Archive for the ‘हिंदी-Hindi’ Category

जैन धर्म संसाधन 

Saturday, December 31st, 2011

बाइबल

 

चार आध्यात्मिक कानून

 

येशु फिल्म

 

अन्य कड़ियाँ

www.youtube.com/watch?v=4T_nGeKEsvI

www.youtube.com/watch?v=DKp8w1qR5XM&feature=related

जैन धर्म

Sunday, December 25th, 2011

जैन धर्म एक असाधारण धर्म है जिसका नैतिक मानक काफी ऊपर है जो नैतिकता की दृष्टि से सराहनीय है लेकिन उसमें एक परोपकारी मकसद का अभाव है क्योंकि यह व्यक्तिगत आत्मज्ञान प्राप्त करने के द्वारा व्यक्तिवाद स्वार्थ की पूर्ति करना चाहता है .

इसके अलावा इस धर्म में मौलिकता का अभाव है क्योंकी ये दृढ़ता से हिंदू  सोच पर आधारित है और यद्यपि इन दो दुनिया के विचार में विश्वास के अंतर हैं फिर भी ये साफ़ जाहिर(१) है की जैन धर्म अपनी माँ धर्म का संतान है.

इसके मूल के बारे में, जैन वर्धमान या महावीरको अपना समकालीन संस्थापक मानते हैं जो कहा जाता है के ४२ साल की उम्र में आत्मज्ञान की ऊँचाई पर पहुंच गए और परिणामस्वरूप दूसरों को इस तथाकथित वास्तविकताको पाने में निर्देश करने लगे.

हालांकि, इस विचार के लिए चुनौती यह है कि इस तथाकथित अवस्था को पा लिया ये जानने का कोई दृढ तरीका नहीं है और ये तरीका विशुद्ध रूप से व्यक्तिपरक है और कोई भी व्यक्ति इस अवस्था को पाने का दावा कर सकते हैं जबकि सच में ये उन्ही झूठे दावों में से एक और होसकता है जो दुसरे आध्यात्मिक और धर्मनिरपेक्ष नेताओं ने किया है.

इस के इलावा आत्मज्ञान, कर्म, और आत्मा की स्थानांतरगमन के विचार हिंदू अवधारणा रहे हैं और भले ही इन दोनों धर्मों के बिच विश्वास की बारीकियां हैं फिर भी इन सब में औसत दर्जे का अनुकूलता और समानता है.

अब मैं इस विस्तृत विश्वास प्रणाली की बारीकियों के बारे में सोच रहा हूँ के कैसे कोई अंतत उस ‘परम सत्य’को जान सकेगा क्योंकी निर्वाण से वापस कोई भी अपनी कहानी सुनाने के लिए नहीं आया. यह एक वास्तविक अनुभव है या जैन धर्म गुरुवों, स्वामिओं, देवों और नाथ पर उन्हें इस अवधारणा के विषय में ज्ञान अनुदान करने के लिए निर्भर हैं? वैसे भी मैंने मृत्यु के बादके जीवन पर और मौत के निकट के अनुभव के बारे में एक ब्लॉग लिखा था जो आपको उपयोगी लग सकता है.

क्या नर्क वास्तव में है?

इसके अलावा जैन धर्म कुछ असंगत दावा करते हैं के महावीर ऊपर से उतर आए जब के वास्तव में उनके सांसारिक माता पिता थे. इसके अलावा वो ये दावा भी करते हैं कि वह पाप (३) के बिनाका एक सर्वज्ञ थे और इसी लिए उनके लिए आत्मज्ञान प्राप्त करना संभव हो सका क्योंकि वो स्वर्गसे प्रबुद्ध होके उत्पन्न हुए थे? तो अगर वह पहले से ही पूरी तरह से बेगुनाह थे तो उनके लिए पहले एक समय में राजकुमार होना कैसे संभव था क्योंकि ये बात बाद में तो सम्पत्ति के बारे में उनके तपस्वी विचार से नहीं मिलता.

यदि महावीर एक सिद्ध प्राणी था तो उसने क्यों भिक्षुओं को पांच प्रतिज्ञा के तहत सभी महिलएं जिनके बारे में कहा जाता था के बुराई के साथ जुडी हैं उनसे बचने की हिदायत(४) क्यों दी जब की उसकी अपनि ही पत्नी थी? व्यावहारिक रूप से कहें तो जैन कैसे निःसंतान विलुप्ती से अपने विश्वास और समुदाय को बढाते और क्या शादी और बच्चे पैदा करने से परहेज़ द्वारा जन्म के संतुलन को प्राकृतिक बाधा नहीं होता?

विडंबना यह है कि अगर यह महिलाओं के विषय में मामला है तो क्यों कुछ जैन ने मल्ली नाथ नामक महिला को १९ वीं तीर्थंकर के रूप में मान्यता दी.

अब कुछ अन्य विश्वास जो इस धर्म को बनाने के विषय में है वहाँ विभिन्न विरोधाभासी स्थिति है जो उनके अनुयायियों के बीच सिखाया जाता है.

इन विश्वासों में से एक ये है कि पारंपरिक जैन धर्म जो महावीर को जिम्मेदार ठहराता है, वो इश्वर(इश्वारों) यस फिर एक सर्वोच्च शक्ति में विशवास नहीं करता जो बौद्ध धर्म के अपने भाई धर्म के जैसा लगता है फिर भी विडंबना यह है कि आज महावीर (६)को एक देवता के रूप में पूजा जाता है और ये बात विभिन्न धर्मों के विश्वासियों के बीच एक आम बात है जो समय के बीतते ही अपने संस्थापक को उठा कर देवत्व प्रदान करते हैं.

जैन धर्म ये भी संदिग्ध दावा करता है कि वे किसी व्यक्तित्व की पूजा ना करके केवल अवधारणा या विचार की पूजा करते हैं जो उनके आध्यात्मिक नेताओं ने अतीत में सिखाया था. फिर भी अन्य धार्मिक दुनिया का अध्ययन करने पर इन गतिविधियों के ही प्रकार के विचार और व्यवहार पाए जाते हैं जो उनके देवताओं की पूजा का वर्णन करते हैं.

जैसे भी नीचे झुककर प्रार्थना की पेशकश और तीर्थंकरों के आगे साष्टांग दंडवत करना और इन व्यक्तियों के प्रति पवित्र मंत्र का पाठ करना इन लोगों के धार्मिक पृष्ठभूमि के बारे में बताता है जो मेरे हिसाब से व्यक्ति के लिए एक मूर्तिपूजक रिश्ता दिखाता है.इसके अलावा इन व्यक्तियों के तस्बिरों को प्रस्तुत करना और इन व्यक्तियों के स्मरणोत्सव के रूप में छुट्टियों की स्थापना करना और मंदिरों और तीर्थस्थल बनाना इतने बड़े सम्मान की बात है के ये मानव मात्र के मान्यता और प्रेरणा से परे हैं. इसके अलावा इन लोगों के तस्वीरों को चढ़ाया जाने वाला प्रसाद को बहुत ज्यादा मान्यता दिया जाता है जितना के जैन स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं.

अमेरिका में उनको हमारे देश के नायकों में माना जाता है जो मुख्य रूप से सैन्य सेवा में इस देश की सेवा किए होते हैं और कम से कम साल में दो बार उनको उनके कृत्य के लिए सम्मानित किया जाता है क्योंकी सेवा के लिए उन लोगों ने निस्वार्थ भावना से अपने प्राण देदीए. इतना कुछ करने के बाद भी उनको उस चरम स्तरके सम्मान के नजदीक भी नहीं दिया जाता जो उनके श्रद्धेय लोगों को जैन धर्म में दिया जाता है.

तो हालांकि जैन धर्म एक परम व्यक्तित्व के बारे में बात नहीं करना चाहता पर पहचान निर्दिष्ट करके ये समान शब्द का उपयोग करते हैं जैसे के कार्मिक बलों, सार्वभौमिक चेतना या आत्मा ‘परम’.

लगता है के ये सब एक बुद्धिमान जीव को इंगित करता है लेकिन ये इस वास्तविकता को किसी प्रकार का अव्यक्तिगत बल बताकर भाषा से भागने की एक कोशिश है और फिर भी इन बलों का उस व्यक्तित्व के साथ संरचना की प्रकृति के आधार पर समानता है. मैं पहले ही कुछ ब्लॉगों में कोई परम जीव या फिर इश्वर के बारे में ब्रह्माण्डिक और धार्मिक विचारें लिखी है हो सायद आपके काम आ जाए.
Atheist and Agnostic

तो अगर जैन धर्म सर्वोच्च इश्वर के अवधारणा को खारिज करता है तो वो कैसे कार्मिक प्रतिशोध जैसे जटिल और व्यापक विषय के बारे में बता सकता है जो उनके दार्शनिक मान्यताओं के अनुसार नियंत्रण और संतुलन की एक अच्छे से प्रबंधित प्रणाली के रूप में  प्रतीत होता है? इन बातों को और अधिक समझ बनाने के लिए अगर एक परमेश्वर होता जो सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी होता और अनन्त न्याय के इस समझ से बाहर की बात की देखरेख सकता?

विचार करने के लिए उनके विश्वासों से संबंधित कुछ अन्य बातों में अहिंसा के विचार या “कोई बुराई नहीं” नीति है जो चीजों को मारने या नोकसान पहुंचाने के हिंसा से अलग रहने (७)की प्रतिबद्धता है और फिर भी आप इस तपस्वी का भाग्यवादी अभ्यास के बारे में क्या कहेंगे जो सलेखाना के अधिनियम को पूरा करने के लिए खुद को भूख से मार देता है? क्या यह व्यक्तिगत चोट और खुद को नष्ट करना नहीं है?  इसके अलावा, विश्वास की इस कठोरता पर जीना तो नामुमकिन ही है क्योंकि पानी में रह रहे हैं लाखों सूक्ष्मजीवों को पानी पीते समाय बचाना असंभव होगा. इस के अलावा गलती से कीड़े, सब्जियों, और लकड़ी को चोट पहुंचाने से कैसे बच सकते हैं जब विशेष रूप से अंधेरे में हर रोज चलते वक्त लोग अपने परिवेश से अनजान रहते हैं और इसलिए अनजाने में पैर के नीचे इन चीजों को रौंद देते हैं जिसके बारे में जैनियों का मानना है के ये मुक्ति के लिए  बाधा लाएगा क्योंकि आपने इस अभ्यास का उल्लंघन किया है और मोक्ष को प्राप्त करना आपके लिए असंभव होगया है?

इसके अलावा एक व्यक्ति वास्तविक जीवन में जब एक हमलावर के आगे आजाए चाहे वह एक आदमी या जानवर हो तो उसका प्रतिक्रिया क्या होना चाहिए? उस व्यक्ति को खुद का बचाव करना चाहिए या फिर हमलावर को किसी लड़ाई के बिना खुद को मारने देना चाहिए?

कभी कभी लोगों को नुकसान देना पड़ता है जैसे कानून के दंड संहिता के साथ, जो व्यक्तियों को नियंत्रित करके अन्य प्राणियों के रक्षा के लिए आवश्यक होता है.

कई बार जीवन में ऐसे भी समय आते हैं जब किसीकी जिंदगी बचाने के किए किसी का जान भी लेना पड़ता है जैसे की एक माँ जो अपने बच्चे को जन्म देने के दौरान महत्वपूर्ण जटिलताओं का सामना कर रही है. जीवन की जटिलताओं के कारण कभी कभी दोनों दलों को अहिंसा के बारे में बराबर बनाना संभव नहीं होता.

इसके अलावा इस सैद्धांतिक बात को बनाए रखने और कायम रख्ते वक्त ये बुरा कर्म जो ब्रह्मांड में प्रतिशोध और न्याय के काम कर रहा है, उसके प्रभाव के विषय में समस्या पैदा कर सकता है. तो व्यक्तियों के सकारात्मक ढंग से बातचीत करके ये जीवन का संतुलन परेशान कर सकता है.

विश्वास के इस दर्शन के लिए एक और आपत्ति इसकी उपयोगिता और रोजमर्रा की जिंदगी की वास्तविकता में अपना जीवन बनाना है. एक तरफ तो जैन जीवनको नष्ट करने से मना करते हैं और फिर भी कई ऐसे हैं जो पूँजीवादी सांसारिक समाज की उद्यमशील जाल के तरफ चले गए हैं जो अक्सर लाभ की अवधारणा से जुड़े हुए रहते हैं और जिसके हमबिस्तर लालच और धन हैं. जैनियाँ अक्सर राजनीति(९) वाणिज्य, बैंकिंग और वित्त में भाग लेते हैं और भले ही वो व्यक्तिगत जीवन में किसी तरह अपनी स्थिति का औचित्य सिद्ध कर लें पर वो अनिवार्य रूप से कैसे सुनिश्चित करेंगे के वे उनके राजनीतिक उपस्थिति दूसरों के द्वारा दुरुपयोग करने के लिए अनुमति ना देकर धार्मिक अपराधों के लिए एक सहायक के रूप में शामिल नहीं होंगे.

जैनियों के सांसारिक संलग्नता के कुछ और पहलु उनके भारतीय दर्शन, कला और स्थापत्य कला में उनके प्रभाव और योगदान है. सांसारिक प्रभाव से इतना अलग हो जाना असंभव है के सांसारिक प्रभाव का ऐसा कोई रूप ही नहीं हो जो हमको और औरों को प्रभावित करता हो.

जैन धर्म के बारे में बात करते वक्त एक अन्य विवादास्पद बात उनके पवित्र ग्रंथों की मान्यता है जो दिगम्बरों और स्वेताम्बरों के संप्रदायों में विवादित है जिनका अपना लिपि भी नहीं है. (१०) ये दस्तावेज जो मौखिक परंपरा पर भारी निर्भर हैं वो महावीर के मृत्यु के १००० साल बाद तक भी अपने अंतिम और स्थायी रूप तक नहीं पहुंची थी. इस समय के दौरान इन दस्तावेजों में मूल संदेश से काफी बदलाव किया गया हो सकता है जो कहा जाता है के पुरवास नमक सबसे पुराना और सबसे विश्वसनीय पाठ से प्राप्त किया गया है और जो खो गया है.

हम जानते हैं कि मौखिक परंपरा की कमजोरियां होती हैं और बच्चों के रूप में हमारा व्यक्तिगत अनुभव टेलीफोन के खेल खेलते समय ये रहा है के क्या मूल संदेस है और कहा गया था इसमें भारी अंतर हो सकता है. तो अगर एक संदेश सिर्फ कुछ समय और स्थान के बिच कुछ ही मुंह और कान से गुजरता है तो अगर वो इतने विकृत हो सकते हैं तो अगर इन चलों को बढा दिया जाए तो ऐसा होने के संभावना कितने बढ जाते हैं.

और इस तरह से अगर ज्यादा समय गुजर जाए तो इसके सामग्री और ज्यादा मिथक और सुशोभित होजाते हैं और इनके सच्चाई के दावों को प्रमाणित करने के लिए और मुश्किल हो जाता है.

तो इस मापदंड के आधार पर क्या आप अपना विश्वास इस में रखना या अपने जीवन को दांव पर रखना चाहेंगे?

एक और विषय जो मेरे ख़याल से जैन के बीच एक गलत धारणा है के वो ब्रह्मांड के अनंत होने पर विशवास करते हैं.

अनुभववाद के आधुनिक विज्ञान करणीय या कारण और प्रभाव के नियम की समर्थन करते हैं के हरेक प्रभाव का एक मूल या ज्ञात ब्रह्मांड सहित मूल कारण होना चाहिए.  आइंस्टीन की सापेक्षता के अपने सिद्धांत के माध्यम से धारणा ये थी के ब्रह्मांड की एक शुरुआत है और यह बाद में गणितज्ञों और हबल दूरबीन से भी पुष्टि किया गया जिसने ब्रह्मांड के विस्तार के संबंध में प्रकाश की परिवर्तन के बारे में बताया और ये प्रमाणित किया के ब्रह्मांड का एक प्रारंभिक बिंदु था जिसको  सैद्धांतिक रूप से बड़ा धमाका का नाम दिया गया है. ये घटना कैसे हुआ इसके  विवरण के बावजूद इस अवलोकन के बारे में कम से कम ऐसा एक संकेत है जो प्रासंगिक है और वो ये है के ये ब्रह्मांड जैसे हम जानते हैं इसका एक प्रारंभिक बिंदु था और यह अभी भी बढ़ रहा है.

एक और जैन शिक्षा जो विज्ञान के साथ संघर्ष करता है वो है उनका विश्वास के जो पहले तीर्थंकर थे रिषभ या रसाभा वो अरबों साल पहले रहते थे और अभी तक हम जीवाश्म सबूत से ये जान पाए हैं के मनुष्य उस समय में मौजूद नहीं था.

इसके अलावा जैन धर्म  के विवादों में आनंद या फिर आनंद के खोज से दूर रहने की बातें हैं और फिर भी उनके प्रमुख विशवास ही निर्वाण को पाकर पुनर्जन्म से बचने की बातें हैं.

तो अगर खुशी और आनन्द से बचना ही है तो फिर पुण्य क्यों करें जो आपको सुखद अनुभूतियां देने की क्षमता रखता है?

यह खुशी की अवधारणा इन भाग लेने वाले जैनियों के द्वारा औरों पे भी असर डाल सकता है जो प्रसाद और सेवाएं भिक्षुओं को देकर उन भिक्षुओं के लिए समर्पित हैं और उन्हें सांसारिक संलग्नता (११) पर निर्भर करा रहे हैं.

जैन धर्म के खिलाफ एक और तर्क ये है के वो आध्यात्मिक विकास के विभिन्न स्तरों की अनुमति देते हैं जो सबसे निचे आम आदमी तक जाता है और फिर भी ये लगता है के इस आंदोलन के निचले सोपानक में शुरू करते ही वो लड़ाई हार रहे हैं क्योंकि वो किसी भी इंसान को कार्मिक बल के बढ़ने के वजह से फ़ायदा लेने का मौका नहीं देंगे और इसकी वजह से निर्जरा प्राप्त करना और मुश्किल हो जाएगा क्योंली कार्मिक चीजें बेअसर होजएंगी और थक जाएंगी.

अन्त में जैन धर्म अन्य धर्मों के लिए सहिष्णुता का दावा करती है ये कहके के कोई भी एकमात्र विश्वास सच नहीं होसकता तो क्या ये मामला इनके ही आंदोलन पे लागू होता है? यदी ये बात है तो ईसाई जैसे दुनिया के अन्य धार्मिक धारणों को अपनाने का ये रास्ता खोल देती है.

और ये कहना के कोई परम सत्य नहीं है खुद के लिए एक विरोधाभासी बयान है क्योंकि अगर वहाँ कोई निरपेक्षता नहीं है तो इसमें जैन धर्म के वो निरपेक्ष बयान भी सामिल होंगे जो कहते हैं के कोई परम सत्य नहीं होता.

वास्तव में जैन धर्म का अन्य धर्मों के साथ एक धार्मिक सहिष्णुता हो सकता है मैं ये नहीं मानता के जैन ये मानते हैं के और धर्मों में  महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सत्य हो सकता है जो उनके पहचान से अन्यथा हैं क्योंकि अगर ये होता तो खुद को हिंदू, बौद्ध या ईसाई कहते उनको कोई दिक्कत नहीं होती. हकीकत में वे खुद को विशेष रूप से पहचान देते हैं अन्यथा वे इसे एक एकल धार्मिक श्रेणी के तहत उनके धार्मिक विश्वासों की प्रणाली को परिभाषित नहीं करते पर एक और भी मिश्रित या बहुलवादी रूप अपनाते जैसे के हम बही विशवास या न्यू एज आंदोलन में देखते हैं. इसके अलावा उनके विश्वास प्रणाली और अन्य धार्मिक दुनिया के दृश्य के बीच के फरक को वो कैसे लेते? क्या वे वास्तव में पुनर्विचार करके अन्य संभावनाओं को स्थान देने के लिए तैयार हैं जो उनके अपने विश्वासों के विपरीत हैं?

यदि ऐसा है तो मैं ईसाई सुसमाचार की सच्चाई या अच्छी खबर आप के साथ बांटने का मौका लेना चाहूँगा जो जैन धर्म के जैसे कोई व्यक्ति के जीवन को सुन्यबाद के घिनोने स्थिति में लेजाकर निराशा और उत्पीड़न के अवस्था में नहीं छोड़ता जहां जीवन के अवसर और लक्ष्य भुखमरी के एक आत्मघाती अधिनियम के माध्यम से पूर्वानुमानित किया जाता है.

कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएँ?

निष्कर्ष में जैन धर्म ने एक आंदोलन के रूप में पाप की स्वार्थी प्रकृति और पाप और न्याय की अवधारणा को इनाम और निर्णय के माध्यम से सकारात्मक रूप से पहचाना है.

अभी तक सच्चाई के इस सामान्य रहस्योद्घाटन जो इश्वर ने हमारे भीतर डाल दिया है वो उद्धारकर्ता या भगवान का हमारे लिए जरूरत को दिखाने के लिए केवल एक प्रारंभिक बिंदु है और वो हमें नैतिक चेतना या दिशा देने के लिए सिर्फ एक सुरुवाती विन्दु है. तो धार्मिक प्रथाओं का एक व्यापक प्रणाली विकसित करने के बजाय इश्वार का इरादा ये था के हमें निर्भरता का एक रिश्ता में वो लेजाए जहां इश्वर हमारे दिल और जिंदगी में काम कर सके.

वैसे भी आप इश्वर की जगह में एक नकली धर्म प्रतिस्थापन करके अपने आत्मा के शून्य को कभी भी नहीं भर पाएंगे क्योंकि वो इश्वर ही हैं जो अपने प्रेम और क्षमा के जरिए आपके दिल को भरने में सक्षम हैं और आपको नरक के खतरों से अलग करके अनन्त जीवन की सुरक्षा देंगे. रोमियों २:१४-१६

(सो जब गैर यहूदी लोग जिनके पास व्यवस्था नहीं हैं स्वभाव से ही व्यवस्था की बातों पर चलते हैं तो चाहे उनके पास नहीं है तो भी वे अपनी व्यवस्था आप हैं. वे अपने मन पर लिखे हुए, व्यवस्था के कर्मों को दिखाते हैं. उनका विवेक भी इसकी ही साक्षी देता है और उनका मानसिक संघर्ष उनहे अपराधी बताता है या निर्दोष कहता है.) ये बातें उस दिन होंगी हब परमेश्वर मनुष्य की छुपी बातों का, जिसका मैं उपदिश देता हूँ उस सुसमाचार के अनुसार यीशु मसीह के द्वारा न्याय करेगा.

आपको महसूस हो सकता है कि जैन धर्म ने आप पर एक ऐसा भार रखा है जो सहन करने में आप असमर्थ हैं जैसे के अज्ञात अवधारणा और बेहिसाब कार्मिक बलों के आधार पर इंसान को अपने पापों पर काबू पाने में असमर्थ बना कर छोड़ता है. आप असुरक्षा और डर की भावना के तहत संघर्ष कर रहे हो सकते हैं क्योंकि आपको मालूम नहीं है के आप चक्र के कौनसे हिस्से में हैं और क्या आप अपने मुक्ति कमाने और इस जीवन के दुःख और दर्द से बचने के लिए पर्याप्त किया है. शायद आप नीचे दबा हुआ महसूस करते हैं और अपने धर्म की आवश्यकताओं के बोज से दबा हुआ महसूस कर सकते हैं और आप को ये भी लगता होगा के आपके इस आध्यात्मिक यात्रा में आप के कंधे को मदत करने और आपके बोज को उठा कर आपकी मदत करने कोई नहीं आया पर मैं आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताना चाहूँगा जिन्होने इस समय के धार्मिक नेताओं के खिलाफ बात की थी जो करने और ना कारने के धार्मिक चीजों से भरी दबाब लोगों के कन्धों पर रख रहे थे और लोग इस धार्मिक जुवा के बोझ के तहत दबते जा रहे थे.

मती ११:२८-३० में यीशु ने कहा ““अरे ओ थके-मांदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ , मैं तुम्हे सुख चैन दूँगा. मेरा जुवा लो और उसे अपने ऊपर संभालो. फिर मुझसे सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा मन कोमल है. तुम्हे भी अपने लिए सुख-चैन मिलेगा. क्योंकि वह जुवा जो मैं तुम्हे देरहा हूँ बहुत सरल है. और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है. ””

मेरे दोस्त यीशु आप को मुक्त करने और आप को आजाद कराने के लिए आए थे जैसे के उन्होंने रोमियों ८:१-२ में कहा.

“ इस प्रकार अब उनके लिए जो यीशु मसीह में स्थित हैं, कोई दंड नहीं है. क्योंकि वे शारीर के अनुसार नहीं बल्कि आत्मा के अनुसार चलते हैं. क्योंकि आत्मा की व्यवस्था ने जो यीशु मसीह में जीवन देती है, तुझे पाप की व्ययास्था से जो मृत्यु के ओर ले जाती है, स्वतन्त्र कर दिया है.”

अंत में मैं आपको मेरे व्यक्तिगत गवाही के साथ छोडना चाहूँगा जो ये कहता है के कैसे यीशु ने मेरे जीवन में एक अंतर बना दिया और मैं प्रार्थना करता हूँ के वो आप के जिंदगी में भे कुछ फरक लाएंगे.

यीशु के साथ मेरी व्यक्तिगत गवाही

 

 

अन्य संबंधित लिंक

जैन धर्म संसाधन

jesusandjews.com/wordpress/2010/07/21/the-religion-of-jainism/

 

 

AMG’s World Religions and Cults, AMG Publishers, Chattanooga, Tennessee

All marked references are attributed to:

© 2009 Josh McDowell Ministry. All rights reserved. No part of these Materials may be changed in any way or reproduced in any form without written permission from Josh McDowell Ministry, 660 International Parkway, Richardson, TX 75081. www.josh.org. +1 972 907 1000. Used by Permission.