आनंद मार्ग या आनंद मार्ग प्रचारक संघ का सुरुवात श्री प्रभात रंजन द्वारा एक सामाजिक और आध्यात्मिक आंदोलन के रूप में हुआ था.
इस समूह के पक्ष में एक बात ये है के इसने शिक्षा और प्र.उ.थ (प्रगतिशील उपयोग थ्योरी) के माध्यम से सामाजिक सेवाओं और राहत प्रदान करने में कुछ प्रगति किया है जो मानवता के मूल्यों के तहत की बातें हैं फिर भी इस सम्प्रदाय के सम्बन्ध में कुछ विवादास्पद मामले हैं जैसे की उनके पौराणिक किंवदंतियों में श्री श्री आनंदमूर्ति नामक एक इंसान के बारे में कहा गया है जो के ४ वर्ष की उम्र से ही एक सिद्ध योगी थे. उनके कई अनुयायिओं के द्वारा उनको चमत्कार कर्ता और मन की बातें पढ़ने की खूबी होने के बारे में भी बताया गया है. इसके अलावा पी. आर. सरकार को भगवान के अवतार होने का दर्जा दिया गया है पर शिष्यों द्वारा गुरु को ऐसे बढे-चढ़े दर्जे देना तो एक आम बात है. मार्ग गुरु श्री श्री आमंदामुर्ती ने सामाजिक सुधार करने में तो पुरस्कार प्राप्त करने वाला काम किया है पर ऐसे कई और लोग हैं जिन्होंने ऐसे परोपकारी काम किए हैं और उनके काम को कोई दिव्य मान्यता नहीं दिया गया.
इस आंदोलन से सम्बन्धीत अन्य संदिग्ध बातों में एक ये बात है के इसको ‘वैज्ञानिक’ बताया गया है पर इसमें तो साबित नहीं हुए कई बातें हैं जैसे की ये विश्वास के प्याज, लहसुन, लीक, चीव, मशरूम आदि से इंसान के मस्तिस्क पर खराब असर पड़ता है. इस के इलावा ये भी कहा गया है के अगर एक व्यक्ति अपने योन क्रियाकलाप को महीने में सिर्फ चार बार तक ही सिमित रखे तो वो शारीरिक संयमता और अच्छी भावना पा सकता है.
लेकिन मेरा सबसे बड़ा संदेह ये है कि क्या ये दर्शन ध्यान के अपने अनुशासन के माध्यम से आध्यात्मिक सुन्यता को भर सकता है जिसमें उसके सोरह बूँदें और दस सिद्धान्तें भी सामिल है जिसको यम या फिर हियामा
कहा जाता है. आप में से जो इस “आनंद के पथ” में चलने के लिए नहीं जाने जाते हैं और इस आध्यात्मिक बोझ को अपने कंधे पर उठाकर थक गए हैं उन लोगों को मैं प्रोत्साहित करना चाहूंगा के एक ऐसे दुसरे व्यक्तित्व हैं जो आपके इस आध्यात्मिक यात्रा को सुखद बना सकते हैं.
मती ११:२८-३०
“अरे, ओ थके-मांदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ, मैं तुम्हे सुख चैन दूंगा. मेरा जुवा लो और उसे अपने ऊपर संभालो. फिर मुझ से सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा मन कोमल है. तुम्हे भी अपने लिए सुख-चैन मिलेगा. क्योंकि वह जुवा जो मैं तुम्हे दे रहां हूँ बहुत सरल है. और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है.”
शायद आप एक साधक हो जो साधना का अभ्यास कर रहा है और आप सोच रहे हैं के क्या सब कुछ यही है या फिर आपको संकोच है के परम सत्य को पाने का यही सही रास्ता है क्योंकि आप अपने हृदय के खालीपन को भर नहीं पाए हैं और आत्मा के भूख और प्यास को शांत नहीं कर पाए हैं फिर भी मैं आपको बताता हूँ के एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो पूरी तरह से आपको संतुस्ट कर सकते हैं.
जॉन ६:३५
“येशु ने उनसे कहा, ‘मैं ही वह रोटी हूँ जो जीवन देती है. जो मेरे पास आता है वह कभी भूखा नहीं रहेगा और जो मुझमें विशवास करता है कभी भी प्यासा नहीं रहेगा.”
ए.एम्.पी.एस. में व्यक्तिगत और सामाजिक परिवर्तन की दिशा में जाने का प्रयास किया गया है और फिर भी आप अपने दोष के साथ क्या करेंगे जब के आप एक नैतिक जीवन जीने के कठोर उमीदों पर ही नहीं खड़ा उतर पाए? नैतिक स्तर को पाने के इस प्रयास के विफलता को विल्कुल सामान्य माना जाना चाहिए और फिर भी मैं आपको प्रोत्साहित करना चाहूंगा के इस समस्या का एक समाधान है पर ये आपके अपने प्रयास से पाना संभव नहीं है और ये परमेश्वर के तरफ से एक तोहफा है. अनुग्रह का ये प्रावधान येशु के काम और व्यक्ति के माध्यम से संभव हुआ है जो आपको सचमुच में बदल सकते हैं और आपके नैतिक अपराधों को हटा कर और आपके सोचने और काम करने के प्रकृति को बदल कर आपको पुनर्जीवित कर सकते हैं.
इसके अलावा मुक्ति के इस पूरे अनुभव को प्रभावी ढंग से संचार करने में एक बाइबिल चरित्र का हात है जिसका नाम पॉल था और वह अपने समाज के मानकों के आधार पर एक नैतिक आदमी माना जाता था फिर भी उनमें धार्मिकता का आयाम नहीं था जिसको वो परमेश्वर के सर्वश्रेष्ठ चेतना का सेवा करने के लिए चाहते थे और उन्होंने अपना मुक्ति येशु में पाया जिन्होंने उनको मुक्त कर दिया ताकि वो अपने प्राकृतिक कमजोरी से बाहर निकल सके. इस बात के बारे में उनका कहना रोमिओं ७:१४-२५ में लिखा गया है.
“क्योंकि हम जानते हैं के व्यवस्था तो आत्मिक है और मैं हाड-मांस का भौतिक मनुष्य हूँ जो पाप की दासता के लिए बिका हुआ है. मैं नहीं जानता मैं क्या कर रहा हूँ क्योंकि मैं जो करना चाहता हूँ, नहीं करता, बल्कि मुझे वह करना पड़ता है, जिससे मैं घृणा करता हूँ, और यदि मैं वही करता हूँ जो मैं नहीं करना चाहता तो मैं स्वीकार करता हूँ की व्यवस्था उत्तम है. किन्तु वास्तव में वह मैं नहीं हूँ जो यह सब कुछ कर रहा है, बल्कि यह मेरे भीतर बसा पाप है. हाँ, मैं जानता हूँ के मुझ में यानी मेरे भौतिक मानव शरीर में किसी अच्छी वस्तु का वास नहीं है. नेकी करने की इच्छा तो मुझ में है पर नेक काम मुझ से नहीं होते. क्योंकि जो अच्छा काम मैं करना चाहता हूँ, मैं नहीं करता बल्कि जो मैं नहीं करना चाहता, वे ही बुरे काम मैं करता हूँ. और यदि मैं वही काम करता हूँ जिन्हें करना नहीं चाहता तो वास्तव में उनका कर्ता जो उन्हें कर रहा है, मैं नहीं हूँ, बल्कि वह पाप है जो मुझ में बसा है.
इसलिए मैं अपने में यह नियम पाता हूँ की मैं जब अच्छा करना चाहता हूँ, तो अप्ने में बुराई को ही पाता हूँ. अपनी अंतरात्मा में मैं परमेश्वर की व्यवस्था को सहर्ष मानता हूँ. पर अपने शारीर में मैं एक दुसरे ही नियम को काम करते देखता हूँ यह मेरे चिंतन पर शासन करने वाली व्यवस्था से युद्ध कर्ता है और मुझे पाप की व्यवस्था का बंदी मान लेता है. यह व्यवस्था मेरे शारीर में क्रियाशील है. मैं एक अभागा इंसान हूँ. मुझे इस शारीर से, जो मौत का निवाला है, छुटकारा कौन दिलाएगा? अपने प्रभु येशु मसीह के द्वारा मैं परमेश्वर का धन्यवाद कर्ता हूँ ! सो अपने हाड मांस के शरीर से मैं पाप की व्यवस्था का गुलाम होते हुए भी अपनी बुद्धि से परमेश्वर की व्यवस्था का सेवक हूँ.”
मेरे दोस्त शायद आप पॉल के संघर्ष को पहचानते हैं जो नैतिक उत्कृष्टता पाने के लिए था और फिर भी येशु का मिसन हमें परमेश्वर से मिलाना था अपने जीवन और मृत्यु के द्वारा जिसके अंजाम स्वरुप दोनों स्थितीय और व्यावहारिक धार्मिकता प्राप्त हो सके.
येशु ही संसार के दीपक हैं और वो अँधेरे में बंधे लोगों को छुडाने के लिए आए थे और ये काम वो किसी प्रकार के भौतिक, भावनात्मक या तंत्र के आध्यात्मिक व्यायाम के माध्यम से नहीं करते पर अपने बलि के जिन्दगी के माध्यम से करते हैं जो आप के लिए दिया गया था.
यूहन्ना ८:१२
“फिर वहाँ उपस्थित लोगों से येशु ने कहा, ”मैं जगत का प्रकाश हूँ जो मेरे पीछे चलेगा कभी अँधेरे में नहीं रहेगा. बल्कि उसे उस प्रकाश की प्राप्ति होगी जो जीवन देता है.”
शायद आप विश्व शांति की पूर्ति को देखने के लिए इच्छुक हैं और ये एक दिन जरूर हासिल होगा जिस दिन शांति के राजकुमार येशु अपने आने वाले राज्य को धरती पर स्थापित करेंगे. इसके साथ साथ हम परमेश्वर के शान्ति का अनुभव ऐसे बात में भी कर सकते हैं जैसे की हम अपना जीवन अभी कैसे व्यतीत कर रहे हैं और इस जीवन के बाद में कैसे व्यतीत करेंगे.
यूहन्ना १४:२७
“मैं तुम्हारे लिए अपनी शान्ति छोड़ रहा हूँ. मैं तुम्हे स्वयं अपनी शान्ति दे रहा हूँ पर तुम्हें इसे मैं वैसे नहीं दे रहा हूँ जैसे जगत देता है. तुम्हारा मन व्याकुल नहीं होना चाहिए और नाही उसे डरना चाहिए.”
शायद आप प्रेम के एक परम भावना को ढूंढ रहे हैं और येशु ही उस प्रकार के प्रेम के अवतार हैं वो भी इतने की उन्होंने अपना जीवन उनके लिए दे दिया जिनको उनका शत्रु कहा जाता था. यही उनका बिना शर्त और परोपकारी प्यार है जो एक व्यक्ति को प्राप्त हो सकता है जो आपको बदले में परमेश्वर के प्यार को लौटाने का अनुमति देता है वो भी इस बुनियाद पर के हम परमेश्वर और और लोगों को किस प्रकार से सोचते हैं.
रोमिओं ५:८
“पर परमेश्वर ने हम पर अपना प्रेम दिखाया. जब के हम तो पापी थे; किन्तु येशु ने हमारे लिए प्राण त्यागे.”
१ यूहन्ना ४:७-१२
“ हे प्यारे मित्रों, हम परस्पर प्रेम करें. क्योंकि प्रेम परमेश्वर से मिलता है और हर कोई जो प्रेम कर्ता है, वह परमेश्वर की संतान बन गया है और परमेश्वर को जानता है. वह जो प्रेम नहीं करता है, परमेश्वर को नहीं जान पाया है. क्योंकि परमेश्वर ही प्रेम है. परमेश्वर ने अपना प्रेम इस प्रकार दर्शाया है: उन्होंने अपने एक मात्र पुत्र को इस संसार में भेजा जिससे के हम उनके पुत्र के द्वारा जीवन प्राप्त कर सकें. सच्चा प्रेम इसमें नहीं है की हमने परमेश्वर से प्रेम किया है, बल्कि इसमें है की एक ऐसे बलिदान के रूप हैं जो हमारे पापों को धारण कर लेता है, उसने अपने पुत्र को भेज कर हमारे प्रति अपना प्रेम दर्शाया है.
हे प्रिय मित्रों, यदि परमेश्वर ने इस प्रकार हम पर अपना प्रेम दिखाया है तो हमें भी एक दुसरे से प्रेम करना चाहिए. परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा है किन्तु यदि हम आपस में प्रेम करते हैं तो परमेश्वर हममें निवास करते और उनका प्रेम हमारे भीतर सम्पूर्ण हो जाता.”
२ तीमुथियुस १:७
“क्योंकि परमेश्वर ने हमें जो आत्मा दी है, वह हमें कायर नहीं बनाती बल्कि हमें प्रेम, संयम और शक्ति से भर देती है.”
ईसाई धर्म की रक्षा में यह एक पूर्वी धर्म के रूप में शुरू हुआ जो अभी तक का सब से बड़ा अंतरमहाद्वीपीय आंदोलन है जिसने लाखों का जीवन बदल दिया है ना केवल व्यक्तिगत रूप से पर इसने संसार के मौसम और भूगोल को इस हद तक बदल दिया है के बहुत से मानवीय कार्य जो दुनिया भर में चल रहे हैं वो या तो किसी ईसाई सुरुवात के सीधा नतीजे हैं या फिर ईसाई हस्तक्षेप की वजह से सुरु हुए हैं जिसने अनाथालय और अस्पताल जैसे प्रतिष्ठानों और संस्थाओं का सुरुवात किया. मैं आपके लिए एक लिंक दे रहा हूँ जिस पर कुछ ऐसे लोगों के गवाही हैं जिनका जीवन ईसाई धर्म की वजह से परिवर्तन हुआ है.
अंत में इस पोस्ट की सामग्री के माध्यम से किसीको अपमान करने के इरादे मेरे बिलकुल ही नहीं थे पर मैं इस मामले को उस इंसान के रूप से रख रहा हूँ जो चाहता है के आप आत्मिक रूप से अच्छे रहें. इसके अलावा मैं इस दलील को केवल एक प्रतिस्पर्धा के रूप में दिखा कर खतम नहीं करना चाहता हूँ पर मैं आपको प्रोत्साहित करना चाहता हूँ के आप आनंद मार्ग के डब्बे से बाहर निकल कर सोचें और मैं आपको चुनौती देता हूँ के आप परमेश्वर से साधारण रूप से और अपने ही प्रकार से प्रार्थना करें और उनसे कहें के वो आपके सामने येशु के सच को खोल दें.
अंत में यह सिर्फ एक और धर्म या दर्शन के बारे में नहीं है बल्कि यह एक रिश्ता है जो किसी गुरु के सिखाए हुए चीजों के आधार पर जीने से काफी बढ़ कर है. ये एक ऐसा रिश्ता है जिसको केवल मसीह में परमेश्वर के प्रेम के माध्यम से विनियोजित किया जा सकता है.
यूहन्ना ३:१६
“परमेश्वर को जगत से इतना प्रेम था की उसने अपने एक मात्र पुत्र को दे दिया, ताकि हर वह आदमी जो उसमें विशवास रखता है, नष्ट ना हो बल्कि उसे अनन्त जीवन मिल जाए.”
Religions of the world: a comprehensive encyclopedia of beliefs and practices/ J. Gordon Melton, Martin Baumann, editors; Todd M. Johnson, World Religious Statistics; Donald Wiebe, Introduction-2nd ed., Copyright 2010 by ABC-CLIO, LLC. Reproduced with permission of ABC-CLIO, Santa Barbara, CA.
“Reprinted by permission. “(Nelson’s Illustrated Guide to Religions), James A. Beverley, 2009,Thomas Nelson Inc. Nashville, Tennessee. All rights reserved.”
कुछ लोग सतह के स्तर का अवलोकन करके इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं और सुंदरता सिर्फ त्वचा तक का गहरा हो सकता है पर धर्म नहीं हो सकता. दुनिया के सभी धार्मिक विचार के नीचे गुप्त विचारों और सिद्धांतों का दलदल है जो शाब्दिक रूप से आपको डूबा देगा.
इसके अलावा एक समूह / संस्कृति में ‘इश्वर’ की अवधारणा होने और कुछ चीजें एक होने से उसका ये मतलब नहीं है के वहाँ पर अनुकूलता का एक संश्लेषण है.
दुनिया के बहुत से ऐसे धार्मिक विचार एक दुसरे के परस्पर विरोधी हैं. यदि आपने तुलनात्मक धर्मों और संस्कृतिओं का अध्ययन किया है तो आप पहले से ही इस निष्कर्ष पर आ गए होंगे.
उदाहरण के लिए, शैतानी बातें ईसाई धर्म के तुलना में सबसे चरम अर्थों में विरोधी हैं जिनमें कोई सुलह नहीं.
शायद किसी किसी को ये विचार अच्छ लगता है क्योंकि ये विश्वासों के मतभेदों के बीच तनाव को सुलझाकर एक बहुलवादी और मिलाजुला समाज के गठन में मदत करता है.
ये आंदोलन हालांकि वे धर्म के आम शीर्षक के अंतर्गत आ सकते हैं पर ये किसी भी हालत में मिलने वाले दोस्त नहीं हैं.
कुछ लोग इस विचार को इसलिए रख सकते हैं क्योंकि उनके अपने स्वयं के व्यक्तिगत विश्वास प्रणाली को न्यायोचित ठहराने के लिए इसका आवश्यकता है और ये भी संभव है के उन लोगों ने ये किसी से सुना और इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.
फिर भी, ये बात के “सभी रास्तें इश्वर के तरफ ले जाते हैं” वास्तव में खुद में ही पदों की एक विरोधाभास है. हम कह सकते हैं के किसी एक चीज को करने के लिए बहुत से तरीके होते हैं, लेकिन जब वो सीधे संघर्ष में हैं और विपरीत दिशाओं में जा रहे हैं तो उन्हें एक जगह में लाने के लिए एक अच्छे मार्गनिर्देशन का जरूरत पड सकता है पर ये भी उन सभी के लिए सिर्फ एक दुसरे के बगल से से गुजर के अपने जीवन के रास्ते पर अपने ही पथ पर आगे बढ़ने का जगह हो सकता है और वो एक दुसरे से कभी मिल या जुड नहीं सकते.
व्यावहारिक रूप से बात करें तो कट्टरपंथी राष्ट्रवादी हिंदु भी इस दर्शन पर विश्वास नहीं करते क्योंकि अगर वो करते तो वो अन्य धार्मिक विचारधाराओं की ओर शत्रुतापूर्ण भावना नहीं रखते. इसके अलावा पूर्वी गुरु भी इन दार्शनिक विचारों को अपनाने के लिए पश्चिमी विचारकों को परिवर्तित करने की कोशिश नहीं करते.
वैसे भी दुनिया के कुछ विचारों में विरोधाभास कोई समस्या नहीं है, भले ही हमारा दिमाग हमें कुछ और बताता है. जैसे की मैंने हिंदू धर्म के देवताओं कहके मेरे दुसरे पोस्ट में लिखा है मुझे लगता है के ये उन धर्म और दर्शन के लिए काम कर सकता है जिनका कोई नीयम नहीं है पर वास्तव में लोग इस तरह के तर्क अपने हरेक दिन के जीवन में प्रयोग नहीं करते हैं.
वैसे भी एक संस्कृति जो विरोधाभास को गले लगाता है उसके मानसिकता को समझने में मुश्किल हो सकता है क्योंकि वो कारण को हटा देते हैं और विज्ञान और दर्शन के तर्कसंगत विचारों को भी नहीं मानते हैं.
उदाहरण के लिए, आप सच के गुरुत्वाकर्षण बल जो आपके शारीर को खींचता है उसके असर से गिरे बिना किसी धार्मिक विश्वास के चट्टान पर से नहीं कूद सकते हैं.
आप किसी आते हुए बस के आगे इस विश्वास के साथ खड़े नहीं हो सकते हैं के वो सिर्फ एक भ्रम है पर आपको सच के सामने झुकना ही पड़ेगा क्योंकि यह जड़ता की ताकतों पर लागू होता है.
हम वाइली कोयोट के दुनिया में नहीं रहते हैं जिसका लगता था के १००० जिंदगी है और जो मृत्यु को चतुरता से मात दे सकता था और अपने कर्मों के परिणामों से कोई हानि नसेह्कर कब्र से निकल आता था.
यह लंबे समय तक दिखाने के लिए एक अच्छा कार्यक्रम बन सकता है पर हम ये बात अपने दिल में जानते हैं के मानव जीवन के नाटक के असली मंच पर ये इस तरह से काम नहीं करता है.
इसके अलावा दार्शनिक रूप से कहें तो एक शादीशुदा अविभाहित नहीं हो सकता है और वैसे ही शैतानिक इशाई या फिर इशाई शैतानिक नहीं हो सकते हैं.
अंत में, बाइबलिय रूप से कहें तो ऐसे दो रास्ते हैं जो एक दुसरे का खंडन करते हैं. एक (कई) व्यापक है जो विनाश की ओर पहुंचाता है और दूसरा (एक) संकीर्ण है जो जीवन की ओर ले जाता है. येशु ने कहा के मैं ही रास्ता, सच्चाई और जीवन हूँ और उनके द्वारा छोड़कर कोई भी परमेश्वर तक नहीं पहुँच सकता है.
जैसे के हम में से बहुत को चलने के लिए पैर दिया गया वैसे ही हमें आगे बढ़ने के लिए रास्ता भी दिया गया है. आपके लिए मेरा चुनौती ये है के क्या आप वो व्यापक रास्ता लेना चाहेंगे जो सभी रास्तें मिल कर बनता है या फिर आप उस संकीर्ण रास्ते पर चलने और उसमें खोजी करने की हिम्मत करेंगे जो आपको सच तक पहुंचाएगा?
हिंदू धर्म के भीतर भी एक व्यक्ति ईश्वर के अवधारणा के बारे में कई तरह के विचार रख सकता है जहाँ पर विश्वास कोई ईश्वर के ना होने से लेकर ३३ करोड़ देवता के होने तक फर्क पड़ सकता है.
देवता (ओं) के इन विविध विचारों के अलावा इन माने जाने वाले परमात्मा (ओं) की प्रकृति के बारे में विभिन्न आयाम मौजूद हैं जिसमें अद्वैतवाद, देवपूजा, सर्वेश्वरवाद, और आत्मवाद शामिल हैं.
इन मान्यताओं के सही होने के बारे में जब विश्लेषण किया जाता है तो वहाँ पर एक स्पष्ट विरोधाभास मालूम पड़ता है जो तर्क और कारण के दलीलों को खारिज कर देता है.
इसके अलावा इन देवता (ओं) को ऐतिहासिक संदर्भ बनाम आदिवासी विश्वासों की पौराणिक पृष्ठभूमि में रखा जाता है और इसी वजह से इन दृष्टिकोणों को सही रूप में पुष्टि नहीं किया जा सकता और इसी लिए उनका अस्तित्व विश्वास और अंधविश्वास के दिग्गजों की कहानी पर आधारित है.
अपने जीवन का आधार किसी ऐसे चीज को बनाना जो जानकार या प्रसंशनीय नहीं है ये बात मानव बुद्धि के मूल्य के लिए एक धोखा है और ये हिंदू विश्वास को और कम कर देता है और वो विश्वास सिर्फ एक अतर्कसंगत विचारों का एक आध्यात्मिक संस्कृति क्लब से अधिक नहीं रह जाता है.
इसके अलावा मुझे नहीं लगता के धर्म और दर्शन से बाहर रहने वाले लोग इन असंगत मान्यताओं को मानते हैं और उनके अनुसार अपना हरेक दिन का जीवन जीते हैं. आप जरूर एक हिंदू इंजिनियर को अपना घर बनाने के लिए नहीं बुलाएंगे जो हिंदू विश्वास के आधार पर गणितीय समीकरणों का हल करते हैं जैसे के वो उनके भगवानों से सम्बन्धित हैं. हकीकत में यह केवल आपको एक निर्जन संरचना के साथ छोड़ देगा जो की संदेह के हवाओं के कारण गिर सकता है.
अंत में मुझे आशा है कि इस पोस्ट की प्रत्यक्षवादिता और स्पष्टवादिता आपको आहत नहीं किया है. मुझे पता है कि कई लोग इन मान्यताओं पर पवित्रता और भक्ति की भावना और ईमानदारी से विश्वास करते हैं.
इसके अलावा, मैं समझता हूँ कि संस्कृति के तरफ प्रतिबद्धता एक मजबूत गाँठ की तरह है जो अक्सर लोगों को एक साथ बाँध कर रखता है फिर भी मैं आपको प्रोत्साहित करता हूँ के आप अपने समाज के सांस्कृतिक बंधनों से बाहर निकलकर सोचें क्योंकि ये आपके ज्ञान को नियंत्रित और सीमित कर देता है.
फिर भी मैं आप को एक और अद्वितीय विश्वदृष्टि के बारे में अनुसंधान करने के लिए आमंत्रित करता हूँ जिसके पास अपने विश्वास प्रणाली को साबित करने के लिए कुछ सबूत है और ये येशु और उनके काम से सम्बन्धित है जो आपको यहाँ पर मिलेगा
आम तौर पर स्वर्ग की वास्तविकता में विश्वास करना लोगों के लिए आसान होता है पर अलग किए गए आत्माओं के लिए नारकीय दायरे का अस्तित्व के बारे में वो चिंतन नही करते. नरक एक विवादास्पद विषय है जिसकी चर्चा से लोग बचने की कोशिश करते हैं और इसे अगर गंभीरता से लिया गया तो भी इसे अक्सर संदेह के व्यवहार के साथ देखा जाता है. एक गैर व्यक्तिगत दृश्य से परहेज करके नरक के देखने का नकारात्मक पहलू आमतौर पर उदासीनता की एक प्रतिक्रिया के रूप में हमारे सामने आता है क्योंकि वहाँ पर व्यक्तिगत जवाबदेही की संभावना रहती है जो आत्म संरक्षण की एक रक्षात्मक तंत्र के रूप में आता है.
कुछ लोग होगन के हीरो के तरह अज्ञानता का खेल खेलकर नर्क के साथ सामना करते हैं जो जोरदार ढंग से ‘मुझे कुछ पता नहीं’ कहके हट जाता था जबकी ज्ञान को सुरक्षित करना उसकी जिम्मेवारी थी फिर भी अपने बयान से वो इस जिम्मेवारी से छुटकारा पाने की कोशिश करता था और इसी लिए प्रत्यक्ष चीज को भी अनदेखा करता था. ये उसे इश्वर के आदेश से अलग नहीं करता है और हमें सब कुछ जानने वाले इश्वर के आगे निर्दोष भी नहीं बनाता है.
दूसरे समूह के लोग शायद जानते हैं लेकिन बाइबल और ईसाई धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी चीजों को बंद करके वो न्याय की स्थिरता को बंद करते हैं और सिर्फ यही उपाय है उनके पास अस्थायी रूप से अपरिहार्य के साथ निपटने के लिए. आप देख सकते हैं कैसे कितनी तेजी से लड़कों का कोई समूह चैनल को बदलते हैं अगर उस चैनल पर पाप के बारे में कुछ आरहा होता है. आप सोच सकते हैं के जैसे वो रिमोट को चलाने में कोई पश्चिमी ‘जल्दी का काम’ देख रहे हैं.
वैसे भी पाप और न्याय के बारे में सोचते समय हमेशा वहाँ पर चेतावनी संकेत रहता है जिसका स्पष्ट और विशिष्ट अलार्म प्रणाली रहता है और जिसका काम परमेश्वर के तरफ हमारे होश को जगाना और अनन्त दंड के बारे में हमको बताना है रोमन २:१४-१६, १ यहुन्ना ४:१८.
चाहे हम अलार्म के अनियमित सिस्टम को अनदेखा करके अलार्म से भागने की कोशिश करें या फिर चिढकर उसे बाहर फेंक दें, ये सब उस बात को बदल नहीं सकता के अब उठने का समय आचुका है.
हमारे होश के आंतरिक शोर की तरह वो अलार्म घड़ी बजता है और हमें हमारे नैतिक हालत और शाश्वत भाग्य से जगाने की कोशिश करता है. अज्ञान या प्रतिरोध की वजह से हम इस बात का विरोध करने की कोशिश करते हैं और इस झुंझलाहट को निकालने की कोशिश भी करते हैं फिर भी इस अलार्म का बजाना तब तक पूरी तरह से बंद नहीं होगा जब तक इस जीवन की तरफ आप पूरी तरह से नहीं जाग जाते.
लोगों को नर्क का बईबलिय परिभाषा को विशवास करने में बहुत मुश्किल समय बिताना पड़ता है जिसको अनन्त पीड़ा और निंदा का एक भयावह जगह के रूप में चित्रित किया गया है और इसके वजह से लोगों को नर्क का अपना ही वास्तविकता तैयार करने में मजबूर कर दिया है.
कुछ व्यक्तियों ने नरक की अवधारणा को पूरी तरह से हटा दिया है ये कहकर की उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है और अगर कोई अस्तित्व है भी तो वहाँ सैतान और उसके राक्षसों के साथ साथ हमारे आज के समाज के हिटलर रहते हैं.
कई लोग नर्क का भयावह दृश्य को एक ‘बड़ी पार्टी’ के रूप में चित्रण करके उसकी चाहना करते हैं.
कुछ व्यक्ति इसको बहुत कम गंभीरता से देखते हैं जहां पर वो इसको सिर्फ एक अस्थायी पापमोचनसंबंधी अस्तित्व के रूप में देखते हैं जहां पर विनाश के जैसा मांश में आग लगाया जाता हो.
मैंने हाल ही में मौत के नजदीक के अनुभव के आधार पर स्वर्ग और नरक की इस अवधारणा के बारे में एक वृत्तचित्र देखा जो इन धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक शोधकर्ताओं के गवाही पर आधारित था और उन सभी ने ये माना के जिन लोगों को वो देख रहे थे और इंटरविउ ले रहे थे वो सब मृत्यु के साथ उनका साक्षात्कार पर आधारित वास्तविक अनुभव था और उसे मौत के बारे में पूर्वाग्रह उम्मीदें या फिर मस्तिष्क के रसायनों के भ्रमात्मक एजेंटों द्वारा नहीं समझाया जा सकता था.
उन धर्मनिरपेक्ष शोधकर्ताओं में से एक ने मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप को भी अलग कर दिया क्यूंकि उन्हें लगा के मरते समय नरक के बारे में सोचना उलटी बात थी.
प्रौद्योगिकीय अग्रिमों से लोगों को पुनर्जीवित करने के कारण ये मृत्यु के पास के अनुभव अब और अक्सर होने लगे हैं और कहा जाता है के सिर्फ अमेरिका में १२-१५ मिलियन लोग ऐसे हैं जिन्हें ये अनुभव मिल चूका है.
एक कमेंटेटर का कहना है कि ज्यादातर लोग मौत के साथ ऐसा मुठभेड़ होने के बाद धार्मिक परिवर्तन से गुजरते हैं और इसी वजह से इन प्रकार के परिवर्तन के लिए केवल मतिभ्रम को ही कारण नहीं माना जासकता है.
एक अन्य शोधकर्ता ने इसी काम के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 300 से अधिक मामलों में खोज किया और उनके इस शोध ने दोनों नारकीय और स्वर्गीय विवरण के गवाही में निरंतरता पाया जैसा की बाइबिल पाठ में भी कहा गया है.
जैसे हम हैलोवीन के बुतपरस्त त्योहार की तरफ बढ़ रहे हैं, बहुत से लोग मृत्यु या नर्क को वैसे ही दृष्टिकोण से देखते हैं जैसे की वो इस छुट्टी को देखते हैं. कभी कभी लोगों को समझ नहीं आता या वो समझ की परवाह नहीं करते की इस पैशाचिक उत्सव के पीछे के आध्यात्मिक दायरे का वास्तविकता क्या है. उनके लिए यह बस मज़ा आनेवाला एक हानिरहित खेल है फिर भी मौत की तरह वहाँ एक वास्तविकता हो सकता है और साथ में ही एक छिपा राक्षसी तत्व भी हो सकता है जो हमारे सादे दृष्टि से खुद को छुपाता है और धोके से ये सोचने पर मजबूर करता है के शैतान, राक्षसों, और नरक केवल हॉलीवुड और प्रचारकों का आविष्कार है.
नर्क का मूल्य ही कम हो जाता है और ये एक विज्ञापन के तरह लगता है और ये हमारे मन को सताना छोड़ कर हमारे लिए एक इच्छा का विषय बन जाता है जैसे के हमारे लिए शैतानिक भूमिका वाला “हैरी पॉटर” एक नायक या एक वांछनीय चरित्र मॉडल के रूप में स्थापित हो जाता है.
इस के बावजूद कुछ ऐसे लोग भी हैं जो मृत्यु के बाद के जीवन के ज्ञान को गंभीरता से देखते हैं या कम से कम वे इसके बारे में उत्सुक हैं और इसीके वजह से स्वर्ग में ९० मिनट और नर्क में २३ मिनट जैसे लोकप्रिय किताबें आए हैं.
मैं व्यक्तिगत रूप से कई करीबी दोस्तों को जानता हूँ जिन्हें मृत्यु के निकट का अनुभव था और जिसमें उन्होंने स्वर्ग का अनुभव किया और एक औरत उस अनुभव से इतना अवाक् हो उथी कि वह वापस ही नहीं आना चाहती थी और मुझे याद है उन्होंने मुझे ये कहा था के कैसे उनके पति इस बात को नहीं समझ रहे थे के क्यों वो अपने सांसारिक जीवन में उसके साथ लौटना नहीं चाहती थी और ये गवाही वैसे ही और कई लोगों से मिलता है जो उसी कार्यक्रम में अपना साक्षात्कार दे रहे थे.
एक और व्यक्ति को मैं जानता हूँ जो एक पास्टर की पत्नी हैं और जो स्वर्ग तक पहुंची और उन्होंने यीशु को देखा और उनसे बात भी किया.
इन आध्यात्मिक मुठभेड़ों में लोगों ने कई ऐसी चीजें देखने का दावा किया है जो नए और पुराने करार के इलहामी साहित्य के साथ जुड़े हुए हैं.
एक और सबूत जो इन मौत के पास के अनुभव को मान्यता देता है वो ये है के ये लोग जब कोमा में होते हैं तब उनके आसपास कमरे में क्या हो रहा है उसका पूरा जानकारी उनके पास होता है. वे कमरे के बाहर क्या हो रहा है इस बात का समेत जानकारी दे सकते हैं क्योंकि उनका आत्मा उनके शरीर से बाहर होता है. इसके अलावा वे उनके अपने मानसिकता से बाहर की बात का अनुभव कर रहे होते हैं जिस बात का भी कोई जबाब नहीं है.
धर्मनिरपेक्ष शोधकर्ता इन चीजों के बारे में अपने खोज में निर्णायक नहीं थे क्योंकि वो इस बात को समझाने में सक्षम नहीं थे के कैसे इन लोगों ने ये चीजें अनुभव किया जो उनके समझने या अनुभव के मानव क्षमता से परे बातें थे. मेरा मानना है कि यह अलौकिक बातों के बारे में चर्चा करने के लिए दरवाजा जरूर खुला छोड़ता है.
तो मृत्यु के बाद जीवन के इस खोज में हम आगे बढते हैं और देखते हैं के इस बारे में बाइबल क्या कहता है. “नरक” शब्द के लिए हिब्रू शब्द “शेओल” है जैसे के पुराने करार में पाया जाता है. इस शब्द को व्यापक रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और आम तौर पर कब्र, गड्ढे, और शारीरिक गिरावट के प्राकृतिक दायरे में लागू कर सकते हैं. इसको मृत का अस्तित्व या फिर अस्पष्ट तरह का निवास के रूप में भी इस्तेमाल लिया जा सकता है.
अधिक विशेष रूप से जिस बात को मैं आप लोगों के आगे वर्णन करने में दिलचस्पी रख रहा हूँ वो सिर्फ मौत का भौतिक प्रक्रिया के बारे में नहीं है जो हम समझ सकते हैं बल्कि ये उसका आध्यात्मिक पहलू है जो इन शोधकर्ताओं पर आधारित रहके हम ये कह सकते हैं के एक वास्तविकता है और ये उन मौत के पास के अनुभव करने वालों के लिए बिल्कुल ही असली बात है.
नए करार की तुलना में पुराना करार हमें उतना ज्यादा सुराग नहीं देता है और इसी वजह से नया करार एक प्रकार से ज्यादा वर्णनात्मक और परिभाषित है.
नबी डेनियल ने दानिएल के पुस्तक १२:२ में बयान किया है:धरती के वो असंख्य लोग जो मर चुके हैं और जिन्हें दफनाया जा चूका है, उठ खड़े होंगे और उनमें से कुछ अनंत जीवन के लिए उठ जाएंगे. किन्तु कुछ इसलिए जागेंगे की उन्हें कभी नहीं समाप्त होने वाली लज्जा और घृणा प्राप्त होगी.
तो यह न सिर्फ मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में बात करता है लेकिन “शारीर के उठने” के बारे में भी कहता है जो इस ब्लॉग के दायरे से बाहर की बाते हैं लेकिन यहूदियों और ईसाइयों ने इस बात पर विश्वास किया है और इसका सबूत मेहराबदार छत से युक्त क़ब्र हैं जो प्राचीन इसराइल में था और जिसमें मृतक के हड्डियां रखी जाती थी. पुनरूत्थान मोक्ष का अंतिम अधिनियम है जिसमें येशु ने खुद भाग ले लिया है जो एक प्रकार से मरे हुओं में से पहले फल हैं. रहस्यमय तरीके से किसी तरह ये पुनर्जीवित शरीर मानव इतिहास की समाप्ति में हमारे लिए एक अंतिम बिंदु होगा जो इसाइओं के लिए मुक्ति प्राप्त करने के लिए अंतिम कार्यों में से एक होगा.
अगर हम डैनियल पर वापस जाएँ तो वहाँ पर ‘अनन्त’ जीवन वनाम ‘सदा की पीड़ा’ की अवधारणा सुरु होति है. आनंद की एक शाश्वत घर की कल्पना करना आसान बात है लेकिन शाश्वत और अनन्त के पर्याय शब्दों के लिए भी ये नियम उतना ही लागू करना चाहिए वरना शास्त्र में विरोधाभास लगने लगेगा.
पुराने करार के तहत कब्रिस्तान को दोनों धर्मी और धर्मभ्रष्ट के रहने वाले जगह के रूप में देखा जाता है जिनको इन दो अस्तित्व के बीच खींची गई खाई के साथ रखा गया है. एक समूह को अब्राहम की छाती के रूप में देखा जाता है जहां पर धर्मी रहते हैं तो दुसरे को पीड़ा की एक जगह के रूप में संदर्भित किया गया है. इन सबका सबसे अच्छा विवरण हमें सुसमाचार के साथ साथ में येशु देते हैं जो हमें सीमित रूप से इन असीमित स्थानों के बारे में बताते हैं जिसके बारे में हम बाद में बात करेंगे.
हेमें पुराने / नए करार के माध्यम से कुछ सुराग मिलता है जो मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में हमें बताता है जैसे की येशु ने मती २२:३२ में निर्गमन ३:६ के बारे में बताया था जहां परमेश्वर ने कहा के वो ही अब्राहम, इसाहक और याकूब के परमेश्वर हैं और येशु ने ये भी कहा के वो जीवित के प्रभु हैं नाकि मृत के जो इस बात को अंकित करता है के इस जीवन के भौतिक सीमाओं के पार भी अस्तित्व का एक निरंतर राज्य है.
वैसे ही पुराने करार में मृत्यु के क्षण में इश्वर ने लोगों की सभा को बुलाने के बारे में संदर्भित किया गया है जैसे के २ राजा २२:२० में कहा गया है.
हम देखते हैं के १ सामुएल २८:११-१५ में शाऊल से बात करने के लिए नबी शमूएल जमीन से आए थे.
इसके अलावा “जीवन की पुस्तक” के बारे में भी संदर्भित किया गया है के वो सब अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे और जिनका नाम उसमें नहीं लिखा गया है या फिर उसमें से मिटा दिया गया है वो अनान्त के पीड़ा में प्रवेश करेंगे. हम दोनों पुराने और नए करार में इन बातों को संदर्भित किया हुआ पाते हैं जैसे के भजन ६९:२८, निर्गमन ३२:३३, फिल्लिपिओं ४:३, प्रकाशित वाक्य ३:५, १३:८, १७:८,, २०:१२-१५, २१:२७ में कहा गया है.
अब नए करार में नरक और धर्मी निवास के बारे में पूरा अभिव्यक्ति विकसित किया गया है जिसमें यीशु ने हमें इन बस्तियों का एक पूर्वावलोकन दिया है जैसे के “अमीर आदमी और लाजरस” की कहानी में हमें लुका १६:१९-३१ में कहा गया है.
अमीर आदमी और लाजरस दोनों परस्पर विरोधी वातावरण में निवास कर रहे हैं और उन दोनों के बिच में एक बाधा है जिसको पार नहीं किया जा सकता. वो दोनों जगह एक दुसरे से इस माएने में फरक है के वर्णन के अनुसार अमीर आदमी पीड़ा, प्यास और आग के दर्द में जिरहा था पर लजारस की जगह आराम का था.
अन्य वर्णनात्मक शब्द जिनका यीशु और उनके प्रेरितों ने नरक के बारे में बताते समय किया है वो नए करार के ग्रीक भाषा अनुसार हेड्स या फिर गेन्ना है, और इसके बारे में मती ३:१२ में कभी ना बुझने वाली आग के रूप में वर्णन किया गया है, और इसी बात को मती ८:११ में बाहर का अँधेरा, रोने और दांत घिसने की जगह, मती १३:४२ में भयानक आग, मती १८:८ में अनन्त की आग, २ थिस्सुलिनोकिओं १:९ में अनन्त नाश की जगह , प्रकाशित वाक्य १४:१०-११ में एक ऐसा पीड़ा जो सिर्फ बढ़ता है, प्रकाशित वाक्य २०:१० में दिन और रात मिलने वाले पीड़ा की जगह के रूप में, प्रकाशित वाक्य १९:२० में जलते आग के सरोवर और प्रकाशित वाक्य २०:१० में उनको सदा दिन और रात में पीड़ा दिया जाएगा कहके वर्णन किया गया है.
यातना या फिर पवित्र करने वाला स्थान की अवधारणा ईसाई या यहूदियों द्वारा मान्यता प्राप्त किसी भी पुस्तक में मौजूद नहीं है.
न ही बाईबल “पुनर्जन्म” की बात करता है क्योंकी शास्त्र तो ये कहता है के इंसान एक बार मरता है और फिर वो न्याय का सामना करता है इब्रानियों ९:२७. नाही बाईबल “आत्मा की नींद” को बढ़ावा देता है जो शारीर का मृत्यु से उठने को मृत्यु के क्षण में आध्यात्मिक स्थिति के वास्तविकता के साथ उलझाता है जैसे के २ कुरिन्थिओं ५:८ में कहा गया है के शारीर से अलग रहना परमेश्वर के साथ रहना है.
मृत्यु के करीब पहुँचने के अनुभव वाले ये लोग तुरंत ही किसी जगह या उपस्थिति में पहुँच गए जिसको शून्य के एक राज्य के बजाय स्वर्ग या फिर नरक के रूप में वर्णन किया गया है और ये भी कहा गया है के उनके आत्मिक प्रकार के शरीर थे. और इनमें से कोई भी गवाही ये नहीं कहता है के कोई पुनर्जीवित होकर नए रूप में लौट कर आया.
मुझे लगता है कि नरक के सम्बन्धी बाइबल के संदर्भों को स्वीकार करने में एक मुख्य समस्या ये है के अगर एक परमेश्वर हैं जो अच्छे हैं तो वो लोगों को पीड़ा सहने की अनुमति कैसे दे सकते हैं और इस बात में किसी भी प्रकार का तुक नहीं है. और उसी के साथ इस बात पर विश्वास करना भी मुश्किल है के इंसान को सिर्फ परमेश्वर के मुफ्त के उपहार के रूप में अनन्त जीवन मिल जाए हालांकि वो छुडाया गया है पर पापी जीवन ही जी रहा है.
इस नारकीय बस्ती का मूल उद्देश्य गिरे हुए शैतान और स्वर्गदूतों के रहने वाले जगह के रूप में था और मानव निवास के लिए इसका निर्माण नहीं किया गया था पर अब उसको मृत्यु के बाद के जीवन में परमेश्वर के सभी दुश्मनों के रहने की जगह के लिए दे दिया गया है मती २५:४१. यदि इश्वर गिरे हुए स्वर्गदूतों को नहीं सुरक्षित रखना चाहते हैं, जिनसे हम थोड़े कम ही हैं, तो अगर हम परमेश्वर के विरुद्ध में लगें तो हमारा क्या अंजाम होगा.
यदि हमारे जीवन में व्यक्तिगत लक्ष्य नास्तिक अस्तित्व है, तो क्या हमें हमारा इच्छा नहीं मिलना चाहिए और क्या इस इच्छा को केबल इस जीवन में ना होकर अगले जीवन में भी पूरा नहीं होना चाहिए. आप क्यों चाहेंगे के परमेश्वर खुद को आप पर लादें जब के आप उनका प्रभाव इस जीवन में अभी नहीं चाहते.
अर्द्ध धर्मनिरपेक्ष मृत्यु के निकट के अनुभव के शानदार विषयों में से एक ये है के आप उसी तरह मरते हैं जिस तरह आप जीते हैं और मैं ये कहता हूँ के ये बात बहुत हद तक उस पार के सच्चाई के बारे में भी बताता है.
शैतान का राज्य परमेश्वर के नियम के परस्पर विरोधी है. परमेश्वर प्रकाश हैं और नरक अँधेरा है. नर्क खेदयुक्त है और स्वर्ग में दुःख को आने की कोई इजाजत नहीं है. परमेश्वर प्यार है, जबकि नरक घृणा से भरा है . स्वर्ग में शांति है जबकि हिंसा, दुख और पीड़ा से नरक भरा हुआ है.
ये एक हास्यास्पद बात है के कैसे हम स्वर्ग का लाभ चाहते हैं पर उन्हें हमारे निर्माता के रूप में धन्यबाद नहीं देना चाहते रोमन १:२१. क्या परमेश्वर को एक अलौकिक वे-या के रूप में देखा जाना चाहिए? खुद के आराम के लिए उनका प्रयोग कर लें पर उनके साथ रिश्ता रखने का जिम्मेवारी हम उठाना नहीं चाहते बल्कि हमें ये लगता है के इश्वर को हमारे लिए ये सब कुछ कर देना चाहिए.
यदि इस पृथ्वी पर इंसान का प्रतिबद्धता एक नास्तिक जीवन जीना है जो बात परमेश्वर के स्वर्गीय नियम और शासन और उपस्थिति के खिलाफ बात है तो कैसे एक आदमी कैसे उम्मीद कर सकता है उनका परमेश्वर के साथ अनन्त में एक अटूट रिश्ता बन जाएगा जब की उसने उनको अपने पूरा जीवन जान बूझकर ठुकराया है. हमारी अपनी स्थिति और गंतव्य के लिए इश्वर को क्यों दोष दें जब के हमारे पास विकल्प था जो के आसानी से प्राप्त होसकता था. मती ११:२८-३० में येशु कहते हैं: “अरे ओ थके-मांदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ , मैं तुम्हे सुख चैन दूँगा. मेरा जुवा लो और उसे अपने ऊपर संभालो. फिर मुझसे सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा मन कोमल है. तुम्हे भी अपने लिए सुख-चैन मिलेगा. क्योंकि वह जुवा जो मैं तुम्हे देरहा हूँ बहुत सरल है. और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है. ”
तो वो लोग कैसे हैं जिनको नर्क का स्वाद मिलने वाला है? क्या वो सिर्फ समाज के दूषित लोग हैं जैसे के कैदियों, धारावाहिक हत्यारों, बलात्कारियों और अन्य खराब लोग. हाँ ये बात सही है पर मती ७:१३,१५ में तो येशु एक बड़े दर्शक के बारे में कह रहे हैं: “सूक्ष्म मार्ग से प्रवेश करो. यह में तुम्हे इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि चौड़ा द्वार और बड़ा मार्ग तो विनाश की ओर ले जाता है. बहुत से लोग हैं जो उस पर चल रहे हैं. किन्तु कितना वह संकरा हैं वह द्वार और कितनी सीमित है वह राह जो जीवन की ओर जाती है. बहुत थोड़े से हैं वे लोग जो उसे पा रहे हैं.”
प्रकाशीत वाक्य २१:८ कहता है के नरक कायर, अविश्वासी, नीच, हत्यारों, व्यभिचारियों, जादू कला करने वालों, मूर्तीपूजा करने वालों और झूठों के लिए है जिन्होंने अपना स्थान जलते हुए आग में बना लिया है.
१ कुरिन्थियों ६:९-१० नरक में रहने वालों की एक और सूची बनाता है और कहता है: अथवा क्या तुम नहीं जानते की बुरे लोग परमेश्वर के राज्य का उत्तराधिकार नहीं पएंगे? अपने आप को मूर्ख मत बनाओ. यौनाचार करने वाले, मूर्ती पूजक, व्यविचारी, गुदा-भंजन कराने वाले, लौंडेबाज, लुटेरे, लालची, पियक्कड, चुगलखोर और ठग परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी नहीं होंगे.
हमारे अपराधों के बावजूद अब हमारा यह परस्पर विरोधाभासी स्थिति जिसमें पाप और न्याय सामिल है वो मुक्ति का एक सुन्दर रूप में उभर कर आया है जो इन सारे विष और खराब चीजों के असर जो हमें नरक के रास्ते पर लेजाता, इन सब को हटा कर परमेश्वर के क्षमा के माध्यम से हमारे जीवन के पुराने तौर तरीके को हटा कर जीवन का एक नया तरीका सिखाता है.
यदि आपको लगता है के आपने परमेश्वर के अच्छाई के इस सीमा को पार नहीं किया है तो हमें रोमियों ६:२३ के माध्यम से देखना चाहिए के हम कहाँ पर हैं.
इस शास्त्र में पाप को वर्गीकृत नहीं किया गया है और इसलिए पाप जीवन के समीकरण में एक आम भाजक के रूप में है क्योकि ऐसा कोई भी नहीं है जो धर्मी है और ये बात समावेशी और सार्वभौमिक बयान लगता है.
हम अक्सर हमारे अपराधों को नजरअंदाज करते हैं और पाप के परिणामों को कम गंभीर और महत्वपूर्ण समझते हैं और हालांकि और सभी का पापों का पहाड़ के आगे हमारे “गलतियों” का छोतो ढेर बौना लगे पर हमारा ढेर और किसी के तुच्छ “दुर्घटनाओं” के आगे और भी छोटा हो सकता है.
चाहे वह एक छोटा सा पाप हो या एक प्रमुख पाप हो, वो अभी भी पाप का शीर्षक वहन करता है . चाहे आप एक पैसा चुराएं या एक डॉलर चुराएं इस से कोई फरक नहीं पड़ता क्योंकि किसी भी प्रकार से आप चोर ही हैं. चाहे आप एक झूठ बोलो या एक लाख आप फिर भी झूठे हो. हम दूसरों से तुलना करके अपना अपराध कम करने की कोशिश करते हैं.
अंत में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम पवित्र परमेश्वर के आगे हमारे “मेधावी कर्मों” का प्रदर्शन करें, वो इस ब्रह्माण्ड के न्यायकर्ता हैं जो इंसान के दिल और दिमाग की बातें जानते हैं. आप अपने कृत्यों के माध्यम से कभी अच्छाई नहीं कमा सकते और बाइबल हमारे कर्मों की तुलना मासिक धर्म के कपड़ों के साथ करता है जैसे के यशायह ६४:६ में कहा गया है. परमेश्वर के अनन्त अस्तित्व को गन्दा करने से हमारे कर्म हमें नहीं बचा सकते. पाप के लिए परमेश्वर ने २ क्षेत्र बनाए हैं. एक मिट के जाने वाला धरती है और दूसरा नरक है और जब तक आपके पाप आप से नहीं हट गए हैं तब तक आप को अपना गन्दा कपड़ा स्वर्ग में सुकाने नहीं दिया जाएगा.
मैं अभद्रतापूर्वक ये बात बोलना नहीं चाहता था लेकिन येशु ‘नरक’ के लिए नहीं मरे. उनके पुनर्जीवित रूप का उद्देश्य इंसान का प्रतिनिधित्व करना था और इसके लिए वो हमारे खातिर मरे और हमारे अपराध और पाप का दंड खुद पर ले लिया. यदि हम स्वर्ग को हमारे खुद के कमाई से हासिल कर लेते तो फिर क्रिस्ट तो बेकार में मरे. हमारे अपराध को अगर गहरे रूप से देखो तो वो केवल पाप के माध्यम से परमेश्वर को इनकार करना ही नहीं है पर उनके पुत्र को अस्वीकार करके उनके मोक्ष के काम को अस्वीकार करना भी है यूहन्ना ३:१८.
सभी अपराधों में सबसे बड़ा अपराध ये है के हम परमेश्वर के आगे अपने कामों को एक तुच्छ अर्पण के रूप में देंगे जिसके लिए येशु ने इतना बड़ा बलिदान दे दिया है जो परमेश्वर के आआगे बलिदान के अर्पण के रूप में सभी अच्छाई के जरूरतों को पूरा करता है और इससे कुछ भी कम परमेश्वर के आँखों में अग्रहनीय है.
याद कीजिए के बागीचे में अवज्ञा के एक “छोटे” कार्य ने पूरे मानव जाति पर बुराई की बाढ ले आया और सभी इंसानों पर अभिशाप भी लाया. तो आदम के इस छोटे से गलती के आगे आपकी गलतियां कितनी बड़ी हैं. वो ‘बोहोत बड़ी’ या फिर छोटी हैं इस बात का फैसला तो आप खुद कीजिए.
अब नरक के सवाल पर वापस जाएं तो बहुत से लोग जिनको बाइबल की बातें पसंद नहीं है या फिर वो इससे सहमत नहीं हैं तो वो उन बातों को रूपक कहके हटा देते हैं और उन बातों को छोड़ देते हैं जो लागू करने में मुशकील है.
पर येशु तो नरक के बारे में कहने के लिए अतिशयोक्ति का इन्स्तेमाल करके नाटकीय ढंग से बोलते हैं और कहते हैं के इस से किसी भी कीमत पर बचना चाहिए चाहे उसके लिए शरीर के अंगों को ही क्यों ना खोना पड़े मती ५:२७-३०.
इस शास्त्र के संदर्भ के आधार पर बोहोत से लोग इस बात को शाब्दिक रूप से सच नहीं मानेंगे पर ये हमें इस बात की गंभीरता के बारे में बताता है के उस आध्यात्मिक स्थिति का पीड़ा हमारा कोई शरीर का अंग गुमने से भी ज्यादा दर्दनाक है. अगर नरक की सच्चाई नहीं होती तो येशु ये बात ऐसे ही नहीं बोलते.
अंत में मुझे लगता है के “नर्क” का प्रेरणा आज्ञाकारिता पर आधारित ना होकर ‘प्रेम’ होना चाहिए.
पवित्र डर या प्यार के साथ साथ परमेश्वर के लिए पवित्र डर और सम्मान होना चाहिए.
एक अच्छी उपमा मैं आपको ये दे सकता हूँ के परमेश्वर एक वैसे स्वर्गीय पिता की तरह हैं जिन्होंने अपने बच्चे के फाएदे के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया और भले ही सुधार के हाथ के माध्यम से बच्चे को नियंत्रित किया जा रहा हो पर परमेश्वर इन सब कार्यों को अपने नियंत्रण में रखते हैं.
इन हाथों से ऊपर परमेश्वर के प्रेमी बाजुएँ हैं जो आप को गले लगाकर आपकी सुरक्षा करते हैं और आपको सुरक्षा देते हैं. परमेश्वर के हाथ और बाजुएँ एक साथ बच्चे को सिखाने के लिए काम करते हैं और अगर सही प्रकार से किया जाए तो बच्चे को परमेश्वर के हाथ को दुश्मन के रूप में नहीं देख कर मुक्ति देने वाले के रूप में और रूकने के लिए एक संकेत के रूप में देखना चाहिए.
एक बच्चा जो पूरी तरह से अपने माता पिता को प्यार करता है और उन पर विश्वास करता है और उनके सम्बन्ध को समझता है वो परमेश्वर के हाथ उठने पर ध्यान देता है और समझता है के वो सिर्फ उन प्रेमी बाजू की वजह से उठे जो उनका वजन उठा रहे हैं.
हम इस बार को माता पिता के लिए एक अपराध मान सकते हैं अगर वो अपने बच्चे को रास्ते पर एक आते हुए कार के आगे दौड़ते हुए देखते हैं और कुछ नहीं कहते और कुछ नहीं सुनते हैं. पर क्या आप उस परमेश्वर का विरोध करेंगे जो आपके अनन्त के आत्मा के लिए चिल्ला कर आपका ध्यान पाने की कोशिश कर रहे हैं. क्या आप इसको डर के रूप में देखेंगे अगर वो आपको चिल्ला कर कहें के ‘रुक जाओ’ आगे खतरा है.
एक बच्चा ऐसे समय में अपने माता पिता के आवाज के चेतावनी टोन पर प्रश्न नहीं करेगा पर फिर भी यही बात जब परमेश्वर करते हैं तो हम कैसे उनके पश्चाताप करने के विनती पर सवाल करते हैं.
परमेश्वर हमें बुला रहे हैं और सच कहें तो आपका ध्यान पाने के लिए वो चिल्ला रहे हैं. क्या आप सुनेंगे और उन पर विश्वास करेंगे क्योंकि वो एक प्रेमी पिता हैं?
ब्लॉग के अंत में एक स्थान है जहां पर परमेश्वर के साथ कैसे सम्बन्ध बनाया जा सकता है इसके बारे में लिखा हुआ है और वो आपको ये बताता है के आप कैसे बचाए जा सकते हैं और कैसे अपना जीवन परमेश्वर को समर्पित कर सकते हैं. ये बहुत ही साधारण प्रक्रिया है पर कार्यक्षेत्र और उपयोग में बहुत असरदार है और ये एक जीवन बदलने वाला अनुभव है.
मेरा विश्वास कीजिए मैंने ये २० साल पहले किया था और मैं अब कभी भी शैतान के लिए एक झूठ की जिन्दगी जीने के लिए वापस नहीं जाऊँगा.
आप मृत्यु के बाद कैसा जीवन का चयन करना चाहेंगे? आप मृत्यु के बाद जीवन चाहते हैं या फिर जीवन के बाद मृत्यु?
क्योंकि पाप का मूल्य तो बस मृत्यु ही है जबकि हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन, परमेश्वर का सेंतमेत का वरदान है. रोमिओं ६:२३.
‘नर्क की तरह और उस से बाहर’ के बारे में एक सादा विडियो
ಲಿಂಗಾಯಿತಧರ್ಮ ಅಥವಾ ವೀರಶೈವಧರ್ಮವು ಶೈವ ಹಿಂದೂ ಸಮಾಜವಾಗಿದ್ದು ಪರಿಷ್ಕರಿಸಲಾದ ಆಚರಣೆಯಲ್ಲಿನ ಸಾಂಪ್ರದಾಯಿಕ ಹಿಂದೂಧರ್ಮದ ಕಡೆಗಿನ ಸಂಪ್ರದಾಯ ಬದ್ಧವಲ್ಲದವುಗಳನ್ನು ಹೊಂದಿರುವ ಹಲವಾರು ನಂಬಿಕೆ/ಆಚರಣೆಗಳನ್ನು ತಿರಸ್ಕರಿಸಿ ಸಮಾನತೆ ಮತ್ತು ಸಾಮಾಜಿಕ ಸುಧಾರಣೆಗಳನ್ನು ಸ್ಥಾಪಿಸಿ ಹಿಂದೂಧರ್ಮದ ಕೆಲವು ಅಹಿತಕರ ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳನ್ನು ಇಲ್ಲಿ ನಿವಾರಿಸಲು ಯತ್ನಿಸಲಾಗಿದೆ. ಮಾನವತಾ ನೆಲೆಯನ್ನು ಸ್ಥಾಪಿಸುವ ನಿಟ್ಟಿನಲ್ಲಿ ಇದೊಂದು ಆಶಾದಾಯಕವಾದ ಪ್ರಸ್ತಾವನೆಯಾಗಿದ್ದು, ಇದನ್ನು ನಾನು ಮುಕ್ತವಾಗಿ ಶ್ಲಾಘಿಸುತ್ತೇನೆ ಆದರೆ ನಂಬಿಕೆಗಳ ಕಾರಣದಿಂದಾಗಿ ಚಳುವಳಿಯ ಅಗತ್ಯತೆಗೆ ಅನುರೂಪವಾಗಿರುವ ಆದ್ಯಾತ್ಮಿಕ ನೈಜತೆಯ ಪುನರ್ ನಿರ್ಮಾಣದಲ್ಲಿ ಇದು ಹಿಂದೂಧರ್ಮದಲ್ಲಿನ ಸುಧಾರಿತವಾದ ಮಾದರಿಯಾಗಿದೆಯೇ? ಇನ್ನೂ ಹೆಚ್ಚಿನ ಪ್ರಮಾಣದಲ್ಲಿ ಹೇಳುವುದಾದರೆ ವೀರಶೈವಧರ್ಮವು ಸಾಂಪ್ರದಾಯಿಕ ಹಿಂದೂಧರ್ಮದ ತಳಹದಿ ಮತ್ತು ಅಡಿಪಾಯವಿಲ್ಲದೇ ಅಸ್ತಿತ್ವದಲ್ಲಿ ಇಲ್ಲ ಮತ್ತು ಇದರ ಮೂಲ ಅಡಿಪಾಯವು ಕೂಡಾ ದುರ್ಬಲವಾಗಿದೆ ಮತ್ತು ವಿಭಜಿತವಾದ ಇನ್ಯಾವುದೋ ನಿರ್ಮಾಣದಂತಿದ್ದು ಇದು ಹೀಗೆ ಬೆಳೆದುಬಂದ ಪುರಾಣವು ಕೂಡ ಮುದುಡಿದಂತೆ ಕಾಣುತ್ತದೆ. ಹಿಂದಿನ ಅಸ್ತಿತ್ವವನ್ನು ಮತ್ತು ಸನಾತನ ಹಿಂದೂ ಪುರಾಣವನ್ನು ಬದಲಾಯಿಸಲು ಸಾಧ್ಯವೇ ಆ ನಂತರದಲ್ಲಿ ಹಿಂದೂ ಧರ್ಮಕ್ಕೆ ಸಂಬಂಧಿಸಿದ ಯಾವುದೇ ಸಂಭವನೀಯ ಪ್ರಶ್ನೆಗಳನ್ನು ಕೇಳಬಹುದಾಗಿದೆಯೇ ಎಂಬುದು ಒಂದು ಹಕ್ಕು ಆಗಿರಬಹುದು ಅಲ್ಲವೇ.
ಏನೇ ಆಗಲಿ ಬಸವ ಈ ಸಮಾಜವನ್ನು ಆರಂಭ ಮಾಡಿ ತುಂಬಾ ಗೌರವಿತರಾಗಿದ್ದಾರೆ ಆದಾಗ್ಯೂ ಕೂಡಾ ಇವರು ಇದನ್ನು ಮತ್ತೊಂದು ಚಳುವಳಿಯ ಪುನಶ್ಚೇತನವನ್ನು ಮಾತ್ರ ಮಾಡಿದರು ಎಂದು ನಂಬಲಾಗಿದೆ. ಈತ ಸಮಾನತೆಯ ಬದಲಾವಣೆಯ ಹರಿಕಾರ ಎಂದು ಹೇಳಲಾಗುತ್ತಿದ್ದರೂ ಅವರ ವ್ಯಕ್ತಿತ್ವದಲ್ಲಿ ಕೆಲವು ವಿವಾದಗಳು ಮಾತ್ರ ಉಳಿದುಕೊಂಡಿವೆ. ಅವರು ಬ್ರಾಹ್ಮಣ ಪದವಿಯನ್ನು ನಿರಾಕರಿಸಿದ್ದರೂ ಕೂಡಾ ಅವರ ಮಾವನವರು ಪ್ರಧಾನಮಂತ್ರಿ ಆಗಿರುವುದರಿಂದ ಅವರ ಪ್ರಭಾವವನ್ನು ಬಳಸಿ ರಾಜವಂಶದ ಖಜಾನೆಯಲ್ಲಿ ಗೌರವಾನ್ವಿತ ಸ್ಥಾನಕ್ಕೆ ಆಯ್ಕೆಯಾಗಿದ್ದರು ಮತ್ತು ಇದರ ಪರಿಣಾಮದಿಂದಾಗಿ ಈ ಮಹತ್ವದ ಹುದ್ದೆಯಿಂದ ಅವರ ಮೇಲೆ ಅಸಮಾನತೆಯ ದೋಷಾರೋಪಣೆಗಳು ಬಂದು ಖಜಾನೆಯ ನಿಧಿಗಳು ಬರಿದಾಗತೊಡಗಿತು ಇದರ ಪರಿಣಾಮವಾಗಿ ಮುಂದೆ ಲಿಂಗಾಯಿತವು ತನ್ನದೇ ಕೂಟವನ್ನು ಬೆಂಬಲಿಸುವಂತಾಯಿತು ಮತ್ತು ಕೆಲವು ಮುಂದುವರೆದ ಸದಸ್ಯರು ಜೈನರು ಮತ್ತು ಬೌದ್ಧಧರ್ಮೀಯರನ್ನು ಬೆಂಬಲಿಸಲು ಆರಂಭಿಸಿ ಬಸವರವರ ಕೃತ್ಯಗಳನ್ನು ಖಂಡಿಸಿದಾಗ ಅವರು ರಾಜಧಾನಿಯಿಂದ ಪಲಾಯನಗೈದರು.
ಜೊತೆಗೆ ಬಸವೇಶ್ವರರು ‘ದಿವ್ಯಾತ್ಮದ ಅನುಭವವನ್ನು ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬರೂ ನಂಬಿಕೆ, ಸಂಪ್ರದಾಯ ಅಥವಾ ಇನ್ಯಾವುದೇ ಮನ್ನಣೆಯಿಲ್ಲದೆಯೇ ಸಾಧಿಸಬಹುದು’ ಎಂಬ ತರ್ಕಹೀನ ಹೇಳಿಕೆಯನ್ನು ನೀಡಿದರು. ಯಾವುದೇ ಚಳುವಳಿಯ ಸಮಸ್ಯೆಯೆಂದರೆ ಸಮಾನತೆಯ ನ್ಯಾಯವನ್ನು ಸಾಧಿಸಲು ಪಕ್ಷಪಾತವನ್ನು ಹೋಗಲಾಡಿಸುವುದನ್ನು ಸೇರಿಸಲು ಚಂಚಲತೆಯನ್ನು ತೋರುವ ಸದಸ್ಯರು ಇತರರಲ್ಲಿ ಮುಖ್ಯವಾಹಿನಿಯ ಅಸಹಕಾರವನ್ನು ಅವರು ಭಿನ್ನವಾಗಿ ವರ್ತಿಸುವ ಮತ್ತು ನಂಬುವವವರ ನಿರ್ದಿಷ್ಟ ಗುಂಪಿನ ರೀತಿಯಲ್ಲಿ ಯೋಚಿಸುವ ಮತ್ತು ಇತರರು ಸಹಿಸಿಕೊಳ್ಳಲು ಅನ್ಯೋನ್ಯತೆಯ ನಿರಾಕರಣೆ ಅಥವಾ ಹೊರಗಿನ ವೃತ್ತದಲ್ಲಿರುವವರ ಸಹವರ್ತಿಗಳಾಗುವುದಾಗಿದೆ. ಆದಾಗ್ಯೂ ಜನರು ತಮ್ಮ ದಾರಿಯನ್ನು ಅಥವಾ ಹರಿಯುವಿಕೆಯ ನೋಟವನ್ನು ದೇವರೆಡೆಗೆ ಮೊದಲು ಕಾಣಿಸಿಕೊಳ್ಳುವಂತೆ ಮಾಡುವ ಹೇಳಿಕೆಯು ಅಪರಿಮಿತ ಸೇರ್ಪಡೆಯಾಗಿದೆ ಆದರೆ ಇದರಲ್ಲಿ ಪ್ರತ್ಯೇಕತೆಯ ಹೊಂದಾಣಿಕೆಯಿಲ್ಲದ ವಿಶ್ವದ ನೋಟವನ್ನು ಹೊಂದಿರುವವರನ್ನು ಕೈಬಿಡಲಾಗಿದೆ. ಸಮಾನತೆಯ ಸ್ವಾತಂತ್ರ್ಯವನ್ನು ಹೊಂದಲು ಮತ್ತು ಚಳುವಳಿಯಲ್ಲಿನ ಸಂಪೂರ್ಣ ಒಪ್ಪಿಗೆಯು ಒಂದು ವಿಷಯವಾಗಿದೆ ಆದರೆ ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬರಲ್ಲಿ ವಿಶ್ವಭ್ರಾತೃತ್ವದ ನೋಟವನ್ನು ಬೀರುವುದು ಮುಂದುವರೆಯಲು ಮಾಡುವ ಪ್ರಯತ್ನ ಅಥವಾ ಕೆಲವರನ್ನು ನಿರ್ದಿಷ್ಟ ಆಚರಣೆಗೆ ಬದಲಾಯಿಸುವುದು ಅಥವಾ ಅದ್ವಿತೀಯವಾದುದನ್ನು ನಂಬುವುದು ಹೀಗೆ ತಮ್ಮನ್ನು ತಾವು ಇತರರಿಗಿಂತ ಭಿನ್ನವಾಗಿರುತ್ತಾರೆ ಇವರು ಬೇರೆ ಧರ್ಮ, ನಂಬಿಕೆ ಅಥವಾ ಸಿದ್ದಾಂತಗಳ ಅನುಯಾಯಿಗಳಾಗಿರುತ್ತಾರೆ. ಭ್ರಾತೃತ್ವ ಚಳುವಳಿಯಲ್ಲಿನ ಒಂದು ವಿಷಯವಾಗಿದ್ದರೆ ಇದನ್ನು ಬೇಷರತ್ ಆಗಿ ಒಪ್ಪುವುದು ಮತ್ತೊಂದಾಗಿದೆ. ಲಿಂಗಾಯಿತಧರ್ಮವು ನಿಜವಾಗಿಯೂ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಆಧಾರದಲ್ಲಿ ಸಮಾನತೆಯನ್ನು ಸಾಧಿಸುವುದೆಂದು ನಾನು ಯೋಚಿಸುವುದಿಲ್ಲ ಇಲ್ಲವಾದರೆ ಅವರಿಗೆ ವರ್ಗೀಕರಣದಲ್ಲಿ ಬದಲಾವಣೆಯ ಹೆಸರನ್ನು ತಮ್ಮ ಸಂಸ್ಥೆಗೆ ಗಳಿಸಿಕೊಟ್ಟು ತಮ್ಮನ್ನು ಹೀಗೆ ಶಿರೋನಾಮೆಯಲ್ಲಿ ವಿವರಿಸಿಕೊಳ್ಳುವ ಅಗತ್ಯವಿರಲಿಲ್ಲ. ಉದಾಹರಣೆಗೆ ಅವರು ಕಥೋಲಿಕರಂತೆ ಬಾಳುವುದಿಲ್ಲ ಅಥವಾ ಕ್ರೈಸ್ತಧರ್ಮವನ್ನು ತಮ್ಮ ಚಳುವಳಿಯಲ್ಲಿ ಸೇರಿಸುವುದಿಲ್ಲ ಅಥವಾ ಬಹುಜನರ ಸಂಪ್ರದಾಯವನ್ನು ತಮ್ಮ ನಂಬಿಕೆಯಲ್ಲಿ ಮಾನ್ಯ ಮಾಡುತ್ತಾರೆ. ಒಂದು ನಿರ್ದಿಷ್ಟ ವ್ಯಕ್ತಿತ್ವದ ಮತ್ತು ಸಂಯುಕ್ತ ಗುರುತಿನ ಹೆಸರಿನೊಂದಿಗೆ ಇದನ್ನು ಅದ್ವಿತೀಯಗೊಳಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.
ಮತ್ತೊಂದು ವಿಷಯದಲ್ಲಿ ಗುಂಪು ವ್ಯತ್ಯಾಸವನ್ನು ಗುರುತಿಸಿಕೊಂಡಿದ್ದು ಹಿಂದೂ ದೇವತೆಗಳ ಪೈಕಿ ಶಿವದೇವರನ್ನು ಮಾತ್ರ ಸರ್ವಶಕ್ತ ದೇವರೆಂಬ ನಂಬಿಕೆಯನ್ನು ಅದ್ವಿತೀಯವಾಗಿ ಮೂಡಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ. ಅವರು ಹೇಗೆ ಯಶಸ್ವಿಯಾಗಿ ಇತರ ವಿಷಯಗಳನ್ನು ತೆಗೆದುಹಾಕಿ ತಮ್ಮ ದಿವ್ಯ ದೇವನನ್ನು ಆಯ್ಕೆ ಮಾಡಿಕೊಳ್ಳುತ್ತಾರೋ ಎಂಬ ಬಗ್ಗೆ ನನಗೆ ಖಚಿತವಾಗಿ ನಂಬಿಕೆಯಿಲ್ಲ ಮತ್ತು ಹಿಂದೂಧರ್ಮದ ಸಂಸ್ಕೃತಿಯಲ್ಲಿ ಇತರೇ ಮತಗಳಲ್ಲಿರುವಂತೆ ವಿಷ್ಣುವನ್ನು ಪೂಜಿಸದೇ ಶಿವಾರಾಧನೆಯಲ್ಲಿ ತೊಡಗುವುದು ಅವಮಾನಕರ ವರ್ತನೆಯಾಗಿದೆ.
ಅಂತಿಮವಾಗಿ ನಾನು ಈ ವಿಚಾರಧಾರೆಗಳನ್ನು ತಪ್ಪು ಎಂದು ಹೇಳಲು ಬಯಸುವುದಿಲ್ಲ. ಇಲ್ಲಿ ಕೇವಲ ಈ ಚಳುವಳಿಯ ವಿಸ್ತಾರವನ್ನು ನಾವು ಗುರುತಿಸಬೇಕಾಗಿದೆ ಇದರ ವಿಚಾರಧಾರೆ ಅವರ ನಂಬಿಕೆಯ ವ್ಯಾಖ್ಯಾನವನ್ನು ಈ ಸಮಾನತೆಯ ಸಂಪೂರ್ಣತೆಯ ಚಿತ್ರವನ್ನು ಪ್ರದರ್ಶನ ಮಾಡಲು ಇದು ಸಿಗದೇ ಇದ್ದ ಪಕ್ಷದಲ್ಲಿ ತಮ್ಮ ವಿಭಿನ್ನತೆ ಅಥವಾ ವರ್ಗಗಳ ನೋಟಗಳಿಗೆ ಇದು ವಿಶ್ವಾಸಪೂರ್ಣವಾಗಿದೆ. ಕೇವಲ ಇದರ ಮೂಲ ಸ್ವಭಾವದಿಂದ ಮಾತ್ರ ಹಿಂದುತ್ವದ ಬ್ರಾಹ್ಮಣ ಸಂಸ್ಥೆಯಿಂದ ತಮ್ಮಲ್ಲಿಯೇ ಬೇರ್ಪಡುವುದು ಇದರ ಸಾಧನೆಯಲ್ಲಿನ ಬಿರುಕನ್ನು ತೋರಿಸುತ್ತದೆ ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬ ಮನುಷ್ಯ ಹಿಡಿದಿರುವ ನಂಬಿಕೆಯ ಮೌಲ್ಯಯುತ ಭಾವನೆ, ಸಂಪ್ರದಾಯ ಮತ್ತು ಧರ್ಮವನ್ನು ಒಳಗೊಂಡಿರುವುದಿಲ್ಲ.
ಇದರೊಂದಿಗೆ ಗಣಾಚಾರದ ಪರಿಕಲ್ಪನೆಯ ಜೊತೆಯಲ್ಲಿಯೇ ಶ್ರೇಷ್ಠತೆಯ ಅನಿಸಿಕೆಯಲ್ಲಿ ಬರುವಂತಹ ಸಮುದಾಯವನ್ನು ಸಿದ್ಧಾಂತದ ಜೊತೆಗೆ ನಿರ್ವಹಿಸುವಲ್ಲಿ ರಕ್ಷಣಾತ್ಮಕವಾಗಿರುತ್ತದೆ.
ಇದಕ್ಕಿಂತ ಹೆಚ್ಚಾಗಿ, ಅವರ ಕಲ್ಪನೆಯ ಯೋಚನೆಗಳು ಮುಖ್ಯವಾಹಿನಿಯಾದ ಹಿಂದೂಧರ್ಮದಿಂದ ಹೇಗೆ ವಿಭಿನ್ನವಾಗಿದೆಯೆಂಬ ಖಚಿತತೆಯು ನನಗಿಲ್ಲ ಕರ್ಮ ಮತ್ತು ಪುನರ್ಜನ್ಮದ ಸಂಪ್ರದಾಯ ಬದ್ಧವಾದಂತಹ ನೋಟವು ಇತರರ ಹಿಂಸೆ ಮತ್ತು ದಬ್ಬಾಳಿಕೆಯಿಂದಾಗಿ ವ್ಯಕ್ತಿಯನ್ನು ಸೇರಿಸಿಕೊಂಡ ಸಾಮಾಜಿಕ ನಿಲುವು ಅತ್ಯಗತ್ಯವಾಗಿದೆ ಇದು ಅವರು ಗಳಿಸಿದ ಕರ್ಮದಲ್ಲಿ ಅಸಮಾನತೆಯ ಬಗ್ಗೆ ಯಾವುದೇ ರೀತಿಯಲ್ಲಿ ಪರಿಗಣನೆಗೆ ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳದೇ ಮುಕ್ತಾಯವಾದಂತೆ ಆಗುತ್ತದೆ. ನಾನು ಈ ಹಿಂದೆಯೇ ಕರ್ಮ ಮತ್ತು ಪುನರ್ಜನ್ಮದ ಬಗ್ಗೆ ಬರೆದಿರುವ ಪತ್ರವು ಇಲ್ಲಿ ಸಹಾಯಕವಾಗಬಹುದಾಗಿದೆ.
ಆಶ್ಚರ್ಯಕರವಾಗಿ ಬಸವಣ್ಣನವರು ದೇವರಿಗೆ ಜನರು ನೇರವಾದ ಸಂಬಂಧದಲ್ಲಿ ಆರಾಧನೆಯನ್ನು ಅರ್ಪಿಸಬಹುದು ಮತ್ತು ಇದಕ್ಕೆ ಪೂಜಾರಿ ವರ್ಗದವರ ಮಧ್ಯಸ್ಥಿಕೆಯ ಅಗತ್ಯವಿಲ್ಲ ಎಂದು ಬೋಧಿಸಿದರು. ಆದಾಗ್ಯೂ ಇದರಲ್ಲಿ ಭಿನಾಭಿಪ್ರಾಯವಿದ್ದು ಅವರು ಬ್ರಾಹ್ಮಣ ಪೌರೋಹಿತ್ಯವನ್ನು ತೊಡೆದುಹಾಕಲು ಯತ್ನಿಸಿದರು ಆದರೆ ವ್ಯಂಗ್ಯವೆಂದರೆ ಅವರು ತಮ್ಮದೇ ಆದ ವಂಶಪಾರಂಪರ್ಯದ ಜಾತಿಯ ವ್ಯವಸ್ಥೆಯನ್ನು ಜಂಗಮರಾಗಿ ಚಳುವಳಿಯಲ್ಲಿ ಲಿಂಗಾಯಿತ ಪುರೋಹಿತರು ಅಥವಾ ಗುರುಗಳು ಪಾಲ್ಗೊಂಡರು. ಜೊತೆಗೆ ಇದು ಪ್ರಶ್ನಾರ್ಥಕವಾಗಿದ್ದು ಬಸವಣ್ಣ ಹೇಗೆ ಬ್ರಾಹ್ಮಣತ್ವವನ್ನು ಪರಿಣಾಮಕಾರಿಯಾಗಿ ತಿರಸ್ಕರಿಸಿದರು ಮತ್ತು ಚಳುವಳಿಯಲ್ಲಿ ಪ್ರಮುಖವಾಗಿ ತನ್ನ ಪೌರೋಹಿತ್ಯದ ಪಾತ್ರವನ್ನು ಪ್ರಚುರ ಪಡಿಸಿದರು. ಈ ಚಳುವಳಿಯನ್ನು ಕೊಡುಗೆಯಾಗಿ ನೀಡಿದ ವರ್ತುಲದ ನಾಯಕರು ಇದರ ಅಸ್ತಿತ್ವ ಸ್ಥಾಪಿಸುವೆಡೆಗೆ ಸಾಗಿದ್ದರು ಆದರೆ ಕೆಳ ಜಾತಿಯ ಅಥವಾ ದಲಿತ ಸದಸ್ಯರನ್ನು ಏಕೆ ರಾಯಭಾರಿಯನ್ನಾಗಿ ಜೊತೆಗೆ ಸೇರಿಸಲಿಲ್ಲ ಇದರಿಂದ ಬೋಧಿಸಿದ್ದನ್ನು ಆಚರಿಸಿರುವುದು ಹೇಗೆಂದು ಅರ್ಥಮಾಡಿಕೊಳ್ಳಬಹುದಾಗಿದೆ.
ಇನ್ನೂ ಮುಂದುವರೆದರೆ ಅಹಂಗ್ರಹೋಪಾಸನ ಧಾರ್ಮಿಕ ವಿಧಿಯ ಮೂಲಕ ಲಿಂಗಾಯಿತರು ಲಿಂಗವನ್ನು ಧರಿಸುವ ಮತ್ತು ಆರಾಧಿಸುವ ಮೂಲಕ ತಮ್ಮ ಹೆಸರನ್ನು ಪಡೆಯುತ್ತಾರೆ ಇದು ಶಿವನ ಮೂರ್ತಿರೂಪವಾಗಿದೆ. ಇಷ್ಟಲಿಂಗವನ್ನು ಪ್ರತಿನಿಧಿಸುವುದನ್ನು ಉದಾತ್ತಗೊಳಿಸುವ ವರೆಗೆ ಮತ್ತು ಶಿವನ ಸರ್ವೋಚ್ಛ ಘನತೆಯಲ್ಲಿ ಅವನ ದೈವತ್ವವನ್ನು ವಿಭೂತಿ ಮತ್ತು ಬೂದಿಯನ್ನು ಆವರಿಸಿರುವ ಕಲ್ಲಿನ ಪ್ರದರ್ಶನವು ಶಿವನ ಗೌರವದ ಪ್ರತೀಕವಾಗಿ ಯೋಚಿಸದೆಯೇ ಮಾಡಲಾಗುತ್ತದೆ. ಶಿವನನ್ನು ಕೆಳಕ್ಕೆ ತರಲು ಬೇಕಾದಂತಹ ಮೂಲ ಪ್ರದರ್ಶನಕ್ಕೆ ಅಸಮರ್ಥನೀಯ ಕಸದ ರಾಶಿಯಂತಹ ಭೂಮಿಯ ಅಶ್ಲೀಲತೆಯನ್ನು ಹೋಲಿಸಲಾಗದು. ಇದರ ಜೊತೆಯಲ್ಲಿ ಅವರು ವಿಗ್ರಹಾರಾಧನೆಯನ್ನು ತಿರಸ್ಕರಿಸಿದ್ದಾರೆ ಅದಲ್ಲದೇ ಹೋದರೂ ಇದು ಮೂರ್ತಿಯ ಆಭರಣದ ತುಂಡಿಗೆ ಆರಾಧನೆ ಮಾಡಿದಂತಾಗುತ್ತದೆ.
ಮತ್ತೊಂದು ಹೊಂದಾಣಿಕೆಯಿಲ್ಲದ ವಿಚಾರವೇನೆಂದರೆ ಅವರು ವಿಧಿವತ್ತಾದ ನಡವಳಿಕೆಯನ್ನು ತಿರಸ್ಕರಿಸಿದರು ಮತ್ತು ಅವರು ಇದುವರೆಗೂ ಆಚರಿಸುವ ಇಂತಹ ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳನ್ನು ಗಂಡು ಮಕ್ಕಳ ಮೇಲೆ ಪ್ರಯೋಗಿಸುವುದೇ ದೀಕ್ಷೆ ಮತ್ತು ಲಿಂಗವನ್ನು ದಿನಕ್ಕೆ ಎರಡು ಬಾರಿ ಅರ್ಪಿಸುವುದು ಪಂಚಾಚಾರಗಳ ಭಾಗವಾಗಿದೆ. ಕೆಲವು ಇತರೇ ವಿಧಿವತ್ತಾದ ನಡವಳಿಕೆಯನ್ನು ಒಂದಾಗಿಸಿ ತಮ್ಮ ನಿರಂತರ ಗಮನವೇ ಎಂಟು ಪದಕಗಳು ಅಥವಾ ಅಷ್ಟಾವರ್ಣ ಇದರ ಕೆಲವು ಕ್ರಿಯೆಗಳೆಂದರೆ: ಪಾದೋದಕ(ಕರುಣೋಧಕ)ದಲ್ಲಿ ಲಿಂಗವನ್ನು ಮೀಯಿಸಿದ ನೀರನ್ನು ಕುಡಿಯುವುದು, ಪ್ರಸಾದ(ಕರುಣಾ ಪ್ರಸಾದ)ವನ್ನು ಪವಿತ್ರ ಪೂಜೆಯಲ್ಲಿ ಅರ್ಪಿಸುವುದು, ವಿಭೂತಿ ತಮ್ಮ ಮೇಲೆಯೇ ಪವಿತ್ರವಾದ ಬೂದಿಯನ್ನು ಸಿಂಪಡಿಸಿಕೊಳ್ಳುವುದು, ಮಣಿಗಳನ್ನು ದಾರದಿಂದ ಪೋಣಿಸಿದ ರುದ್ರಾಕ್ಷಿಯನ್ನು ಧರಿಸುವುದು ಮತ್ತು ಕೊನೆಯದಾಗಿ ನಮಃ ಶಿವಾಯ ಮಂತ್ರವನ್ನು ಶಿವನ ಆರಾಧನೆಯೆಂದು ಪಠಿಸುವುದು. ಆದುದರಿಂದ ವಿಧಿವತ್ತಾದ ನಡವಳಿಕೆಯನ್ನು ತಳ್ಳಿಹಾಕಲು ಸಾಧ್ಯವಿಲ್ಲ ಆದರೆ ಇವುಗಳನ್ನು ತಮ್ಮ ಧಾರ್ಮಿಕ ಚಟುವಟಿಕೆಗಳ ಮೂಲವಾಗಿ ದೃಢಪಡಿಸುತ್ತಾರೆ.
ಏನೇ ಆದರೂ ನಾನು ತಿಳಿದಿರುವುದೇನೆಂದರೆ ಇತರರ ನಂಬಿಕೆಗಳ ವ್ಯವಸ್ಥೆಯನ್ನು ಟೀಕಿಸುವುದು ನನಗೆ ಸುಲಭವಾಗಿದೆ ಆದರೆ ಮತ್ತೊಮ್ಮೆ ಅವರು ತಮ್ಮ ಸಿಗದೇ ಇರುವ ನಂಬಿಕೆಯನ್ನು ಸುಲಭವಾಗಿ ಸಮರ್ಥಿಸಿಕೊಳ್ಳುತ್ತಾರೆ. ನಾನು ಚಳುವಳಿಯ ದುರ್ಬಲತೆ ಮತ್ತು ಕಿರು ಆಗಮನಗಳ ಕೆಲವೊಂದು ಅಸಮಂಜಸವಾದವುಗಳನ್ನು ಗುರುತಿಸಿದ್ದೇನೆ ಇವುಗಳ ಸವಾಲುಗಳ ಪರವಾಗಿ ಯಾವುದೇ ರೀತಿಯ ಅದ್ವಿತೀಯ ಸತ್ಯವನ್ನು ಗಳಿಸಲು ಶುಭಕೋರಿದ್ದೇನೆ. ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಧಾರ್ಮಿಕ ಚಳುವಳಿಗಳಲ್ಲಿ ಸಮಸ್ಯೆಗಳಿವೆ ಎನ್ನಬಹುದಾದರೆ ಅವುಗಳನ್ನು ಸರಳೀಕೃತಗೊಳಿಸುವುದು ಕಷ್ಟಕರ ಆದಾಗ್ಯೂ ಈ ಟೀಕೆಯು ನಿಮ್ಮಲ್ಲಿ ಈಗಾಗಲೇ ಬಂದಿರುವ ನಿಮ್ಮ ಹೃದಯದ ಅದ್ಭುತ ಅಥವಾ ಸಂದೇಹಗಳಿಂದ ಸತ್ಯವನ್ನು ಅಪೇಕ್ಷಿಸುವುದಾಗಿದೆ. ಇದೇ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಶಟ್ಸ್ಥಳವನ್ನು ಏರುವ ಏಣಿಯನ್ನು ಹತ್ತಲು ಪ್ರಯತ್ನಿಸುವ ಅಥವಾ ನೀವು ಯಾವಾಗಲಾದರೂ ಶೂನ್ಯವನ್ನು ಸಾಧಿಸುವ ನಿಟ್ಟಿನಲ್ಲಿ ಅಲೆದಾಡುವ ಅಥವಾ ಇಲ್ಲದಂತಹದ್ದನ್ನು ನಿಮ್ಮ ಅನುಭವವನ್ನು ಇದೇ ವಿಚಾರದಲ್ಲಿ ಭರವಸೆಯಿಲ್ಲದ ನಾಚಿಕೆ ಮತ್ತು ಅಪರಾಧಿ ಮನೋಭಾವವನ್ನು ನೀವು ಒಯ್ಯುವುದಾಗಿದೆ.
ಶುಭವಾದ ವಾರ್ತೆಯೇನೆಂದರೆ ನೀವು ನಿಮ್ಮ ಸ್ವಂತ ಬಲದಿಂದ ಏಣಿಯನ್ನು ಹತ್ತಬೇಕಾದ ಅವಶ್ಯಕತೆಯಿಲ್ಲ. ಯೇಸುವು ಅನಿರೀಕ್ಷಿತವಾಗಿ ಕೆಳಗೆ ಇಳಿದು ಬಂದು ನಮ್ಮನ್ನು ಕರೆದೊಯ್ಯುವರು ಮತ್ತು ನಮ್ಮನ್ನು ಎತ್ತಿಕೊಂಡು ದೇವರ ಪ್ರೀತಿಯ ಕರಗಳಲ್ಲಿ ಇಡುವರು. ನೀವು ಲಿಂಗಾಯತ ಸಂಪ್ರದಾಯವನ್ನು ಆಚರಿಸುತ್ತಿದ್ದರೆ ನಿಮಗೆ ಐಕ್ಯದ ಭರವಸೆಯು ಕಾಣಲು ಸಿಗಲಾರದು ಆದರೆ ಇಲ್ಲೊಂದು ನಂಬಿಕೆ ಇದೆ ಅದೆಂದರೆ ನೀವು ಯೇಸುವಿನ ಕೆಲಸಮಾಡುತ್ತಿದ್ದರೆ ಅಥವಾ ಅವರ ವ್ಯಕ್ತಿಗಳಾಗಿದ್ದರೆ ಅವರು ಬಂದು ನಮಗೆ ಅಗಾಧವಾದ ಧಾರ್ಮಿಕತೆಯ ಭಾದ್ಯತೆಯ ದಾಸ್ಯದ ಬಂಧನದಿಂದ ಬಿಡಿಸಿ ಅವರನ್ನು ನಂಬುವವರಿಗೆ ಸ್ವಾತಂತ್ರ್ಯವನ್ನು ನೀಡುತ್ತಾರೆ ಆತನು ಇವರಿಗೆ ಉಚಿತವಾಗಿ ಅಸುರಕ್ಷತೆಯಿಲ್ಲದ ಪರಂಧಾಮದ ಜೀವನವನ್ನು ಅನುಗ್ರಹಿಸುತ್ತಾರೆ. ಇದನ್ನು ಸಾಧನೆಯೊಂದಿಗೆ ಗಳಿಸಬೇಕು ಅಥವಾ ದೇವರನ್ನು ಸಂಪೂರ್ಣತೆಯಿಂದ ಸ್ವೀಕಾರ ಮಾಡಬೇಕು. ಅವರು ಖಂಡಿತವಾಗಿ ಅನುಗ್ರಹಿಸುವರು ಮತ್ತು ನಿಮ್ಮನ್ನು ದೇವರೊಂದಿಗೆ ಉಚಿತವಾಗಿ ಒಂದಾಗಿಸುವರು ಹೀಗೆ ಅವರು ರಕ್ಷಣೆ ಮತ್ತು ಹೊರೆಗಳನ್ನು ನಿವಾರಣೆ ಮಾಡಿ ನಮ್ಮ ಆತ್ಮಗಳನ್ನು ತಮ್ಮ ತೋಳ್ಬಲದಿಂದ ನಮ್ಮನ್ನು ಸನ್ನಡತೆಯತ್ತ ಒಯ್ಯುವರು. ನೀವು ತಿಳಿದಿರಬಹುದು ಯೇಸು ವಿದೇಶದ ರೂಪದಲ್ಲಿರುವವರು ಇವರು ಪಾಶ್ಚಾತ್ಯ ಧರ್ಮವನ್ನು ವ್ಯಕ್ತಪಡಿಸುತ್ತಾರೆಂದು ಮತ್ತು ಕ್ರೈಸ್ತಧರ್ಮದ ಮೂಲವು ಪೂರ್ವ ದೇಶಗಳಲ್ಲಿದೆ ಇದರ ಮೂಲ ಇಸ್ರೇಲ್ ಆಗಿದ್ದು ಇದು ಏಷಿಯಾದ ಒಂದು ಭಾಗವಾಗಿದೆ. ಕ್ರೈಸ್ತಧರ್ಮವು ಪಾಶ್ಚಿಮಾತ್ಯ ದೇಶಗಳಲ್ಲಿ ವ್ಯಾಪಕವಾಗಿ ಹರಡಲು ಕಾರಣವೇನೆಂದರೆ ದೇವರು ಯೇಸುವನ್ನು ಬಳಕೆ ಮಾಡಿಕೊಂಡು ಪೂರ್ವ ಮತ್ತು ಪಶ್ಚಿಮ ದೇಶಗಳನ್ನು ಒಂದು ಮಾಡಲೆಂದು ಹಾಗು ಜನಾಂಗೀಯ ಮತ್ತು ಸಾಮಾಜಿಕ ಚೌಕಟ್ಟನ್ನು ತೊಡೆದುಹಾಕಲು ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಬುಡಕಟ್ಟು, ಭಾಷೆ ಮತ್ತು ದೇಶಗಳನ್ನು ಐಕ್ಯಗೊಳಿಸಲು ಪ್ರಪಂಚವನ್ನು ಯೇಸುವಿನ ಪವಿತ್ರ ಬಾವುಟದ ಅಡಿಯಲ್ಲಿ ತರುವಂತೆ ಮಾಡುವುದು ಮತ್ತು ಯೋವಾನ್ನರ ಶುಭಸಂದೇಶದಲ್ಲಿ ವಿವರಿಸಿರುವಂತೆ ಕೆಲಸವನ್ನು ರಕ್ಷಿಸುವುದಾಗಿದೆ.
ಯೊವಾನ್ನ 3:16,17
16 ದೇವರು ಲೋಕವನ್ನು ಎಷ್ಟಾಗಿ ಪ್ರೀತಿಸಿದರೆಂದರೆ ತಮ್ಮ ಏಕೈಕ ಪುತ್ರನನ್ನೇ ಧಾರೆಯೆರೆದರು; ವಿಶ್ವಾಸವಿಟ್ಟ ಯಾರೂ ನಾಶವಾಗದೇ ಎಲ್ಲರೂ ನಿತ್ಯಜೀವವನ್ನು ಪಡೆಯಬೇಕೆಂಬುದೇ ದೇವರ ಉದ್ಧೇಶ. 17 ದೇವರು ತಮ್ಮ ಪುತ್ರನನ್ನು ಈ ಲೋಕಕ್ಕೆ ಕಳುಹಿಸಿದ್ದು ಲೋಕವನ್ನು ತೀರ್ಪಿಗೆ ಗುರಿಮಾಡಲೆಂದಲ್ಲ, ಆತನ ಮುಖಾಂತರ ಲೋಕವನ್ನು ಉದ್ಧಾರ ಮಾಡಲೆಂದು.
ನೀವು ಬದಲಾವಣೆಯ ಬಗ್ಗೆ ಅರ್ಥಮಾಡಿಕೊಳ್ಳಲು ಅಥವಾ ಸತ್ಯವನ್ನು ಎಲ್ಲಿಯಾದರೂ ಕಂಡುಕೊಳ್ಳಲು ಶಕ್ತರಾಗಿರಬೇಕು ಮತ್ತು ನಾನು ನಿಮಗೆ ಹೀಗೆಯೇ ಕೇಳುತ್ತೇನೆ ನೀವು ಯೇಸುವಿನೊಂದಿಗೆ ಇರುವಂತಹ ಇತರೇ ಸಾಧ್ಯತೆಗಳನ್ನು ಪರಿಗಣಿಸಬೇಕು. ಕೊನೆಯಲ್ಲಿ ನಾನು ವಿಶ್ವಾಸಿಸುತ್ತೇನೆ ನೀವು ನನ್ನನ್ನು ಕ್ಷಮಿಸುವಿರೆಂದು ನಿಮಗೆ ಹೇಳಲಾದ ಮೇಲ್ಕಂಡ ವಿಷಯಗಳ ಪತ್ರದಲ್ಲಿ ನನ್ನ ಉದ್ಧೇಶವು ದೋಷಾರೋಪಣೆಯನ್ನು ಮಾಡುವುದಲ್ಲ ಆದರೆ ತಪ್ಪು ವಾದಗಳನ್ನು ವಿರೋಧಿಸಲು ಅಗತ್ಯವಾದ ಪ್ರಯತ್ನವನ್ನು ಆರಾಧಕರ ಒಳಿತಿಗಾಗಿ ಮಾಡಿರುತ್ತೇನೆ.
ಕೊನೆಯಲ್ಲಿ ನಾನು ಕೆಲವು ಕನ್ನಡದ ಮತ್ತು ಹಿಂದಿ ಸಂಪನ್ಮೂಲಗಳನ್ನು ಒದಗಿಸಲು ಇಚ್ಛಿಸುತ್ತೇನೆ ಇವು ನಿಮಗೆ ಈ ವಿಷಯದಲ್ಲಿ ಯಾವುದೇ ಸಂಶೋಧನೆ ಮಾಡಲು ನಿಮಗೆ ನೆರವಾಗಬಹುದು. ಅಂತಿಮವಾಗಿ ನಾನು ಕೇಳಿರುವೆನು ನೀವು ಪ್ರಾಮಾಣಿಕವಾಗಿ ಮತ್ತು ಸರಳವಾಗಿ ಕೇಳಿ ಮತ್ತು ದೇವರನ್ನು ಪ್ರಾರ್ಥನೆಯಲ್ಲಿ ಹುಡುಕಿ ಯೇಸುವನ್ನು ಅರಿತುಕೊಳ್ಳುವ ಇಂತಹ ಮಾರ್ಗಗಳಲ್ಲಿ ನಂಬಿಕೆಯನ್ನು ಇಡಬೇಕೆಂದು ನಾನು ನಿಮ್ಮಲಿ ಕೇಳುತ್ತೇನೆ.
ಮತ್ತಾಯ 7:7-8
7“ಕೇಳಿರಿ, ನಿಮಗೆ ಕೊಡಲಾಗುವುದು; ಹುಡುಕಿರಿ, ನಿಮಗೆ ಸಿಗುವುದು; ತಟ್ಟಿರಿ ನಿಮಗೆ ಬಾಗಿಲು ತೆರೆಯಲಾಗುವುದು. 8 ಏಕೆಂದರೆ ಕೇಳಿಕೊಳ್ಳುವ ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬನಿಗೂ ಕೊಡಲಾಗುವುದು, ಹುಡುಕುವವನಿಗೆ ಸಿಗುವುದು, ಮತ್ತು ತಟ್ಟುವವನಿಗೆ, ಬಾಗಿಲು ತೆರೆಯಲಾಗುವುದು.
ಮತ್ತಾ 11:28-30
28 “ದುಡಿದು ಭಾರ ಹೊತ್ತು, ಬಳಲಿ ಬೆಂಡಾಗಿರುವ ಸರ್ವಜನರೇ, ನೀವೆಲ್ಲರೂ ನನ್ನ ಬಳಿಗೆ ಬನ್ನಿರಿ; ನಾನು ನಿಮಗೆ ವಿಶ್ರಾಂತಿ ಕೊಡುತ್ತೇನೆ. 29 ನಾನು ವಿನಯಶೀಲನು, ದೀನ ಹೃದಯನು; ನನ್ನ ನೊಗಕ್ಕೆ ಹೆಗಲು ಕೊಟ್ಟು ನನ್ನಿಂದ ಕಲಿತುಕೊಳ್ಳಿರಿ. ಆಗ ನಿಮಗೆ ವಿಶ್ರಾಂತಿ ಸಿಗುವುದು. ನನ್ನ ನೊಗ ಹಗುರ, ನನ್ನ ಹೊರೆ ಸುಗಮ”
Encyclopedia of Religion Second Edition, copyright 2005 Thomson Gale a part of The Thomson Corporation, Lindsay Jones Editor in Chief, Vol.7, pg.4430, Jan Gonda
Encyclopedia of Religion Second Edition, copyright 2005 Thomson Gale a part of The Thomson Corporation, Lindsay Jones Editor in Chief, Vol.12, pgs.8043-8044, Andre Padoux
ಮಾನವನನ್ನು ಒಳಗೊಂಡಂತೆ ಎಲ್ಲಾ ವಸ್ತುಗಳನ್ನು ದೇವರು ರಚಿಸಿದರು ಎಂಬುದನ್ನು ಬೈಬಲ್ ನಮಗೆ ಕಲಿಸುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ದೇವರು ಪರಿಪೂರ್ಣರು ಮತ್ತು ಉತ್ತಮರು ಆಗಿದ್ದರೂ ಕೂಡಾ, ಮಾನವನು ಹಾಗಾಗಲಿಲ್ಲ. ದೇವರು ಮಾನವನನ್ನು ಸ್ವತಂತ್ರವಾದ ಮಾದರಿ ಪ್ರತಿನಿಧಿಯನ್ನಾಗಿ ಉಂಟುಮಾಡಿ ಅವನಿಗೆ ದೇವರು ಮತ್ತು ಸೈತಾನನ ನಡುವಿನ ಆಯ್ಕೆಯ ಸಾಮರ್ಥ್ಯವನ್ನು ನೀಡಿದರು. ದೇವರ ಪವಿತ್ರ ಗ್ರಂಥ, ಬೈಬಲ್, ದೇವರು ತನ್ನಷ್ಟಕ್ಕೆ ತಾನೆ ಮಾಡಿಕೊಂಡ ದಿವ್ಯದರ್ಶನ ಆಗಿದ್ದು, ಇದು ನಾವೆಲ್ಲರೂ ಪಾಪಿಗಳು ಮತ್ತು ಆತನ ಮಹಿಮೆಯಲ್ಲಿ ಹಿಂದೆ ಬಿದ್ದವರೆಂದು ನಮಗೆ ತಿಳಿಸಿಕೊಡುತ್ತದೆ.
ನಾನು ಕೆಲವು ಆಜ್ಞೆಗಳನ್ನು ಹೆಸರಿಸುವುದಾದರೆ, ಇವು ಕಾನೂನಿನ ನೀತಿಯ ಮೂಲಗಳಾಗಿವೆ, ದೇವರ ನಿಯಮಗಳನ್ನು ಯಾವುದೇ ಹಂತದಲ್ಲಿಯೂ ಯಾರೊಬ್ಬರೂ ಕೂಡ ಉಲ್ಲಂಘಿಸಿ ನಡೆಯುವಂತಿಲ್ಲ. ಬೇರೆ ದೇವರ ಸೇವೆ ಮಾಡುವುದು ಅಥವಾ ನಮ್ಮ ಪೂರ್ಣ ಹೃದಯದಿಂದ ದೇವರನ್ನು ಪ್ರೀತಿಸುವಲ್ಲಿನ ವಿಫಲತೆ ಸಂಪೂರ್ಣವಾಗಿ ತೊಡಗಿಸಿಕೊಳ್ಳುವ ಜೊತೆಗೆ ದೇವರ ಹೆಸರನ್ನು ದುರ್ಬಳಕೆ ಮಾಡಿಕೊಳ್ಳುವುದರ ಮೂಲಕ ದೇವರನ್ನು ಮತ್ತು ಇತರ ವ್ಯಕ್ತಿಗಳನ್ನು ಹಿಂಸಿಸುವುದೇ ಪಾಪವಾಗಿದೆ. ಈ ಆಜ್ಞೆಗಳು ನಮ್ಮ ಪೋಷಕರಿಗೆ(ತಂದೆ-ತಾಯಿ) ಅವಿಧೇಯರಾಗಿರುವುದು, ಕೊಲೆ, ಇದು ದ್ವೇಷಕ್ಕೆ ಸಮಾನವಾಗಿದೆ, ನಮ್ಮ ಕಣ್ಣುಗಳಿಂದ ನೋಡುವ ನೋಟಕ್ಕೆ ಸಂಬಂಧಿಸಿದ ವ್ಯಭಿಚಾರ, ಕದಿಯುವುದು, ನಮ್ಮ ನೆರೆಯವರ ವಿರುದ್ಧ ಸುಳ್ಳು ಸಾಕ್ಷಿ ಹೇಳುವುದು, ಮತ್ತು ದುರಾಸೆ ಮತ್ತು ಪ್ರೇರಣೆಗಳಿಂದಾಗಿ ಇತರೇ ವ್ಯಕ್ತಿಗಳ ಆಸ್ತಿ ಅಥವಾ ಪತ್ನಿಯನ್ನು ದುರಾಸೆ ಪಡುವುದರ ನಂತರದಲ್ಲಿ ಬರುತ್ತದೆ.
ಈ ಹಿಂಸೆಯು ದೇವರಿಂದ ಶಾಶ್ವತವಾಗಿ ನಮ್ಮನ್ನು ಬೇರ್ಪಡಿಸಲು ಅಥವಾ ದೂರಮಾಡಲು ಕಾರಣವಾಗಿದೆ. ಪಾಪದ ಸಹವಾಸದಲ್ಲಿ ಇರುವವರನ್ನು ಸ್ವಯಂ ಪವಿತ್ರರಾಗಿರುವ ದೇವರು ಬರಮಾಡಿಕೊಳ್ಳಲಾರರು. ಪಾಪವು ದೇವರಿಗೆ ಕೋಪವನ್ನು ತರಿಸುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ಆತನ ನ್ಯಾಯ ನಿರ್ಣಯವು ಇಲ್ಲಿ ಮಾತ್ರವಲ್ಲದೇ ಸ್ವರ್ಗದಲ್ಲೂ ಇದೆ. ಬೈಬಲ್ ಇದನ್ನು ಒಂದು ಸ್ಥಳವೆಂದು ಇದರಲ್ಲಿ ಬೆಂಕಿ ಆರಿಸಲಾಗಿರುವುದಿಲ್ಲ ಮತ್ತು ಅಲ್ಲಿ ದೊಡ್ಡ ದುಃಖವನ್ನು ಅನುಭವಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ ಎನ್ನುತ್ತದೆ.
ಇಂತಹ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಭರವಸೆಯೇ ಇರುವುದಿಲ್ಲ ಆದರೆ ದೇವರು ಪಾಪ ರಹಿತರಾದ ಮೆಸ್ಸಾಯ(ರಕ್ಷಕ)ರನ್ನು ಕಳುಹಿಸಿರುವುದು ಶುಭ ಸಂದೇಶವಾಗಿದೆ. ಅವರ ಕೃತ್ಯಗಳು ಜನರನ್ನು ದೇವರ ಬಳಿಯಲ್ಲಿ ಪ್ರಾರ್ಥಿಸುವಂತೆ ಮಾಡಿದೆ ಮತ್ತು ಅವರ ದೈಹಿಕ ಜೀವನವನ್ನು ನಮ್ಮ ಪರವಾಗಿ ಬದಲಾಯಿಸಿರುವುದರಿಂದ ಅದು ದೇವರ ನ್ಯಾಯ ನಿರ್ಣಯವನ್ನು ತೃಪ್ತಿಗೊಳಿಸಿರುವುದರ ಮೂಲಕ ಇದನ್ನು ಅವರು ಮಾಡಿರುತ್ತಾರೆ.
ಅವರು ಕೇವಲ ಮಾನವೀಯತೆಯನ್ನು ರೂಪಿಸುವ ಶಾಂತಿಯನ್ನು ನಮಗಾಗಿ ದೇವರಲ್ಲಿ ನೀಡಿದ್ದಾರೆ ಮಾತ್ರವಲ್ಲ ಬದಲಾಗಿ ಅವರು ಸತ್ತವರೊಳಗಿಂದ ಎಬ್ಬಿಸಲ್ಪಟ್ಟವರು ಮತ್ತು ಅವರಲ್ಲಿ ನಂಬಿಕೆಯನ್ನು ಇಟ್ಟಂತಹ ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬರನ್ನು ಅವರು ಸ್ವೀಕರಿಸಲು ನಿರೀಕ್ಷಿಸುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ನಾವು ಮರಣಕ್ಕೆ ಈಡಾದ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ನಮ್ಮ ದೇಹಗಳು ಮಾತ್ರ ಸಾಯುತ್ತವೆ ಆದರೆ ನಾವು ಅವರೊಂದಿಗೆ ಇರುತ್ತೇವೆ ಮತ್ತು ಇದನ್ನೇ ಬೈಬಲ್ ಶಾಶ್ವತ ಜೀವನ ಎಂದು ವಿವರಿಸುತ್ತದೆ.
ಇವೆಲ್ಲವೂ ನಾವು ಹೃದಯದ ಆಳದಿಂದ ಪಾಪ ನಿವೇದನೆಯನ್ನು ನಂಬಿಕೆಯಿಂದ ಯೇಸುವಿನಲ್ಲಿ ಅವರೇ ನಮ್ಮ ರಕ್ಷಕರೆಂದು ಅವರು ಪಾಪಗಳನ್ನು ನಿವಾರಿಸುವರು ಮತ್ತು ದೇವರೊಂದಿಗೆ ಶಾಂತಿಯನ್ನು ನಮಗಾಗಿ ತಂದಿರುವರು ಎಂದು ಪ್ರಕಟವಾಗುತ್ತದೆ.ಇದುವೇ ಅವರನ್ನು ದೇವರೆಂದು ಒಪ್ಪಿಕೊಳ್ಳುವುದು ಎಂದರೆ ಅವರನ್ನು ನಿಷ್ಠೆಯಿಂದ ಸೇವೆ ಮಾಡುವುದು ಕೂಡ ಸೇರಿದೆ.
ನಾವು ಇಂತಹ ಸಾಮರ್ಥ್ಯದಲ್ಲಿ ಯೇಸುವನ್ನು ಸ್ವೀಕರಿಸಿದಾಗ ಅವರು ಸ್ವರ್ಗದ ತುಣುಕಾದ ವ್ಯಕ್ತಿಯಾದಂತಹ ಪವಿತ್ರ ಆತ್ಮನನ್ನು ಕಳುಹಿಸುವರು ಅದು ಶಾಶ್ವತವಾಗಿ ನಮ್ಮನ್ನು ಸಹಕರಿಸಿ ನಮ್ಮ ಜೀವನವನ್ನು ದೇವರಲ್ಲಿ ಜೀವಿಸುವಂತೆ ಮಾಡಲು ಸಹಕಾರಿಯಾಗಿದೆ.
ಈ ನಂಬಿಕೆಯ ಪ್ರಕ್ರಿಯೆಯು ಸಂಸ್ಕಾರದ ಆಚರಣೆಯಾದ ಸ್ನಾನ ದೀಕ್ಷೆ ಅಥವಾ ದೀಕ್ಷಾ ಸ್ನಾನವು ನೀರಿನ ಮಹತ್ವಕ್ಕೆ ಸಂಬಂಧಿಸಿರುವಂತದ್ದಾಗಿದೆ. ಈ ಕೆಲಸವು ದೈಹಿಕವಾಗಿ ಹೊಸ ಜನನವಾಗಿದ್ದು ದೇವರ ಆಂತರಿಕ ಕೆಲಸದ ಜ್ಞಾಪಕಾರ್ಥವಾಗಿ ಸೂಚಿಸಿ ನಿರ್ಧರಿಸಲ್ಪಡುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ಈ ಕೃತ್ಯವು ಪಾಪ ನಿವೇದನೆಯ ಮೂಲಕ ಆಂತರಿಕವಾಗಿ ಹೊಸ ವ್ಯಕ್ತಿಯಾಗಿ ಪರಿವರ್ತನೆಯಾಗಿ ಆಧ್ಯಾತ್ಮದ ಸತ್ಯತೆಯನ್ನು ಸಂಪರ್ಕಿಸುತ್ತದೆ.
ಈ ಸಂಪೂರ್ಣ ಹಂತವು ಸರಳ ಪ್ರಕ್ರಿಯೆಯಂತೆ ಕಾಣಿಸಿದರೂ ಕೂಡ ಇದರಲ್ಲಿ ಶ್ರೇಷ್ಠವಾದ ಪ್ರಾಮುಖ್ಯತೆ ಮತ್ತು ಅರ್ಥವನ್ನು ತುಂಬಿಕೊಂಡಿದೆ. ಯೇಸು ನಿಮ್ಮನ್ನು ಹೀಗೆ ಹೇಳುತ್ತಾ ಆಹ್ವಾನಿಸುತ್ತಾರೆ “ ದುಡಿದು, ಭಾರಹೊತ್ತು ಬಳಲಿ ಬೆಂಡಾಗಿರುವ ಸರ್ವಜನರೇ, ನೀವೆಲ್ಲರೂ ನನ್ನ ಬಳಿಗೆ ಬನ್ನಿರಿ; ನಾನು ನಿಮಗೆ ವಿಶ್ರಾಂತಿಯನ್ನು ಕೊಡುತ್ತೇನೆ. ನಾನು ವಿನಯಶೀಲನು, ದೀನಹೃದಯನು; ನನ್ನ ನೊಗಕ್ಕೆ ಹೆಗಲುಕೊಟ್ಟು ನನ್ನಿಂದ ಕಲಿತುಕೊಳ್ಳಿ. ಆಗ ನಿಮಗೆ ವಿಶ್ರಂತಿ ಸಿಗುವುದು. ನನ್ನ ನೊಗ ಹಗುರ, ನನ್ನ ಹೊರೆ ಸುಗಮ”.
ನನ್ನ ಗೆಳೆಯರೇ ಇಂದು ನೀವು ಅವರು ನಿಮ್ಮನ್ನು ಕರೆಯುತ್ತಿರುವ ಧ್ವನಿಯನ್ನು ಆಲಿಸಿದ ನಂತರ ದಯವಿಟ್ಟು ನಿಮ್ಮ ಹೃದಯವನ್ನು ಕಠಿಣ ಮಾಡಿಕೊಳ್ಳಬೇಡಿ ಆದರೆ ಅದರ ಬದಲಾಗಿ ನಿಮ್ಮ ಜೀವನವನ್ನು ನಿಮ್ಮ ಆತ್ಮದ ಮೇಷಪಾಲಕರಲ್ಲಿ ಒಪ್ಪಿಸಿರಿ. ಅವರು ನಿಮ್ಮನ್ನು ಪ್ರೀತಿಸುತ್ತಾರೆ ಮತ್ತು ನಿಮಗೆ ಶಾಂತಿಯನ್ನು ಅನುಗ್ರಹಿಸುತ್ತಾರೆ ಅದು ಎಲ್ಲಾ ಅರ್ಥಗಳನ್ನು ಮೀರಿದ್ದಾಗಿದೆ ಮತ್ತು ಸಿಗುವ ಆನಂದವು ಹೇಳಲಸಾಧ್ಯವಾಗಿರುತ್ತದೆ. ನಿಮ್ಮ ಜೀವನದಲ್ಲಿ ಯಾವುದೇ ಬಿರುಗಾಳಿ(ಅಡ್ಡಿ ಆತಂಕ)ಗಳು ಕಾಣಿಸಿಕೊಳ್ಳಲಾರವು ಎಂದು ಇದರ ಮೂಲಕ ಹೇಳಲಾಗುತ್ತಿಲ್ಲ ಆದರೆ ಅವರು ನಮ್ಮನ್ನು ಕೈಬಿಡುವುದಿಲ್ಲ ಇಲ್ಲವೇ ನಮ್ಮನ್ನು ತಳ್ಳಿಬಿಡುವುದಿಲ್ಲ ಎಂದು ನಮಗೆ ವಚನ ನೀಡುತ್ತಾರೆ.
ಕೊನೆಯಲ್ಲಿ ನಾನು ನಿಮಗೆ ಅವರು ಪ್ರಕಟವಾಗಲು ಸತ್ಯದ ಮತ್ತು ಸ್ಪಷ್ಠವಾದ ಮಾರ್ಗದಲ್ಲಿ ಆತನಲ್ಲಿ ನಂಬಿಕೆಯನ್ನಿಡಲು ಪ್ರಾರ್ಥಿಸುವಂತೆ ಉತ್ತೇಜಿಸುತ್ತೇನೆ. ನೀವು ಇದನ್ನು ನಿಷ್ಠೆಯಿಂದ ಮತ್ತು ಪ್ರಾಮಾಣಿಕತೆಯ ಹೃದಯದಿಂದ ಮಾಡಿದರೆ ನಿಮಗೆ ನಿರಾಸೆ ಉಂಟಾಗದು ಇದರಿಂದ ಸರ್ವಶಕ್ತರನ್ನು ಭುಜಿಸಲು ಮತ್ತು ಕಾಣಲು ನಾವು ಅಲಂಕಾರಿಕವಾಗಿ ಉತ್ತೇಜಿತರಾಗಿದ್ದೇವೆ. ಆಮೆನ್