तिब्बती बौद्ध धर्म जिसको लामावाद भी कहा जाता है, ये महायाना बौद्ध धर्म, हिन्दुई वज्रयान जैसे कई सारे परम्पराओं के मिलने के वजह से बना है जिसमें आध्यात्मिक शक्ति हासिल करने के लिए तंत्र-मंत्र का प्रयोग जैसे गूढ़ प्रथाओं का प्रयोग भी किया गया है और इसमें शमनी बॉन धर्म भी सामिल है जिसका प्रभाव ईरान जैसे संस्कृति से लेकर भारत तक बौद्ध सोच के एक अद्वितीय अभिव्यक्ति के रूप में है जो थेरवाद नामक ज्यादातर सबसे प्रामाणिक और रूढ़िवादी बौद्ध सोच से बिलकुल अलग है | बौद्ध धर्म का ये रूप दार्शनिक अटकलों से ज्यादा अभ्यास और साकार करने पर ध्यान देता है और इसका प्रमुख उद्देश्य और लक्ष्य आत्मज्ञान के लिए एक फ़ास्ट ट्रैक देना है जिससे एक ही जीवन काल में निर्वाना प्राप्त किया जा सके |
इसके सच्चाई के दावों को समर्थन करने में एक कठिनाई ये है के एक संस्कृति के रूप में ये शिक्षा का मौखिक संचरण का समर्थन करता है, जिसमें जाहिर रूप से बहुत सारी कमियाँ हैं जैसे की समय के अंतराल में सूचना बदलने लगता है और खो जाता है या फिर इसको गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है जिसके वजह से मैं तो ये सोच रहा हूँ के इन वंश धारकों द्वारा पारित किए गए सूचना में से कितना प्रमाणिक या मूल है | इसके अलावा संचार का ये अभ्यास उनके अपने विश्वासों को सुशोभित और फिर से विकसित करने का कारण भी है जिसके वजह से एक नया धर्म भी जनम ले सकता है जो इसके वास्तविक रूप से अलग है | तो अगर प्राप्ति और साकार करने के लिए ये अभ्यास एक परम आवश्यकता है तो उनके विश्वासों को पहला श्रोत मानकर प्रबुद्ध प्राप्त करने का तो कोई निश्चितता ही नहीं है | अंतिम तौर से उनका भाव “टेलिफोन”के खेल से ज्यादा ज्ञानवर्धक नहीं है जिसमें सभी सदस्य अपनी कहानी एक दुसरे को सुनाते जाते हैं और अंतिम व्यक्ति तक बात जब पहुंचता है तो वो बिलकुल अलग हो जाता है |
एक और समस्या इस कारण से है के बहुत सारे लोगों ने गलत रूप से अपने आपको बहुत सारे धर्मों के गुरुओं को समर्पण कर दिया है जो इस आन्दोलन के साथ मिलता है क्योंकि वो कहते हैं के उनका दिया हुआ सन्देश पूरी तरह से सच है फिर भी जो बात सच है वो तो सिर्फ उनका छलपूर्ण व्यवहार है क्योंकि ऐसे बहुत सारे आध्यात्मिक गुरु बहाना बनाते हैं और झूठ बोलते हैं |
तो मैं इस प्रकार के भक्ति, सम्मान अथवा श्रद्धा की सीमा पर सवाल करता हूँ की आप कैसे अपने आपको दुसरे के लिए त्याग सकते हैं जहां पर कोई संरक्षण भी नहीं है और ये बात तो खतरनाक तरीके का भक्ति हुआ और ये सोचना के ये लोग आपको ईश्वर की तरह सुरक्षा या आशीर्वाद देने में सक्षम है ये तो उसके बराबर का ही धोका होगा |
मती १५:१४ : “उन्हें छोडो, वे तो अंधों के अंधे नेता हैं | यदि एक अंधा दुसरे अंधे को राह दिखाता है, तो वे दोनों ही गड्ढे में गिरते हैं |”
चोग्यम त्रुन्ग्पा रिन्पोचे जिनको आधुनिक समय का एक बहुत महत्वपूर्ण बौद्ध शिक्षक माना जाता है, उनके साथ जुड़े हुए शम्बाला नामक बौद्ध परम्परा में ऐसे कुछ पहले ही हो चुका है | इस शिक्षक की जगह बाद में उनके ही बड़े बेटे सक्योंग मिफाम रिन्पोचे ने लिया जिनका जन्म नाम ओसल रंग्द्रोल मुक्पो था और उनको सक्योंग और एक श्रद्धेय तिब्बती लामा मिफाम का पुनर्जन्म भी माना जाता है | इस आन्दोलन के पिछे का घोटाला रिन्पोचे और उसके धार्मिक वारिस (त्रुन्ग्पस वज्र रीजेंट) ओसल तेनजिन अथवा थॉमस रिच द्वारा दर्शाया गया अनैतिक व्यवहार है | ये सब कुकर्म पूरे अनैतिक रूप से और नियमनिष्ठा के विपरीत किया गया है जैसे की तेनजिन को एड्स हो गया था और उसने अपने यौन साथीओं को इसके बारे में नहीं बताया था | इसके अलावा उनके एक प्रसिद्ध शिष्य पेमा चोद्रों के मुताबिक़ वो शराब और सेक्स से जुड़े अपने जंगली ज्यादतियों के लिए भी जाना जाता था और उसने सारे नैतिक मापदंडों को भी खारिज कर दिया था और ये भी कहा गया है के उसको पागल आदमी भी माना जा सकता है, फिर भी वो अभी तक एक भक्त हैं और इस बात से ये मालुम होता है ये सिर्फ एक असंतुस्ट साझेदारका सिर्फ निराधार टिपण्णी नहीं है | विडम्बना ये है के कई लामाओं को घोटाले, भ्रष्टाचार और बुराई के विचार के साथ पहचाना गया है; ऐसे अपराध जिसमें इन व्यक्तियों को प्रकोपी बोधिसत्व के रूप में दर्शाया गया है और इन नैतिक खामिओं को गलत रूप से खारिज कर दिया गया है, हालांकि मेरा ये विश्वास है के इन कार्यों के असली रूप को बाइबल के सन्दर्भ में और बेहतर रूप से चित्रित किया जा सकता है |
मती ७:१५-२०
झूठे भविष्यवक्ताओं से बचो ! वे तुम्हारे पास सरल भेड़ों के रूप में आते हैं किन्तु भीतर से वे खूंखार भेडिये होते हैं | तुम उन्हें उन के कर्मों के परिणामों से पहचानोगे | कोई कंटीली झाड़ी से न तो अंगूर इकट्ठे कर पाटा है और न ही गोखरू से अंजीर | ऐसे ही अच्छे पेड़ पर अच्छे फल लगते हैं किन्तु बुरे पेड़ पर तो बुरे फल ही लगते हैं | एक उत्तम वृक्ष बुरे फल नहीं उपजाता और न ही कोई बुरा पेड़ उत्तम फल पैदा कर सकता है | हर वह पेड़ जिस पर अच्छे फल नहीं लगते हैं, काट कर आग में झोंक दिया जाता है | इस्लिए मैं तुम लोगों से फिर दोहरा कर कहता हूँ की उन लोगों को तुम उनके कर्मों के परिणामों से पहचानोगे |
१ जॉन ४:०१
हे प्रिय मित्रों, हर आत्मा का विश्वास मत करो बल्कि सदा उन्हें परख कर देखो की वे, क्या परमात्मा के हैं? यह मैं तुमसे इसलिए कहा रहा हूँ क्योंकि बहुत से झूठे नबी संसार में फैले हुए हैं |
इसके अलावा जिसको दलाई लामा के रूप में माना जाता है और तथाकथित रूप से तिब्बती बौध परम्परा के मुताबिक़ तुल्कुस नामक एक वंशक्रम का पुनर्जन्म हैं, उनको करूणा का बोधिसत्व का प्रकटीकरण माना जाता है और जिसको राष्ट्रीय संरक्षक देवता अवलोकितेस्वर भी कहा जाता है | गेलुग या गेलुग-देहात जिसको पीले रंग के टोपी का सम्प्रदाय भी कहा जाता है, वहाँ पर दलाई लामा अभी भी एक महत्त्वपूर्ण और प्रासंगिक व्यक्ति हैं पर उन्होंने अब तो संन्यास ले लिया होगा पर इस बात को लेकर मैं निश्चित नहीं हूँ के कैसे एक महत्त्वपूर्ण और प्रसांगिक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व और मिसन से दूर भाग सकता है | हालांकि उनको बहुत ज्यादा सम्मान किया जाता है पर एक व्यक्ति के रूप में उनकी सीमाएं हैं और मैंने पहले ही इस बारे में एक लेख लिखा है |
अब आगे बढ़ें तो कर्म के बारे में उनके विश्वासों में विसंगतियां हैं क्योंकि चीनी साम्यवाद के भ्रष्टाचार के तेहत तिब्बती भिक्षुओं और भिक्षुणीओं को उत्पीडन और साम्यवाद का सामना करना पडा जिससे दलाई लामा खुद भी प्रभावित थे | इसीलिए अगर आप इस तर्क पर विश्वास करते हैं तो फिर ये प्रश्न खडा होता है के वास्तव में इस जीवन में या फिर किसी और जीवन में ज्ञान प्राप्त करने का क्या कोई आशा है विशेष करके उन सारे धार्मिक रूप से समर्पित लोगों को देखने के बाद जिनका कर्म के नियम के तहत न्याय हुआ और ये बात तो उनको भी पता चल गया होगा के वो लोग पूरे समय एक टूटे हुए वाहन में सवार थे और उलटी दिशा में जा रहे थे | अगर निजी तौर पर मुझे कहना पड़े तो मैं ये कहूंगा के मेरे विचार में इस पूरे विचार को ही जारी नहीं रखा जा सकता है और भीतर की और विस्फोट होता है क्युंकी उनका खुद का सिस्टम अपने आप ही विनास हो गया है और इसके वजह से लोगों में सब कुछ भाग्य के ऊपर छोड़ देने का एक किसिम का विश्वास का जागरण हो गया और लोग अपने जीवन के सारे नतीजों को कारण और परिणाम या फिर जैसा बोया वैसा ही फल पाया कहके स्वीकार कर लेते हैं | दुसरे चेतनाशील प्राणीओं को मदत करना और दूसरों के दुःख में दया दिखाना भी तो दूसरों के ज्ञानोदय में अवरोध लाना हुआ क्योंकि कर्म के बल के नियम के हिसाब से तो उनको जीवन में दुःख और सजाय मिलना चाहिए पर उनको दया, करूणा और प्रेम से देखना तो इसके विपक्ष का बात है | अंतिम में कैसे एक इंसान उस बात के लिए जिम्मेदार हो सकता है जो उसने अनजाने में पिछले जनम या अस्तित्व में किया था? अंत में इस तरह के दर्शन के दुविधा के वजह से तिब्बती “लोकप्रिय धर्म” को प्रतिक्रियावादी प्रतिक्रिया के रूप में बताया गया है जो नैतिक करणीय या कर्म को हेरफेर या दरकिनार करता है और विभिन्न प्रकार के देवताओं को खुश करने के लिए विभिन्न प्रकार के कर्मकाण्ड करते हैं जो इस पद्धति के बाबजूद इस दार्शनिक विरोधाभास के लिए उपयुक्त साबित नहीं होता है |
वैसे भी इस प्रस्तुति में मैं मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में एक दूसरा विचार भी प्रस्तुत करना चाहता हूँ और ये मैं मौत के निकट के घटनाओं के जारी करना चाहता हूँ जो पुनर्जन्म के दर्शन को ही खंडन करता है क्योंकि बाइबल तो ये कहता है के मृत्यु के बाद एक इंसान को अनंत का न्याय मिलता है और वो कोई दुसरे जीवनकाल या फिर पापमोचन सम्बंधित अस्तित्व के किसी अस्थायी मध्यस्थ मंच में प्रवेश नहीं करते हैं | यहाँ पर मैं एक पूर्व नास्तिक का वीडियो सामेल कर रहा हूँ जिसका एक चिकित्सक के रूप में नैदानिक अनुभव ने संसार पर पुराने शास्त्रीय बौद्ध के स्थिति के अलावा एक दुसरे सच्चाई का भी सबूत दिया है |
इस आन्दोलन के साथ जुडी हुई अन्य कई विवाद ऐसे कई प्रथाओं और विश्वासों के आसपास घूमता है जो इस समूह के नेतृत्व से असंगत है और ये तो पारंपरिक बौद्ध सिद्धांत के विचारों के भी विपरीत है जिसका उदाहरण दलाई लामा का अपने अनुयायीयों को ज्योतिष और ब्रह्माण्ड विज्ञान के साथ जुड़े अंधविश्वास से बचने का सूचना है | यहाँ तक की स्वयं बुद्ध ने भी जादू से जुडी प्रथाओं को छोटी कला बताते हुए उनका निंदा कया था | इसके अलावा सिद्धार्थ गौतम ने कभी भी खुद को देवता या परमात्मा के रूप में नहीं माना और सबसे अच्छे रूप में वो भगवान् की अवधारणा से सम्बंधित अपने विचार में नास्तिक थे | इसके अलावा विचलन करने वाले तांत्रिक अनुष्ठानों के व्यवहार जैसे के प्रकोपी देवताओं को स्पस्ट यौन मुद्रा में कल्पना करने में बौद्ध धर्म के पौराणिक रूप के साथ सामंजस्य नहीं है |
जो बात इस धर्म को और ज्यादा पेंचीदा बनाती है वो है “लोकप्रिय धर्म” के साथ इसका एकीकरण और समन्वयता जो कभी कभी तो इसके साथ संगत रहता है पर ज्यादातर तो ये मान्यता विदेशी है | इस प्रकार से ये बात तो बिलकुल साफ़ है के तिब्बतिओं और शुद्ध बौद्ध सोच के बीच में कोई निरपेक्ष स्थिरता नहीं है क्योंकि इसमें बहुत सारी परिवर्तनीय चीजें हैं जो उनके विश्वास के साथ सामंजस्य तो रखता है पर इस सम्प्रदाय के सर्वोच्च नेतृत्व के साथ उसका संघर्ष है |
इन सभी बातों के साथ उनके कई सारे विश्वास क्षेत्रीय किंवदंतीओं, अंधविश्वासों और उनके तत्काल के संस्कृति के लोककथाओं के वजह से अँधेरे में है क्योंकि वो स्थानीय देवी देवताओं की पूजा करते हैं | उनके विभिन्न कहानिओं में उड़ने वाले भिक्षुओं और दंतकथाओं में शम्बाला का राज्य या फिर छुपे हुए घाटियाँ थे जिसको हिमालय के रहस्यमयी जगहों में सम्पर्कविहीन करके रखा गया था और इसमें ल्हासा के मन्दिरें भी सामेल थे जिसके बारेमें ये बताया गया था के वो जोवो शाक्यमुनी के छवि के सम्पर्क के द्वारा धन्य हो गए थे |
इस धार्मिक आन्दोलन का बुरा पक्ष ये है के वो विभिन्न तांत्रिक गतिविधिओं में सामिल थे जैसे के पेशनीगोई, अटकल और जादुई क्षमता पाने के लिए उर्जा का संकलन |
सारांश में ये सभी बातें शायद आपके आत्माको सता रहा होगा और हो सकता है के आपके मनमें विभिन्न प्रथाओं या अनुष्ठानों के वास्तविकता को लेकर संदेह भी हो के क्या ये सच में ये सब करके सच में ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं जिसमें निम्नलिखित विभिन्न मुश्किल कार्य सामिल हैं:
दीक्षा, श्रद्धा या पसर जाना, प्रसाद और दान, प्रार्थना, तंत्र या मंत्र, गायन, गूढ़ कल्पनाएँ, एकाग्रता और साँस लेने के व्यायाम, समारोहों, उत्सवों, वस्तुओं और अवशेष, मुद्राएं या हाथ इशारों का उपयोग, उनके देवताओं के चित्र और लौकिक के साथ मंडला, सूत्र पढ़ना, प्रार्थना के पहियों को घुमाना, प्रार्थना के झंडे, कैलाश पर्वत या फिर तसा री जैसे पवित्र स्थानों या फिर वस्तुओं और व्यक्तिओं की परिक्रमा करना, दीपक और धूप की पेशकश, पशुओं की बलि, भारत और नेपाल में विभिन्न पवित्र स्थलों का भ्रमण करना और विभिन्न पवित्र शहरों, तीर्थ, मंदिरों, मठों, गुफाओं और पहाड़ों का दौरा करना आदि |, आदि |, आदि |
और ये कर्म और अर्जित योग्यता का सतत चक्र के प्राप्ति का कोई मानक नहीं है और ये तो इस बात पर सिमित है के एक इंसान को कभी ये पता नहीं रहता के निर्वाण प्राप्त करने के लिए उसने पर्याप्त किया है या फिर क्या इसे वो कभी पर्याप्त कर पाएगा | इस सब के बाद कैसा होगा अगर आप अपने जीवन के अंत तक पहुँचते हैं और प्रबुद्धता की प्राप्ति आपको टलते हुए दिखे और उसे पाने की सभी संभावनाएं अगर आपके पहुँच से दूर दिखाई दे? ऐसे अवस्था में क्या होगा अगर एक इंसान को लगे के उन्हें प्रबुद्धता हासिल हो गया है पर वास्तव में उनके साथ केवल धोका हुआ है या फिर उस इंसान का क्या होगा जिसको ये लगा था के वो अपने अंतिम गणतव्य पर पहुँच गया है लेकिन वास्तव में उसके आध्यात्मिक लक्ष्य तक पहुँचने में वो विफल हो गए हों? ये प्रणाली तो अंतिम में जाकर मृत्यु का आड़ लेकर लोगों को दबाता है क्योंकि ये इन्सानको कर्त्तव्य और भय के भावना के तहत अधिक भार देता है और ये दमनकारी व्यवस्था इन कीमती लोगों के जीवन पर निराधार दर्शन के साथ हावी है | पीछे मुड़कर देखें तो यह आध्यात्मिक वास्तविकता के जन्मजात या स्वयं स्पष्ट ज्ञान से निपटने का एक प्रणाली हो सकता है फिर भी सिर्फ लोगों के कल्पनाएँ और अटकलों के आधार पर खुद को अडकलबाजी का शिकार बन्ने देना सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य तो हो सकता है, लेकिन अंत में जाकर ये गलत और बेकार साबित हो सकता है | इसके अतिरिक्त आध्यात्मिक होना इस बात का गारंटी नहीं देता है के आप आत्मिक रूप से सक्षम हैं और इमानदार होने का ये मतलब नहीं है के आप इमानदारी से गलत नहीं हो सकते हैं और अनिवार्य रूप से कोई हमेशा सही भी तो नहीं हो सकता है |
समापन में मैं आपको चुनौती देना चाहता हूँ के आप विश्लेषात्मक ध्यान करते हुए अपना महत्त्वपूर्ण संदेह जारी रखें और तिब्बती बौद्ध शिक्षाओं के बारे में अपना पूछ ताछ जारी रखें और ये सब आपको अपने वर्तमान धार्मिक विश्वदृष्टी से अलग नए अवसरों और सम्भावनाओं के लिए खोलकर आपको पुरस्कृत कर सकता है | मैं आपको प्रोत्साहित करता हूँ के आप यहाँ तक खुला और तैयार रहिए के अपने अमान्य विश्वासों पर पुनर्विचार कीजिए और जान बूझकर हिम्मत करके गलत व्यवहार वाले किसी भी शंकालु आवेदन और अभिव्यक्ति को उनके व्यवस्थित शिक्षाओं और सिद्धांतों के साथ अस्वीकार कीजिए |
अंत में प्रतिक्रिया के रूप में मैं आशा की एक घोषणा करना चाहता हूँ और आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ के अध्यात्मिकता को बचाया जा सकता है क्योंकि येशु परम सत्य हैं और यदि आप उनमें आराम लेने के लिए तैयार हैं तो आपको अपने हृदय के खजाने के बारे में पता चलेगा जो पहले से छिपा हुआ था और आपको इसके बारे में पता नहीं था पर अब “रास्ता” के रूप में खुले तौर पर सबको इसके बारे में पता है |
मती: ११:२८-३०
अरे, ओ थके-मांदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ, मैं तुम्हें सुख चैन दूंगा | मेरा जुवा लो और उसे अपने ऊपर संभालो | फिर मुझ से सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा मन कोमल है | तुम्हें भी अपने लिए सुख-चैन मिलेगा | क्योंकि वह जुआ जो मैं तुम्हें दे रहा हूँ बहुत सरल है | और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है |
ये सब इस कारण से भी मुमकिन हुआ है क्योंकि इसमें कोई सेंसरशिप नहीं है और परमेश्वर ने अपना सन्देश किसी स्थानीय हाशिये धर्म या कोई गुप्त समाज तक सीमित नहीं रखा, बल्की वो इन अद्भूत जातीय तिब्बतिओं सहित सभी जनजाति, जीभ और देश को प्यार करते हैं और गले लगाते हैं |
युहन्ना ३:१६
“परमेश्वर को जगत से इतना प्रेम था की उसने अपने एकमात्र पुत्र को दे दिया, ताकि हर वह आदमी जो उसमें विश्वास रखता है, नस्ट न हो जाए बल्कि उसे अनंत जीवन मिल जाये |”
अंत में येशु अंत तक पहुँचने के साधन हैं क्योंकि वो सभी लोगों को पाप और बुराई से मुक्त करते हैं और ये उनके प्रभावशाली काम के द्वारा पूरा होता है नाकि दूसरों के जैसा जिनका अपूर्ण प्रयास तो अपने खुद के ही प्रभावशाली काम के द्वारा ये सब हासिल करना होता है | यही अनंत काल से येशु का मंत्रालय था जैसा के उनका नाम बताता है के उनके जीवन का बोलावट ही दूसरों को परमात्मा के फैसले से बचाना था और इसके लिए उन्होंने अपने अवतार के माध्यम से बलि के बकरे की भूमिका निभाई और उन्होंने हमारे लिए मरके बलि मोचन के अंतिम कीमत का भुक्तान दे दिया जो एक आदर्श फिरौती था और उनके योग्यता के वजह से हमें अनंत जीवन मिल गया |
ये लेन – देन का अभ्यास प्रामाणिक पश्चाताप के माध्यम से होता है जिसके लिए हजारों अभ्यासित शब्दों की आवश्यकता नहीं है पर सच्चे दिल से किया हुआ सोच ही काफी है क्योंकि ऐसा कहा गया है के ‘जो कोई भी परमेश्वर के नाम को पुकारेगा उसे बचाया जाएगा |’
इसलिए मैं आशा करता हूँ के आप मेरे इस प्रस्ताव पर ध्यान देंगे की आप दीक्षा और अनुभव के सुरुवात के तेहत प्रार्थना के माध्यम से परमेश्वर से बात करेंगे और उन्हें कहेंगे के वो येशु को परम वास्तविकता और ज्ञान के पथ के रूप में आप के सामने प्रकट कर दें | आखिर में इस प्रकार के संवाद या विचार से दूर रहना उस गंभीर सोच से भी दूर रहना होगा जिससे आपने परोपकारी रूप से खुद को तर्क से निर्देशित होने के लिए समर्पित कर दिया है चाहे वो एक पूरा नया दिशा ही क्यों ना हो जिसमें आप गुरुओं, संस्कृति और समाजको अपने विश्वास और प्रथाओं को चलाने ना देकर ये काम सत्य को करने देते हैं |
इसके अलावा मैं ये प्रार्थना करता हूँ के इस नए प्रकाश को देखने और समझने के लिए आपका ध्यान केन्द्रित रहे और आप येशु को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में मानने के शान्ति में स्थायी रूप से रहें |
तो अगर संक्षिप्त में बताएं तो येशु ने ब्रह्माण्ड के निर्माता के रुप में सारी श्रिष्टी और सारे जीवन का उत्पत्ति किआ और सच्चाई के अवतार के रूप में वही सही पथ हैं और बल्कि एकमात्र “रास्ता” हैं | येशु ही “विश्व के प्रकाश” के रूप में रौशन और उज्जवल स्तम्भ हैं जो लोगों के दिल और मस्तिस्क में चमक रहे हैं जिनको वो मुक्त करते हैं और बदलते हैं | ये तो येशु के सम्पूर्ण पवित्रता के वजह से हुआ है जो उनके अनुयायीओं को हस्तांतरित किया गया है जो उनके लिए संपूर्ण तरिका से समर्पित हैं और उनके उद्धार कार्य पर विश्वास करते हैं और वो उनको उनके पापी प्रवृती के खामीओं से स्वतंत्रता देते हैं जिस पापके वजह से सभी लोगों ने पवित्र परमेश्वर का उल्लंघन किया है | अनिवार्य रूप से व्यक्तिगत योग्यता के आधार पर ये सब पूरा नहीं किया जा सकता है क्योंकि कोई भी कभी भी एकदम सही या बहुत अच्छा नहीं हो सकता है इसलिए अच्छा समाचार तो ये है के कानूनी रूप से उचित ये लेनदेन प्राप्तकर्ता को विशेष अनुग्रह के रूप में दिया गया है क्योंकि येशु पूरे दया और करूणा के साथ अपने भक्त को ये मुफ्त का उपहार देते हैं |
अब परमेश्वर के साथ इस रिश्ते के साथ साथ इंसान के जिंदगी में जीवन परिवर्तन करने वाला घटना भी आता है जिसमें अनुयायी को एक नया प्रकृति मिलता है जिसके वजह से वो अच्छा और पुण्य कर्म करने के लिए सक्षम होते हैं जो उनके विश्वास का प्रकटीकरण भी है | यह ज्ञान, हालांकि इसके बौद्ध धर्म के परिभाषा के साथ मेल नहीं खाता, विश्वास के साथ तुरंत आता है और पूरा होने के लिए पूरे या आंशिक जीवन का समय भी नहीं लेता है पर विश्वासी को तुरंत मिल सकता है | इसके अलावा इस वास्तविकता को परमेश्वर के आत्मा द्वारा सत्यापित किया जा सकता है जो हरेक इंसान के लिए व्यक्तिगत रूप से गवाह बनते हैं जिसको ये सन्देश मिलता है के वो वास्तव में सच्चे और जीवित परमेश्वर के संतान हैं |और परमेश्वर का ये संघ किसी प्रकार के ध्यान या फिर योग के वजह से नहीं मिलता है, बल्की मसीह के मध्यस्थता के वजह से मिलता है जिस्से हमें अनन्त जीवन का वादा भी मिलता है जिसके वजह से इंसान के मरने के बाद भी वो कब्र के बाद भी जीता है क्योंकि हमको किसी दुसरे आयाम में स्थानांतरित किया जाता है जो वर्तमान अंतरिक्ष के प्रतिबंधों से घिरा हुआ नहीं है, और ये वास्तविक है जिसको स्वर्गीय निवास भी कहा जाता है |
अंत में मेरे दोस्तों आप लोग भी मेरे साथ हो सकते हैं जहां आपको अपने आत्मा के धार्मिक तड़प को पूरा करने के लिए पूर्ण शान्ति, खुशी और प्यार का परिपूर्णता मिलेगा |
भजन ३४:८
चखो और समझो की यहोवा कितना भला है |
वह व्यक्ति जो यहोवा के भरोसे है
सचमुच प्रसन्न है |
कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएं
jesusandjews.com/wordpress/2012/01/10/कैसे-भगवान-के-साथ-एक-रिश्त/
अन्य संबंधित लिंक
Encyclopedia of Religion Second Edition, copyright 2005 Thomson Gale a part of The Thomson Corporation, Lindsay Jones Editor in Chief, Vol.2, pgs.1150-1159, Matthew T. Kapstein
Encyclopedia of Religion Second Edition, copyright 2005 Thomson Gale a part of The Thomson Corporation, Lindsay Jones Editor in Chief, Vol.13, pgs.9181-9187, Per Kvaerne
Encyclopaedia Britannica,Inc., copyright 1993, Vol.11, pg.756-757, Tibetan Buddhism
AMG’s World Religions and Cults, AMG Publishers, Chattanooga, Tennessee
“Reprinted by permission. “(Nelson’s Illustrated Guide to Religions), James A. Beverley, 2009,Thomas Nelson Inc. Nashville, Tennessee. All rights reserved.”
दलाई लामा ने दुनिया भर के समुदाय से बड़े पैमाने पर सम्मान हासिल किया है पर इसके वजह से ये जरूरी नहीं है के उनके विश्वास और शिक्षा सही हैं.
दलाई लामा एक इंसान हैं और हालांकि वो आध्यात्मिक रूपसे बहुत प्रसिद्ध हों और उन्होंने नोबेल पुरस्कार भी जीता हो पर फिर भी वो रहेंगे तो एक नाश्वर इंसान ही जिसको दिशा और मार्गनिर्देशन की जरूरत रहती है.
कुछ लोगों ने उन्हें एक राजा-देवता का मानद उपाधि दिया है और उनको पवित्र भगवान के रूप में भी देखते हैं.
फिर भी अभी तक उनकी अपनी ही तथाकथित उपाधि और व्यवहार की वास्तविकता उनके अपने ही जीवन की गवाही नहीं देती.
उदाहरण के लिए वो खुद दावा करते हैं की उन्होंने कभी कोई चमत्कार नहीं किया है और कभी कोई चमत्कार नहीं देखा है और उनके शीर्ष सहायक तेव्न्जिन तकल्हा भी इस बात से इनकार करते हैं की दलाई लामा के पास जादुई शक्तियां हैं. जब उनसे ये प्रश्न किया गया के क्या वो निष्पाप अथवा पूर्ण हैं तो उन्होंने हंसकर “बकवास” कहके इस बातको टाल दिया.
उन्होंने अपनी आत्मकथा में ये दावा किया है कि वो अपने गुस्से को काबू में करने में काफि संघर्ष करते हैं और उन्होंने कई सारे अन्तर्वार्ता में ये भी कहा है के वो अपने वासना के साथ भी संघर्ष करते हैं.
इसके अलावा उनके विचार में किसी इंसान को बौद्ध धर्म में परिवर्तन होना बिलकुल आवश्यक नहीं है और नाही वो बौद्ध धर्म के अधिवक्ता हैं जो कहें के ये एक सार्वभौमिक धर्म है. उन्होंने ऐसा दावा किया है क्योंकी बौद्ध धर्म के अपने स्वयं के दार्शनिक शिक्षण में विरोधाभास है जो अगर संक्षेप में कहें तो विचारों में कभी भी संतोषजनक नहीं होगा. तो इसीलिए वो ये निष्कर्ष निकालते हैं की ऐसा जरूरी नहीं है की बुद्ध धर्म सभी लोगों के लिए सबसे अच्छा हो पर वास्तव में मामला ये है के बुद्ध धर्म आपके लिए काम करता है या नहीं.
दलाई लामा भी बौद्ध ज्योतिष और ब्रह्माण्ड विज्ञान के उल्झन में हैं और इसीलिए वो सभी बौद्ध शिक्षणों को स्वीकार नहीं करते हैं.
उन्होंने ये भी कहा है के उनका ये मानना है के बुद्ध ने वास्तव में तिब्बती बौद्ध धर्म सिखाया जो वास्तव में संभव नहीं लगता है क्यों की उस प्रकार के बौद्ध धर्म और बौद्ध धर्म के सबसे पुराने रूप में बहुत ज्यादा फरक है.
एक अन्तर्वार्ता में उन्होंने ये भी स्वीकार किया है की यीशु संपूर्ण प्रकार से प्रबुद्ध थे पर मुझे इस बात से आश्चर्य है के कैसे हम इस बयान में सामंजस्य पाएं क्योंकि यीशु की शिक्षाओं और बुद्ध, जो उनसे कुछ ही शताब्दी पहले के थे, उनकी शिक्षाओं में तो मौलिक रूप से बहुत ज्यादा फरक है. फिर भी यदि यीशु हमें सच कह रहे हैं तो क्या बौद्ध धर्म मानने वालों को भी क्रिस्ट के शिक्षाओं पर विचार नहीं करना चाहिए?
इसके अलावा एक धार्मिक संगठन जो आध्यात्मिकता की भावना को बढ़ावा देता है, उसे अपने हिस्से के परिवादात्मक शिक्षक और संगठन मिल गया है.
उदाहरण के लिए ओम शिनरिक्यो आन्दोलन द्वारा किया गया सरीन गैस विष काण्ड जिसके गुरू असहारा शोको थे जिनको सुरू में दलाई लामा ने समर्थन किया था पर बाद में इस समूह के कार्रवाई की वजह से उन्होंने इस समूह को त्याग दिया.
इसके अलावा हों-मिंग चेन भी हैं जो चेन ताओ अथवा “सही राश्ता” नामक समूह के नेता हैं, उन्होंने ये दावा किया की ईश्वर खुद को टेलीविजन पर प्रकट करेंगे और उसके कुछ दिन बाद अपने-आपको पूरे दुनिया के सामने प्रस्तुत करेंगे जो कभी नहीं हुआ.
इस धार्मिक आंदोलन के भीतर अन्य नेताओं ने यौन शोषण किया, शराब के साथ उनका नाम जोड़ा गया, और यहां तक कि आत्महत्या भी किया है. इन गुरुओं के साथ साथ ऐसे हॉलीवुड व्यक्तित्व भी हैं जिन्होंने परदे पर अभिनय करते समय के भ्रष्टाचार का समर्थन भी किया है जो बौद्ध सोच के पांच सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.
इसके अलावा ऐसे बौद्ध अतिवादी भी हैं जो इसाईओं को सताते हैं और ये बात उनके “कोई बुराई नहीं करने”की नीति का सीधा-सीधा उल्लंघन है.
हालांकि बुद्ध धर्म को विश्व के एक धर्म के रूप में सम्मान दिया जाता है पर अपने दर्शन और नेताओं के बीच कमी-कमजोडी होने के वजह से इस आन्दोलन के विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े हो गए हैं. जो कोई भी एक बौद्ध धर्मावलम्बी के रूप में भक्ति भरा जीवन बिताने के बारे में सोच रहा होगा, मैं उनको सावधान करना चाहता हूँ और इस धार्मिक बहाने के पीछे के सच्चाई के बारे में गंभीर रूप से विचार करने के लिए अनुरोध करता हूँ. और वो लोग जो पहले से ही इस आन्दोलन का हिस्सा हैं, उनको मैं प्रोत्साहित करना चाहूँगा कि इस विषय पर अपने स्थिति के बारे में यीशु को रख कर पुनर्विचार करें जिसको थिच न्हात हंह भी समर्थन करते हैं और दलाई लामा खुद उनको पूर्ण रूप से प्रबुद्ध मानते हैं और जिसको “दुनिया की रोशनी” कहके मानद शीर्षक दिया गया है.
यहुन्ना ८:१२ “फिर वहाँ उपस्थित लोगों से यीशु ने कहा, “मैं जगत का प्रकाश हूँ जो मेरे पीछे चलेगा कभी अँधेरे में नहीं रहेगा. बल्कि उसे उस प्रकाश की प्राप्ति होगी जो जीवन देता है.””
कैसे भगवान के साथ एक रिश्ता बनाएं
jesusandjews.com/wordpress/2012/01/10/कैसे-भगवान-के-साथ-एक-रिश्त/
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“Reprinted by permission. “(Nelson’s Illustrated Guide to Religions), James A. Beverley, 2009,Thomas Nelson Inc. Nashville, Tennessee. All rights reserved.”
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Tibetan Buddhism also referred to as Lamaism incorporates a conglomeration of various traditions such as Mahayana Buddhism, Hinduistic Vajrayana with its esoteric practices as incorporating tantraoccultic techniques for the development of spiritual power as well as the inclusion of the native shamanistic Bon religion with a ranging influence from such cultures as Iran to India as a unique expression of Buddhist thought which is foreign to the most authentic and Orthodox school of Buddhism namely Theravada. This form of Buddhism focuses more on the practice and realization than philosophical speculations with a chief purpose and goal as to provide a fast track to enlightenment in achieving nirvana in a single lifetime.
Some of the difficulty in supporting its truth claims is that as a culture it supports an oral transmission of teaching which, of course, has limitations in that time alters information which becomes lost and misconstrued thus leading me to wonder how much of what has been passed down by these lineage holders is really authentic or original. Moreover this exercise of communication is causation to re-develop and embellish their beliefs as creating yet another religion which is different than its original intent. Therefore if this practice is an absolute necessity for realization then there is no valid means in which to attain with certainty the enlightenment as putting their faith in the first sources. Conclusively those expressions may be no more enlightening than the game of “Telephone” in which one member passes down a story only to have it completely changed by the time it terminates with the last person reciting the message.
Another problem comes as many people have wrongfully entrusted themselves to gurus of various religions which is the same as this movement who herald themselves and their message as being the ultimate truth yet the only matter that is definite is their fraudulent behavior as many of these spiritual teachers fabricate and falsify through lies.
Thus I question the extent of such devotion, respect or reverence as to abandon yourself to the tutelage of another without reservation which is dangerously cultish and it is equally deceptive to think that these individuals are able and capable of bringing you protection or a blessing as if they were a transcendent being or god.
Mt 15:14
And if the blind lead the blind, both will fall into a pit.”
This has already happened within the Buddhist tradition of Shambhala connected with Chogyam Trungpa Rinpoche who is considered one of the most important Buddhist masters of modern times who was latter succeeded by his eldest son Sakyong Mipham Rinpoche born as Osel Rangdrol Mukpo who is viewed as a Sakyong and the reincarnation of Mipham, the revered Tibetan Lama. The scandal to this movement is the immoral behavior exhibited by Rinpoche and his Dharma heir (Trungpas Vajra Regent) Osel Tendzin or Thomas Rich. These misdeeds have been acted out with such unscrupulous behavior as Tendzin contracted aids and did not inform his sexual partners about it. Moreover Rinpoche was known for his wild excesses involving liquor and sex as reported by Pema Chodron, one of his famous disciples, as rejecting ethical norms and even commented that he might even be considered a madman yet strangely enough remains a devotee which shows that this isn’t just an unfounded remark from a disgruntled associate. Ironically many Lamas have been identified with ideas of evil in scandals, corruption; crime in which these moral lapses have been wrongfully dismissed as portraying these individuals as wrathful bodhisattvas however I believe the real context to such actions is better described according to these biblical references.
Mathew 7:15-20
15 “Beware of false prophets, who come to you in sheep’s clothing but inwardly are ravenous wolves. 16 You will recognize them by their fruits. Are grapes gathered from thorn bushes, or figs from thistles? 17 So, every healthy tree bears good fruit, but the diseased tree bears bad fruit. 18 A healthy tree cannot bear bad fruit, nor can a diseased tree bear good fruit. 19 Every tree that does not bear good fruit is cut down and thrown into the fire. 20 Thus you will recognize them by their fruits.
1 John 4:1
4 Beloved, do not believe every spirit, but test the spirits to see whether they are from God, for many false prophets have gone out into the world.
Furthermore Tenzin Gyatso who is referred to as the Dalai Lama and is supposedly, according to Tibetan Buddhist tradition, the rebirth of a line of tulkus in being considered a manifestation of the bodhisaattva of compassion known as Avalokitesvara, the national patron deity. The Dalai Lama remains an influential figure among the gelug or gelug-pa also kwown as the yellow hat sect but is now basically retired even though I am not for sure how such an important or relevant individual is able to withdraw from their personhood and mission. Anyway though greatly respected he still has limitations as an individual and I have previously written a post about him at
jesusandjews.com/wordpress/2010/03/15/the-dalai-lama/
In moving on there are inconsistencies with their belief regarding Karma as it is unthinkable that the Tibetan monks and nuns have rightfully suffered persecution and imprisonment under the corruption of Chinese communism of which even the Dalai Lama himself was affected. Therefore if you still accept this premise the question then becomes whether or not there is really any hope for you to achieve enlightenment in this life or any other life for that matter especially after these religious devoted individuals who have committed or dedicated themselves to this philosophy haven fallen into judgment according to karmic law which should communicate to them that they have been in a dilapidated vehicle all along while driving the wrong direction in life. Personally, I think this whole idea is unsustainable and implodes as their own system has self-destructed as leading to a form of fatalism as a person would need to embrace their outcome in life as payment in regards to the sowing and reaping as a cause and effect to their present situation. This would also include their approach to helping other sentient beings and showing benevolence when others suffer which according to the karmic forces would be deserved and thus to act oppositionally with the virtues of charity, kindness and compassion would be a hindrance in prolonging others enlightenment as they receive their just penalty or punishment in life. Lastly how can a person unknowingly be responsible for something committed in a previous life or existence? Finally the dilemma of such a philosophy has partially lead to the admittance of the Tibetan “Popular Religion” as a reactionary response to manipulate or mitigate/circumvent the law of moral causality or karma as to perform various rituals by appeasing the different gods which regardless of this methodology does not necessarily prove to be adequate to this philosophical dichotomy.
Anyway in this presentation I would like to offer another view of the afterlife or life after death through the experience of near death occurrences which contradicts the philosophy of rebirth as the bible declares that upon death a person will obtain eternal judgment rather than undergoing another lifetime or any temporal intermediary stage of purgatorial existence. I am including a video from a former atheist whose clinical experience as a physician testifies to another reality apart from the classical Buddhist position on Samsara.
Other controversies with this movement revolve around many of the practices and beliefs which are inconsistent with the leadership of this group and are even contrary to the views of traditional Buddhist doctrine such as the Dalai Lama informing his followers to avoid superstitions with astrology and cosmology. Even the Buddha himself denounced practices related to magic in describing them as the low arts. Moreover Siddhartha Gautama never considered himself as a deity or divine and at best was agnostic in his views related to the concept of god. In addition to this is the deviant practice of tantric rituals including visualizations of wrathful deities in explicit sexual poses which lacks harmony with the earliest forms of Buddhism
What further convolutes this movement is their integration and syncretism with “Popular Religion” which at times is compatible to Buddhism yet foreign. Thus it becomes plain to see that there is no absolute consistency between Tibetans and pure Buddhist thought as it incorporates a mixture of variables which are relevant to their faith yet conflict with the supreme leadership of this sect.
Along with all of this many of their beliefs are shrouded in the regional legends, superstitions and folklore of its immediate culture as it worships its local deities. Their varied stories contain such mythical elements as flying monks and fables like the kingdom of shambhala or hidden valleys untouched in the secret recess of the Himalayas and the shrines of Lhasa thought to be blessed by contact with Jowo Sakyamuni image.
On the dark side of this religious movement is their occultist activity such as the channeling of energy for magical abilities, clairvoyance and divination.
In summary perhaps all these things have nagged at your soul and maybe you have wondered as having doubts concerning the reality of these many and varied practices or rituals as being the true means to the end of reaching a state of enlightenment as incorporating the tedious tasks of:
initiation, obeisance’s or prostrations, offerings and donations, prayers, mantras or incantations, recitations, esoteric visualizations, concentration and breathing exercises, ceremonies, festivals, the use of objects and relics, mudras or hand gestures, mandalas with their diagrams of deities and cosmic forces, reciting formulas, spinning prayer wheels, prayer flags, circumambulation of holy places such as mountains like Mount Kailash or Tsa Ri as well as objects and persons, the offering of lamps and incense, reciting the scriptures, ransoming of animals, pilgrimages to various holy cities, temples, monasteries, shrines, caves and mountains in addition to visiting the various sacred sites in India and Nepal, etc., etc., etc.
Also this continuous cycle of work and accrued merit really has no standard of attainment as it is limited in that a person really never knows if they have ever or will ever do enough to gain nirvana. After all what happens when you reach the end of life and the prospect of enlightenment seems to elude you as being outside your reach of attainment? What if a person only thought they achieved it but were really only deceived or what happens to the individual who was convinced that they have arrived at their final destination only to be awakened by a tragic event as communicating their failure to reach their spiritual goal? This system ultimately smothers these people with a cloak of death as it overloads the individual with a sense of duty and fear with an oppressive system as dominating the lives of these precious people with an unfounded philosophy. In retrospect it may be a system of dealing with the innate or self-evident knowledge of a metaphysical reality yet to subject oneself to speculation based merely in the tradition and imagination of men may appear to be culturally acceptable but in the end prove to be erroneous and useless. Additionally to be spiritual is not guarantee that you are spiritually competent and to be sincere does not mean that you can’t be sincerely wrong and inevitably not ever one can be right.
In closing I would like to challenge you as you perform analytical meditation to continue your critical skepticism as questioning the Tibetan Buddhist teachings which could prove to be rewarding as opening yourself up to new opportunities and possibilities apart from your present religious worldview. I encourage you to be willing and open to go as far as to even rethink your beliefs which may be invalid as willfully and courageously rejecting, if doubtful, any application and expression towards wrong or inadequate mannerisms and behaviors along with their systematized teachings or doctrines.
Finally in response I would like to make a proclamation of hope as reassuring you that spirituality can be salvaged as Jesus is the ultimate truth and if you are willing to take your rest in Him you will discover the treasure of your heart which has been previously hidden and unknown to you but is now openly revealed as the “Way”.
Mt: 11:28-30
28 Come to me, all who labor and are heavy laden, and I will give you rest. 29 Take my yoke upon you, and learn from me, for I am gentle and lowly in heart, and you will find rest for your souls. 30 For my yoke is easy, and my burden is light.”
This is all possible as there is no censorship in that God did not confine His message to a localized fringe religion or a secret society but rather He loves and embraces every tribe, tongue and nation including these wonderful ethnic Tibetans.
John 3:16
16 “For God so loved the world, that he gave his only Son, that whoever believes in him should not perish but have eternal life.
Finally Jesus is the means to the end as He cleanses all people from sin and evil which is accomplished by his efficacious work apart from the imperfect attempts of others to attain personal justification. This was Jesus’ ministry from all eternity as His name refers to His calling in life as saving others from divine judgment as He played the role of a scapegoat through His incarnation as paying the ultimate price of sacrificial redemption as dying on our behalf as a perfect ransom whereby we have gained His merit towards receiving eternal life.
This transaction happens through authentic repentance which doesn’t take thousands of rehearsed words but can take place from a simple thought as expressed from a sincere heart in that ‘whoever calls upon the name of the Lord shall be saved.’
Therefore I hope that you will meditate on what I have proposed and that through the initiation of action and experience to prayerfully speak to God by asking Him to reveal Jesus in a tangible way as the ultimate reality and path to enlightenment. After all to avoid this form of dialogue or thought is to offset the very system of critical thinking by which you have altruistically committed yourself to in permitting logic to direct you even if it is in a whole new direction as allowing the Truth rather than gurus, culture and society to drive your belief and practices.
Moreover I pray that you will become focused or fixated as visualizing this new revelation as calmly abiding in the peace of knowing Jesus as the your only Lord and Savior.
So to recap, Jesus has originated all life as the Creator of the universe and is the correct path as the embodiment of truth in being the only “Way.” Jesus is the illuminating and radiant beacon as the “Light of the World” shining in the hearts and minds of others which He renews and liberates. It is Jesus’ merit of total righteousness which has been transferred and bestowed to His followers who are fully devoted to Him as trusting in His saving work as He delivers by bringing them freedom from the imperfections of their immoral nature by which everyone has violated a holy God. Essentially this can’t be accomplished by personal merit as no one can ever be perfect or good enough thus the good news is that this transaction of legal or forensic righteousness is bestowed to the recipient as an action of special grace as Jesus mercifully and compassionately offers this free gift to the devotee.
Now alongsie of this relationship with God comes a life changing event in which the adherent receives a new nature which enables them to do good and virtuous deeds as a manifestation of the truth by which they have believed. This enlightenment, though not in type to Buddhism’s definition of the term, comes immediately by faith and does not take a partial or even a whole life to accomplish but can instantaneously be reckoned to the believer. Furthermore this reality can be attested to by the Spirit of God who personally bears witness to every person who receives this message that they are indeed a child of the one and true living God. Moreover this union with God is not accomplished through the efforts of meditation or yoga but rather through the mediation which occurs in Christ by which we are given the promise of eternal life so that even though a person might die yet shall they live beyond the grave as we are transferred or translated to another dimension apart from the restrictions of this present space, time reality namely a heavenly abode.
Finally my friend may you join me as you find the fullness of peace, joy and love in truly filling the religious yearning of your soul.
Psalms 34:8
Oh, taste and see that the Lord is good!
Blessed is the man who takes refuge in him!
How to have a relationship with God
Other links
jesusandjews.com/wordpress/my-personal-testimony-with-jesus/
www.cbn.com/700club/features/amazing/
Encyclopedia of Religion Second Edition, copyright 2005 Thomson Gale a part of The Thomson Corporation, Lindsay Jones Editor in Chief, Vol.2, pgs.1150-1159, Matthew T. Kapstein
Encyclopedia of Religion Second Edition, copyright 2005 Thomson Gale a part of The Thomson Corporation, Lindsay Jones Editor in Chief, Vol.13, pgs.9181-9187, Per Kvaerne
Encyclopaedia Britannica,Inc., copyright 1993, Vol.11, pg.756-757, Tibetan Buddhism
AMG’s World Religions and Cults, AMG Publishers, Chattanooga, Tennessee
“Reprinted by permission. “(Nelson’s Illustrated Guide to Religions), James A. Beverley, 2009,Thomas Nelson Inc. Nashville, Tennessee. All rights reserved.”
The Holy Bible, English Standard Version® (ESV®) Copyright © 2001 by Crossway, a publishing ministry of Good News Publishers. All rights reserved. ESV Text Edition: 2007
दलाई लामाले संसारभरिका समुदायहरूबाट सम्मान पाएका छन् तर यसको मतलब यो होइन कि उहाँको विश्वास र शिक्षा साँचो छ│
दलाई लामा एक मानिस हुन् र उहाँले आध्यात्मिक प्रसिद्धि कमाएपनि र शान्तिको लागि नोबेल पुरस्कार पाए पनि उहाँ नाशवान हुनुहुन्छ जसलाई दिशा र मार्गदर्शनको आवस्यकता पर्दछ│
केहि मानिसहरूले उहाँलाई एक राजा-देवताको मानद उपाधि पनि दिएका छन र उहाँलाई एक पवित्र भगवानको रूपमा हेर्छन्│
तर पनि अहिलेसम्म उहाँको आफ्नै गवाहिले पनि यस्ता उपाधि र लक्षणहरूलाई साँचो भनेर समर्थन गर्दैन│
उदाहरणको लागि उहाँले दाबी गर्नुहुन्छ कि उहाँले कहिल्यै कुनै आस्चर्यकर्म गर्नुभएको छैन र कहिल्यै कुनै आस्चर्यकर्म देख्नुभएको पनि छैन र यहाँसम्म कि उहाँको शीर्ष सहायक तेन्जिन तक्ल्हाले पनि यो कुरा अस्विकार गर्छन कि उहाँसंग जादुको शक्ति छ│ जब उहाँलाई सोधियो कि के उहाँ निष्पाप हुनुहुन्छ अथवा परिपूर्ण हुनुहुन्छ तब उहाँले यो कुरालाई ‘नचाहिने कुरा’ भनेर हाँसोमा उडाइदिनुभयो│
आफ्नो आत्मकथामा उहाँले यो दाबी गर्नुभएको छ कि उहाँलाई आफ्नो रिसलाई नियन्त्रण गर्न गाह्रो हुन्छ र धेरै अन्तर्वार्तामा उहाँले यो पनि भन्नुभएको छ कि उहाँले वासनासंग संघर्ष गर्नुपरेको छ│
यो बाहेक उहाँको विचारको बारेमा कुरा गर्ने हो भने उहाँलाई यो लाग्दैन कि बुद्ध धर्ममा परिवर्तन हुनु सम्पूर्ण रूपमा आवस्यक छ र उहाँले बुद्ध धर्मलाई एक सार्वभौमिक धर्मको रूपमा समर्थन गर्नुहुन्छ│ उहाँले यस्तो दाबी गर्नु पछाडिको कारण चाहिं यो हो कि बुद्ध धर्म को आफ्नो दार्शनिक शिक्षामा नै विरोधाभास छ जुन संक्षेपमा भन्ने हो भने आफ्नो विचारमा सम्पूर्ण रूपले सन्तोषजनक हुनसक्दैन│ त्यसैले उहाँले यो निस्कर्ष निकाल्नुहुन्छ कि यो आवस्यक छैन कि बुद्ध धर्म नै सबैकलागी राम्रो हुन्छ तर अन्तिममा कुरा के आउंछ भने बुद्ध धर्मले तपाइंको लागि चाहिं काम गर्छ कि गर्दैन│
दलाई लामा बुद्ध ज्योतिष र ब्रह्माण्ड विज्ञानको बारेमा पनि संदेह्मा हुनुहुन्छ र तसर्थ उहाँले सबै बुद्ध शिक्षालाई स्वीकार गर्नुहुन्न│
उहाँले यो पनि भन्नुभएको छ कि बुद्ध स्वयम्ले पनि तिब्बती बुद्ध धर्म सिकाउनु भयो तर त्यो सम्भव हुन सकेन किनकि यो प्रकार को बुद्ध धर्ममा र पुरानो बुद्ध धर्ममा धेरै विरोधाभास थिए│
एउटा अन्तर्वार्तामा उहाँले यो पनि स्विकार्नु भयो कि येशु पूर्ण रूपले प्रबुद्ध हुनुहुन्थ्यो तर मलाई उहाँको यो कुरा सुनेर आश्चर्य लाग्छ किनकि येशुको शिक्षा त बुद्धको शिक्षा भन्दा पूर्ण रूपले फरक थियो, बुद्ध जो उहाँ भन्दा केहि शताब्दी अगाडी बाँचेका थिए│ तर पनि यदि येशुले सत्य भनिरहनुभएको छ भने के बुद्ध धर्म मान्नेहरूले येशुको शिक्षालाई पनि बराबर रूपमा मान्नु पर्दैनथियो?
यो बाहेक एक धार्मिक संगठन जसले आध्यात्मिकताको भावनालाई सधैं प्रोत्साहन गर्छ उसले आफ्नो भागको परिवादात्मक शिक्षकहरू र संगठनहरू पाइसकेको छ│
जस्तै ओम शिनरिक्यो आन्दोलन, जसको गुरु नेता आशारा शोको थिए, त्यसले गरेको सरिन गैसको विषालु काण्ड जसको समर्थन दलाई लामाले गरेका थिए तर समूहको कार्यवाहीको कारणले पछी त्यस कुरालाई उहाँले त्याग गरेका थिए│
त्यस्तै हों-मिंग चेन पनि हुनुहुन्छ जो चेन ताओको नेता हुनुहुन्छ जसलाई “सत्य बाटो” पनि भानिन्छ जसले यो दाबी गर्नुभयो कि परमेश्वरले आफूलाई टेलिभिजनमा प्रकट गर्नुहुन्छ र त्यसको केही दिनपछि आफूलाई संसारको सामू प्रस्तूत गर्नुहुन्छ भनेर पनि दाबी गर्नु भयो तर त्यो दिन कहिल्यै पनि आएन│
यो धार्मिक आन्दोलनका अरू नेताहरूले यौन शोषण गरेका छन्, रक्सी सेवन गरेका छन् र केहिले त आत्महत्या समेत गरेका छन्│ यी गुरुहरूका साथमा त्यस्ता मानिसहरू पनि छन् जसले आफ्नो हॉलीवुड व्यक्तित्वको मदतले पर्दाको अभिनयको पेशाको भ्रस्टाचारलाई अपनाएका छन् जून कुराले बुद्ध धर्मको सोचको पांच सिद्धान्तलाई उल्लङ्घन गर्दछ│
अझ भन्ने हो भने बौद्ध अतिवादीहरू पनि छन् जसले इसाइहरूलाई सताइरहेका छन् जुन उनीहरूको “कसैलाई हिंसा नगर्ने” नीतिको सोझो उल्लङ्घन हो│
बुद्ध धर्मलाई संसारको एक धर्मको रूपमा सम्मान गरिए पनि त्यसको दर्शन र नेताहरूको कमजोडीका कारणले यो धर्मको विश्वसनीयतामाथि नै प्रश्नचिन्ह खडा भएको छ│ एउटा बुद्धिस्टको रूपमा भक्तिको जीवन बाँच्न चाहनेहरूलाई म सावधान गर्न चाहन्छु र यस धर्मको पछाडी रहेको सत्यको बारेमा गम्भीरताका साथ विचार गर्नको लागि अनुरोध गर्न चाहन्छु│ ती मानिसहरू जो यस आन्दोलनको एक भाग बनिसकेका छन्, म तपाईंहरूलाई केवल अनुरोध गर्न चाहन्छु कि यो विषयमा आफ्नो अवस्थाबारे दोहोर्याएर सोच्नुस र सोच्ने बेलामा येशुको बारेमा पनि ध्यान दिनुहोस् जसलाई थिच न्हत हंहले अपनाएका छन् र जसलाई दलाई लामा आफैले पूर्ण रूपमा प्रबुद्ध भएको भनेर मानेका छन् र जसलाई “संसारका ज्योति” भनेर मानद शीर्षक दिइएको छ│
यूहन्ना ८:१२ “फेरी मानिसहरुसंग बोल्नुहुँदा येशुले भन्नुभयो, “मा संसारको ज्योति हुँ│ जसले मलाई पछ्याउँछ, त्यो कहिल्यै अँध्यारोमा हिंडडुल गर्नेछैन, तर त्यसले जीवनको ज्योति पाउनेछ│””
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“Reprinted by permission. “(Nelson’s Illustrated Guide to Religions), James A. Beverley, 2009,Thomas Nelson Inc. Nashville, Tennessee. All rights reserved.”
The Dalai Lama has achieved respect from the worldwide community at large but that does not necessitate the truthfulness of his beliefs or teachings.
The Dalai Lama is a man and though he has achieved a renowned spiritual status as well as a Nobel peace prize he still remains a mere mortal who needs direction and guidance.
Some have given him the honorary title as a god-king and refer to him as holy Lord.
Yet his own testimony does not bear witness to the reality of these supposed tiles and traits.
For instance he claims that he has never done a miracle nor has he ever seen one done and even his top aid Tewnzin Taklha denies that he has magical powers. When questioned on whether or not he was sinless or perfect he laughed exclaiming “nonsense”.
In his autobiography he claims that he struggles in controlling his temper and on several interviews he states that he struggles with lust.
Also concerning his views he doesn’t see it as absolutely necessary to convert to Buddhism nor is he an advocate of Buddhism being the one universal religion. He claims this because Buddhism has contradictions in its own philosophical teaching which in essence will not be completely satisfactory in all of its views. So therefore he declares that Buddhism isn’t necessarily the best for everyone but rather it comes down to the matter on whether or not it works for you.
The Dalai Lama also is skeptical of Buddhist astrology and cosmology and therefore does not accept all Buddhist teaching.
He also stated that he believes that the Buddha taught Tibetan Buddhism which could not be possible due to the contrast of this type of Buddhism versus the oldest forms of Buddhism.
On interview he also admitted that Jesus was a fully enlightened being but I wonder how we can reconcile this statement since Jesus teachings are so radically different from those of the Buddha who lived just a few centuries before His time. Yet if Jesus is sharing with us truth then shouldn’t Buddhist’s equally consider the teachings of Christ?
Also for a religious organization which promotes a sense of spirituality it has had it share of scandalous teachers and organizations.
Like the sarin gas poisonings done by the Aum Shinrikyo movement whose guru leader was Asahara Shoko whom was originally endorsed by the Dalai Lama but was later renounced due to the group’s actions.
Also there is Hon-Ming Chen who is the leader of Chen Tao or the “True Way” who claimed that God would reveal himself on television and then a few days later to the whole world which of course never came to pass.
Other leaders within this religious movement have exercised sexual abuse, alcoholism, and even suicide. Also along with these gurus are those who through their Hollywood personality have endorsed the corruption of their screen acting profession which conflicts and violates the five principles of Buddhist thought.
In addition to his there are Buddhist extremists that are persecuting Christians which is a violation to their “do no harm” policy.
Though Buddhism may be respected as a world religion its shortcoming among its philosophy and leaders call to question the credibility of this movement. I would caution those who would be considering a devotional life as a Buddhist to seriously consider the reality behind this religious façade. For those who are apart of the movement already I would just like to encourage you to reconsider your position on this matter by considering Jesus whom Thich Nhat Hanh endorses and the Dalai Lama himself acclaims as being the fully enlightened one whose honorary title bears the name “Light of the World.”
John 8:12 12 When Jesus spoke again to the people, he said, “I am the light of the world. Whoever follows me will never walk in darkness, but will have the light of life.”
“Reprinted by permission. “(Nelson’s Illustrated Guide to Religions), James A. Beverley, 2009,Thomas Nelson Inc. Nashville, Tennessee. All rights reserved.”