किया है.

वहाँ दूसरे ऐसे लोग भी है जिसने इतिहासमें राजनीतिक या धार्मिक मंच इस्तेमाल करके अपने उद्देश्यों और आदर्शोंको पूरा किया है. इन आदर्शोंने मानव जाति के नरसंहारके लिए कई बरबादी और पूर्वाग्रह और असहिष्णुता को जन्म दिया है जो मानव प्रभाव और क्षमताओं से परे है. कुछ चीजें तो इतनी मूर्ख है कि यह केवल प्रकृति में राक्षसी मान कर ही वर्णित किया जा सकता है. स्टालिन और हिटलर जैसे लोग जो झूठे भविष्यवक्ता थे और उनमें पूर्ण अधिकार था जिस वजह से वो पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुके थे और अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए लगे हुए थे. यह आश्चर्यजनक है कि कैसे लोगों  हिटलरको  करिश्माई नेतृत्व करनेवाला बताते थे जो खुद मानसिक रूप से अस्थिर हो सकता था. इन बातों को आज देखें तो हमें आश्चर्य लगता है की इतना गिरा हुआ काम २०वी सदी मैं कैसे मुमकिन है और इन बातों को लोग पूरी तरह से मानते हैं. दुर्भाग्य से यह  घटनाएं आज भी इस्लाममें हो रहा है . यह पागलपन मानवता और संस्कृति के हर पहलूको संक्रमण कर रहा है . इसके दावोंको लोग मानते आ रहे हैं और इस बात को कोई भी समझ नहीं रहा है के हिटलर के राज्य की तरह एक दिन सब कुछ विनास होजाएगा.

इन नीच और दुष्ट पुरुषों ने जो महान गलतियाँ और अपराध किये हैं वो पूरी दुनिया जानती है और घूंघट के पीछे के अंधेरे की गहराई को भी सब देख चुके हैं. इस्लाम एक ऐसा धर्म है जिसका दुनिया भर में प्रभाव है और ये महामारी के अनुपात में मानव जातिको संक्रमित कर रहा है. दुनिया में ऐसे हजारों लोग हैं जो गलत रूप से पीड़ित होते हैं और मर जाते हैं क्योंकि एक आदमीने संदिग्ध प्रेरणा का एक सपना देखा.

क्या आप सच में मौत और विनाश के इस मार्ग का अनुसरण करना जारी रखना चाहते हैं? यदि आप इस्लाम के एक करता हैं तो मैं आपको सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ के जिस चीज को आप पवित्र मानते हैं उसके बचाव में सोचना छोड़ दीजिए और परमेश्वर से प्रार्थना कीजिए के उनको आपके सामने प्रकट करें जो जीवन देने आए और वो भी प्रशस्त मात्रा में और जिनका नाम येशु है.

 

 

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