मेहर बाबा को हमारे उम्र का दिव्य अवतार कहा जाता है और भारत के पंथ घटना-क्रम में ये बात बिलकुल साधारण है जिसमें गुरुओं, स्वामिओं और अवतारों का अप्ना अप्ना हिस्सा विशिष्ट है. भारत में इस तरह के रहस्यमय और गुप्त व्यक्तियों का एक प्रवृत्ति है जो आध्यात्मिक मैदान पर भव्यता की विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं. मेरा प्रश्न ये है के किसी के भी लिए ज्ञान का दावा करना कौन सा मानक या अवस्था के आधार पर किया जाता है क्योंकि ये तो एक व्यक्तिपरक अनुभव है? इसके अलावा बस एक तथाकथित आध्यात्मिक अनुभव होना ही तो किसी को संभ्रांतवादी होने के लिए योग्य नहीं ठहराता है. तो मिथ्याकरण की प्रक्रिया के माध्यम से उनके वादा किए हुए मूल्यों में विसंगतियों या विरोधाभासों का पता लगाया जा सकता है और किसी भी समूह और व्यक्तिओं में सच्चाई के दावों पर विचार करते समय मैं यही दृष्टिकोण उपयोग करता हूँ.
मुझे एक बात लगता है कि जब एक व्यक्ति या आध्यात्मिक नेता / गाइड खुद के बारे में असाधारण टिप्पणी कर रहा है तो उसके मानसिक स्वास्थ पर विचार करना जरूरी है. सिर्फ इसलिए कि कोई बेहद बुद्धिमान, शिक्षित और करिश्माई है इसका मतलब ये नही है के वो मानसिक विवेक में भी बिलकुल सही है. मुझे एक बार एक मनोवैज्ञानिक परिक्षण लेना पड़ा था जिसका नाम था मिन्नेसोटा मल्टीफेजिक पर्सनालिटी इन्वेंटरी और उन्होंने मुझे उस प्रकार के प्रश्न पूछे जैसे के मुझमें कोई अलग प्रकार के धार्मिक उद्भावनाएं हैं जैसे के मुझे लगता है के मैं अध्यात्मिक महत्व या अर्थ का इंसान हूँ. मुझको इस प्रकार की घटना पहले देखने का मौका तब मिला जब मैं जेरुसलेम में था और मैंने वहाँ पाया के ऐसे कई सारे लोग थे जो खुद को राजा दाऊद या शायद एलिय्याह मानते थे. इस हालत को यरूशलेम सिंड्रोम के रूप में बताया गया था और इन लोगों के लिए जो मानसिक रूप से असंतुलित हैं, एलिय्याह वार्ड नाम का विशेष वार्ड है.
इसके अलावा, कलेज में पढते वक्त मैं एक मानसिक स्वास्थ्य वार्ड में काम करता था और उस सुविधा में कुछ ऐसे प्रकार के लोग थे जिनका अलग अलग मुद्दा था और उन में से कुछ तो ऐसी चीजें देखते और सुनते थे जो और कोई नही कर पाता था और फीर भी कुछ लोगों के मानदंडों पर आधारित होकर ये कह सकते हैं के इस प्रकार की गतिविधियां असामान्य मानने के वजाए वांछनीय माना जाता है. अब ये बात मेरवन शेरिअर इरानी के आवाज सुनने और दृश्य सुनने के साथ साथ सर को दीवार पर पटकने के बातों पर प्रश्न खड़ा करता है जो मानसिक विकार या बिगड़े हुए मानसिकता का प्रदर्शन हो सकता है. मैं ये सब बातें कह रहा हूँ ताकि उस पंथ के नेता को उनके प्रेरणा के लिए संदेह का लाभ मिल सके और फिर भी ऐसे कई सारे लोग हैं जो पूरी तरह से जानते हैं के वो क्या कर रहे हैं और उनके क्षमता के बारे में भी पूरी तरह से चेतनशील हैं पर वो दूसरों को जानबुझ कर हेरफेर और नियंत्रण करते हैं और दीमाग धोने वाला प्रयास करते हैं ताकि वो अपने श्रेष्ठता के बारे में विश्वास दिलाने में लोगों को लुभा सकें.
एक और बात जिस पर विचार करना जरूरी है वो ये है के कुछ लोगों के पास खुद को ही धोका देने का रहस्यमय क्षमता होता है और अगर किसी और प्रकार के आध्यात्मिक गुरुओं से या फिर उनके चेलों या मंडली से उनके व्यक्तित्व को बढ़ावा देने वाले काम होते हैं तो उस प्रकार के व्यवहारों को वो सिर्फ और मजबूत बनाता है. इसके अलावा सिर्फ इसलिए कि कोई इंसान ईमानदार है इसका ये मतलब नही है के वो इमानदारी के साथ गलत नही हो सकता है.
इससे मुझे यिर्मयाह १७:९ के बाइबलिय परिच्छेद का याद आता है.
व्यक्ति का दिमाग बड़ा कपटी होता है. दिमाग बहुत बीमार भी हो सकता है और कोई भी व्यक्ति दिमाग को ठीक ठीक नही समझता.
फिर भी ऐसे कई सारे भ्रमित और काल्पनिक विचार उनके आध्यात्मिक गुरु उपासनी महाराज की शिक्षा भी हो सकती है जिन्होंने ये कहा था के मेहर बाबा इस सदी के सदगुरु हैं और बड़े पैमाने पर दुनिया / मानवता इस बात से लाभान्वित होगा. हालांकि, भले ही उन्होंने कुछ मानवीय और परोपकारी कार्य भी किया है पर ऐसे और कई सारे लोग हैं जिन्होंने बिना कोई परमात्मा के शीर्षक के ही समाज में उसके बराबर का योगदान दिया है, जैसे की मदर टेरेसा.
वैसे भी अगर इस पूरे विश्वास के बारे में बात करें के मेरवन शेरिअर ईरानी इश्वर के एक अद्वितीय अभिव्यक्ति या एक दिव्य अवतार हैं तो ये बात परमेश्वर के एक होने के बात से विपरीत है क्योंकि अगर वास्तव में हरेक व्यक्ति इश्वर हो, चाहे किसी को उसके बारे में मालूम हो या नही, या फिर एहसास हो या नही तो फिर व्यक्तिगत फरक की तो कोई आवश्यकता नही होगी. इसके अलावा अगर इश्वर के बारे में सर्वेश्वर्वाद्का सोच रख कर ये कहा जाए के वो ब्रह्माण्ड हैं और सभी जगह पर हैं तो परमेश्वर को स्थानिक रूप से किसी अवतार में कैसे लाया जा सकता है?
इसके अतिरिक्त मेहर बाबा के ब्रह्माण्ड विज्ञान विचार तो इस बात की भी समर्थन करता है के अकार्बनिक पदार्थ से कार्बनिक पदार्थों में परिवर्तन हो कर विकास जगह लेता है और ये मानव अस्तित्व के साथ भी जुड़ा हुआ है जिसका विकास के विभिन्न चरण होते हैं जिसका माध्यम पुनर्जन्म है और इसको संक्रमण भी किया जाता है. यह प्रगति एक सचेत निर्णय या वस्तु का लहर / पीछा करने जैसा है जो इश्वर के चेतना को हासिल करने में मदत करता है पर ये बात मुझे समझ नही आता क्योंकि चट्टान या पत्थर के तो मस्तिस्क भी नही होता है. हमें प्राकृतिक या जैविक दृष्टिकोण से कम से कम ये पता है के निर्जीव पदार्थ जैविक पदार्थ को जन्म नही दे सकता है और ये बायोजेनेसिस के वजह से होता है और इसके बाबजूद भी इसको आध्यात्मिक वास्तविकता के सामान आंकना विश्वास से परे बातें हैं.
कुछ अन्य दावा जो वो कर रहे हैं उसमें ये है के किसी भी समय में ५६ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनको ‘भगवान का एहसास’ वाला आत्मा कहा जा सकता है और फिर भी उनको ये सब कैसे पता चला जब के वो अपने पूरे “सर्वज्ञता” में ये भी नही कह सके के उनके समय के ५ आध्यात्मिक स्वामिओं जिसमें सिरडी के साईं बाबा, उपासनी महारज, हज़रात ववियन, हज़रात ताजुद्दीन बाबा और नारायण महाराज सामिल थे, उनके मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी कौन हैं. वह ये भी कहते हैं के अन्य ग्रहों पर भी मानव जीवन है और अगर उनको ये भी नही पता के इन पूर्ण स्वामिओं के प्रतिस्थापन कौन हैं तो उनको अलौकिक जीव के बारे में कैसे ज्ञान मिला?
इसके अलावा उनका ये कहना के हर ७००-१४०० साल में एक अवतार प्रकट होता है , ये बात तो कई सारे व्यक्तित्वों में करीब दो सौ वर्ष से फरक पड़ता है जैसे के जोरोअस्टर, राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध, येशु, और मोहम्मद.
इस के अलावा अगर इन आध्यात्मिक नेताओं के शिक्षा को उनके ही जीवन काल में किसी भी प्रकार का सार्वभौमिक स्वीकृति नही मिला तो इस बात का क्या सबूत है के मेहर बाबा कुछ बेहतर कर पाएंगे?
इसके अलावा, अगर हर युग में ५ पूर्ण स्वामी होते हैं \ और उनकी भूमिका एक अवतार को लाना है तो क्यों वो हर ७००-१४०० वर्षों में ऐसा करने में सफल नही होते हैं?
ऐसा कैसे हो सकता है के ये माने जाने वाले अवतार मानव जाती के लिए आत्मज्ञान ला सकते हैं और फिर भी खुद में ही फरक शिक्षाओं का पालन कर सकते हैं. उदाहरण के लिए येशु या मोहम्मद ने सर्वेश्वरवाद के दृष्टीकोण से इश्वर के “एकता” के बारे में कभी नही सिखाया. और मोहम्मद ने कभी भी “खुद के बारे में दावें” नही किए क्योंकि वो हर उस चीज को इनकार करते थे जो अल्लाह नही था. इसके अलावा बुद्ध या शास्त्रीय बौद्ध धर्म ने भी कभी एक ही इश्वर के अवधारणा को नही माना क्योंकि वो तो नास्तिक होते हैं. इस प्रकार से ये सभी आंदोलनें असंगत और कट्टर विरोधी हैं इस बात में के इन्हें कभी भी पूरी तरह एक ही आम बैनर के अंतर्गत एकजुट नही किया जा सकता है क्योंकि उनके रास्ते ही एक दुसरे से अलग हैं और वो फरक फरक दिशा में जा रहे हैं और उन्हें व्यापक सिध्धान्तों से एक करने की कोशिश करना धार्मिक पहचानों का कुछ ज्यादा ही सरलीकरण होगा जो ये भी दिखाता है के ये सभी माने जाने वाले अवतार को सर्वज्ञ नही माना जा सकता है क्योंकि वो खुद में ही विरोधाभासी बातें सिखाते हैं. कोई भी इंसान जिसने तुलनात्मक धर्मों पर गंभीरता से कोई शोध किया है उन्हें ये पता है के इन धर्मों के बीच का आवश्यक मतभेद इनके समानता से काफी ज्यादा बढ़ कर हैं. वैसे भी आम तत्व ये है के मानव जाती मुख्य रूप से धार्मिक है और उनमें जागरूकता या अतिक्रमण का एक सहज भाव है पर इस बात को उस निष्कर्ष तक पहुंचाना के ये सब एक ही इश्वर के विचार से सम्बन्धीत है ये तो एक पक्षपाती अंतर्ज्ञान होगा जिसका कोई स्वाभाविक निष्कर्ष नही है और ये तो सिर्फ विश्वासों के विविधता को सम्मान करना ही होगा. सभी आन्दोलनों को एक साथ संश्लेषण करने का प्रयास करना तो असंभव है क्योंकि कुछ ऐसे समूह हैं जिनके स्थिति के कारण उनके एक नही किया जा सकता है जैसे के शैतानिक धर्म और इशाई धर्म जो अपने अपने स्थिति में बिलकुल ही विपरीत हैं. अंत में मैं ये देख नहीं पा रहा हूँ की कैसे ये लोग व्यक्तियों में विपरीत शिक्षाओं और पदों के माध्यम से इश्वर का चेतना लाने में सफल होते हैं. इतना ही नहीं लेकिन मेहर बाबा अपने ही मिशन में विफल रहे क्योंकि वो चाहते थे के सभी धर्मों को प्यार के एक आम पंथ के तहेत शामिल किया जाए और सभी धार्मिक सीमाओं को तोड़कर अमेरिकी भौतिकवाद को भी नष्ट किया जाए.
मेहर बाबा की चुप्पी के बारे में यह कहा जा सकता है के ये तो विवादास्पद है के कैसे उन्होंने संचार के एक माध्यम के रूप में भासन का उपयोग नही किया पर वो हाथ के इशारों, वर्णमाला बोर्ड और किताबों के माध्यम से तो वो कभी चुप ही नही थे. वो एक ऐसे इंसान थे जिनके पास कहने के लिए कुछ था पर उनका आवाज आक्रितिओं के रूप में सुनाई देता था.
मेहर बाबा के अखंडता के संबंध में कहें तो वो हमेशा सच्चा नही रहे हैं क्योंकि वो कई सारे अवसरों पर चुप्पी साधने के वादे में विफल रहे हैं. उन्होंने ऐसे उच्च दावे किए के अगर वो अपनी चुप्पी तोड़ देंगे तो उनके शब्द हर दिल में जाकर बोलेगा और उनके सार्वभौमिक प्रेम को जाना, महसूस किया, और पाया जाएगा. अगर सिर्फ उन्होंने अप्ना मुंह खोला और कुछ शब्द बोला तो ये किसी भी तरह लोगोंको उनके बंधनों से मुक्त कर देगा.
यदि मेहर बाबा के पास बोलने का क्षमता था पर वो नही बोले तो मैं उनके नैतिक विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़ा करना चाहूंगा क्योंकि उन्हें तो दूसरों के लिए वात्सल्यपूर्ण दया और प्यार दिखाना चाहिए पर उनकी चुप्पी तो क्रूरता और घृणा के जैसा दिखाई देता है क्योंकि उन्होंने दूसरों को सार्वभौमिक रूप से फाइदा में रहने से रोका और ये उन्होंने जो अपने चेलों जिनको अस्थायी रूप से सेवा दिया, उनके सीमित शारीरिक आराम से काफी लाभान्वित कार्य होता. शायद इसका कारण ये हो सकता है के उनको पता था के अगर वो बोलेंगे तो उनको वो सभी बातें पूरी करनी पड़ती जो वो किसी भी प्रकार से पूरा नही कर पाते.
अगर वह वास्तव में दूसरों को प्यार करते तो उनको हमेशा क्यों ये चाहते थे और क्यों इस बात की चिंता थी की लोग उन्हें उनके मरने के बाद इश्वर के रूप में याद करें? क्या वो सिर्फ मानवता को गौरवशाली रूप से पुनरुज्जीवित करने के लिए अपना अंतिम उर्जा और सांस का इस्तेमाल करके एक शब्द नही बोल सकते थे? एक ऐसा भी विश्वास है उनके चेलों में से एक ने ये दावा किया के वो मरने से पहले बोले थे और अगर ये सही है तो इसके वैश्विक प्रभाव का सबूत क्या है?
इसके अलावा उनके लिए “सबसे शक्तिशाली” पूर्ण स्वामी होने का दावा करना जो कितने भी आत्माओं को खुद की तरह बना सकता है तो उन्होंने ऐसा क्यों नही किया क्योंकि उनका काम तो सार्वभौमिक रूप से काफी सारे लोगों को आज तक पता नही चला है क्योंकि उनका तो सिर्फ सिमित अनुयायी हैं?
इसके अलावा उन्होंने कभी कोई च्च्मत्कार भी नही किया क्योंकि उनके खुद के हिसाब से एक चामत्कार करता को एक सिद्ध पुरुष होना चाहिए जो औरों को भी सिद्ध बना सकता है जो वो कभी नही कर पाए या उन्होंने ऐसा कभी नही किया. मेहर बाबा तो सिर्फ बात करने वाले इंसान के रूप में लगते हैं क्योंकि उन्होंने बाद में ये भी कहा के उनके द्वारा एक नया मानवता उभर कर आएगा और संसार में एक ऐसा दिव्य प्रेम आएगा पर इन सभी बातों का सबूत कहाँ है?
सारांश में मैं ये आशा करता हूँ के आप इस वास्तविकता को जान चुके हैं के मेहर बाबा वो नही हैं जैसा उनके होनेका वो और दुसरे लोग दावा करते हैं. उन्होंने अपने कमियों के माध्यम से ये प्रदर्शन किया है के वो सर्वज्ञ या सर्वज्ञानी नही हैं. उन्होंने शायद “उच्च में से सबसे ऊँचे” का शीर्षक भी धारण कर लिया होगा पर वास्तव में तो वो सिर्फ अपने ही मन में एक अनुश्रुति हैं. अंत में अगर कहा जाए तो वो पूर्ण के सिवाए और कुछ भी हो सकते हैं, और ये बात तो उनके मानवता के बारे में एक अधिक मूल्यांकन या आविष्कार होगा. ऐसे इंसान तो हमेशा रहे हैं जो दिव्य सन्देश या मूल होने का दावा करते हैं और ये बात भी येशु ये कह कर हमारे ध्यान में लाते हैं.
मती:२४:२३-२५
“उन दिनों यदि कोई तुम लोगों से कहे, ’देखो, यह रहा मसीह’ या ‘वह रहा मसीह’ तो उसका विशवास मत करना. मैं यह कहता हूँ क्योंकि कपटी मसीह और कपटी नबी खड़े होंगे और ऐसे ऐसे आश्चर्य चिन्ह दिखाएंगे और अद्भुत काम करेंगे की बन पड़े तो वह चुने हुओं को भी चकमा दे दें. देखो मैंने तुम्हें पहले ही बता दिया है.”
यह मुझे मेरे अगले बात के तरफ लेकर आता है और मैं ये सोचता हूँ के कुछ लोग क्यों इस नए युग के धार्मिक भ्रम के सोच में पड़ जाते हैं और शायद ये हो सकता है के ये उनमें खुद को इश्वर मानने के मूर्तिपूजा के अहंकार को संतुष्ट करता है. बाइबलिय परिपेक्ष्य से अगर कहें तो ये तो मानव जाती के पतन का बात है क्योंकि ईव ने इश्वर द्वारा वर्जित फल किया हुआ फल लेकर धोखे से पाप में पड़ गयी ताकि इश्वर के जैसे बन्ने के लिए उनका आँख खुल सके.
तो मेहर बाबा के धोखाधड़ी के दावा से मुझे ये विश्वास होगया के ये सम्प्रदाय उन दवाओं से भी ज्यादा खतरनाक है जो उन्होंने दूसरों को देने का प्रयास किया वो भी सारे मानव जाती को उनके हिसाब से चलने के लिए मोहित करके और ये तो पंथ का दवा बनाने जैसा था.
अंत में इस समूह के कुछ सिमित लाभ भी रहे हैं जैसे उनके कुछ मानवीय कल्याण के प्रयासों में दिखाई देता है पर वहाँ पर इस समूह का असली खतरा तो उन सभी लाभों से काफी बढ़ कर है जो ये मिला कर या घोल कर देना चाहता है और ये हमारे पडोसिओं को भुलानेवाले आध्यात्मिक वास्तविकता से दार्शनिक रूप से मोडना चाहते हैं और ये वास्तविकता या तो गलत होते हैं या फिर इनको काफी सुबिधा से साबित नही किया जा सकता है. हमारे शरीर के लिए अस्थायी और भौतिक रूप से लाभ लेना एक बात है और हमारे आत्मा के लिए सदा के लिए तडपना और नाश होना काफी अलग बात है.
मैं आप लोगों से माफ़ी मांगता हूँ अगर आपको लगता है के इस आदमी और आन्दोलन के मूल्यांकन में मैं आप लोगों पर कठोर हूँ. अगर आप लोगों को दुसरे तरीका से सोचने का अपील करते हुए मैंने अपना सीमा नांघ दिया है तो मुझे माफ़ कर दीजिए. फिर भी मुझे उम्मीद है कि इस पोस्ट ने आप को अपने स्थिति के बारे में फिर से सोचने पर मजबूर किया है और अन्य आध्यात्मिक रास्ते पर चलना भी मुमकिन बनाया है.
समापन में मैं ये कहना चाहता हूँ के मैं सिर्फ एक को ही जानता हूँ जो दिल और दिमाग दोनों को परिवर्तन कर सकते हैं और ऐसे जिंदगी का मैं जीवित उदाहरण हूँ जो येशु मसीह के शक्ति के द्वारा परिवर्तन हुआ है. सिर्फ मैं ही ऐसा एक नही हूँ जिसको उन्होंने प्रभावित किया है पर ऐसे अनगिनित लोग हैं जिनका अपना ही कहानी और गवाही है जो परमेश्वर के चल रहे मंत्रालय के सच्चाई को साबित करता है जो लोगों को बंधन से आजाद करता है और उन सभी को नयी जिंदगी देता है जो किसी प्रकार के बंधन में हैं.
४:१८-१९ लुका
“प्रभु का आत्मा मुझमें समाया है
उसने मेरा अभिषेक किआ है ताकि
मैं दीनों को सुसमाचार सुनाऊँ.
उसने मुझे बंदियों को यह घोषित करने के लिए
की वे मुक्त है,
अंधों को यह सन्देश सुनाने को की
वे फिर दृष्टी पायेंगे,
दलितों को छुटकारा दिलाने को और
प्रभु के अनुग्रह का समय बतलाने को भेजा है.”
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अंत में हमारे पास खूब प्यार करने वाले और दयालु पिता हैं जिन्होंने एक ऐसा सार्वभौमिक संदेश कहा हैं जिन्होंने येशु के व्यक्ति और काम के माध्यम से “सीमाओं” और “संलग्नताओं” का चक्र तोड़ दिया है.
यहुन्ना ३:१६
परमेश्वर को जगत से इतना प्रेम था की उसने अपने एकमात्र पुत्र को दे दिया, ताकि हर वह आदमी जो उसमें विश्वास रखता है, नष्ट न हो जाये बल्कि उसे अनंत जीवन मिल जाए.
मती ११:२८-३०
“अरे, ओ थके- मानदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ, मैं तुम्हें सुख चैन दूंगा. मेरा जुवा लो और उसे अपने ऊपर संभालो. फिर मुझ से सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा अमन कोमल है. तुम्हें भी अपने लिए सुख-चैन मिलेगा. क्योंकि वह जुआ जो मैं तुम्हें दे रहा हूँ बहुत सरल है. और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है.”
कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएँ?
jesusandjews.com/wordpress/2012/01/10/कैसे-भगवान-के-साथ-एक-रिश्त/
अन्य संबंधित लिंक
Encyclopedia of Religion Second Edition, copyright 2005 Thomson Gale a part of The Thomson Corporation, Lindsay Jones Editor in Chief, Vol.9, pgs.5829-5830, Charles C. Haynes
Encyclopaedia Britannica,Inc., copyright 1993, Vol.7, pgs.1012-1013, Meher Baba