मेहर बाबा को हमारे उम्र का दिव्य अवतार कहा जाता है और भारत के पंथ घटना-क्रम में ये बात बिलकुल साधारण है जिसमें गुरुओं, स्वामिओं और अवतारों का अप्ना अप्ना हिस्सा विशिष्ट है. भारत में इस तरह के रहस्यमय और गुप्त व्यक्तियों का एक प्रवृत्ति है जो आध्यात्मिक मैदान पर भव्यता की विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं. मेरा प्रश्न ये है के किसी के भी लिए ज्ञान का दावा करना कौन सा मानक या अवस्था के आधार पर किया जाता है क्योंकि ये तो एक व्यक्तिपरक अनुभव है? इसके अलावा बस एक तथाकथित आध्यात्मिक अनुभव होना ही तो किसी को संभ्रांतवादी होने के लिए योग्य नहीं ठहराता है. तो मिथ्याकरण की प्रक्रिया के माध्यम से उनके वादा किए हुए मूल्यों में विसंगतियों या विरोधाभासों का पता लगाया जा सकता है और किसी भी समूह और व्यक्तिओं में सच्चाई के दावों पर विचार करते समय मैं यही दृष्टिकोण उपयोग करता हूँ.
मुझे एक बात लगता है कि जब एक व्यक्ति या आध्यात्मिक नेता / गाइड खुद के बारे में असाधारण टिप्पणी कर रहा है तो उसके मानसिक स्वास्थ पर विचार करना जरूरी है. सिर्फ इसलिए कि कोई बेहद बुद्धिमान, शिक्षित और करिश्माई है इसका मतलब ये नही है के वो मानसिक विवेक में भी बिलकुल सही है. मुझे एक बार एक मनोवैज्ञानिक परिक्षण लेना पड़ा था जिसका नाम था मिन्नेसोटा मल्टीफेजिक पर्सनालिटी इन्वेंटरी और उन्होंने मुझे उस प्रकार के प्रश्न पूछे जैसे के मुझमें कोई अलग प्रकार के धार्मिक उद्भावनाएं हैं जैसे के मुझे लगता है के मैं अध्यात्मिक महत्व या अर्थ का इंसान हूँ. मुझको इस प्रकार की घटना पहले देखने का मौका तब मिला जब मैं जेरुसलेम में था और मैंने वहाँ पाया के ऐसे कई सारे लोग थे जो खुद को राजा दाऊद या शायद एलिय्याह मानते थे. इस हालत को यरूशलेम सिंड्रोम के रूप में बताया गया था और इन लोगों के लिए जो मानसिक रूप से असंतुलित हैं, एलिय्याह वार्ड नाम का विशेष वार्ड है.
इसके अलावा, कलेज में पढते वक्त मैं एक मानसिक स्वास्थ्य वार्ड में काम करता था और उस सुविधा में कुछ ऐसे प्रकार के लोग थे जिनका अलग अलग मुद्दा था और उन में से कुछ तो ऐसी चीजें देखते और सुनते थे जो और कोई नही कर पाता था और फीर भी कुछ लोगों के मानदंडों पर आधारित होकर ये कह सकते हैं के इस प्रकार की गतिविधियां असामान्य मानने के वजाए वांछनीय माना जाता है. अब ये बात मेरवन शेरिअर इरानी के आवाज सुनने और दृश्य सुनने के साथ साथ सर को दीवार पर पटकने के बातों पर प्रश्न खड़ा करता है जो मानसिक विकार या बिगड़े हुए मानसिकता का प्रदर्शन हो सकता है. मैं ये सब बातें कह रहा हूँ ताकि उस पंथ के नेता को उनके प्रेरणा के लिए संदेह का लाभ मिल सके और फिर भी ऐसे कई सारे लोग हैं जो पूरी तरह से जानते हैं के वो क्या कर रहे हैं और उनके क्षमता के बारे में भी पूरी तरह से चेतनशील हैं पर वो दूसरों को जानबुझ कर हेरफेर और नियंत्रण करते हैं और दीमाग धोने वाला प्रयास करते हैं ताकि वो अपने श्रेष्ठता के बारे में विश्वास दिलाने में लोगों को लुभा सकें.
एक और बात जिस पर विचार करना जरूरी है वो ये है के कुछ लोगों के पास खुद को ही धोका देने का रहस्यमय क्षमता होता है और अगर किसी और प्रकार के आध्यात्मिक गुरुओं से या फिर उनके चेलों या मंडली से उनके व्यक्तित्व को बढ़ावा देने वाले काम होते हैं तो उस प्रकार के व्यवहारों को वो सिर्फ और मजबूत बनाता है. इसके अलावा सिर्फ इसलिए कि कोई इंसान ईमानदार है इसका ये मतलब नही है के वो इमानदारी के साथ गलत नही हो सकता है.
इससे मुझे यिर्मयाह १७:९ के बाइबलिय परिच्छेद का याद आता है.
व्यक्ति का दिमाग बड़ा कपटी होता है. दिमाग बहुत बीमार भी हो सकता है और कोई भी व्यक्ति दिमाग को ठीक ठीक नही समझता.
फिर भी ऐसे कई सारे भ्रमित और काल्पनिक विचार उनके आध्यात्मिक गुरु उपासनी महाराज की शिक्षा भी हो सकती है जिन्होंने ये कहा था के मेहर बाबा इस सदी के सदगुरु हैं और बड़े पैमाने पर दुनिया / मानवता इस बात से लाभान्वित होगा. हालांकि, भले ही उन्होंने कुछ मानवीय और परोपकारी कार्य भी किया है पर ऐसे और कई सारे लोग हैं जिन्होंने बिना कोई परमात्मा के शीर्षक के ही समाज में उसके बराबर का योगदान दिया है, जैसे की मदर टेरेसा.
वैसे भी अगर इस पूरे विश्वास के बारे में बात करें के मेरवन शेरिअर ईरानी इश्वर के एक अद्वितीय अभिव्यक्ति या एक दिव्य अवतार हैं तो ये बात परमेश्वर के एक होने के बात से विपरीत है क्योंकि अगर वास्तव में हरेक व्यक्ति इश्वर हो, चाहे किसी को उसके बारे में मालूम हो या नही, या फिर एहसास हो या नही तो फिर व्यक्तिगत फरक की तो कोई आवश्यकता नही होगी. इसके अलावा अगर इश्वर के बारे में सर्वेश्वर्वाद्का सोच रख कर ये कहा जाए के वो ब्रह्माण्ड हैं और सभी जगह पर हैं तो परमेश्वर को स्थानिक रूप से किसी अवतार में कैसे लाया जा सकता है?
इसके अतिरिक्त मेहर बाबा के ब्रह्माण्ड विज्ञान विचार तो इस बात की भी समर्थन करता है के अकार्बनिक पदार्थ से कार्बनिक पदार्थों में परिवर्तन हो कर विकास जगह लेता है और ये मानव अस्तित्व के साथ भी जुड़ा हुआ है जिसका विकास के विभिन्न चरण होते हैं जिसका माध्यम पुनर्जन्म है और इसको संक्रमण भी किया जाता है. यह प्रगति एक सचेत निर्णय या वस्तु का लहर / पीछा करने जैसा है जो इश्वर के चेतना को हासिल करने में मदत करता है पर ये बात मुझे समझ नही आता क्योंकि चट्टान या पत्थर के तो मस्तिस्क भी नही होता है. हमें प्राकृतिक या जैविक दृष्टिकोण से कम से कम ये पता है के निर्जीव पदार्थ जैविक पदार्थ को जन्म नही दे सकता है और ये बायोजेनेसिस के वजह से होता है और इसके बाबजूद भी इसको आध्यात्मिक वास्तविकता के सामान आंकना विश्वास से परे बातें हैं.
कुछ अन्य दावा जो वो कर रहे हैं उसमें ये है के किसी भी समय में ५६ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनको ‘भगवान का एहसास’ वाला आत्मा कहा जा सकता है और फिर भी उनको ये सब कैसे पता चला जब के वो अपने पूरे “सर्वज्ञता” में ये भी नही कह सके के उनके समय के ५ आध्यात्मिक स्वामिओं जिसमें सिरडी के साईं बाबा, उपासनी महारज, हज़रात ववियन, हज़रात ताजुद्दीन बाबा और नारायण महाराज सामिल थे, उनके मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी कौन हैं. वह ये भी कहते हैं के अन्य ग्रहों पर भी मानव जीवन है और अगर उनको ये भी नही पता के इन पूर्ण स्वामिओं के प्रतिस्थापन कौन हैं तो उनको अलौकिक जीव के बारे में कैसे ज्ञान मिला?
इसके अलावा उनका ये कहना के हर ७००-१४०० साल में एक अवतार प्रकट होता है , ये बात तो कई सारे व्यक्तित्वों में करीब दो सौ वर्ष से फरक पड़ता है जैसे के जोरोअस्टर, राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध, येशु, और मोहम्मद.
इस के अलावा अगर इन आध्यात्मिक नेताओं के शिक्षा को उनके ही जीवन काल में किसी भी प्रकार का सार्वभौमिक स्वीकृति नही मिला तो इस बात का क्या सबूत है के मेहर बाबा कुछ बेहतर कर पाएंगे?
इसके अलावा, अगर हर युग में ५ पूर्ण स्वामी होते हैं \ और उनकी भूमिका एक अवतार को लाना है तो क्यों वो हर ७००-१४०० वर्षों में ऐसा करने में सफल नही होते हैं?
ऐसा कैसे हो सकता है के ये माने जाने वाले अवतार मानव जाती के लिए आत्मज्ञान ला सकते हैं और फिर भी खुद में ही फरक शिक्षाओं का पालन कर सकते हैं. उदाहरण के लिए येशु या मोहम्मद ने सर्वेश्वरवाद के दृष्टीकोण से इश्वर के “एकता” के बारे में कभी नही सिखाया. और मोहम्मद ने कभी भी “खुद के बारे में दावें” नही किए क्योंकि वो हर उस चीज को इनकार करते थे जो अल्लाह नही था. इसके अलावा बुद्ध या शास्त्रीय बौद्ध धर्म ने भी कभी एक ही इश्वर के अवधारणा को नही माना क्योंकि वो तो नास्तिक होते हैं. इस प्रकार से ये सभी आंदोलनें असंगत और कट्टर विरोधी हैं इस बात में के इन्हें कभी भी पूरी तरह एक ही आम बैनर के अंतर्गत एकजुट नही किया जा सकता है क्योंकि उनके रास्ते ही एक दुसरे से अलग हैं और वो फरक फरक दिशा में जा रहे हैं और उन्हें व्यापक सिध्धान्तों से एक करने की कोशिश करना धार्मिक पहचानों का कुछ ज्यादा ही सरलीकरण होगा जो ये भी दिखाता है के ये सभी माने जाने वाले अवतार को सर्वज्ञ नही माना जा सकता है क्योंकि वो खुद में ही विरोधाभासी बातें सिखाते हैं. कोई भी इंसान जिसने तुलनात्मक धर्मों पर गंभीरता से कोई शोध किया है उन्हें ये पता है के इन धर्मों के बीच का आवश्यक मतभेद इनके समानता से काफी ज्यादा बढ़ कर हैं. वैसे भी आम तत्व ये है के मानव जाती मुख्य रूप से धार्मिक है और उनमें जागरूकता या अतिक्रमण का एक सहज भाव है पर इस बात को उस निष्कर्ष तक पहुंचाना के ये सब एक ही इश्वर के विचार से सम्बन्धीत है ये तो एक पक्षपाती अंतर्ज्ञान होगा जिसका कोई स्वाभाविक निष्कर्ष नही है और ये तो सिर्फ विश्वासों के विविधता को सम्मान करना ही होगा. सभी आन्दोलनों को एक साथ संश्लेषण करने का प्रयास करना तो असंभव है क्योंकि कुछ ऐसे समूह हैं जिनके स्थिति के कारण उनके एक नही किया जा सकता है जैसे के शैतानिक धर्म और इशाई धर्म जो अपने अपने स्थिति में बिलकुल ही विपरीत हैं. अंत में मैं ये देख नहीं पा रहा हूँ की कैसे ये लोग व्यक्तियों में विपरीत शिक्षाओं और पदों के माध्यम से इश्वर का चेतना लाने में सफल होते हैं. इतना ही नहीं लेकिन मेहर बाबा अपने ही मिशन में विफल रहे क्योंकि वो चाहते थे के सभी धर्मों को प्यार के एक आम पंथ के तहेत शामिल किया जाए और सभी धार्मिक सीमाओं को तोड़कर अमेरिकी भौतिकवाद को भी नष्ट किया जाए.
मेहर बाबा की चुप्पी के बारे में यह कहा जा सकता है के ये तो विवादास्पद है के कैसे उन्होंने संचार के एक माध्यम के रूप में भासन का उपयोग नही किया पर वो हाथ के इशारों, वर्णमाला बोर्ड और किताबों के माध्यम से तो वो कभी चुप ही नही थे. वो एक ऐसे इंसान थे जिनके पास कहने के लिए कुछ था पर उनका आवाज आक्रितिओं के रूप में सुनाई देता था.
मेहर बाबा के अखंडता के संबंध में कहें तो वो हमेशा सच्चा नही रहे हैं क्योंकि वो कई सारे अवसरों पर चुप्पी साधने के वादे में विफल रहे हैं. उन्होंने ऐसे उच्च दावे किए के अगर वो अपनी चुप्पी तोड़ देंगे तो उनके शब्द हर दिल में जाकर बोलेगा और उनके सार्वभौमिक प्रेम को जाना, महसूस किया, और पाया जाएगा. अगर सिर्फ उन्होंने अप्ना मुंह खोला और कुछ शब्द बोला तो ये किसी भी तरह लोगोंको उनके बंधनों से मुक्त कर देगा.
यदि मेहर बाबा के पास बोलने का क्षमता था पर वो नही बोले तो मैं उनके नैतिक विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़ा करना चाहूंगा क्योंकि उन्हें तो दूसरों के लिए वात्सल्यपूर्ण दया और प्यार दिखाना चाहिए पर उनकी चुप्पी तो क्रूरता और घृणा के जैसा दिखाई देता है क्योंकि उन्होंने दूसरों को सार्वभौमिक रूप से फाइदा में रहने से रोका और ये उन्होंने जो अपने चेलों जिनको अस्थायी रूप से सेवा दिया, उनके सीमित शारीरिक आराम से काफी लाभान्वित कार्य होता. शायद इसका कारण ये हो सकता है के उनको पता था के अगर वो बोलेंगे तो उनको वो सभी बातें पूरी करनी पड़ती जो वो किसी भी प्रकार से पूरा नही कर पाते.
अगर वह वास्तव में दूसरों को प्यार करते तो उनको हमेशा क्यों ये चाहते थे और क्यों इस बात की चिंता थी की लोग उन्हें उनके मरने के बाद इश्वर के रूप में याद करें? क्या वो सिर्फ मानवता को गौरवशाली रूप से पुनरुज्जीवित करने के लिए अपना अंतिम उर्जा और सांस का इस्तेमाल करके एक शब्द नही बोल सकते थे? एक ऐसा भी विश्वास है उनके चेलों में से एक ने ये दावा किया के वो मरने से पहले बोले थे और अगर ये सही है तो इसके वैश्विक प्रभाव का सबूत क्या है?
इसके अलावा उनके लिए “सबसे शक्तिशाली” पूर्ण स्वामी होने का दावा करना जो कितने भी आत्माओं को खुद की तरह बना सकता है तो उन्होंने ऐसा क्यों नही किया क्योंकि उनका काम तो सार्वभौमिक रूप से काफी सारे लोगों को आज तक पता नही चला है क्योंकि उनका तो सिर्फ सिमित अनुयायी हैं?
इसके अलावा उन्होंने कभी कोई च्च्मत्कार भी नही किया क्योंकि उनके खुद के हिसाब से एक चामत्कार करता को एक सिद्ध पुरुष होना चाहिए जो औरों को भी सिद्ध बना सकता है जो वो कभी नही कर पाए या उन्होंने ऐसा कभी नही किया. मेहर बाबा तो सिर्फ बात करने वाले इंसान के रूप में लगते हैं क्योंकि उन्होंने बाद में ये भी कहा के उनके द्वारा एक नया मानवता उभर कर आएगा और संसार में एक ऐसा दिव्य प्रेम आएगा पर इन सभी बातों का सबूत कहाँ है?
सारांश में मैं ये आशा करता हूँ के आप इस वास्तविकता को जान चुके हैं के मेहर बाबा वो नही हैं जैसा उनके होनेका वो और दुसरे लोग दावा करते हैं. उन्होंने अपने कमियों के माध्यम से ये प्रदर्शन किया है के वो सर्वज्ञ या सर्वज्ञानी नही हैं. उन्होंने शायद “उच्च में से सबसे ऊँचे” का शीर्षक भी धारण कर लिया होगा पर वास्तव में तो वो सिर्फ अपने ही मन में एक अनुश्रुति हैं. अंत में अगर कहा जाए तो वो पूर्ण के सिवाए और कुछ भी हो सकते हैं, और ये बात तो उनके मानवता के बारे में एक अधिक मूल्यांकन या आविष्कार होगा. ऐसे इंसान तो हमेशा रहे हैं जो दिव्य सन्देश या मूल होने का दावा करते हैं और ये बात भी येशु ये कह कर हमारे ध्यान में लाते हैं.
मती:२४:२३-२५
“उन दिनों यदि कोई तुम लोगों से कहे, ’देखो, यह रहा मसीह’ या ‘वह रहा मसीह’ तो उसका विशवास मत करना. मैं यह कहता हूँ क्योंकि कपटी मसीह और कपटी नबी खड़े होंगे और ऐसे ऐसे आश्चर्य चिन्ह दिखाएंगे और अद्भुत काम करेंगे की बन पड़े तो वह चुने हुओं को भी चकमा दे दें. देखो मैंने तुम्हें पहले ही बता दिया है.”
यह मुझे मेरे अगले बात के तरफ लेकर आता है और मैं ये सोचता हूँ के कुछ लोग क्यों इस नए युग के धार्मिक भ्रम के सोच में पड़ जाते हैं और शायद ये हो सकता है के ये उनमें खुद को इश्वर मानने के मूर्तिपूजा के अहंकार को संतुष्ट करता है. बाइबलिय परिपेक्ष्य से अगर कहें तो ये तो मानव जाती के पतन का बात है क्योंकि ईव ने इश्वर द्वारा वर्जित फल किया हुआ फल लेकर धोखे से पाप में पड़ गयी ताकि इश्वर के जैसे बन्ने के लिए उनका आँख खुल सके.
तो मेहर बाबा के धोखाधड़ी के दावा से मुझे ये विश्वास होगया के ये सम्प्रदाय उन दवाओं से भी ज्यादा खतरनाक है जो उन्होंने दूसरों को देने का प्रयास किया वो भी सारे मानव जाती को उनके हिसाब से चलने के लिए मोहित करके और ये तो पंथ का दवा बनाने जैसा था.
अंत में इस समूह के कुछ सिमित लाभ भी रहे हैं जैसे उनके कुछ मानवीय कल्याण के प्रयासों में दिखाई देता है पर वहाँ पर इस समूह का असली खतरा तो उन सभी लाभों से काफी बढ़ कर है जो ये मिला कर या घोल कर देना चाहता है और ये हमारे पडोसिओं को भुलानेवाले आध्यात्मिक वास्तविकता से दार्शनिक रूप से मोडना चाहते हैं और ये वास्तविकता या तो गलत होते हैं या फिर इनको काफी सुबिधा से साबित नही किया जा सकता है. हमारे शरीर के लिए अस्थायी और भौतिक रूप से लाभ लेना एक बात है और हमारे आत्मा के लिए सदा के लिए तडपना और नाश होना काफी अलग बात है.
मैं आप लोगों से माफ़ी मांगता हूँ अगर आपको लगता है के इस आदमी और आन्दोलन के मूल्यांकन में मैं आप लोगों पर कठोर हूँ. अगर आप लोगों को दुसरे तरीका से सोचने का अपील करते हुए मैंने अपना सीमा नांघ दिया है तो मुझे माफ़ कर दीजिए. फिर भी मुझे उम्मीद है कि इस पोस्ट ने आप को अपने स्थिति के बारे में फिर से सोचने पर मजबूर किया है और अन्य आध्यात्मिक रास्ते पर चलना भी मुमकिन बनाया है.
समापन में मैं ये कहना चाहता हूँ के मैं सिर्फ एक को ही जानता हूँ जो दिल और दिमाग दोनों को परिवर्तन कर सकते हैं और ऐसे जिंदगी का मैं जीवित उदाहरण हूँ जो येशु मसीह के शक्ति के द्वारा परिवर्तन हुआ है. सिर्फ मैं ही ऐसा एक नही हूँ जिसको उन्होंने प्रभावित किया है पर ऐसे अनगिनित लोग हैं जिनका अपना ही कहानी और गवाही है जो परमेश्वर के चल रहे मंत्रालय के सच्चाई को साबित करता है जो लोगों को बंधन से आजाद करता है और उन सभी को नयी जिंदगी देता है जो किसी प्रकार के बंधन में हैं.
४:१८-१९ लुका
“प्रभु का आत्मा मुझमें समाया है
उसने मेरा अभिषेक किआ है ताकि
मैं दीनों को सुसमाचार सुनाऊँ.
उसने मुझे बंदियों को यह घोषित करने के लिए
की वे मुक्त है,
अंधों को यह सन्देश सुनाने को की
वे फिर दृष्टी पायेंगे,
दलितों को छुटकारा दिलाने को और
प्रभु के अनुग्रह का समय बतलाने को भेजा है.”
www.cbn.com/700club/features/Amazing/
अंत में हमारे पास खूब प्यार करने वाले और दयालु पिता हैं जिन्होंने एक ऐसा सार्वभौमिक संदेश कहा हैं जिन्होंने येशु के व्यक्ति और काम के माध्यम से “सीमाओं” और “संलग्नताओं” का चक्र तोड़ दिया है.
यहुन्ना ३:१६
परमेश्वर को जगत से इतना प्रेम था की उसने अपने एकमात्र पुत्र को दे दिया, ताकि हर वह आदमी जो उसमें विश्वास रखता है, नष्ट न हो जाये बल्कि उसे अनंत जीवन मिल जाए.
मती ११:२८-३०
“अरे, ओ थके- मानदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ, मैं तुम्हें सुख चैन दूंगा. मेरा जुवा लो और उसे अपने ऊपर संभालो. फिर मुझ से सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा अमन कोमल है. तुम्हें भी अपने लिए सुख-चैन मिलेगा. क्योंकि वह जुआ जो मैं तुम्हें दे रहा हूँ बहुत सरल है. और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है.”
कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएँ?
jesusandjews.com/wordpress/2012/01/10/कैसे-भगवान-के-साथ-एक-रिश्त/
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Encyclopedia of Religion Second Edition, copyright 2005 Thomson Gale a part of The Thomson Corporation, Lindsay Jones Editor in Chief, Vol.9, pgs.5829-5830, Charles C. Haynes
Encyclopaedia Britannica,Inc., copyright 1993, Vol.7, pgs.1012-1013, Meher Baba
Meher Baba is said to of been the divine avatar of our age and this is typical of the cult phenomena in India which has had its fair share of gurus, swamis and avatars. India has a proclivity for such mysterious and mystical individuals who display characteristics of grandeur on a spiritual plane. My question is what is the standard or conditions of verification for anyone to claim enlightenment since this is a subjective experience? Also to simply have a so called spiritual experience does not necessitate or qualify someone to be an elitist. So through the process of falsification there may be some ways to detect inconsistencies or contradictions to the values which they espouse and this is the approach I use when considering the truth claims of other groups and individuals.
One thing I think that should be considered when a person or spiritual leader/guide is making extraordinary remarks about themselves is to consider the mental health of an individual. Just because someone is highly intelligent, educated and charismatic does not equate to sanity. I once had to take a psychological test called the Minnesota Multiphasic Personality Inventory and there were questions that they asked to see if I had any kind of deviant religious ideations or behavior in thinking that I was someone of spiritual significance. I saw this phenomena first hand when I was in Jerusalem as there are people there that believe they are someone of spiritual importance like King David or perhaps Elijah. This condition is refereed to as the Jerusalem syndrome and they actually have what they call an Elijah ward for those kind of individuals who are mentally unstable.
Also I used to work in a mental health ward while attending college and there were people in these facilities that had many different issues and some of them were seeing and hearing things which others could not and yet based on some peoples criteria this kind of activity could be considered desirable instead of abnormal. Which calls to question Merwan Sheriar Irani’s experience of hearing voices and visions along with banging his head against the wall which could be a possible demonstration of a psychological disorder or psychosis. I say all this in giving the cult leader the benefit of the doubt to his motivation and yet there are perhaps others who know full well what they are doing and are deliberately conscious of their ability to manipulate and control others in a brainwashing attempt to allure people into believing their transcendency of greatness.
Another matter to consider is the mysterious ability for some people to be self deceived and when reinforced by other conditions such as a boost of persona from other deluded individuals such as the Spiritual Masters or through the support of his disciples/ mandali then this only helps to reinforce such behavior. Moreover just because someone is sincere does not mean that they can’t be sincerely wrong.
This reminds of the biblical passage about the deceitfulness of the heart in Jeremiah 17:9
9 The heart is deceitful above all things
and beyond cure.
Who can understand it?
Again some of these illusionary or imaginary thoughts may be a result of obtaining coaching from his spiritual mentor Upasni Maharaj who said that Meher Baba was the sadguru of the age and that the world/humanity at large will be benefited. However even though he has done some humanitarian and philanthropic works there have been others which have equally made their contribution to society as well, such as Mother Teresa, without assuming a divine title.
Anyway regarding this whole philosophy of believing that Merwan Sheriar Irani is a unique manifestation of god or a divine avatar is contrary to the oneness of god because if everyone is god whether actualized, realized, aware of it or not then by nature there should be no need for an individual distinction. Also if this pantheistic view of god as being the universe and is everywhere then how can God be brought down spatially in an incarnated state?
Additionally the cosmology of Meher Baba supports the idea that evolution takes place by transitioning from inorganic material to organic substances culminating with human existence which also has various developmental stages through the means of reincarnation and what is termed involution. This progression is a conscious decision or whim/pursuit of the object to achieve god consciousness which I find nonsensical given that rocks and metals are mindless entities. We know first hand at least from a naturalistic or biological viewpoint that inorganic materials do not manufacture organic substances because of the law of biogenesis and yet to equate this to a spiritual reality is just beyond belief.
Other claims he makes is that at any given time there are 56 individuals who are considered “god realized” souls and yet how does he know all of this especially since he couldn’t even verify in his “omniscience” who the successors were after the demise of the 5 spiritual masters of his time who were Sai Baba of Shirdi, Upasni Maharaj, Hazrat Babaian, Hazrat Tajuddin Baba and Narayan Maharaj? He goes on to say that there is human life on other planets and if he doesn’t even know who are the replacements of these Perfect Masters on this planet then how is he able to obtain this extraterrestrial knowledge?
Furthermore his position that an avatar appears every 700-1400 years has been overextended by a couple hundred years among some of these personages whom he identifies as Zoroaster, Rama, Krishna, Gautama Buddha, Jesus and Muhammad.
In addition to this if some of the teachings of these spiritual leaders never found any ultimate sense of universal acceptance during their lifetimes or subsequently then what evidence is there that Meher Baba will do any better?
Also if there are 5 Perfect Masters in every era and part of their role is to bring down an avatar then why don’t they succeed but every 700-1400 years?
How can the supposed avatars that I mentioned above bring enlightenment to mankind and yet adhere to deviant teachings amongst themselves? For instance Jesus or Muhammad never taught about the “Oneness” of God from a pantheistic viewpoint. Additionally Muhammad was never “self realized” as he refuted anything that resembled god except for allah. Also Buddha or classical buddhism doesn’t even have a god concept as it is atheistic. Thus these movements are incompatible and irreconcilable in that they can’t be ultimately merged or united as a whole under a common banner of religion as their paths are divergent in going off in different directions and therefore to try to unite them through some overarching principles is an oversimplification of religious identity which further shows that all these supposed avatars could not of possessed omniscience as they taught contradictory matters between themselves. For anyone who has done any serious research on comparative religions knows that the essential differences far outweigh the similarities of these movements. Anyway the common element is that mankind is predominantly religious in having an awareness or an innate sense of transcendence but to push this matter to the conclusion that it is the same god idea is to conjecture a biased intuition without any objective reasoning or support in overlooking the diversity of beliefs. To try to universally synthesize all movements is impossible due to some of the positions which are held by these groups such as Satanism and Christianity who are completely antithetical on their positions. In conclusion I don’t see how these individuals could have brought people into a god consciousness through such contrary teachings and positions. Not only that but Meher Baba himself failed his mission to join all religions under a common creed of love in breaking down religious boundaries and also destroying American materialism.
Regarding the silence of Meher Baba it is controversial on how he refrained from using speech as a vehicle of communication and yet he was never silent or mute through his hand gestures, alphabet board and books. Therefore the absence of speech did not hinder him from speaking. He was somebody who had something to say and his voice was figuratively heard.
Concerning Meher Baba’s integrity; he was not always truthful as he failed to keep his promise on serval occasions to end his silence. He made such high claims that if he broke his silence that his word would be spoken into every heart and that his universal love will be felt, known and received. It would somehow set people free from their bondages if he could just simply open his mouth and speak the words.
If Meher Baba had this ability to speak but didn’t then I question his moral credibility to have love and fatherly compassion for others and thus his silence was an act of cruelty and hatred if he kept others from universally benefiting which would have been far greater then any limited physical comfort he brought to those whom he temporarily served. Maybe this is because he knew that if he did speak that he would be committed to fulfilling these things which he knew he couldn’t do anyway.
If he really loved others then why was there a preoccupation with the identity of himself as wanting others to remember him as god just before his death? Couldn’t he of used his last bit of energy and breath to just speak a word as a final act of good will towards bringing about the glorious revivification of mankind? Also there is a belief that one of his disciples claimed that he spoke prior to his death and if that is the case then where is the evidence of its global impact?
Furthermore for him to claim to be the “all powerful” Perfect Master who could make like himself any number of souls then why didn’t he accomplish this especially since his work is hardly noticeable today from a universal standpoint as only having a limited amount of followers?
Also he never really did any miracles because according to his own definition a miracle worker would be a perfect man making others perfect which he never could or did do. Meher Baba was just all talk as he goes on to state that through him a new humanity would emerge and bring about an unprecedented release of divine love in the world but where is the evidence of this?
In summary I hope you have been “awakened” to the reality that Meher Baba is not who he and others claimed him to be. He has demonstrated through his own shortcomings that he is not omniscient or omnipotent. He may have assumed the title as being the “highest of the high” but in reality he was only a legend in his own mind. Lastly he was anything but perfect which is an over appraisal and invention regarding his humanity. Conclusively there has always been individuals who claim to have a divine message or origin and Jesus brings this to our attention by stating
Mt:24-23-25
23 At that time if anyone says to you, ‘Look, here is the Christ!’ or, ‘There he is!’ do not believe it. 24 For false Christ’s and false prophets will appear and perform great signs and miracles to deceive even the elect—if that were possible. 25 See, I have told you ahead of time.
This leads me into my next point in that I am wondering why some people get caught up in this religious illusion of New Age thought regarding god consciousness except that maybe it satisfies their egotism of selfish idolatry as god. From a biblical perspective this was the downfall of mankind as Eve was deceived into sin by partaking of the forbidden fruit so that her eyes would be opened in becoming like god.
So based on the fraudulent claims of Meher Baba I am persuaded to believe that this sect is more dangerous then the drugs that he tried to dissuade others from taking as he has enticed or tempted mankind to come under the influence of his mind altering drug of cult phenomena.
In conclusion there have been some limited benefits to this group as seen through some of its humanitarian efforts but the real danger of this sect outweighs the benefit as it mixes or confuses helping our neighbors in practical ways to supporting a philosophical diversion with deviant spiritual realities which are either false or conveniently unprovable. Its one thing for our bodies to temporarily and materially benefit but quite another for our souls to be abused so as to eternally perish.
Anyway I apologize if I seem to harsh in my appraisal of this man and the movement. Please forgive me if I have somehow transgressed the line through my appeal by getting you to see things differently. Nevertheless I hope that this post has caused you to rethink your position and possibly consider other spiritual avenues.
In closing I know of only one who changes hearts and minds and I am a living example of a life that has been transformed through the power of Jesus Christ. Not only have I been affected but there are countless others who also have their own story and testimony which verifies this reality of the Lord’s ongoing ministry which was to set the captives free and liberate those who are in bondage by bringing them new life.
Luke 4:18-19
18 “The Spirit of the Lord is on me,
because he has anointed me
to preach good news to the poor.
He has sent me to proclaim freedom for the prisoners
and recovery of sight for the blind,
to release the oppressed,
19 to proclaim the year of the Lord’s favor.”
jesusandjews.com/wordpress/my-personal-testimony-with-jesus/
www.cbn.com/700club/features/Amazing/
Finally we have a loving and compassionate Father who spoke a universal message that broke the cycle of “limitations” and “attachments” as demonstrated through the person and work of Christ.
John 3:16
16 “For God so loved the world that he gave his one and only Son, that whoever believes in him shall not perish but have eternal life.
Mt 11:28-30
28 “Come to me, all you who are weary and burdened, and I will give you rest. 29 Take my yoke upon you and learn from me, for I am gentle and humble in heart, and you will find rest for your souls. 30 For my yoke is easy and my burden is light.”
How to have a relationship with God
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