अगर आत्मवादी विचार के पीछे के विश्वासों पर विचार करें तो वहाँ पर एक चरम और अवास्तविक डर दिखाई देता है जिसमें एक आदमी को लगता है के उसे देवताओं या आत्माओं को आहात नहीं पहुंचाने के लिए उनको किसी भी तरह से संतुस्ट करना पड़ेगा. ऐसे कई अतिरंजित लोकगीत और अंधविश्वास जिसमें से कुछ तो वास्तविक अर्थ से आते हैं जिसके द्वारा एक आध्यात्मिक आयाम का पहचान होता है और जो उनके शारीरिक या प्राकृतिक इंद्रियों से परे बातें हैं.
वो आत्माओं जिनके द्वारा कई ऐसे संगठन बनाए गए हैं वो बड़े पैमाने पर शैतानी दायरे के भीतर है क्योंकि इन अभिव्यक्तिओं के लिए इंसान के हृदय में डर के माध्यम से उनका अपना लक्ष्य हासिल करना बहुत जरूरी है जिसके वजह से उनका इंसानियत ही पक्षाघात का शिकार हो जाता है.
ठीक इसी प्रकार से शास्त्र शैतान और उसके राक्षसों को प्रस्तुत करता है क्योंकि वो चोरी करने, मारने और नष्ट करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और उनको एक दहाड़ते हुए शेर का दर्जा दिया गया है जो के अपने शिकार को चीरने के लिए बेताब रहता है.
यदि आप बाइबल के पन्नों को पढेंगे तो शैतान के इस प्रकार के क्रियाकलाप आपको पाठ के किस्सों में साफ़ रूप से दिखाई देंगे जिसमें कई सारे शारीरिक और भावनात्मक विकृतियों को दिखाया गया है.
तो मैं आम तौर पर इन आत्मवादी समूहों के साथ इस बात पर सहमत हूँ के संसार में संघर्ष करने के लिए कई तरह के आध्यात्मिक वास्तविकता हैं और आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धांत के लिए हरेक घटना को प्राकृतिक कहके हटा देना पहले ही किया हुआ कल्पना और जरूरत से बहुत ज्यादा सरलीकरण है. ये ऐसा है क्योंकि वैज्ञानिक समुदाय केवल ब्रह्मांड के रहस्यों के बारे में थोडा बहुत जान पाया है और इसी लिए वो अगर अपने खोज और सिद्धांतों को मानकर अगर और सब कुछ का विरोध करते हैं तो ये अहंकार का एक घिनौना चित्रण है. हालांकि, उनके विचारों के साथ संतुलन की अगर बात करें तो ये भी तो नहीं कहा जा सकता है के हरेक झाडी के पीछे कोई राक्षस छुपा रहता है क्योंकी ये बात भी गलत होगा.
इसके अलावा एक ऑस्ट्रेलियाई समूह ने एक सर्वेक्षण किया ये मालूम करने के लिए के दुनिया भर में असाधारण गतिविधिओं पर लोगों का विश्वास कैसा है और इंटरविउ देने वालों में से करिब ७० प्रतिसत ने इस बात को माना के असाधारण गतिविधियां होती हैं और इसी तरह अमेरिका में किए गए एक सर्वेक्षण में भी ७५ प्रतिशत लोगों का मानना यही था. शायद इसी वजह से असाधारण गतिविधिओं पर आधारित टी. भी. के रिअलिटी कार्यक्रम इतने लोकप्रिय हैं.
वैसे भी जब ये आत्मवादी लोग इस डर पे बलिदानों के द्वारा अपना प्रतिक्रिया जनाते हैं तो ये बात नए करार के उस बात से बिलकुल मिलता जुलता है जिसमें कहा गया है के कुबुद्धि राक्षसों के लिए प्रसाद के रूप में बलिदान देना उनका एक चाल है और सही बात तो ये है के राक्षसों या शैतान तो यहाँ पर हमारे अच्छे के लिए बिलकुल नहीं हैं क्योंकि उनके लिए पर्याय शब्द ही अभियोक्ता, निन्दक, और विरोधी है. शैतान को झूठ के पिता के रूप में भी दर्शाया गया है क्योंकि वो एक धोखेबाज है और झूठा सत्य दिखाने वाला जालसाज है.
वो आपको किसी भी तरह आशंका के मार्फ़त से ये सोचने पर मजबूर कर देता है के उसका पूजा करना या उससे डरना और उसका सम्मान करना जरूरी है और वो इसके लायक है पर वास्तव में बात तो ये है के वो सिर्फ सर्वशक्तिमान परमेश्वर के आगे में केबल एक जीव है और प्रशंसा के लायक तो केवल परमेश्वर ही हैं.
इसके अतिरिक्त मुझे विश्वास है कि आत्मवादी समाज डरता है क्योंकि कुछ हद तक वो इस बात को समझते हैं के एक सर्वशक्तिमान व्यक्तित्व या क़ानून दाता का आवश्यकता है. यह सहज भाव उनके दिल की मुख्य फ्रेम में जोड़कर रखा हुआ है ताकि भीतर से उनको ये बात मालूम हो के वो एक जिम्मेवार नैतिक जीव हैं और उनको सही या गलत के बारे में भी मालून है ताकि वो अपने कर्मों के लिए जिम्मेबार ठहराए जा सके. इस वास्तविकता को इंसान के चेतना तक संचार किया जाता है और उनके दिमाग में भी ये बात हमेशा रहता है जिसके वजह से उनके आत्मा के धागे में हमेशा अपराधी होने का भावना रहता है और इसी बात के कारण वो या तो सच्चाई को दबा देते हैं या फिर सच् के साथ समझौता कर लेते हैं.
परिणामस्वरूप इस नैतिक ज्ञान का एक परम उद्देश्य ये है के ये हमें परमेश्वर का खोजी करने के लिए प्रोत्साहित करे.
इसके अलावा अगर इस पोस्ट को आप पढते जाएँ तो आपको लग सकता है के भय के बारे में मेरे बयान में कुछ कपट या विरोधाभास है. फिर भी अंतर ये है के परमेश्वर का एक स्वस्थ ‘भय’ भी है जो आत्माओं या झूठे देवताओं के दमनकारी “डर” के विपरीत है. यहाँ पर असमानता ये है कि “भगवान का डर” हमें पश्चाताप करने के ओर लेकर जाता है जो के प्रेम के आधार पर काम करता है पर दुश्मन डर को आप पर वार करने के लिए इन्स्तेमाल करता है जो के नफरत और बदले पर आधारित है. अंतिम परिणाम यह है कि भगवान का “डर” मुक्ति देता है पर शैतान का ‘डर’ सिर्फ निंदा करता है.
तो उन आत्मवादिओं के लिए जो हर दिन इस प्रकार के दैनिक बुराई और उत्पीडन के साथ रहते हैं, इसका मतलब ये है के उनके पास वास्तविक और स्थायी शांति नहीं है और वो येशु क्रिस्ट में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का प्यार ही है जो पूर्ण रूप से डर को निकाल देते हैं क्योंकि डर तो न्याय से जुड़ा हुआ है.
यह बात ही अच्छी खबर या सुसमाचार का मुख्य बात है जिसमें येशु बंदिओं को छुडाने के लिए आए और उन सब को छुड़ाने आए जो अपने ही जीवन और आत्मा में बंधे हुए थे और उन्होंने उन सभी को ठीक किया जो शैतान के अत्याचार से घायल हो चुके थे.
यीशु एक मध्यस्थकर्ता हैं जिनका मिसन तब पूरा हुआ जब उन्होंने मानव जाती को उनके पापों / अपराधों और पापी स्वभाव से छुडाकर उनके लिए हर्जाना भर दिया और परमेश्वर के साथ हमें शान्ति में लाए और उन्होंने शैतान के हमारे आत्मा प्रति के दावे को खतम कर दिया और ये उन्होंने हमारे आत्मा को मौत के अंतिम गढ़ से छुडाकर किया और हमारे लिए सुप्रीम परमेश्वर और सृस्तिकर्ता के साथ अनन्त जीवन को उपलव्ध कराया.
परमेश्वर ने प्यार से हमारे लिए पापों से मुक्त होने के लिए एक माध्यम बनाया और हमें येशु जो हमारे लिए मरे, उनके अनन्त बलिदान के माध्यम से धर्मी कहके घोषणा किया और ये बात शैतान के झूठ की तरह नहीं है जिसमें जारी रहने वाला निजी लागत की आवश्यकता है, बल्कि इस बात के बिपरीत येशु ने अपना जीवन मुफ्त में फिरौती के रूप में हमेशा के लिए दे दिया.
उन्होंने हमारे अपराध को खुद पर एक पापी की तरह ले लिया और उन्हें बहुत सारा पीड़ा सहना पड़ा और मानव के जगह पर क्रूस पर मौत का सामना करना पड़ा. यही वो कीमत है जो हम कभी भी परमेश्वर को चूका नहीं पाते और हमने कभी चुकाया भी नहीं जिसके वजह से परमेश्वर को खुद ही दुनिया के साथ अपनेआप को मिलाने के लिए कुर्बानी देनी पड़ी और ये उन्होंने येशु के बलिदानी जीवन के मार्फ़त किया जिन्होंने हमारे लिए अपना जिंदगी दे दिया.
यह सब केबल इस कारण से संभव हो पाया है क्योंकि परमेश्वर का प्रकृति और चरित्र दयालु और विनम्र है और वो बहुत ही गहरे प्रेम के साथ हमारा ख़याल करते हैं वो भी इतना के वो हमें खुद के साथ मिलाना चाहते थे वो भी उस समय में जब हम उनके शत्रु थे.
इसलिए पवित्र और धर्मी मसीह मारे गए और ये उस बात का संकेत है के धर्मी धर्मभ्रष्ट के लिए पीड़ित हुआ.
वैसे भी जब आप मसीह पर विश्वास करते हैं और उनको अपने प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में मान लेते हैं तो आपको इन आध्यात्मिक अंधेरे बलों के खिलाफ प्रतिरक्षा मिल जाता है. बाईबल इस बात को इसी तरह से प्रस्तुत करता है और हमें विजेता से अधिक रूप में वर्णित करता है.
यीशु ने कहा है के नरक के द्वार हमारे खिलाफ नहीं जीत सकते हैं और संसार में होने वाले (झूठ का दुस्ट आत्मा) से वो जो हम में हैं (सच् का पवित्र आत्मा) वो महान हैं. इसके अतिरिक्त बाईबल ने ये भी कहा है के हमारे खिलाफ गठित कोई भी हतियार समृद्ध नहीं होगा और युद्ध के लिए हमारे पास जो आध्यात्मिक हथियार हैं वो कमजोर नहीं है बल्कि उनमें शक्तिशाली गढ़ों के नीचे खींचने वाला शक्ति है.
तो जब आप मदत की माग करना चाहते हैं तब इन परेशान आध्यात्मिक बलों से मुक्त होने के लिए राक्षसी संस्थाओं के अधीन में रहने वाले जादूगर से परामर्श लेने की कोई जरूरत नही है. जादूगर आध्यात्मिक प्राणीओं को हेरफेर करता है पर इसका मतलब ये नही है के उसके ये कार्य पूरी तरह से मुक्त हैं क्योकि उसका प्रभाव सुरु से ही एक ऐसे शक्ति के नीचे सिमित है जिसने ऐसे कई सारे अपवादों का गठन किया है. चुड़ैल चिकित्सक, दवा आदमी और जादूगर केवल शैतान के काम करने के उपकरण हैं जो सुरक्षा की झूठी भावना लाता है. पाप और पीड़ा जीवन के दुखत परिणाम हैं लेकिन येशु में मुक्ति पाना उस बुराई के खिलाफ सर्वोच्च जीत है.
हमें ये भी सोचना चाहिए के एक जादूगर जो मृत्यु के अधिन में है उसके पास कितना शक्ति होगा जब के आप येशु की सेवा कर सकते हैं जो मरे हुओं में से लौट कर आए हैं और जो आपके लिए तब भी प्रार्थना करेंगे और आपको बचा कर रखेंगे जब वो जादूगर मर चूका होगा? जादूगर अस्थायी और स्थानिक है, लेकिन यीशु अनन्त और सर्वव्यापी हैं.
वैसे भी उस जादूगर ने आपके लिए कैसा बलिदान किया है बल्कि उसने तो आपके संसाधनों को आपसे लेकर आपका दुरुपयोग किया है वो भी अपने जीविका में लाव पाने के लिए और फिर भी येशु तो एक कपटी नही हैं क्योकि वो कुछ लेने के लिए नही आए बल्कि अपना जीवन कई सारे दुसरे लोगों के लिए फिरौती के रूप में देने के लिए आए. येशु आपको ठीक करते हैं और कृपा से भर देते हैं तो जादूगर के कठिन और कठोर कर्मकांडों पर निर्भर रहने की कोई जरूरत नही है.
अंत में, अगर जादूगर शैतान का नौकर है, जिसका न्याय किया गया है और जिसको भविष्य में सजा सुनाया जाएगा और आग के झील में डाल दिया जाएगा तो ये कैसे संभव है के ये दास उन लोगों को मुक्त कर सकता है जो के दुष्टता के अधिन में हैं क्योंकि वो तो खुद एक बंदी और कैदी है? बल्कि परमेश्वर आपके सारे जरूरतों को अपने महिमा के धन से पूरा करेंगे और उन्होंने बदले में हमें वो सब कुछ दिया है जो हमें भक्ति का जीवन जीने में मदत करेगा. और इसी तरह हमें ये निर्देशन दिया गया है के अगर हम पहले उनके राज्य और धार्मिकता को ढूँढेंगे तो वो हमारे जीवन के सभी आवश्यक चीजें हमें देंगे.
आप अपवित्र आत्माओं से निपटने में परिचित हो सकते हैं पर अगर आप परमेश्वर के शिशु बन जाते हैं तो आपको पवित्र आत्मा मिलता है जो आपको दिलाशा देते हैं और एक मार्गनिर्देशक के रूप में आपको सभी सच्चाईओं के बारे में बताते हैं और वो आपको एक नया प्रकृति देते हैं जो अच्छाई को बढ़ावा देता है जो परमेश्वर को भी प्रसन्ना करता है.
ये झूठी आत्माओं और देवताओं, जो मूल में राक्षसी और लौकिक हैं उनको सर्वोत्क्रिस्ट परमेश्वर के उद्भव के रूप में मानना उनके पवित्रता के खिलाफ एक भ्रम और विरूपण है और फलस्वरूप उन लोगों और परमेश्वर के अन्य दुश्मनों का न्याय जरूर किया जाएगा.
अब पुनर्जन्म के विषय के बारे में अगर बात करें तो आत्मवादी अस्तित्व के इस रूप के बारे में अनिश्चित हैं और इसी लिए मैं आपको एक पोस्ट के साथ छोड़ना चाहता हूँ जो मैंने मृत्यु के निकट के अनुभव और मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में लिखा था और उसके बाद उस वीडियो का लिंक है जिसमें उन लोगों के बारे में दिखाया गया है जिन्होंने इस सच्चे अनुभव का सामना किया है. ये आपको इस बारे में आश्वस्त करेगा के येशु में आशा है जो अभी और मरने के बाद भी कायम रहता है. इसके अलावा, मैं उन आत्मवादिओं के गवाही को भी सामेल कर रहा हूँ जिनका जीवन तब बदल गया जब येशु ने उनको चमत्कारिक ढंग से ठीक किया और इस बात का नए करार के मरकुस के पुस्तक की कहानिओं से भी पुष्टि होता है और मैं इस का भी एक लिंक नीचे दे रहा हूँ.
अन्त में मैं आपको मेरी व्यक्तिगत गवाही भी देना चाहूँगा जिसमें येशु ने मेरे खुद के जीवन में आश्चर्यजनक तरीके से हस्तक्षेप किया.
www.cbn.com/media/player/index.aspx?s=/vod/AFRICA47v3
www.cbn.com/media/player/index.aspx?s=/vod/AFRICA48v2&search=shaman&p=1&parent=0&subnav=false~~V
यीशु के साथ मेरी व्यक्तिगत गवाही
अंत में मुझे ये कहना है के परमेश्वर को जाना जा सकता है और आप उनके शक्ति, उपस्थिति, और प्यार का अनुभव करके उनसे एकजुट भी हो सकते हैं. एक विश्वासी होने का ये फाइदा है के वो सदा हमारे साथ रहेंगे दुनिया के अंत तक भी और इसका मतलब ये भी है के वो नाही हमें कभी छोड़ेंगे और नाही त्यागेंगे. इसीलिए हम परमेश्वर के जितने करीब जाते हैं वो हमारे भी उतने ही करीब आते हैं जो हमारे एक ऐसे दोस्त के तरह हैं जो एक भाई से भी ज्यादा हमारे करीब रहते हैं.
अंत में मैं आपको सिर्फ ये पूछना चाहता हूँ के आप येशु से प्रार्थना करें के वो अपने आपको आपके सामने ठोस और सच्चे रूप से प्रस्तुत हों ताकि आप उन पर विश्वास कर सकें और ये बात जान सकें और देख सकें के प्रभु अच्छे हैं.
रोमिओं ८:३८-३९
“क्योंकि मैं मान चूका हूँ की न मृत्यु और न जीवन, न स्वर्गदूत और न शासन करने वाली आत्माएं, न वर्तमान की कोई वस्तु और न भविष्य की कोई वस्तु, न आत्मिक शक्तियां, न कोई हमारे ऊपर का, और न हमसे नीचे का, न सृष्टि की कोई और वस्तु हमें प्रभु के उस प्रेम से, जो हमारे भीतर प्रभु येशु मसीह के प्रति है, हमें अलग कर सकेगी.”
कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएँ?
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