कुछ लोग सतह के स्तर का अवलोकन करके इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं और सुंदरता सिर्फ त्वचा तक का गहरा हो सकता है पर धर्म नहीं हो सकता. दुनिया के सभी धार्मिक विचार के नीचे गुप्त विचारों और सिद्धांतों का दलदल है जो शाब्दिक रूप से आपको डूबा देगा.
इसके अलावा एक समूह / संस्कृति में ‘इश्वर’ की अवधारणा होने और कुछ चीजें एक होने से उसका ये मतलब नहीं है के वहाँ पर अनुकूलता का एक संश्लेषण है.
दुनिया के बहुत से ऐसे धार्मिक विचार एक दुसरे के परस्पर विरोधी हैं. यदि आपने तुलनात्मक धर्मों और संस्कृतिओं का अध्ययन किया है तो आप पहले से ही इस निष्कर्ष पर आ गए होंगे.
उदाहरण के लिए, शैतानी बातें ईसाई धर्म के तुलना में सबसे चरम अर्थों में विरोधी हैं जिनमें कोई सुलह नहीं.
शायद किसी किसी को ये विचार अच्छ लगता है क्योंकि ये विश्वासों के मतभेदों के बीच तनाव को सुलझाकर एक बहुलवादी और मिलाजुला समाज के गठन में मदत करता है.
ये आंदोलन हालांकि वे धर्म के आम शीर्षक के अंतर्गत आ सकते हैं पर ये किसी भी हालत में मिलने वाले दोस्त नहीं हैं.
कुछ लोग इस विचार को इसलिए रख सकते हैं क्योंकि उनके अपने स्वयं के व्यक्तिगत विश्वास प्रणाली को न्यायोचित ठहराने के लिए इसका आवश्यकता है और ये भी संभव है के उन लोगों ने ये किसी से सुना और इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.
फिर भी, ये बात के “सभी रास्तें इश्वर के तरफ ले जाते हैं” वास्तव में खुद में ही पदों की एक विरोधाभास है. हम कह सकते हैं के किसी एक चीज को करने के लिए बहुत से तरीके होते हैं, लेकिन जब वो सीधे संघर्ष में हैं और विपरीत दिशाओं में जा रहे हैं तो उन्हें एक जगह में लाने के लिए एक अच्छे मार्गनिर्देशन का जरूरत पड सकता है पर ये भी उन सभी के लिए सिर्फ एक दुसरे के बगल से से गुजर के अपने जीवन के रास्ते पर अपने ही पथ पर आगे बढ़ने का जगह हो सकता है और वो एक दुसरे से कभी मिल या जुड नहीं सकते.
व्यावहारिक रूप से बात करें तो कट्टरपंथी राष्ट्रवादी हिंदु भी इस दर्शन पर विश्वास नहीं करते क्योंकि अगर वो करते तो वो अन्य धार्मिक विचारधाराओं की ओर शत्रुतापूर्ण भावना नहीं रखते. इसके अलावा पूर्वी गुरु भी इन दार्शनिक विचारों को अपनाने के लिए पश्चिमी विचारकों को परिवर्तित करने की कोशिश नहीं करते.
वैसे भी दुनिया के कुछ विचारों में विरोधाभास कोई समस्या नहीं है, भले ही हमारा दिमाग हमें कुछ और बताता है. जैसे की मैंने हिंदू धर्म के देवताओं कहके मेरे दुसरे पोस्ट में लिखा है मुझे लगता है के ये उन धर्म और दर्शन के लिए काम कर सकता है जिनका कोई नीयम नहीं है पर वास्तव में लोग इस तरह के तर्क अपने हरेक दिन के जीवन में प्रयोग नहीं करते हैं.
वैसे भी एक संस्कृति जो विरोधाभास को गले लगाता है उसके मानसिकता को समझने में मुश्किल हो सकता है क्योंकि वो कारण को हटा देते हैं और विज्ञान और दर्शन के तर्कसंगत विचारों को भी नहीं मानते हैं.
उदाहरण के लिए, आप सच के गुरुत्वाकर्षण बल जो आपके शारीर को खींचता है उसके असर से गिरे बिना किसी धार्मिक विश्वास के चट्टान पर से नहीं कूद सकते हैं.
आप किसी आते हुए बस के आगे इस विश्वास के साथ खड़े नहीं हो सकते हैं के वो सिर्फ एक भ्रम है पर आपको सच के सामने झुकना ही पड़ेगा क्योंकि यह जड़ता की ताकतों पर लागू होता है.
हम वाइली कोयोट के दुनिया में नहीं रहते हैं जिसका लगता था के १००० जिंदगी है और जो मृत्यु को चतुरता से मात दे सकता था और अपने कर्मों के परिणामों से कोई हानि नसेह्कर कब्र से निकल आता था.
यह लंबे समय तक दिखाने के लिए एक अच्छा कार्यक्रम बन सकता है पर हम ये बात अपने दिल में जानते हैं के मानव जीवन के नाटक के असली मंच पर ये इस तरह से काम नहीं करता है.
इसके अलावा दार्शनिक रूप से कहें तो एक शादीशुदा अविभाहित नहीं हो सकता है और वैसे ही शैतानिक इशाई या फिर इशाई शैतानिक नहीं हो सकते हैं.
अंत में, बाइबलिय रूप से कहें तो ऐसे दो रास्ते हैं जो एक दुसरे का खंडन करते हैं. एक (कई) व्यापक है जो विनाश की ओर पहुंचाता है और दूसरा (एक) संकीर्ण है जो जीवन की ओर ले जाता है. येशु ने कहा के मैं ही रास्ता, सच्चाई और जीवन हूँ और उनके द्वारा छोड़कर कोई भी परमेश्वर तक नहीं पहुँच सकता है.
जैसे के हम में से बहुत को चलने के लिए पैर दिया गया वैसे ही हमें आगे बढ़ने के लिए रास्ता भी दिया गया है. आपके लिए मेरा चुनौती ये है के क्या आप वो व्यापक रास्ता लेना चाहेंगे जो सभी रास्तें मिल कर बनता है या फिर आप उस संकीर्ण रास्ते पर चलने और उसमें खोजी करने की हिम्मत करेंगे जो आपको सच तक पहुंचाएगा?
यह धर्म भी बहुत से पूर्वी दर्शन जैसा है जो मानवता की ओर अर्द्ध उदार धारणा रखता है और विभिन्न धार्मिक विचारधाराओं के तत्व को भी सामिल करता है.
जैसा कि मैंने पहले मेरे अन्य लेखों में कहा है जो हिंदू धर्म, काओ दाई और साई बाबा से संबंधित थे, बहाई आस्था भी धर्मों के प्रस्तावित सत्य की प्रक्रिया या प्रणाली के बिच के फरक को ज्यादा ध्यान ना देते हुए धार्मिक विश्वास के आम तत्व पर बराबर जोड़ देता है. तो इन सभी धर्मों का मिलकर एक हो जाना तुलनात्मक धर्म का ज्यादा सरलीकरण है जो अनावश्यक रूप से दूसरों की धार्मिक पहचान के कमी को इनकार करता है.
विडंबना यह है, बहाई धर्म दुनियाके व्यवस्थित धर्मों में खुद को मानता है और अपने अनोखे धार्मिक इतिहास को बनाए रखता है जो इस आंदोलन को कहने के लिए बहाई बनाए रखता है जो इसके सार्वभौमिक स्थिति के विपरीत है. यहां तक कि नाम ही विशेष रूप से “बहाई आस्था” दिया गया है जिसके द्वारा यह अपने स्वयं के सिद्धांतों, कानूनों, और परंपराओं को बनाए रखता है.
बहाई पहले इस्लामी शिया परंपरा से आया था जिसमें वो अंत समय के मसीही आंकड़ों पर जोर देता है जिसको १२ वें इमाम या महदी कहा जाता है.
यह सब सिय्यिद `अली मुहम्मद या मिर्जा अली मुहम्मद से सुरु हुआ जिनको पैगंबर मोहम्मद का रिश्तेदार माना जाता था और जो अपने रिश्तेदार की तरह गहरे ध्यान के द्वारा आत्मज्ञान पा चुका था जिसके द्वारा उसे ये विश्वास हुआ के उसे मसीहा के आने के लिए मार्ग बनाने के लिए दरवाजा या बाब चुनागया है बिलकुल बाप्टिस्ट यहुन्ना की तरह.
हैरानी की बात ये है की, उनके उत्तराधिकारी मिर्जा हुसेन – `अली नूरी या बहुउल्लाह तो बाब का पसंद भी नहीं था जो इस बात का संकेत होना चाहिए के यहाँ कुछ गलत था बल्कि यह बहाउल्लाह के भाई मिर्ज़ा याह्या नूरी था जिसको चुना गया और इस बात ने इस आंदोलन के सुरुवात से ही दरार बना दिया था जो पहले ही अपनी धार्मिक एजेंडा के विपरीत विभेद या विखंडन के पथ पर चल पड़ा था.
अब इस आंदोलन के सैद्धांतिक विवादों के विषय में बात करें तो ये मानव के नैतिक विकास को ज्यादा मानकर पाप का वास्तविकता और उसके बुरे परिणाम को इनकार करता है और फिर भी पिछली सदी समय की शुरुआत से सबसे खुनी रहा है. बुराई या मुझे कहना चाहिए बुराई के परिणाम तेजी से प्रौद्योगिकी के विकास की प्रक्रिया की वजह से बढ़ चूका है जिसमें सबसे ज्यादा मानवता दुष्ट साम्राज्य के नरसंहार प्रवृत्ति की वजह से विलुप्त होने के नश्वर खतरे में है. हमने जर्मनी के फ़ासिज़्म के अत्याचारों को देखा है और यह सब प्रलेखन के साथ आज भी हमारे बीच लोग हैं जो इस बात को इनकार करते हैं के ये कभी हुआ था और ये उनसे अलग नहीं है जिसको बहाई पाप और दुस्टता को मानव के प्रगति में सिर्फ एक गड़बड़ के रूप में खारिज करके समर्थन करता है.
इस के इलावा बाब ने कहा है के वो पूर्ति के युग में जा रहा था पर वास्तव में पिछली सदी का परिणाम रक्तपात का एक युग था जिसके पीछे आज उत्तर कोरिया और ईरान का बुरा तानाशाही आने वाला था.
बहाउल्लाह के बेटे अब्दुल बहा बहाई के उत्तराधिकारी हुए और १९११ में उन्होंने अपना पहला सार्वजनिक भाषण दिया जिसमें उन्होंने दुनिया के बारे में नवी के तरह ये कहा के वो आत्मज्ञान की स्थिति में है जब युद्ध खतम होजाएगा और शांति राज करेगा जिसके द्वारा मानव जाती अंत में भाइयों के रूप में एकजुट हो जाएगा. इस पिछली सदी में कई अन्य वैश्विक झड़पों और दो विश्व युद्धों के बिच ये अवस्य हुआ होगा.
तो जब बाइबिल परिप्रेक्ष्य से इस भविष्यवाणी के बात की विफलता को देखते हैं तो शास्त्र भविष्यवाणी की सच्चाई के सम्बन्ध में एक साधारण परीक्षण को अंकित करता है के अगर जो नवी कहता है वो हुआ तो वो परमेश्वर से आया है और अगर नहीं हुआ तो वो एक झूठा नवी है और अब्दुल बहा के विषय में तो पिछली बात ही सही लगती है.
व्यवस्था विवरण १८:२२
ये बात मुझे यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के समय के दौरान भविष्यवाणी के आवाज की याद दिलाता है जब झूठे भविष्यद्वक्ता कह रहे थे “शांति, शांति, जब वहाँ शांति नहीं थी. “
वैसे भी यह मुझे मेरे अगले बिंदु के तरफ ले जाता है जिसमें ये आंदोलन बहाउल्लाह की जिंदगी को मसीह के दुसरे आगमन के पूरा होने के रूप में देखता है जो इस निर्वासित नेता और उसके परिणामी आंदोलन ने जो कुछ भी थोडा बहुत किया था उसके लिए एक निराशा है. इसके अलावा मसीह का दूसरा आगमन को अस्थायी या आंतरायिक शासनकाल के रूप में नहीं सोचा गया है और इसके बाबजूद बहाउल्लाह की एक इंसान की तरह १८९२ में मृत्यु हो गया. नाही दुसरे आगमन को जेल के एकान्त कारावास के रूप में वर्णित किया गया है बल्कि उसे एक गौरवशाली शासन के रूपमें प्रदर्शित किया गया है जिसमें की भव्यता मैं वो दुनिया के देशों के बीच शक्ति में विराजमान होंगे.
यहां तक कि अपने समय के दुनिया के नेताओं को पत्र लिखने के उनके प्रयासों का दुनिया के पाठ्यक्रम को पुनर्निर्देशित करने में कोई परिणामी प्रभाव नहीं था.
कुछ अन्य विसंगति यशायाह में यीशु से सम्बंधित भविष्यवाणी के बारे में है जिसको बहाउल्लाह के साथ संबद्ध किया गया है और अभी तक रोचक रूप से बहाउल्लाह के बंश का इसराइल के राष्ट्र के संबंध में कोई वंशावली सम्बन्ध नहीं पाया गया नाही उन्हें राजा दाऊद का एक वंशज माना जाता है. सुसमाचार लेखकों ने इसी वजह से येशु के वंशावली के आंकड़ों पर जोर दिया है ताकि यीशु की प्रत्यायक पर जोर दिया जासके और पुराने करार में येशु के मसीहा के रूपमें जो भविष्यवाणी है वो पूरा होसके.
इसके अलावा बहाउल्लाह की पहचान यशायाह ५३ के पीड़ित नौकर के रूप में करना एक अतिशयोक्ति होगा और उनके जीवन के प्रकाश में एक कट्टरपंथी प्रस्थान होगा. सबसे पहले पीड़ित नौकर का अभिप्राय पापों की क्षमा के लिए एक प्रायश्चित्त होना था जो स्पस्ट रूप से बहाउल्लाह के मानकों और प्रयोजन के बाहर था और इस आंदोलन के एजेंडा के विपरीत बुराई और पाप को महज एक मानवीय कमजोरी के रूप में मानता है. फिर भी यशायाह पाप को भगवान के आगे एक अपराध के रूप में बहुत गंभीरता से लेता है जिसका मतलब है के सिर्फ एक धर्मी दास अपने मौत के बलि के माध्यम से इश्वर के साथ हमें सामंजस्य कर सकता है.
एक और विवाद उसके इस्लामी जड़ों का प्रभाव है जो एक उत्कृष्ट इश्वर का विचार रखता है और जो सब के लिए एक हैं. अब इस तरह के अंतर को अन्य पवित्र पुरुषों के विपरीत में कैसे सुधारा जा सकता है जो इश्वर की आवश्यक प्रकृति के बारे में नास्तिक / बहुदेववादी , जीववादी, सर्वेश्वर्वादी, वेदांत, पनेंथेइस्टिक, देइस्टिक, त्रिदेववादी आदि विचार रखते हैं.
यदि हम इश्वर की बात की चर्चा करते समय जीवशास्त्र के मतभेद को एक प्रारंभिक बिंदु के रूप में सामंजस्य नहीं कर सकते तो ये कैसे कह सकते हैं के सब भविष्यद्वक्ताओं और उनके संदेशों का मूल एक ही है?
एक बाक तो बिलकुल पक्का है अगर हम इश्वर की प्रकृति या अन्य सैद्धांतिक भेद के बारे में बात करें के ये बहुत से विचार एक दुसरे के कट्टर विरोधी रहे हैं और इन्हें सामंजस्य नहीं किया जा सकता है. तो संक्षेप में बहाई विश्वास एक पूरा रहस्योद्घाटन नहीं है बल्कि बहुत से प्रतिस्पर्दी धार्मिक परंपराओं को मिलाने और संस्कारी बनाने के प्रयास में एक विरोधाभास है.
इसके अलावा एक और तत्व है जो इस आंदोलन को अस्पष्टता मैं छोड़ता है और वो बात ये है के वो मृत्यु के बाद के जीवन को परिभाषित नहीं कर पाते हैं सिवाय ये कहने के की बाइबल स्वर्ग और नरक के बारे में जो कहता है वो झूट है और ये अवधारणा केवल प्रतीकात्मक है.
बहाई में केवल कुछ ऐसे विचार हैं के दिवंगत आत्मा प्राणि एक अस्पष्ट वास्तविकता में किसी भी तरह अपने अस्तित्व को जारी रखते हैं. फिर भी बाईबल मृत्यु के बाद जीवन के विषय में एक विशिष्ट विचार देता है और इस घटना को चिकित्सा के अधिकारियों द्वारा प्रलेखित किया गया जिसमें स्वर्ग और नरक के लिखित चित्रण भी मौजूद है.
इसके अलावा बहाई के बीच, सच अनुकूली है और फिर भी सच्चाई समय को अतिक्रमण करता है और ऐसा जरूरी नहीं है वो समकालीन समाज के लिए सापेक्षिक हो जो लोगों के भावनात्मक जरूरतों पर आधारित रहके “क्या काम करता है” उसको फिर से परिभाषित करे. आज के लिए क्या सच है इसे कल की गलती के रूप में या भविष्य के भूल के रूप में मानना सत्यवादिता प्रमाणित नहीं करता है सिवाय इसके के ये कहा जाए के ये बात व्यक्तिगत पसंद की ओर समकालीन नहीं था.
इस आंदोलन के लिए एक और विरोधावास महिलाओं की समानता के विषय में इसका विचार है और फिर भी अभी तक वे यूनिवर्सल हाउस अफ जस्टिस के नौ नेताओं के बीच सेवा करने में सक्षम नहीं हुए हैं और सिर्फ यही नहीं लेकिन और भी सीमाएं हैं जिसमें दुनिया के कम ही मान्यताओं / धर्मों को जगह मिला है जो इसको सार्वभौमिक ना बनाकर संकीर्ण बनाता है.
स्पस्ट रूप से इश्वर एक निजी व्यक्तित्व हैं और इसी लिए उन्होंने हमें सामाजिक प्राणी बनाया है जिससे हम रिश्तों के आधार पर हमारे प्यार और भावनाओं को आदान – प्रदान करते हैं जिसकी वजह से हम केवल मानव को छूने के लिए ही नहीं तरसते बल्कि कभी कभी हम में एक गहरा इच्छा होता है के जीवन और प्रासंगिकता के मुख्य सवालों को समझने के लिए हम किसी वास्तविकता से आत्मिक रूप से जुड जाएँ जो हम से भी परे हों. ये खोज केवल एक मानव आविष्कार नहीं है, लेकिन ये हमारे भीतर ऐसे डाल दिया गया है के हम अनिवार्य रूप से तलाश करेंगे और इश्वर को पाएंगे.
इश्वर ने हमें उनके शानदार रचना के प्रदर्शन के लिए एक सामान्य रहस्योद्घाटन जैसा सिर्फ एक उदात्त उपहार नहीं दिया है बल्कि उन्होंने अपना प्यार प्रकट करने के लिए अपने अकेले पुत्र को , पुत्रों को नहीं , भेजा ताकि जो कोई भी उनमें विश्वास करेगा उसे अनंत जीवन का निश्चित्ता मिल जाएगा. यीशु परमेश्वर के व्यक्तित्व का सटीक प्रतिनिधित्व थे जैसे वो एक प्यार करने वाले इश्वर के व्यतिगत प्रकृति को अपने मानवता में दिखाते थे और जिसके द्वारा उन्होंने नाशवान का चिन्ह भी लिया जिससे उनके निस्वार्थ और वीर प्यार को एक मासूम बलिदान के रूप में देखा जा सके. मानवता में उनकी भागीदारी एक दास के तरह था जिसका ये मतलब नहीं है के उन्होंने ज्ञान के कुछ रहस्योद्घाटन दिए बल्कि उन्होंने हमारे लिए अपना जीवन दिया ताकि एक पवित्र और धर्मी इश्वर के आगे हमारे सभी अपराध को नष्ट करके हमारा औचित्य साबित हो सके. इश्वर इससे ज्यादा कितना व्यक्तिगत हो सकते हैं के उन्होंने सम्बन्ध अनुकूल बनाने के लिए मांस और हड्डी का कपड़ा धारण करने में भी भाग लिया.
मैंने संक्षेप में ये समझाने की कोशिस की है के बुराई एक वास्तविकता है और इसे कम करके भ्रामक नहीं बनाना चाहिए और ये केवल एक मानविय कमजोरी या दोष भी नहीं है बल्कि ये न केवल मानव जाति के खिलाफ लेकिन सृस्टीकर्ता के खिलाफ एक गंभीर उल्लंघन और विद्रोह का अपराध है. कृपया अपने होश को संप्रेषित मत कीजिए क्योंकि यह एक नैतिक कंपास है जिसके द्वारा इश्वर ने भीतरी रूप से उनके कानूनों को हमारे दिल में डाल दिया है जो या तो हमारे कार्यों की निंदा करता है या तो पुष्टि करता है. इश्वर ने इस बात को गंभीरता से लिया है और मैं आपको इसी तरह यीशु के बचाने की शक्ति में विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ.
अंत में धर्म के इस वैश्वीकरण एक अच्छा विचार के जैसा दिख सकता है या फिर युद्धरत गुटों के विविधता के लिए धर्म के माध्यम से एकीकरण पाने के लिए एक जबाब हो सकता है पर क्या ये आंदोलन वास्तविकता पर आधारित है? इस सब के बाद भी क्या हम धर्म और शिक्षा के वाहन का उपयोग करके एक नया और बेहतर दुनिया बनाने के लिए सांसारिक प्राणियों पर निर्भर हो सकते हैं और हमने इन उन्नत समाज को सबसे अच्छे रूप में भी विफल होते हुए देखा है.
दूसरों की मदद करने के आदर्शों को रखना एक सम्मानजनक बात है, पर क्या ये एक ऐसा ही काल्पनिक अस्तित्व बना सकता है जिसमें मनुष्य अपना ही भाग्य बना सकते हैं? धार्मिक समाजवाद का ये रूप मानव स्वभाव की इच्छा में विश्वास करने से आता है और इसमें ना कभी ऐसा गुण था और ना होगा जिसको मसीहा के पुनरागमन के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है जो सैद्धांतिक रूप से इस स्थिति को अनुचित बनाता है.
इस मानवीय दृश्य और बाइबिल दृष्टिकोण के बीच अंतर यह है कि बाईबल इस बात पर जोर देता है के इश्वर वास्तविकता का क्रम ला रहे हैं और उसके विपरीत में इंसान के नैतिक प्रयास हैं जो स्वर्ग तक पहुँचने के लिए दूसरा बाबेल का टावर बनाने की कोशिश में जूटा है.
अन्त में, अगर आंदोलन में खुद ही आंतरिक विसंगतियां हों जैसे के इसके कई विघटन जिसमें स्प्लिन्टर समूह या किसी भी अन्य किरच के प्रावधान के तहत असंतुष्ट लेलैंड जेन्सेन के विदेशी दावें भी इनमें सामिल हैं जिसको उनके मुख्यधारा आंदोलन के आधार पर विधर्म विचार कहा जा सकता है, तो वो ये कैसे यकीन से कह सकते हैं के ये मुख्य फसल शांति और एकता का फसल लाने में असफल नहीं होगा?
इसके अलावा सब का प्रतिनिधित्व करने का ये आंदोलन कैसे दावा कर सकता है जब के दुनिया के अन्य धार्मिक विचारों में इतना बड़ा मतभेद है के बहाई के अनुसार कुछ को तो अपना धार्मिक स्थिति को ही दूर कर देना चाहिए. इन प्रकार के उद्देश्योंको थोपना बहुलवादी ना होकर भेदभावपूर्ण है. इसके अलावा इन विपरीत दृश्य के खिलाफ बहाई का न्याय उस तनाव को दूर नहीं करता नहीं इन मतभेदों का खंडन करता है विशेष रूप से क्योंकि ये आंदोलन सच को सापेक्षिक रूप से देखता है.
सब निष्पक्षता में मानव जाति की भलाई की दिशा में इस संगठन के आदर्श सराहनीय हैं, लेकिन क्या ये प्राप्त हो सकता है? विश्व शांति और समानता के उनके सामाजिक स्थिति वांछनीय है, लेकिन क्या यह प्राप्य हो सकता है ? वे जो सिखाते हैं वो खुद भी मानकर सक्रिय हैं जो उनके धार्मिक विश्वासों को अभ्यास में डाल रहा है फिर भी क्या ये उसके सफलता के परिणाम को सुनिश्चित करता है या फिर ये सिर्फ आकाश का एक फल है?
मानवता में अपना विश्वास रखने से आपको निराशा का सामना करना पड़ेगा विशेस करके उनके लिए जो एकीकृत दुनिया के अपने आदर्शों को पकड़ कर नही रखते और मसीहा के दुसरे आगमन के बिना ये कभी पूरा नहीं हो सकता है. राजनीतिक और धार्मिक रूप से बिगड़े हुए दुनिया में इजराइल की तरह एक सुन्दर बगीचा होने से ये बात तो नहीं पक्का होता के एडन का बगीचा समाज के उद्धार के लिए फिर से बहाल हो जाएगा.
Excerpts taken “From Handbook of World Religions, published by Barbour Publishing, Inc. Used by permission”
AMG’s World Religions and Cults, AMG Publishers, Chattanooga, Tennessee
“Reprinted by permission. “(Nelson’s Illustrated Guide to Religions), James A. Beverley, 2009,Thomas Nelson Inc. Nashville, Tennessee. All rights reserved.”